Author : Aarshi Tirkey

Published on Mar 14, 2022 Updated 0 Hours ago

यूक्रेन पर रूसी हमले के ख़िलाफ़ ठोस कदम उठाने में यूएनएससी की अक्षमता संयुक्त राष्ट्र की प्रासंगिकता पर सवाल खड़े करती है.

यूक्रेन के ख़िलाफ़ रूसी आक्रमण पर यूएनजीए में वोट

यूक्रेन पर रूसी आक्रमण तीसरे सप्ताह में प्रवेश कर चुका है और युद्धग्रस्त यूक्रेन की तस्वीरें अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में लगातार सामने आ रही हैं. संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी के अनुमान के मुताबिक़ करीब चार मिलियन से ज़्यादा यूक्रेन के शरणार्थियों को भविष्य में सहायता और सुरक्षा की आवश्यकता होगी.  राजनयिकों, नीति निर्माताओं, शिक्षाविदों और एक्टिविस्ट एक सुर से रूस के एक संप्रभु और स्वतंत्र देश के ख़िलाफ़ आक्रामकता और “विशेष सैन्य अभियान” की निंदा कर रहे हैं जबकि यूक्रेन ने आत्मरक्षा के अपने अधिकार को आख़िरकार अमल में लाना शुरू कर दिया है.

राजनयिकों, नीति निर्माताओं, शिक्षाविदों और एक्टिविस्ट एक सुर से रूस के एक संप्रभु और स्वतंत्र देश के ख़िलाफ़ आक्रामकता और “विशेष सैन्य अभियान” की निंदा कर रहे हैं जबकि यूक्रेन ने आत्मरक्षा के अपने अधिकार को आख़िरकार अमल में लाना शुरू कर दिया है.

रूसी हमले के शुरुआती दिनों से ही यह साफ हो गया था कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) इस मुद्दे पर विचार-विमर्श करने और किसी भी प्रकार की निर्णायक कार्रवाई करने में असमर्थ होगा. रूस-संयुक्त राष्ट्र के पांच स्थायी सदस्यों में से एक- वीटो पावर रखता है और इसलिए संयुक्त राष्ट्र परिषद के लिए मौजूदा संकट पर कोई प्रस्ताव पारित करना असंभव है. 25 फरवरी को मॉस्को ने यूक्रेन युद्ध को ख़त्म करने के लिए एक मसौदा प्रस्ताव को वीटो कर दिया था, जिसके परिणामस्वरूप कीव के स्थायी प्रतिनिधि की ओर से इसकी कड़ी आलोचना की गई.

चूंकि संयुक्त राष्ट्र परिषद अपने स्थायी सदस्यों के बीच सर्वसम्मति की कमी के कारण अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने की अपनी प्राथमिक ज़िम्मेदारी का निर्वहन नहीं कर पा रही है लिहाज़ा यूएनएससी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) का एक आपातकालीन विशेष सत्र बुलाने के लिए मतदान करवाया. यह एक विशेष प्रक्रिया है जिसे ‘यूनाइटिंग फॉर पीस’ संकल्प के जरिए अमल में लाया गया था और जो यूएनजीए को इस मामले पर विचार करने और अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बहाल करने के लिए सशस्त्र बल के उपयोग सहित ज़रूरी सिफारिशें करने की अनुमति देता है. यह विशेष प्रक्रिया तब शुरू की जा सकती है जब यूएनएससी के नौ सदस्यों (या अधिक) में से कोई एक समर्थन में मतदान करता है. इस प्रस्ताव के पक्ष में 11 मत मिलने के बाद यूएनजीए ने 28 फरवरी और 2 मार्च 2022 के बीच यूक्रेन संकट पर एक आपातकालीन विशेष सत्र का आयोजन किया.

यूनाइटिंग फॉर पीस संकल्प क्या है?

यूनाइटिंग फॉर पीस प्रस्ताव को 1950 में अपनाया गया था जिसका मक़सद कोरियाई युद्ध के दौरान सोवियत संघ द्वारा वीटो शक्तियों के दुरुपयोग को रोकना था. जबकि यह संकल्प स्वयं संयुक्त राष्ट्र महासभा की क्षमता के बारे में व्याख्या करता है कि वह कई तरह के उपायों की सिफ़ारिश कर सकता है- जिसमें सशस्त्र बल का उपयोग भी शामिल है. हालांकि यह बाध्यकारी नहीं है. यूएनएससी संयुक्त राष्ट्र का इकलौता ऐसा हिस्सा है जिसके जरिए ज़बर्दस्ती करने और सदस्य राज्यों को उन्हें अपनाने के लिए अनिवार्य करने की विशेष शक्ति निहित है. इससे पहले भी ऐसे 10 मौके हैं जब ‘यूनाइटिंग फॉर पीस’ प्रस्ताव के तहत इस प्रक्रिया को लागू किया जा चुका है. इससे पहले, आपातकालीन विशेष सत्र साल 1982 में बुलाया गया था, एक बार सीरिया और इज़रायल से जुड़ी स्थिति के संबंध में और दूसरी बार 1980 में सोवियत-अफ़ग़ान युद्ध भड़कने के बाद.

विश्लेषकों ने इस बात पर चर्चा की है कि इस आपातकालीन सत्र का नतीजा क्या होगा- यह मानते हुए कि यह कार्रवाई के नाम पर रूस की आक्रामकता की निंदा करने से लेकर मुल्कों को एकतरफा प्रतिबंध लगाने की सिफ़ारिश करने तक जा सकता है. पिछले कुछ आपातकालीन विशेष सत्रों का नतीजा यह रहा कि इससे शांति सेना की स्थापना, जांच आयोग की स्थापना, विदेशी सैनिकों की वापसी का आह्वान, शरणार्थियों को सहायता पहुंचाना और अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) की राय के लिए अनुरोध करना शामिल है. हालांकि पिछले नतीजों से साफ है कि इस प्रक्रिया ने स्पष्ट रूप से ‘बल के प्रयोग’ के विकल्प को अधिकृत करने से रोक दिया है.

इस प्रस्ताव में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की कड़ी निंदा की गई है और कहा गया कि यह संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 2(4) का खुले तौर पर उल्लंघन है, जो किसी अन्य देश की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के ख़िलाफ़ धमकी या बल के प्रयोग को प्रतिबंधित करता है. 

मौजूदा वक्त में, जब यूएनजीए में यूक्रेन संकट पर बहस चल रही है तो यह साफ हो गया है कि यह प्रस्ताव निश्चित रूप से रूस की आक्रामकता की आलोचना करेगा. एंटीगुआ और बारबुडा जैसे छोटे, विकासशील देश का प्रतिनिधित्व करने वाले सदस्य मुल्कों ने कहा कि “यह शायद सही नहीं है”, और यह कि इसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने की ज़िम्मेदारी अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की है और “हमारी चुप्पी को सहमति के रूप में ग़लत तौर पर नहीं समझा जाए”. पलाऊ जैसे देश के प्रतिनिधि ने यूक्रेन पर आक्रमण के लिए राष्ट्रपति पुतिन की तुलना तो “1930 के दशक में चेकोस्लोवाकिया से सुडेटेनलैंड के अधिग्रहण के लिए हिटलर के औचित्य” की याद दिलाते हुए की और यहां तक कह दिया कि उनकी आक्रामक कार्रवाई नियम-आधारित विश्व व्यवस्था को तबाह कर सकती है. कई मुल्क के वक्ताओं ने तो ऐसे समय में यूक्रेन के लोगों के लिए मानवीय सहायता, देश से पलायन करने वालों के लिए सुरक्षित मार्ग दिए जाने और मानवाधिकारों की अहमियत पर जोर दिया.

3 मार्च को इस प्रस्ताव को भारी बहुमत से पारित किया गया, जिसमें 141 सदस्य देशों ने प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया, जबकि 35 देशों ने इससे परहेज़ किया (भारत, दक्षिण अफ्रीका, बांग्लादेश, चीन, आर्मेनिया और पाकिस्तान सहित), और तो और पांच देश – बेलारूस, उत्तर कोरिया, इरिट्रिया, रूस और सीरिया – ने प्रस्ताव के विरुद्ध मतदान किया. इस प्रस्ताव में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की कड़ी निंदा की गई है और कहा गया कि यह संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 2(4) का खुले तौर पर उल्लंघन है, जो किसी अन्य देश की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के ख़िलाफ़ धमकी या बल के प्रयोग को प्रतिबंधित करता है. इसमें यूक्रेन के ख़िलाफ़ रूस के हमले को फौरन रोकने और देश से अपने सैन्य बलों को वापस लेने की मांग की गई. इस प्रस्ताव के द्वारा गैरकानूनी तरीक़े से बल प्रयोग करने पर बेलारूस की भी निंदा की गई और देशों से अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून के सिद्धांतों का सम्मान करने की अपील की गई और तुरंत संघर्ष के शांतिपूर्ण समाधान का आग्रह किया गया है.

आगे क्या है?


यूएनएससी में गतिरोध के साथ और यूक्रेन में संकट के तेजी से बढ़ने के संदर्भ में यूएनजीए के लिए इस मामले पर चर्चा करना आवश्यक होता जा रहा था. इसी तरह का संकट साल 2012 में सीरियाई संकट के दौरान देखा गया था, जब यूएनएससी चीन और रूस के वीटो के कारण कोई कार्रवाई करने में असमर्थ हो गया. हालांकि बाद में यूएनजीए ने कड़े शब्दों में एक संकल्प (‘युनाइटिंग फॉर पीस’ प्रक्रिया के तहत नहीं) को 137 के मुक़ाबले 12 के अंतर से अपनाया, जिसमें 17 देशों ने वोटिंग से परहेज़ किया था. जैसा कि मौजूदा प्रस्ताव के साथ है, यूक्रेन पर यह बाध्यकारी नहीं था – लेकिन इस स्थिति को लेकर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की रूस की आलोचना व्यक्त करने के मक़सद से यह किया गया. जैसे ही यूएनएससी के प्रति निराशा बढ़ी, यूएनजीए ने एक कदम और आगे बढ़कर किसी तरह की कार्रवाई करने में यूएनएससी की नाकामी को लेकर सवाल खड़े किए.

दरअसल यूक्रेन पर यूएनजीए का प्रस्ताव यूक्रेन पर रूस के सैन्य हमले की अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की कड़ी निंदा का हिस्सा है. मालदीव के विदेश मंत्री अब्दुल्ला शाहिद- जो फिलहाल यूएनजीए के अध्यक्ष हैं – उन्होंने बैठक की अध्यक्षता की और इस बात पर ज़ोर दिया कि ये सभा मानवता का सामूहिक विवेक प्रस्तुत करती है.

दूसरी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं भी संकट से निपटने के विकल्पों को तलाश रही हैं और यह निर्धारित करने में लगी हैं कि इसकी जवाबदेही तय की जा सकती है या नहीं. अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (आईसीसी) के अभियोजक ने घोषणा की कि वह यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की जांच शुरू करेगा, और यह कहते हुए कि उसके पास यह मानने का “उचित आधार” है कि यूक्रेन में युद्ध अपराध हुए हैं. यूक्रेन पर आईसीसी का अधिकार क्षेत्र है, क्योंकि यूक्रेन की सरकार ने साल 2015 में आईसीसी के जनादेश को स्वीकार कर लिया था. यूक्रेन ने रूस के ख़िलाफ़ अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) में भी शिकायत दर्ज़ करा दिया है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि अदालत के पास रूस के खिलाफ़ आगे बढ़ने के लिए पर्याप्त अधिकार है या नहीं.

जैसा कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है, यह देखना अभी बाकी होगा कि क्या आने वाले दिनों में ज़मीनी स्तर पर इससे कोई स्पष्ट फायदा मिल पाएगा. कुछ दिनों पहले रूस और यूक्रेन के वार्ताकारों ने बैठक की, अब तक तीन दौर की वार्ता भी हो चुकी है, इस मक़सद से कि युद्धग्रस्त क्षेत्र में फंसे लोगों को निकलने के लिए मानवीय गलियारा दिया जा सके और जल्द से जल्द सीज़फ़ायर को लेकर बातचीत शुरू हो सके लेकिन ऐसे समय में जब सभी देश रूस से हमले को रोकने और कूटनीति को बहाल करने की अपील कर रहे हैं तब यूक्रेन का संकट यूएनएससी की ताक़त, अधिकार और प्रासंगिकता पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है.

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