Author : Harsha Kakar

Published on Dec 17, 2018 Updated 0 Hours ago

पाकिस्तान की पंजाब में आतंक फैलाने की बैचेनी, जो अमृतसर में हाल के बम विस्फोट से जाहिर है, इस बात का संकेत है कि उसे लगने लगा है कि कश्मीर अब हारी हुई जंग है या इसमें अब आगे कुछ हो पाना मुमकिन नहीं है।

कश्मीर में पाकिस्तान के हाईब्रिड संघर्ष की हार का आग़ाज़?

सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने “21 वीं सदी में हाइब्रिड संघर्ष की चुनौतियों से निपटना” विषय पर आयोजित वाई. बी. चौहान स्मारक व्याख्यान में अपने सम्बोधन में कहा कि भारत को पाकिस्तान द्वारा भड़काए जा रहे हाईब्रिड संघर्ष से निपटने के एकीकृत दृष्टिकोण के माध्यम से सबसे पहले जम्मू कश्मीर की समस्याओं को हल करना चाहिए और उसके बाद ही पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को दोबारा हासिल करने जैसी भावनाओं को प्रश्रय देना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि उसे पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को दोबारा हासिल करने के लक्ष्य से भी अपना ध्यान नहीं हटाना चाहिए।

हाईब्रिड संघर्ष सर्वव्यापी शब्द है, जिसके तहत दुश्मन को उसकी सैन्य क्षमताओं को तबाह करने से भी ज्यादा नुकसान पहुंचाया जाता है। इसके दायरे में साइबर और सूचना के माध्यम सहित समस्त परम्परागत और अनियमित युद्ध कौशल आते हैं। इसमें लक्षित देश में आंतरिक अव्यवस्था फैलाना भी शामिल है। लिहाजा, हाईब्रिड संघर्ष शब्द भले ही सर्वव्यापी हो, यह सम्पूर्ण युद्ध की कगार तक नहीं पहुंचता तथा शांति और युद्ध दोनों समय जारी रहता है।

कश्मीर में पाकिस्तान द्वारा छेड़े गए ‘हाईब्रिड संघर्ष’ के तहत 1947-48 और 1965 के युद्धों में अनियमित सैनिकों का इस्तेमाल, कारगिर दुस्साहस, पत्थरबाजों को सुरक्षा बलों की कार्रवाइयों को बाधित करने के लिए उकसाना, बंद का आह्वान और स्कूल बंद होना, स्कूलों को आग के हवाले करना और सुरक्षा बलों और उनके विचारों का समर्थन न करने वाले स्थानीय लोगों को निशाना बनाने के लिए आतंकवादियों की घुसपैठ कराना जैसी गतिविधियां शामिल हैं। आर्थिक संघर्ष के अंतर्गत जाली मुद्रा को देश में पहुंचाना और आंतरिक असंतोष भड़काने के लिए धन उपलब्ध कराने के लिए हवाला से लेन-देन कराना हाईब्रिड संघर्ष का ही अभिन्न अंग है। इसके अंतर्गत सोशल मीडिया के जरिए दुष्प्रचार करके जनता को सरकार के खिलाफ करना भी शामिल है।

हाईब्रिड संघर्ष सर्वव्यापी शब्द है, जिसके तहत दुश्मन को उसकी सैन्य क्षमताओं को तबाह करने से भी ज्यादा नुकसान पहुंचाया जाता है। इसके दायरे में साइबर और सूचना के माध्यम सहित समस्त परम्परागत और अनियमित युद्ध कौशल आते हैं। इसमें लक्षित देश में आंतरिक अव्यवस्था फैलाना भी शामिल है।

पाकिस्तान से गतिविधियां चलाने वाले आतंकवादी ही कश्मीरी पंडितों के नरसंहार और जम्मू कश्मीर से उनका पलायन कराने, उस क्षेत्र की जनसांख्यिकी को हमेशा के लिए बदल डालने के लिए जिम्मेदार हैं, जो संघर्ष का विस्तार करने में उनका मददगार साबित हुआ। पाकिस्तान के मामले में, दुनिया इस बात से अवगत है कि हरेक आतंकवादी घटना में, किसी न किसी रूप में पाकिस्तान का ही नाम सामने आता है। पाकिस्तान में संचालित की जा रही आतंक की फैक्ट्रियों के उत्पादों का निर्यात दुनिया के कोने-कोने में हो रहा है।

पिछले कुछ वर्षों में, पाकिस्तान द्वारा घुसपैठ कराए गये आतंकवादियों को भारत की सहनशीलता की सीमारेखा तक ही बनाए रखा गया है।संसद और मुंबई पर हुए आतंकी हमलों ने भारत की सहनशीलता का इम्तिहान लिया। सर्जिकल स्ट्राइक, जिसे पाकिस्तान लगातार झुठलाता रहा है, के बाद पाकिस्तान को यह अहसास हो गया कि भारत जवाबी कार्रवाई कर सकता है और करेगा। पाकिस्तान द्वारा आतंकवादियों की घुसपैठ कराने के प्रयासों का भारत की ओर से कड़ा जवाब दिए जाने, घुसपैठ विरोधी तंत्र को मजबूत करने और पुख्ता खुफिया सूचना के आधार पर आतंकवाद विरोधी कार्रवाइयों में वृद्धि होने से घाटी का परिदृश्य बदलने लगा है।

बुरहान वानी के मारे जाने के बाद बड़ी तादाद में स्थानीय लोगों का आतंकवाद की राह पर कदम रखना पाकिस्तान द्वारा छेड़े गए हाईब्रिड संघर्ष की कामयाबी था। यह सिलसिला कुछ समय तक जारी रहा। वर्तमान में मिल रहे संकेतों से पता चलता है कि इस रुझान में कमी आई है।

सर्दी का मौसम शुरू होते ही घाटी में होने वाली घुसपैठ में कमी आएगी, जबकि मैदानी क्षेत्रों में इसमें वृद्धि हो सकती है। स्थानीय लोग, जो नहीं चाहते कि अब उनका नाम आतंकवाद के साथ जोड़ा जाए, से मिल रही खुफिया जानकारी की वजह से आतंकवादियों के सफाये की दर में वृद्धि हुई है। सिर्फ नवम्बर में ही 39 आतंकवादी मारे गए, जिनमें से 9 आतंकी कमांडर थे। इसके साथ ही इस साल मारे गए आतंकवादियों की संख्या 225 हो गई। केवल 3 आतंकी सरगना बचे हैं। ज्यादातर आतंकवादी संगठनों की कमर टूट चुकी है।

पिछले कुछ वर्षों में, पाकिस्तान द्वारा घुसपैठ कराए गये आतंकवादियों को भारत की सहनशीलता की सीमारेखा तक ही बनाए रखा गया है। संसद और मुंबई पर हुए आतंकी हमलों ने भारत की सहनशीलता का इम्तिहान लिया।

घाटी से मिल रहे संकेत भी इसी और इशारा कर रहे हैं कि बन्दूक उठाने वालों की तादाद घट रही है, जिसकी वजह से आतंकी संगठनों को रंगरूट भर्ती करने के लिए वादी से दूर स्थित शैक्षिक संस्थानों का रुख करना पड़ रहा है। सुरक्षा बलों द्वारा घेरे जा चुके आतंकवादियों के समर्थन में होने वाली हिंसा में भी काफी कमी आई है। हिंसा अब पहले की तुलना में स्थानीय हो चुकी है और उसकी प्रबलता भी कम हो चुकी है। मुठभेड़ की सफल घटनाओं के बाद हिंसा होती तो है, लेकिन जल्द ही कम हो जाती है।अलगाववादियों की ओर से होने वाले बंद के आह्वान पर अमल करने वाले कम ही बचे हैं, क्योंकि स्थानीय लोगों को ऐसी घटनाओं की निरर्थकता का अहसास हो चुका है।

स्थानीय लोगों और छुट्टी पर आए पुलिसकर्मियों को मुखबिर या सरकार विरोधी करार देते हुए की गईं जघन्य हत्याओं ने आतंकवादियों को और ज्यादा अलग-थलग किया है और उनके जनाधार में कमी आई है। आतंकवादियों की मौजूदगी के बारे में रोजाना जानकारी मिलने लगी है, जबकि पहले इस तरह की खबरे सुरक्षा बलों से छुपा ली जाती थीं, इनमें स्थानीय आतंकवादियों के लिए मिलने वाले सुराग भी शामिल हैं।ये सुराग इतने सटीक होते हैं कि सुरक्षा बलों के अभियान बिना ज्यादा नुकसान पहुंचाए सफल हो रहे हैं। यह पूरी वादी के दृष्टिकोण में आए बदलाव का संकेत है।

साथ ही पाकिस्तान पर अपनी धरती पर मौजूद आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करने का अंतराष्ट्रीय दबाव बढ़ चुका है। पाकिस्तान पर कार्रवाई करने का दबाव बनाने में अमेरिका सबसे ज्यादा कड़ा रुख अपनाता आया है। पाकिस्तान को धीरे-धीरे अंतरराष्ट्रीय अलगाव का सामना करना पड़ रहा है। अमेरिकी प्रवक्ता ने इस बात की पुष्टि की है कि पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद का प्रायोजक नामित करने के अलावा उस पर हर तरह का दबाव डाला जा रहा है।

हाल ही में जम्मू कश्मीर के राज्यपाल द्वारा ऐसी सरकार — जो समान विचारधारा न होने के बावजूद महज राजनीतिक शक्ति हासिल करने के इरादे से बनने वाली थी — की इजाजत देने की बजाए, विधानसभा भंग कर देने को भी जनता और स्थानीय नेतृत्व का समर्थन मिला है।

हाल ही में जम्मू कश्मीर के राज्यपाल द्वारा ऐसी सरकार — जो समान विचारधारा न होने के बावजूद महज राजनीतिक शक्ति हासिल करने के इरादे से बनने वाली थी — की इजाजत देने की बजाए, विधानसभा भंग कर देने को भी जनता और स्थानीय नेतृत्व का समर्थन मिला है। इसके अलावा इस कदम के कारण हाल ही में हुए स्थानीय चुनाव में लोगों की भागीदारी बढ़ी है।

सर्दियों की अभी शुरुआत हुई है और पारा लुढ़कना शुरू होते ही आतंकवादियों को अन्दरूनी इलाकों की तरफ आने के लिए मजबूर होना होगा, जो फिलहाल आबादी वाले क्षेत्रों से दूर छुप रहे हैं। इससे मुठभेड़ की घटनाएं बढ़ेंगी तथा और भी ज्यादा आतंकवादियों का सफाया होगा। पाकिस्तान की पंजाब में आतंक फैलाने की बैचेनी, जो अमृतसर में हाल के बम विस्फोट से जाहिर है, इस बात का संकेत है कि उसे लगने लगा है कि कश्मीर अब हारी हुई जंग है या इसमें अब आगे कुछ हो पाना मुमकिन नहीं है।

सेना हिंसा के स्तर में कमी लाने में समर्थ रही है और राज्य में मौजूद आतंकवादियों की संख्या में प्रभावी रूप से कमी आई है, ऐसे में अब समय आ गया है कि सरकार भी इस दिशा में कदम उठाए। उसे युवाओं के साथ संपर्क कायम करना होगा और रोजगार के क्षेत्र बढ़ाने होंगे, और इस तरह उन्हें सड़कों तथा कट्टरपंथ से दूर किया जा सकेगा। सरकार द्वारा युवाओं के साथ संबंध जोड़ने से आतंकवादियों का इकलौता सहारा भी छिन जाएगा, जिस पर वे घाटी में भरोसा करते हैं, इस तरह वे और ज्यादा अलग-थलग पड़ जाएंगे। इस कदम से सुरक्षा बलों को हाईब्रिड संघर्ष का रुख मोड़ने में सहायता मिलेगी।

हालांकि यह शुरुआती दौर है, संकेतों से जाहिर है कि सरकार की स्थिति मजबूत हो रही है। यही वह लम्हा है, जिसका इस्तेमाल कर हालात बदले जा सकते हैं, ऐसा करने में नाकाम रहना, एक और अवसर गंवाने जैसा होगा।

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