दी चाइना क्रॉनिकल्स की श्रृंखला में ये 125वां लेख है.
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दूसरी सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था, 1.4 अरब से ज़्यादा आबादी के साथ सबसे ज़्यादा आबादी वाला देश, सबसे ज़्यादा कार्बन उत्सर्जन करने वाला, और सबसे तेज़ी से बढ़ती वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में से एक देश के रूप में चीन की तरफ़ से जलवायु पर उठाये गये क़दम का पेरिस समझौते के तहत आवश्यक, तापमान में बढ़ोतरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने पर निर्णायक असर होगा. 2019 में वैश्विक ग्रीन हाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन में एक-चौथाई से ज़्यादा उत्सर्जन चीन ने किया. चीन का कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन मार्च 2021 को ख़त्म अवधि में 12 अरब टन के साथ नई रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया.
चीन का ढुलमुल रवैया
लेकिन इसके बावजूद ताज़ा राष्ट्रीय निर्धारित योगदान (एनडीसी) में उस महत्वाकांक्षा की कमी है जो चीन के द्वारा जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ वैश्विक लड़ाई में प्रदर्शित करने की ज़रूरत है. ऐसा लगता है कि सामूहिक रूप से विश्व जिस सबसे बड़ी चुनौती का सामना कर रहा है, उसके ख़िलाफ़ चीन अपना सर्वश्रेष्ठ क़दम नहीं उठा रहा है. चीन ने प्रतिबद्धता व्यक्त की है कि 2030 से पहले उसका कार्बन उत्सर्जन चरम पर पहुंच जाएगा और 2060 तक वो कार्बन तटस्थता हासिल कर लेगा. 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य के साथ अनुकूलता हासिल करने में इन प्रतिबद्धताओं की प्रभावशीलता स्पष्ट नहीं है. ग़ैर-कार्बन ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन पर चुप रहते हुए इन प्रतिबद्धताओं का कार्बन केंद्रित स्वभाव चिंतित करने वाला है.
ऐसा लगता है कि सामूहिक रूप से विश्व जिस सबसे बड़ी चुनौती का सामना कर रहा है, उसके ख़िलाफ़ चीन अपना सर्वश्रेष्ठ क़दम नहीं उठा रहा है.
लेकिन यहां प्राथमिक उद्देश्य इस संभावना की तरफ़ ध्यान दिलाना है कि चीन संभवत: अपने कार्बन उत्सर्जन का निर्यात उन देशों में कर रहा है जहां बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) की परियोजनाएं हैं. जहां बीआरआई की परियोजनाएं मेज़बान देशों में काफ़ी ज़्यादा ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन करती हैं जिसके लिए इन देशों को ज़िम्मेदार ठहराया जाता है, वहीं इन परियोजनाओं से होने वाले आर्थिक लाभ का एक बड़ा हिस्सा चीन को मिलता है.
एक अंतर्राष्ट्रीय बुनियादी ढांचे के विकास की पहल के रूप में बीआरआई सहज रूप से कार्बन सघन है क्योंकि इसका प्राथमिक ध्यान हरित बुनियादी ढांचे के सामने परंपरागत बुनियादी ढांचे को बनाना रहा है. अन्य चीज़ों के अलावा राजमार्गों, रेल लाइनों, बिजली प्लांट, बंदरगाहों का निर्माण वास्तव में एक संसाधन और ऊर्जा सघन अभ्यास है जिसका परिणाम ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन के रूप में निकलता है.
घरेलू स्तर पर चीन के द्वारा नवीकरणीय ऊर्जा का पक्ष लेने के बावजूद बीआरआई परियोजनाओं में दबदबा रखने वाला ऊर्जा का बुनियादी ढांचा जीवाश्म ईंधन पर आधारित है. चाइना डेवलपमेंट बैंक (सीडीबी) और एक्सपोर्ट-इंपोर्ट बैंक ऑफ चाइना (चाइना एग्ज़िम) के द्वारा बीआरआई से संबंधित ऊर्जा वित्तीयन का 60 प्रतिशत से ज़्यादा हिस्सा ग़ैर-नवीकरणीय ऊर्जा में लगाया गया. वास्तव में 2014 से 2017 के बीच चीन के छह बड़े बैंकों के द्वारा बीआरआई परियोजनाओं वाले देशों को ऊर्जा क्षेत्र में दिए गए कर्ज़ का 91 प्रतिशत जीवाश्म ईंधन वाली परियोजनाओं के लिए था. चीन ने अपने हरित परिवर्तन के भाग के रूप में कोयला क्षेत्र की संपत्तियों को ख़त्म करने के बदले अपनी पुरानी, गंदी और बेहद कम दक्ष कोयला तकनीकों को बीआरआई परियोजना वाले देशों में भेज दिया.
चीन के अस्त होते उद्योग
चीन के अस्त होते उद्योग जैसे तांबा और एल्यूमीनियम गलाने वाले कारखाने, सीमेंट, कागज़ निर्माण, लोहा और इस्पात, इत्यादि, जिन्हें ज़रूरत से ज़्यादा औद्योगिक क्षमता और पर्यावरणीय नियमों के उल्लंघन की वजह से घरेलू क्षेत्र से बाहर जाने के लिए मजबूर किया जा रहा है, अपने उत्पादन से जुड़े उपयोग के लिए बीआरआई परियोजना वाले देशों में जगह पा रहे हैं. परिपूर्णता पर पहुंचने वाली चीन की हाई-स्पीड रेल लाइन एक और उदाहरण है क्योंकि ऐसे उद्योग काफ़ी ज़्यादा कार्बन सघन हैं.
ज़्यादातर बीआरआई परियोजनाओं का काम चीन की कंपनियों को सौंपा गया है. ये तथ्य चीन के उस दावे को खोखला साबित करता है कि बीआरआई की परियोजनाओं में दुनिया भर की कंपनियां बोली लगा सकती हैं और विदेशी साझेदारी की जा सकती है.
बीआरआई सैद्धांतिक रूप से एक कर्ज वित्त पोषित उपक्रम है जिसके प्राथमिक कर्ज़दाता सीडीबी और चाइना एग्ज़िम के अलावा कुछ सरकारी व्यावसायिक बैंक हैं. वैसे तो इस तरह के कर्ज़ों के साथ राजनीतिक या आर्थिक सुधार की शर्तें बंधी नहीं होतीं लेकिन ये आवश्यक रूप से विकास केंद्रित नहीं हैं और उम्मीद की जाती है कि इन कर्ज़ों से व्यावसायिक लाभ मिलेगा. ये कोविड-19 महामारी की वजह से शुरू सबसे ख़राब मानवीय संकट के दौरान भी कर्ज़ रद्द करने में चीन की झिझक से स्पष्ट है. इसके बदले चीन कर्ज और ऋण व्यवस्था का विस्तार करने, कर्ज का समय बढ़ाने और देर से भुगतान करने में अपेक्षाकृत दिलचस्पी दिखा रहा है.
ज़्यादातर बीआरआई परियोजनाओं का काम चीन की कंपनियों को सौंपा गया है. ये तथ्य चीन के उस दावे को खोखला साबित करता है कि बीआरआई की परियोजनाओं में दुनिया भर की कंपनियां बोली लगा सकती हैं और विदेशी साझेदारी की जा सकती है. वास्तव में बीआरआई की परियोजनाओं में भागीदारी करने वाले ठेकेदारों के एक सर्वे में पता चला कि 89 प्रतिशत चीनी मूल के हैं, 7.6 प्रतिशत स्थानीय कंपनियां हैं जिनका मुख्यालय उस देश में है जहां परियोजना का काम चल रहा है और 3.4 प्रतिशत विदेशी कंपनियां हैं यानी ग़ैर-चीनी कंपनियां जो उन देशों से हैं जहां परियोजना का काम नहीं चल रहा है.
बीआरआई के उपक्रमों के बारे में ख़बर आई है कि स्थानीय श्रमिकों के मुक़ाबले चीनी श्रमिकों को नौकरी पर रखा जाता है. अफ्रीका महादेश में चीन की अच्छी-ख़ासी मौजूदगी दस्तावेज़ों में दर्ज है. 2019 के आख़िर में अफ्रीका में 1,82,000 चीन के नागरिक काम कर रहे थे. 2019 में क़रीब 10 लाख चीनी श्रमिकों को आधिकारिक तौर पर विदेशों में नौकरी के लिए रखा गया जबकि कई और अनाधिकारिक तौर पर विदेशों में काम कर रहे थे. लेकिन बीआरआई की परियोजनाओं में काम कर रहे श्रमिकों की राष्ट्रीयता के मामले में संरचना भूगोल के मुताबिक़ अलग-अलग होने की उम्मीद है. चीनी श्रमिकों के एक बड़े अनुपात को चीन की सरकारी कंपनियों के द्वारा चलाई जा रही बुनियादी ढांचे की बड़ी परियोजनाओं में रोज़गार मिलने की उम्मीद है ताकि घरेलू श्रमिकों की ज़रूरत से ज़्यादा आपूर्ति का समाधान किया जा सके. जहां कहीं भी स्थानीय श्रमिक को नौकरी पर रखा जाता है, वहां उनके काम करने की स्थिति दयनीय होने की ख़बर आई है. चीन के श्रमिकों के मामले में भी यही स्थिति है. वास्तव में कुछ ख़ास क्षेत्रों में स्थानीय श्रमिकों के मुक़ाबले चीन के श्रमिकों को प्राथमिकता देने की वजह उनकी अपेक्षाकृत अतिसंवेदनशीलता हो सकती है.
बीआरआई के द्वारा आर्थिक विकास का जो वादा किया गया था वो कहां है? इस तरह के विकास ने बीआरआई में शामिल देशों के सामने खड़े कर्ज़ के संकट को आसान करने में मदद की होती.
बीआरआई का वादा था वैश्विक जीडीपी को बढ़ावा देना, वैश्विक व्यापार की लागत को कम करना और मेज़बान देशों के बुनियादी ढांचे और स्थिति में बदलाव करने वाली रुकावटों को दूर करके उन्हें वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्था में बदलना. वादा बीआरआई में शामिल देशों में आर्थिक विकास को तेज़ करने का था. लेकिन इसके बदले बीआरआई ने मेज़बान देशों में उनके कर्ज़ की समस्या में बढ़ोतरी करके और समर्थ से बाहर बनाकर एक कर्ज़ का संकट शुरू कर दिया है. ये परिस्थिति महामारी की वजह से शुरू संकट की वजह से और बिगड़ गई है. बीआरआई के द्वारा आर्थिक विकास का जो वादा किया गया था वो कहां है? इस तरह के विकास ने बीआरआई में शामिल देशों के सामने खड़े कर्ज़ के संकट को आसान करने में मदद की होती.
ऐसा लगता है कि जहां कार्बन सघन बीआरआई ने मेज़बान देशों के सीमित कार्बन बजट को खर्च किया है, वहीं वो इन कार्बन उत्सर्जन की वजह से होने वाले आर्थिक लाभ को हासिल करने में कामयाब रहा है लेकिन इस उत्सर्जन के लिए मेज़बान देशों को ज़िम्मेदार ठहराया जाता है. इस कार्बन उत्सर्जन की गिनती मेज़बान देशों की आर्थिक गतिविधियों के फलस्वरूप की जाती है न कि चीन की आर्थिक गतिविधियों की वजह से. बीआरआई के कर्ज़ पर इकट्ठा ब्याज, बीआरआई परियोजनाओं के क्रियान्वयन से होने वाला लाभ, इन परियोजनाओं की वजह से बने रोज़गार के अवसर और ऐसे रोज़गार की वजह से होने वाली आमदनी का फ़ायदा बैंक, कंपनियां और चीनी मूल के श्रमिक उठाते हैं. बीआरआई परियोजनाओं के द्वारा तैयार रोज़गार की गुणवत्ता सम्माननीय होने से काफ़ी दूर है. इसने कार्बन उत्सर्जन के अच्छे इस्तेमाल का मूल्यवान अवसर गंवा दिया है.
वैश्विक समुदाय को निश्चित रूप से चीन पर रचनात्मक दबाव बनाया चाहिए ताकि चीन बीआरआई उपक्रमों में अपने कार्बन उत्सर्जन के बारे में बता सके.
सही तरह की सहायता के साथ मेज़बान देशों ने बीआरआई पर खर्च अपने कार्बन बजट का काफ़ी अच्छा इस्तेमाल आर्थिक विकास, लाभ और अपने नागरिकों के लिए सम्माननीय काम में किया होता. बीआरआई के रूप में सहायता के चीनी मॉडल के विश्वसनीय विकल्प के रूप में कम विकसित बीआरआई परियोजनाओं वाले देशों के लिए ज़रूरी आर्थिक सहायता मुहैया कराने में आगे नहीं आने के लिए वैश्विक समुदाय की आंशिक रूप से ज़िम्मेदारी बनती है.
चीन पर रचनात्मक दबाव बनाने की ज़रूरत
वैश्विक समुदाय को निश्चित रूप से चीन पर रचनात्मक दबाव बनाया चाहिए ताकि चीन बीआरआई उपक्रमों में अपने कार्बन उत्सर्जन के बारे में बता सके. चूंकि जलवायु परिवर्तन हम सबके लिए है, इसलिए ये कम विकसित बीआरआई परियोजना वाले देश ग्लोबल वॉर्मिंग और आर्थिक विकास के बीच अदला-बदली में ख़ुद को गंभीर रूप से लाचार पाएंगे. चीन को इस बात के लिए मजबूर किया जाना चाहिए कि बीआरआई मेज़बान देशों के कार्बन बजट का इस्तेमाल करते वक़्त उनके लिए वास्तविक विकास का फ़ायदा बने. चीन बीआरआई को एक ‘हरित’ पहल बनाने के अपने वादे पर भी खरा उतरे, जिस पर उसने अभी तक टालमटोल किया है.
लेखक ओआरएफ मुंबई में रिसर्च इंटर्न आकृति पाण्डेय के द्वारा मुहैया कराई गई रिसर्च सहायता का आभार व्यक्त करना चाहती है.
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