Author : Anchal Vohra

Published on Aug 12, 2020 Updated 0 Hours ago

पश्चिमी ताक़तों ने कहा कि जब तक, राष्ट्रपति असद, सीरिया की कुख्यात काल कोठरियों में सड़ रहे एक लाख बीस हज़ार से अधिक क़ैदियों की रिहाई सुनिश्चित नहीं कर लेते, तब तक उन्हें राष्ट्र के पुनर्निर्माण के लिए धन उपलब्ध नहीं कराया जाएगा.

आर्थिक संकट, असद परिवार की अंदरूनी लड़ाई और राजनीति का शिकार होते सीरियाई नागरिक

सीरिया में नौ साल से चल रहा युद्ध क़रीब क़रीब ख़ात्मे के कगार पर ही है. लेकिन, इस युद्ध के ख़त्म होने भर से सीरिया की मुश्किलों का अंत नहीं होगा. एक दशक से चल रहे युद्ध से सीरिया तबाह हो चुका है. आज यहां की क़रीब नब्बे प्रतिशत आबादी ग़रीबी रेखा के नीचे रह रही है. लोगों के लिए अपने बच्चों का पेट भर पाना भी मुश्किल हो रहा है. सीरिया की जनता की हताशा अभी हाल ही में तब देखने को मिली थी, जब स्वेडा के रहने वाले सीरियाई नागरिकों ने सड़क पर उतर कर अपनी सरकार के ख़िलाफ़ पहली बार विरोध प्रदर्शन किया था. उनकी नाराज़गी देश की बिगड़ती आर्थिक स्थिति को लेकर थी. युद्ध के बाद, सीरिया के पुनर्निर्माण के अभियान के साथ साथ, देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की कोशिशें भी शुरू होनी थीं. लेकिन, अमेरिका और यूरोपीय संघ ने इसके लिए ज़रूरी फंड ये कहकर रोक लिया कि जब तक राष्ट्रपति बशर अल असद, ऐसे अर्थपूर्ण सुधारों के लिए तैयार नहीं होते, जिनसे बाग़ियों को भी सीरिया की राजनीति में हिस्सा लेने का मौक़ा मिले. पश्चिमी ताक़तों ने कहा कि जब तक, राष्ट्रपति असद, सीरिया की कुख्यात काल कोठरियों में सड़ रहे एक लाख बीस हज़ार से अधिक क़ैदियों की रिहाई सुनिश्चित नहीं कर लेते, तब तक उन्हें राष्ट्र के पुनर्निर्माण के लिए धन उपलब्ध नहीं कराया जाएगा. लेकिन, अपनी जीत से अतिउत्साहित सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद इन मांगों को पूरा करने में आना-कानी कर रहे हैं.

रामी मख़लूफ़ के अपने भाई और उनकी पत्नी के ख़िलाफ़ दिए गए ये बयान बेहद असामान्य हैं. ये उनके लिए ख़तरनाक भी साबित हो सकते हैं. क्योंकि, सीरिया ऐसा मुल्क है, जहां पर बग़ावत की हर आवाज़ को हर मुमकिन तरीक़े से कुचल दिया जाता है. फिर चाहे वो कोई भी हो.

पिछले साल सितंबर महीने में असद की सरकार ने देश के बड़े कारोबारियों को इकट्ठा किया और उनसे मांग की कि ये उद्योगपति नक़द पैसे देकर, सीरिया की लगातार गिर रही मुद्रा पाउंड को थामने में अपने हिस्से का योगदान दें. 2017 में एक अमेरिकी डॉलर के लिए सीरिया के 550 पाउंड ख़र्च करने पड़ते थे. वहीं, पिछले महीने एक अमेरिकी डॉलर हासिल करने के लिए 3000 से भी अधिक सीरियाई पाउंड की ज़रूरत पड़ने लगी थी. सीरिया के इन सभी उद्योगपतियों ने देश में चल रही जंग से ख़ूब मुनाफ़ा कमाया था. इसके लिए उन्हें असद की हुक़ूमत से भी पूरी शह मिली हुई थी. इसलिए, देश की मुश्किल से मुनाफ़ा कमाने वाले इन कारोबारियों के काम धंधे पर किसी ने ऐतराज़ भी नहीं किया था,सिवा बशर अल असद के ममेरे भाई रामी मख़लूफ़ के. रामी मख़लूफ़ को असद की सरकार का बैंकर कहा जाता है.

सीरिया में जिन उद्योगपतियों को देश में कारोबार करने की इजाज़त दी गई है, उन सब में रामी सबसे अमीर हैं. राष्ट्रपति बशर अल असद ने उन्हें देश की सबसे बड़ी कंपनियां चलाने की ज़िम्मेदारी दे रखी है. बशर के पिता हाफ़िज़ अल-असद ने रामी के पिता मोहम्मद को देश के आर्थिक मामलों को संभालने की ज़िम्मेदारी दे रखी थी. असद ख़ानदान के राज में सीरिया में ऐसे ही काम चलता आ रहा है. जिसके अंतर्गत देश की राजनीतिक, सैन्य और आर्थिक शक्ति को पूरी तरह से ख़ानदान के नियंत्रण में ही रखा जाता है. रामी मख़लूफ़ के बारे में कहा जाता है कि सीरिया की साठ फ़ीसद अर्थव्यवस्था पर उन्हीं का कंट्रोल है. फिर भी, जब बशर अल-असद ने जब रामी से देश के हित में अपनी जेब ढीली करने को कहा और इस आर्थिक संकट के समय बक़ाया टैक्स के तौर पर देश के ख़ज़ाने में 23 करोड़ डॉलर के योगदान की मांग की, तो रामी मख़लू़फ़ ने इस बात को ख़ुशी ख़ुशी नहीं मंज़ूर किया. इसके बजाय रामी मख़लूफ़ ने कई वीडियो रिकॉर्ड करके अपने ममेरे भाई बशर की हुक़ूमत पर भ्रष्ट और नाक़ाबिल होने के आरोप लगाए. ऐसे ही एक वीडियो में रामी ने कहा कि, ‘मैं ने तो युद्ध के समय भी अपना हक़ नहीं छोड़ा. आपको क्या लगता है कि मैं इन हालात में ऐसा करने को राज़ी हो जाऊंगा? ऐसा लगता है कि आप मुझ जानते नहीं हैं.’ रामी मख़लूफ़ ने अपने वीडियो में बशर अल असद की बीवी पर भी निशाना साधा, जो कि एक सुन्नी हैं, जबकि बशर ख़ानदान शिया मुसलमान है. रामी ने कहा कि बशर की सुन्नी बीवी भाइयों के बीच मतभेद पैदा कर रही है, ताकि देश के ख़ज़ाने की चाबी अपने क़ब्ज़े में कर सके.

रामी मख़लूफ़ के अपने भाई और उनकी पत्नी के ख़िलाफ़ दिए गए ये बयान बेहद असामान्य हैं. ये उनके लिए ख़तरनाक भी साबित हो सकते हैं. क्योंकि, सीरिया ऐसा मुल्क है, जहां पर बग़ावत की हर आवाज़ को हर मुमकिन तरीक़े से कुचल दिया जाता है. फिर चाहे वो कोई भी हो. इन सबके बावजूद, असद ख़ानदान के ही एक शख़्स द्वारा जिस तरह से उन्हें खुलकर निशाना बनाया गया. उसने असद के परिवार की अंदरूनी कलह को उजागर कर दिया है. लंबे समय से इस राज़ पर से पर्दा पड़ा हुआ था कि असद परिवार में कितने मतभेद हैं.

इस झगड़े को लेकर तरह-तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं. इनमें से एक तो ये है कि रामी मख़लूफ़ ख़ुद में बेहद ताक़तवर हो गए हैं, इसलिए खुलकर बशर अल असद पर हमले कर रहे हैं. रामी ने बेहद मुनाफ़े वाली संचार कंपनी सीरिया टेल में हज़ारों लोगों को नौकरी दे रखी है. इसके अलावा वो एक धर्मार्थ और जंगी लश्कर को भी चलाते हैं, जिसका नाम अल बुस्तान है. रामी मख़लूफ़, सीरिया के सत्ताधारी तबक़े के शीर्ष पर बैठे लोगों में से हैं. उनके पास इतना पैसा है कि आने वाली कई पीढ़ियां तक इस रक़म को ख़र्च नहीं कर पाएंगी. रामी ने अपने वफ़ादारों को हथियारबंद कर रखा है, जो उनके बुलावे पर मरने मारने के लिए तैयार हैं. इसके अलावा, सीरिया के अलावी समुदाय के बीच भी रामी मख़लूफ़ की अच्छी ख़ासी पकड़ है. असद परिवार इसी फ़िरक़े से ताल्लुक़ रखता है. कुछ लोगों का कहना है कि रामी मख़लूफ़ ने जिस तेज़ी से तरक़्क़ी की है, उससे राष्ट्रपति के महल के कई अहम लोग ख़फ़ा हैं. इसमें राष्ट्रपति बशर अल-असद की बीवी असमा असद भी शामिल हैं. और इसीलिए, असद हुक़ूमत ने अपने ममेरे भाई को औक़ात में रखने के लिए उनसे पैसों की मांग की.

विश्लेषक मानते हैं कि रूस के राष्ट्रपति पुतिन का दिल असद सरकार से भर चुका है. और बशर अल असद की सरकार से उकताया रूस अब दूसरे विकल्पों पर ग़ौर कर रहा है

वहीं, दूसरे लोगों का कहना है कि रामी मख़लूफ़ ख़ुद सत्ता पर क़ाबिज़ होने की कोशिश कर रहे थे. वो ख़ुद को बशर अल-असद के विकल्प के तौर पर प्रचारित कर रहे थे. ऐसे में उन्हें सज़ा देनी ज़रूरी थी. रामी के पिता और भाई लंबे समय से रूस में रह रहे हैं. ऐसे में कहा जा रहा है कि, ऐसा भी हो सकता है कि रामी ने रूस की सरकार के साथ अंदरखाने कोई समझौता भी कर लिया हो. इस अफ़वाह की जडें रूस में हुई एक और घटना से जुड़ी हुई हैं. अप्रैल महीने में पुतिन सरकार के क़रीबी समझे जाने वाले मीडिया ने सीरिया की सरकार की आलोचना करने वाले कई लेख प्रकाशित किए थे. ये बेहद असामान्य बात थी. विश्लेषक मानते हैं कि रूस के राष्ट्रपति पुतिन का दिल असद सरकार से भर चुका है. और बशर अल असद की सरकार से उकताया रूस अब दूसरे विकल्पों पर ग़ौर कर रहा है.

लेकिन, ये बात कुछ ज़्यादा ही दूर की कौड़ी लगती है.

ये बात तो सच है कि रूस चाहता है कि अंतरराष्ट्रीय संगठन, सीरिया की अर्थव्यवस्था में पैसा निवेश करें. इससे रूस की कंपनियों को भी फ़ायदा कमाने का मौक़ा मिलेगा. रूस को ये भी लगता है कि बशर अल-असद लंबे समय से बदलाव को लेकर ना-नुकुर कर रहे हैं. इससे रूस की योजनाओं पर पानी फिर रहा है. लेकिन, इसका ये मतलब नहीं है कि रूस अब बशर अल-असद से निजात पाना चाहता है. इसका तो सीधा सा मतलब ये है कि रूस, बशर अल असद पर दबाव बनाना चाहता है, ताकि वो अपनी सरकार में परिवर्तन की कुछ मांगों को पूरा करने के लिए राज़ी हो सकें. और ये आश्चर्य की बात है कि पिछले साल अगस्त में रूस ने ही असद का ध्यान रामी और उनके जैसे कारोबारियों की तरफ़ दिलाया था, जिनसे पैसे लेकर वो युद्ध के दौरान रूस से लिए गए 3 अरब डॉलर का क़र्ज़ चुका सकते हैं.

सीरिया के कुछ लोग ये मानते हैं कि दो ममेरे भाइयों के बीच के इस विवाद से ऐसा माहौल बन रहा है कि सीरिया के राष्ट्रपति अपने मुल्क के अमीर-उमरा से पैसे लेकर ग़रीबों की मदद करना चाह रहे हैं. इस काम के लिए वो अपने परिवार के लोगों को भी नहीं बख़्श रहे हैं. लेकिन, आम तौर पर सीरिया की जनता की राय बशर अल-असद की हुक़ूमत के ख़िलाफ़ ही है. यहां तक कि उनके अपने फ़िरक़े के लोग भी उनसे शिकायत रखते हैं. इन लोगों का ये मानना है कि युद्ध के दौरान उन्होंने जो बलिदान दिए, उसके बदले में इनाम देने के बजाय बशर अल-असद उन्हें दंड दे रहे हैं. इन हालात में रामी मख़लूफ़ के साथ इस विवाद ने राष्ट्रपति असद की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. क्योंकि, रामी मख़लूफ़ का अपना परिवार भी अलावी शिया मुसलमानों के बीच काफ़ी रसूख़ रखता है.

आज भी सीरिया के एक तिहाई इलाक़े पर बशर अल-असद का नियंत्रण नहीं है. इससे, देश की अर्थव्यवस्था में नई जान डालने के उनकी सरकार के विकल्प और भी सीमित हो जाते हैं. अभी हाल ही में अमेरिका की सरकार ने सीज़र एक्ट के तहत, सीरिया पर नए प्रतिबंध लगाकर असद की मुश्किलें और बढ़ा दी है

असद सरकार के सामने घरेलू चुनौतियां, उस वक़्त उठ खड़ी हुई हैं, जब वो पहले से ही बाहरी मुश्किलों के शिकार हैं. आज भी सीरिया के एक तिहाई इलाक़े पर बशर अल-असद का नियंत्रण नहीं है. इससे, देश की अर्थव्यवस्था में नई जान डालने के उनकी सरकार के विकल्प और भी सीमित हो जाते हैं. अभी हाल ही में अमेरिका की सरकार ने सीज़र एक्ट के तहत, सीरिया पर नए प्रतिबंध लगाकर असद की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं. अमेरिका के इन प्रतिबंधों का मक़सद उन लोगों को दंडित करना है, जो असद की सरकार के साथ कारोबार करना चाहते हैं. नए प्रतिबंध लगाते हुए, अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने ट्वीट किया था कि, ‘सीज़र एक्ट के माध्यम से आज से हम असद की षडयंत्रकारी सरकार के ख़िलाफ़ एक स्थायी अभियान की शुरुआत कर रहे हैं. इस क़ानून के तहत हम कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाकर हम असद की सरकार और उनके विदेशी सहयोगियों को उनके द्वारा सीरिया की जनता के ऊपर, ढाए गए भयानक ज़ुल्मों के लिए दंडित करने का प्रयास करेंगे.’ इस क़ानून का नाम सीरिया की सेना के उस अधिकारी के उप नाम पर रखा गया है, जो बग़ावत करके सीरिया से भाग निकला था. ये बाग़ी सीरियाई अधिकारी अपने साथ, ऐसी हज़ारों तस्वीरें लेकर आया था, जिनमें सीरिया की सरकार द्वारा ज़ुल्म के शिकार हुए लोगों की तस्वीरें हैं. इन लोगों को सीरिया की जेलों में टॉर्चर करने के बाद क़त्ल कर दिया गया था. और भले ही अमेरिका की सरकार इस क़ानून को ज़ुल्म के शिकार हुए लोगों के लिए इंसाफ़ का माध्यम मान रही है. लेकिन, ऐसे लोगों की तादाद भी कम नहीं है, जो अमेरिका के इस दावे को शक की निगाह से देखते हैं. इन लोगों की चिंता ये है कि अमेरिका के इस क़दम से सीरिया की जनता की हालत और भी ख़राब हो जाएगी. और फिर चाहे असद के ख़ानदान में फूट पड़े या न पड़े, वो सीरिया पर हुक़ूमत करते रहेंगे.

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