Author : Kabir Taneja

Published on Jan 13, 2017 Updated 0 Hours ago
सीरियाई संघर्ष विराम: रूस-तुर्की संबंधों में बदलाव की आहट

पिछले दो साल के दौरान सीरिया के आंतरिक संघर्ष को समाप्त करने के अनगिनत प्रयास हुए हैं। पिछले लगभग आधे दशक से जारी यह ऐसा संघर्ष है जिसका कोई अंत होता दिखाई नहीं दे रहा और जिसने अब तक लाखों लोगों की जान ली है और उससे ज्यादा लोगों को अपना घर-बार छोड़ना पड़ा है।

हालांकि, पिछले कुछ महीनों के दौरान एक आधारभूत बदलाव जरूर दिखाई दिया है। इस क्षेत्र में पारंपरिक रूप से प्रमुख भूमिका निभाने वाली विदेशी ताकत संयुक्त राज्य अमेरिका का प्रभाव और उपस्थिति दोनों ही लगातार घटती दिखाई दी है। इससे जो कमी पैदा हुई, उसे सीरिया में रूस ने अपनी सैन्य उपस्थिति और ईरान व तुर्की जैसी क्षेत्रीय ताकतों ने कभी अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा की ओर से घोषित की गई ओर हमेशा अस्पष्ट रही ‘रेड लाइन’ को बनाए रखने के वादों ने तेजी से भर दिया है। हालांकि अब अपना कार्यकाल पूरा कर रहे ओबामा ने भी कभी अपने वादे को पूरा नहीं किया। मध्य-पूर्व में असरदार रहने वाली सबसे प्रमुख विदेशी ताकत अमेरिका को इतिहास हमेशा ऐसी ताकत के रूप में याद रखेगा जो सीरियाई राष्ट्रपति बशर-अल-असद को अपने ही लोगों पर रसायनिक हथियारों का उपयोग करते देखती रही और सिर्फ प्रतीकात्मक विरोध तक सीमित रही।

पिछले कुछ महीनों के दौरान सीरियाई गतिरोध के आयाम भी बदले हैं, क्योंकि ऐसा लग रहा है कि मास्को भी ऐसे दौर में पहुंच चुका है, जहां वह इस गतिरोध से अपने नाते को कम करने में जुट गया है। इसके लिए रूस और क्षेत्रीय शक्ति तुर्की दोनों ने असद शासन और विद्रोहियों के बीच 30 दिसंबर 2016 को एक और संघर्ष विराम तैयार किया। यह ऐसा बिंदु था जब शासन से कड़ा संघर्ष कर रहे विद्रोहियों को लग रहा था कि वे अलप्पो की लड़ाई सीरियाई सेना से हार जाएंगे। उनके लिए संघर्ष विराम का मतलब था आसानी से शहर से बाहर भागने का रास्ता और इसे विद्रोही कमांडरों ने आसानी से स्वीकार कर लिया, क्योंकि उनको बहुत भारी नुकसान हो रहा था। अलप्पो की आजादी के उत्सव में शहर के धमाकों से तबाह और ध्वस्त इलाकों में ब्लादिमीर पुतिन, बशर-अल-असर, ईरान के अयातुल्ला अली खुमैनी और ईरान की प्रतिबंधित मिलीशिया हजबुल्ला के नेता हसन नसराल्ला के पोस्टर लगाए गए। पश्चिम के विश्लेषकों ने इस तस्वीर की व्याख्या करते हुए कहा कि यही ‘नई अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था’ है।

हालांकि संघर्ष विराम की कुछ शर्तें भी थीं। सबसे खास तो यह थी कि इसमें आईएसआईएस या वाईपीजी (कुर्द) शामिल नहीं थे। वाईपीजी के नहीं रहने की वजह से ही तुर्की सीरिया के मामले में रूस के साथ मिल कर काम करने को तैयार हुआ, क्योंकि अमेरिका आईएसआईएस के खिलाफ कुर्द विद्रोहियों को सैन्य सामान उपलब्ध करवा ही रहा है। अल कायदा से हाल में अलग हुए गुट जबात फतेह अल-शाम (पूर्व में जबात अल नुसरा) के इस व्यवस्था में शामिल होने या नहीं होने को ले कर विरोधाभास भरा खबरें आईं। विद्रोही नेताओं का दावा था कि अल शाम संघर्ष विराम का हिस्सा था, जबकि सीरियाई प्रशासन उल्टा दावा कर रहा था।

कुछ महीने पहले ही मास्को और अंकारा दोनों आपस में भिड़ रहे थे, जब तुर्की वायु सेना के एफ-16 विमान ने सीरिया-तुर्की सीमा के करीब नवंबर, 2015 में रूस के सुखोई एसयू-24 को मार गिराया था। आज नाटो का सदस्य तुर्की सीरियाई गतिरोध को ले कर रूस की लाइन पर ही चल रहा है। लेकिन यह व्यवस्था बस आज की है और इसमें कब बदलाव आ जाए यह कोई नहीं कह सकता। यह बदलाव कुछ दिनों में भी हो सकता है और चंद घंटों में भी।

वार्ता में भाग ले रहे विपक्ष की ओर से जारी बयान के मुताबिक असद शासन ने बारदा घाटी, पूर्वी घोउटा, हम्मा उपनगर और दारा इलाकों में संघर्ष विराम का उल्लंघन किया है। 29 दिसंबर 2016 को हुए अंकारा समझौते पर दस्तखत करने वाले सीरियाई सशस्त्र विद्रोही ने गारंटी प्रदाताओं पर राजनीतिक प्रक्रिया जारी रखने का अपना वादा पूरा नहीं करने का आरोप लगाया।

तुर्की का क्षेत्र में रवैया ज्यादातर अनुत्पादक ही साबित हुआ है, खास तौर पर आईएसआईएस से निपटने के मामले में। शुरुआत में तुर्की ने आईएसआईएस को अपनी धरती से पनपने की छुट दी। एक अतिवादी गुट से निपटने के लिए दूसरे को आगे बढ़ाने की यह ऐसी नीति थी जिसके नाकाम होने का पूरा इतिहास मौजूद है। अंकारा और इस्तांबुल आईएसआईएस में भर्ती के मुख्य केंद्र बन गए थे। क्योंकि एर्डोगन प्रशासन ने इस उम्मीद के साथ इन गतिविधियों को खुली छूट दे रखी थी कि आईएसआईएस तुर्की की सबसे बड़ी रक्षा और राजनीतिक चिंता कुर्द से निपटने में काम आएगा। कुर्द और कुर्दिस्तान तुर्की के लिए सबसे बड़ी चिंता बना रहा है और पार्टिया कारकेरन कुर्दिस्ताने (पीकेके), जिसे कुर्दिस्तान वर्कर पार्टी के नाम से भी जाना जाता है, जैसे अतिवादी-वाम संगठन इसे हवा देते रहे हैं। तुर्कि के पक्ष में रहने वाले सीरियाई सरकार के एक चैनल की हाल की रिपोर्ट में बताया गया है कि पीकेके ने तुर्की सेना और सुरक्षा बल के 3,400 से ज्यादा लोगों को सिर्फ 2016 के दौरान मार गिराया है।

पिछले कुछ वर्षों के दौरान तुर्की ने कुर्द विरोधी रवैये की वजह से आईएसआईएस को अपनी सीमा से तेल के गैरकानूनी कारोबार को निर्बाध रूप से संचालित करने की छूट दी, जबकि इसके प्रमुख पश्चिमी सहयोगी और नाटो के साथी कुर्द पेशमेर्गा लड़ाकों को प्रशिक्षण और हथियार मुहैया करवाने पर अपने संसाधनों का उपयोग कर रहे थे। इन कुर्द लड़ाकों का काम आईएसआईएस और शिया विद्रोहियों सहित दूसरे विद्रोही गुटों को आगे बढ़ने से रोकना था। एर्डोगन के लिए पीकेके जैसों को ले कर सख्त रवैया अपनाना और कुर्द स्वतंत्रता आंदोलन के खिलाफ खड़ा होना बहुत महत्वपूर्ण है। पीकेके के प्रभाव का मुख्य इलाका इराकी कुर्दिस्तान है और कुर्द स्वतंत्रता आंदोलन को अपने लिए सबसे बड़ा खतरा आईएसआईएस लगता रहा है।

2015 के बाद से तुर्की की धरती पर हो रहे हमलों में लगातार तेजी आई है। पांच जून को दियारपाकिर में एक राजनीतिक दल की रैली पर हुए हमले में हुई दो लोगों की मौत से ले कर नए साल के मौके पर इंस्ताबुल के नाइट क्लब में हुए हमले में 39 लोगों के मारे जाने तक, तुर्की ने 19 बड़े हमलों में लगभग 500 नागरिकों को गंवाया है। इनमें से नौ कुर्द विद्रोही गुटों से संबंधित थे, छह आईएसआईएस से और चार के बारे में पता नहीं चल सका है। हालांकि 31 दिसंबर 2016 को इस्तांबुल के एक महंगे इलाके के नाइट क्लब में हुआ हमला सबसे अहम है और आईएसआईएस और तुर्की के बीच रिश्ते किस मुकाम पर पहुंच गए हैं, इसे समझने के लिए एक बड़ा उदाहरण भी है। यह वही आईएसआईएस है जो कभी तुर्की की जमीन पर बेखौफ काम करता था। वेरसिक मैपलेक्रोफ्ट की ओर से जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक तुर्की में पिछले 12 महीनों में हुए 269 अलग-अलग आतंकवादी घटनाओं में 685 लोग मारे गए और 2,000 से ज्यादा घायल हुए।

नवंबर 2016 में आईएसआईएस के भूमिगत रहने वाले नेता अबू बकर अल-बगदादी ने आईएसआईएस के दूसरे नंबर के कमांडर और इसके विदेशी ऑपरेशन के प्रमुख अबू मुहम्मद अल-अदनानी की मौत के बाद जारी एक ऑडियो संदेश में तुर्की के सैन्य बलों और तुर्की की जमीन पर भी ‘अपने गुस्से की आग को फैलाने’ को कहा। 20 नवंबर को रूस के तुर्की स्थित राजदूत एंडराई कार्लोव को अंकारा में एक आर्ट गैलरी में ऑफ-ड्यूटी पुलिस ऑफिसर मेवलुत मेर्ट एटलिंटास ने ‘अलप्पो को भूलो मत’ का नारा लगाते हुए गोली मार दी और इस नाटकीय घटना को पूरी दुनिया के मीडिया ने दिखाया। इस घटना की जिम्मेवारी किसी आतंकवादी संगठन ने नहीं ली है, इसलिए अभी यह स्पष्ट नहीं है कि बंदूकधारी ने यह काम अकेले किया या वह किसी गुट का हिस्सा था। इस घटना की व्यापकता के बावजूद तुर्की और रूस ने इस हत्या के मामले को ज्यादा तूल नहीं दिया और इसे तुर्की-रूस संबंधों में आ रहे सकारात्मक बदलावों पर चोट करने की कोशिश बताया। कुछ महीने पहले तक ऐसे अहम व्यक्ति की हत्या ने भौगोलिक राजनीतिक परिस्थितियों को हिला कर रख दिया होता। लेकिन इस मौके पर कार्लोव की विरासत को झाड़ कर दरी के नीचे डाल दिया गया ताकि व्यापक हितों की रक्षा की जा सके।

पिछले हफ्ते इंस्ताबुल पर हुए हमले के कुछ घंटों पहले आईएसआईएस ने एक वीभत्स वीडियो जारी किया जिसमें वे तुर्की के दो सैनिकों को जिंदा जिला रहे हैं। इस्तांबुल हमला, जिसमें दो भारतीयों की जिंदगी भी गई, उसका दावा आईएसआईएस ने अपनी ज्यादा चर्चित न्यूज एजेंसी अमाक के जरिए नहीं किया, बल्कि अपना समर्थक माने जाने वाले नशीर के जरिए किया। नशीर इसके शीर्ष नेतृत्व के करीब माना जाता है। अब तक का यह दूसरा ही मौका था जब आईएसआईएस ने नशीर के जरिए जवाबदेही ली। पहला मौका तब था जब इसने दक्षिणी जोर्डन के शहर कारक में दस लोगों की हत्या की जवाबदेही ली थी।

इस्तांबुल हमले के बाद जारी आईएसआईएस का बयान ज्यादा स्पष्ट था और इसमें धार्मिक पहलू भी जोड़ते हुए तुर्की के ईसाई राज्यों (इसका संदर्भ अमेरिका, यूरोपीय देश और रूस से था) के साथ संबंधों की बात की गई थी। इस बयान में तुर्की को ‘क्रॉस का रक्षक’ बताया गया था और साथ ही इस बात पर जोर दिया गया था कि इसने ईसाइयों को ही अपना निशाना बनाया है जो नाइट क्लब में पार्टी कर रहे थे (हालांकि जो मारे गए थे, उनमें से ज्यादातर मुसलमान थे)। साथ ही इसने कहा, ‘यह हमला अल्लाह के धर्म की ओर से बदला लेने के लिए और उस पर भरोसा करने वालों के आमिर (अल बगदादी) की ओर से दिए गए उस आदेश के पालन के लिए किया गया है जिसमें उन्होंने क्रॉस के सेवक तुर्की को निशाना बनाने को कहा था।’

अब इस बात की पूरी संभावना है कि एर्डोगन की सरकार जो खुद दबाव में है, ईराक और सीरिया में आईएसआईएस के खिलाफ और एकतरफा कदम उठाए। हालांकि इसमें इसे चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि पिछले साल जुलाई में अंकारा के खिलाफ तख्तापलट की कोशिश के बाद इसकी सेना भी बंटी हुई है। तख्तापलट के बाद के घटनाक्रम में तुर्की वायु सेना के 270 से ज्यादा पायलटों को सेवा से मुक्त किया जा चुका है। इसके बाद वायु सेना में एक गंभीर कमी पैदा हो गई है। अंतरराष्ट्रीय मानकों के मुताबिक पायलट और कॉकपिट का औसत 1.25:I का होना चाहिए जो कि घट कर तुर्की के एफ-16 विमानों के बेड़े के लिए 0.8:I का ही रह गया है। तुर्की की कमजोर हो गई सैन्य ताकत की भरपाई करने के नाम पर अमेरिका ने इस मौके का फायदा उठाते हुए मुश्किल साबित हो रहे अंकारा को दुबारा पश्चिमी भौगोलिक-राजनीतिक तैयारियों में शामिल कर लिया है। इसके लिए तुर्की को कहा गया है कि अलप्पो के करीब अब-बाब क्षेत्र की ओर सीरिया से लगी अपनी सीमा से ‘सुन्नी मुस्लिम कट्टरपंथियों और कुर्द लड़ाकों’ को पीछे ढकेलने के लिए बढ़ रही उसकी जमीनी सेना को हवाई कवर उपलब्ध करवाया जाएगा।

संभवतः तुर्की को आने वाले समय में अपनी जमीन पर ज्यादा हिंसा देखने को मिले। आज जो मंजर हम देख रहे हैं, यह ऐसा नहीं होता अगर एर्डोगन ने शुरुआत में आईएसआईएस को ले कर वैसी सोच नहीं रखी होती। तब इसने इराक और सीरिया से पैदा हो रहे कुर्द समर्थक मिलीशिया आंदोलन के खिलाफ आईएसआईएस को अपना सहयोग किया। एर्डोगन ने कुर्दों से निपटते हुए तुर्की में लोकतंत्र को काफी सीमित कर दिया और देश पर अपने नियंत्रण को बढ़ाया है। उसी तरह अब तख्तापलट की नाकाम कोशिश के बाद वे आईएसआईएस को काबू करने और संतुलन बनाने के नाम पर खुद को और ज्यादा सशक्त बनाने की कोशिश करेंगे। शक्तियों का यह केंद्रीकरण और एर्डोगन का एक नेता के तौर पर मिजाज संभवतः तुर्की को विचारधारा के तौर पर अमेरिका की बजाय पुतिन के रूस की ओर ज्यादा ले जाता है। ओबामा प्रशासन के दौरान अमेरिका का प्रभाव नासमझी भरे तरीके से समाप्त हो गया है।

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