Author : Ezhil Subbian

Published on Dec 12, 2020 Updated 0 Hours ago

जैसे-जैसे इकोसिस्टम का विकास हो रहा है और कंपनियां परिपक्व हो रही हैं, वैसे-वैसे ऐसे विकास की ज़रूरत बढ़ती जा रही है, जिसे अगली पीढ़ी के इनोवेशन से गति मिले

स्ट्रिंग बायो यानी स्थायी तत्वों का वो ‘एकीकृत मीथेन प्लेटफॉर्म’ जो अगली पीढ़ी के विकास के लिए ज़रूरी है

ओआरएफ: एक टिकाऊ भविष्य के लिए स्ट्रिंग बायो का व्यापक विज़न क्या है?

एज़हिल सुब्बियान: पिछले कुछ दशकों के दौरान जब हम बढ़ती आबादी के खाने, पेट भरने और ग्राहक-उत्पादों की आपूर्ति करने की दौड़ लगा रहे हैं, तो इससे हमारे इकोसिस्टम पर दबाव बहुत बढ़ गया है. इसका नतीजा ये हुआ है कि जीवन और हमारे आस-पास के पर्यावरण पर बहुत व्यापक रूप से नकारात्मक प्रभाव पड़ा है. आज ऐसे समाधानों की ज़रूरत है जो इस बढ़ती हुई मांग को टिकाऊ तरीक़े से पूरा कर सकें. स्ट्रिंग तकनीक से अगली पीढ़ी के ऐसे कच्चे माल को उपलब्ध कराया जाता है, जो इन चुनौतियों का समाधान कर सकें. स्ट्रिंग ने बौद्धिक संपदा (IP) से संरक्षित ऐसी तकनीकों का निर्माण (स्ट्रिंग एकीकृत मीथेन प्लेटफॉर्म) किया है, जिनकी मदद से हम रोज़मर्रा की ज़रूरतों वाले कच्चे माल का उत्पादन मीथेन से कर सकें. हमारे उत्पाद, खाने और खाद्य बाज़ार के लिए वैकल्पिक प्रोटीन के (जैसे कि फर्मेंटेड जीवाणु आधारित प्रोटीन जो स्वच्छ, सुरक्षित, पता लगाने योग्य, उच्च गुणवत्ता और भारी मात्रा में उत्पादन योग्य) हैं और कृषि उत्पादकता (मीथेन से संचालित, केमिकल मुक्त, प्राकृतिक बायोस्टिमुलैंट्स जो मिट्टी की सेहत संरक्षित कर सकें और फ़सलों की उपज बढ़ा सकें) से संबंधित हैं.

स्ट्रिंग ने बौद्धिक संपदा (IP) से संरक्षित ऐसी तकनीकों का निर्माण (स्ट्रिंग एकीकृत मीथेन प्लेटफॉर्म) किया है, जिनकी मदद से हम रोज़मर्रा की ज़रूरतों वाले कच्चे माल का उत्पादन मीथेन से कर सकें. 

स्ट्रिंग की विश्वदृष्टि के अनुसार कच्चे माल का उत्पादन स्थानीय स्तर पर टिकाऊ तरीक़े से किए जाने का है, जहां जीवन के स्वच्छ एवं बेहतर तरीक़ों को जैविक विधा में की गई प्रगति के ज़रिये और बेहतर किया जाता है. पिछले कुछ दशकों के दौरान हमने देखा है कि जीव-विज्ञान की हमारी समझ बहुत अधिक बढ़ी है. हमारा मानना है कि जैविक विज्ञान में बहुत सी पेचीदा चुनौतियों के ऐसे सरल समाधान हैं, जिनका इस्तेमाल करके हम इको-सिस्टम का संतुलन दोबारा बना सकते हैं.

हमारा मिशन बहुत सामान्य है: जीव विज्ञान की शक्ति का उपयोग करते हुए ऐसे सेक्टर्स में स्थायी और व्यापक समाधान तलाशे जाएं, जो हमारे जीने की मूलभूत ज़रूरतें हैं. हमारे प्रभाव से स्थानीय स्तर पर निर्माण को बढ़ावा मिल रहा है, जिससे आर्थिक रूप से प्रतिद्वंदात्मक विकल्प तैयार हो रहे हैं; ग्रीनहाउस गैसों में मौजूद कार्बन का इस्तेमाल करके मज़बूत वैल्यू चेन का निर्माण किया जा रहा है; जीवन के बुनियादी चक्र को मज़बूत बनाया जा रहा है; और ऐसी वैल्यू चेन की ओर स्थानांतरण को बढ़ावा दिया जा रहा है जो आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरण की दृष्टि से टिकाऊ हैं.

ओआरएफ: आप भारत में अपने रिसर्च और विकास संबंधी योजनाओं के साथ-साथ वैश्विक बाज़ार में अपने विस्तार की कैसी परिकल्पना करती हैं?

एज़हिल सुब्बियान: स्ट्रिंग का विज़न स्थानीय स्तर पर निर्माण एवं खपत के माध्यम से आपूर्ति श्रृंख़लाओं की कुशलता को बढ़ाना है. इसीलिए हमारा मूल अनुसंधान एवं विकास का कार्य तो भारत में है, लेकिन हमारे बाज़ार हमेशा वैश्विक रहे हैं. शुरुआत से ही हम इसी दिशा में बढ़ते रहे हैं.

अलग-अलग बाज़ारों में स्थानीय स्तर पर निर्माण एवं खपत को बढ़ावा देने के लिए, हम अलग अलग देशों में आपूर्ति एवं खपत दोनों ही के बाज़ार में सामरिक साझीदारों से संबंध का निर्माण कर रहे हैं, जो बाज़ार में अलग-अलग उत्पादों की मांग पर आधारित हैं. हमारी लंबी अवधि का विज़न ये है कि हम गैस निर्माण उत्पाद आपूर्ति श्रृंखलाओं का निर्माण करें जो बाज़ार के लिए प्रासंगिक हों.

ग्रीनहाउस गैसों में मौजूद कार्बन का इस्तेमाल करके मज़बूत वैल्यू चेन का निर्माण किया जा रहा है; जीवन के बुनियादी चक्र को मज़बूत बनाया जा रहा है; और ऐसी वैल्यू चेन की ओर स्थानांतरण को बढ़ावा दिया जा रहा है जो आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरण की दृष्टि से टिकाऊ हैं.

हमारा मानना है कि भारत में हमारे रिसर्च एवं विकास के ढांचे के ज़रिए हम इन नए बाज़ार समूहों तक नई नई तकनीक और उत्पाद पहुंचा सकेंगे. वर्ष 2020 ने इस बात को उजागर कर दिया है कि कैसे दुनिया भर में कारोबार को ऐसे हालात में भी संचालित किया जा सकता है, जब हम आमने सामने के संवाद से महरूम हो जाएं और यात्राओं पर  तमाम तरह की पाबंदियां लग जाएं. इसका अर्थ ये है कि भारत से वैश्विक बाज़ारों तक समाधान पहुंचाना पहले के मुक़ाबले अब काफ़ी आसान हो जाना चाहिए.

ओआरएफ: स्ट्रिंग बायो प्लेटफॉर्म के समाधान विकसित करने में भारत में इनोवेशन के शुरुआती स्तर के सपोर्ट सिस्टम ने आपकी किस तरह से मदद की? और भारत ऐसी कौन सी नीतियों को मज़बूत बनाए जिससे कि इनोवेशन पर आधारित माहौल बनाया जा सके?

एज़हिल सुब्बियान: पिछले पांच वर्षों के दौरान भारत में शुरुआती स्तर के इनोवेशन का सपोर्ट सिस्टम, ख़ास तौर से बायोटेक स्टार्ट अप के लिए फंडिंग और बुनियादी ढांचे की सुविधाओं में नाटकीय विस्तार होता है. जब स्ट्रिंग ने वर्ष 2014 में काम करना शुरू किया था, तो उस समय शहर में बायोटेक स्टार्ट अप को बढ़ावा देने वाले केवल दो इनक्यूबेटर्स थे. उनका ज़ोर केवल इनक्यूबेशन पर ही नहीं था. वो शिक्षा और अनुसंधान के क्षेत्र के अपने मूलभूत काम के अलावा इनक्यूबेशन का भी काम कर रही थीं. ऐसे माहौल में स्ट्रिंग को क़िस्मतवाली कंपनी कहिए कि वो अपना काम शुरू कर सके.

केंद्र सरकार के बायोटेक्नोलॉजी विभाग के BIRAC और उनकी तमाम फंडिंग योजनाएं मिलकर बायोटेक संस्थाओं को काम शुरू करने जैसे अधिक जोख़िम वाली योजनाओं के लिए पूंजी उपलब्ध कराती हैं. इससे इकोसिस्टम में बड़ा बदलाव आया है.

लेकिन, आज वर्ष 2020 के आते-आते माहौल पूरी तरह बदल चुका है. आज अकेले बेंगलुरू में ही बायोटेक कंपनियों के इनक्यूबेशन की कम से कम दस सुविधाएं उपलब्ध हैं. इनका ध्यान मुख्य़ रूप से शुरुआती स्तर के बायोटेक कार्यों के लिए उच्च स्तर का बुनियादी ढांचा उपलब्ध कराना है. इनमें से कुछ बड़ी सुविधाएं, जैसे कि बेंगलोर बायोइनोवेशन सेंटर और C-CAMP तो अपने मूलभूत ढांचे का और भी विस्तार कर रहे हैं, जिससे और लोगों को जोड़ सकें. इस बदलाव के पीछे का प्रमुख कारण केंद्र और राज्य सरकार द्वारा दी जा रही फंडिंग है. केंद्र सरकार के बायोटेक्नोलॉजी विभाग के BIRAC और उनकी तमाम फंडिंग योजनाएं मिलकर बायोटेक संस्थाओं को काम शुरू करने जैसे अधिक जोख़िम वाली योजनाओं के लिए पूंजी उपलब्ध कराती हैं. इससे इकोसिस्टम में बड़ा बदलाव आया है. कर्नाटक की सरकार ने भी ऐसे ही प्रयास किए हैं और राज्य स्तर पर फंडिंग की योजनाएं शुरू की हैं. ये महत्वपूर्ण इनोवेशन के शुरुआती चरण के प्रोत्साहन का काम करता है.

स्ट्रिंग को बिल्कुल ‘सही समय’ पर बेंगलुरू में अपना काम शुरु करने का लाभ मिला है. हम क़िस्मतवाले रहे हैं कि जैसे-जैसे इनोवेशन का इकोसिस्टम विकसित हुआ है, हमें उसका लाभ मिलता गया है. हमें BIRAC से होने वाली फंडिंग का फ़ायदा मिला है और शुरुआत में कर्नाटक सरकार की योजनाओं से भी सहयोग प्राप्त हुआ है. हमने अपने भवन में आने से पहले बेंगलुरू में उपलब्ध इनक्यूबेशन सुविधाओं का भी भरपूर लाभ उठाया था.

अब हमारी उम्मीद ये है कि सरकार इनोवेशन को बढ़ावा देने की अपनी कोशिशों की रफ़्तार कम न करे. अब जब इकोसिस्टम विकसित हो रहा है और कंपनियां परिपक्व हो रही हैं, तो इस बात की सख़्त ज़रूरत है कि इनोवेशन आधारित विकास के नए दौर की शुरुआत हो. जो कुछ आवश्यकताएं/नीतियां जो मददगार साबित हो सकती हैं वो हैं पायलट स्तर पर निर्माण/परीक्षण की सुविधाएं; प्लग ऐंड प्ले कॉमर्शियल मैन्यूफैक्चरिंग पार्क; भारत में ही निर्मित उत्पादों को बाज़ार तक पहुंचाने के लिए नियामक स्पष्टवादिता की ज़रूरत है; विकास के अगले चरण के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश लाने में आसानी; और बौद्धिक संपदा को संरक्षित करने वाले ऐसे क़ानून जो इनोवेश के लिए मज़बूत वैधानिक पर्यावरण का निर्माण कर सकें.

ओआरएफ: वैश्विक और व्यापक स्तर पर आपके तकनीकी विकास संबंधी अनुभवों को देखते हुए, आप अनुसंधान और विकास के क्षेत्र को और उत्साहवर्धक बनाने के लिए कैसे अनुभव साझा करना चाहेंगी?

एज़हिल सुब्बियान: स्ट्रिंग के लिए लोगों के इंटरव्यू करने और उन्हें नौकरी पर रखने के अपने अनुभवों को मैं एक दिन अपने अनुभवों को क़िताब की शक्ल में ढालना चाहूंगी. वैसे तो मुझे ये लगता है कि मैंने इंटरव्यू लेने के दौरान दुनिया के तमाम तरह के लोगों का सामना किया है. मगर, अफ़सोस की बात ये है कि उनमें से ज़्यादातर को यही नहीं मालूम कि वो बायो-तकनीक के क्षेत्र में काम करते हुए अपनी रोज़ी-रोटी कमाना चाहते हैं. कुछ ख़ास भूमिकाओं के लिए ऐसी सोच से दिक़्क़त नहीं है. लेकिन, जब ज़रूरत तकनीक और इनोवेशन की हो, तो ये सोच बहुत बड़ी चुनौती बन जाती है.

नज़रिया, क़ाबिलियत और कोई प्रयास कर रही टीम के बीच विचारों में विविधता किसी भी अनुसंधान एवं विकास के कार्य को मज़ेदार और उत्पाद को बाज़ार में प्रासंगिक बनाने का काम करते हैं. स्ट्रिंग में काम करने की संस्कृति ये रही है कि वो लोगों को उन कामों के निष्पादन की आज़ादी दे, जिनकी उन पर ज़िम्मेदारी है. 

नज़रिया, क़ाबिलियत और कोई प्रयास कर रही टीम के बीच विचारों में विविधता किसी भी अनुसंधान एवं विकास के कार्य को मज़ेदार और उत्पाद को बाज़ार में प्रासंगिक बनाने का काम करते हैं. स्ट्रिंग में काम करने की संस्कृति ये रही है कि वो लोगों को उन कामों के निष्पादन की आज़ादी दे, जिनकी उन पर ज़िम्मेदारी है. जब हम छोटी सी टीम थे, तो ये बात आवश्यक थी. मगर अब जबकि हम तादाद में बढ़ चुके हैं, तो भी हमने वो जज़्बा क़ायम रखा है. ऐसे लोगों को तलाशना आसान नहीं था, जो ये सही फ़ैसले लेने का नज़रिया रखते हैं और जो पूरे उत्साह और कुशलता से अपनी ज़िम्मेदारी का निर्वाह कर सकें. मगर, बाक़ी कंपनियों की तुलना में हमारी प्रगति में इसी वजह से आपको अंतर दिखता है.

शिक्षा व्यवस्था में ऐसा बदलाव, जिससे हर स्तर पर छात्रों को सीखने, खोजने और प्रयोग करने को बढ़ावा मिलता है, वो चीज़ों को बहुत आसान बना सकता है. एक और विषय जिस पर ध्यान देने की आवश्यकता है, वो ये कि भारत के मौजूदा माहौल में तकनीक पर आधारित विविधता भरी टीम बनाने का है. जैसे ही परिवार की ज़िम्मेदारियां बढ़ती हैं, तो महिलाओं के लिए काम जारी रख पाना मुश्किल हो जाता है. महिलाओं को काम करने में मदद करने वाली सुविधाएं, जैसे कि बच्चों के लिए डे-केयर केंद्र, तकनीकी और इनक्यूबेशन पार्क के अंदर ही डे-केयर सेंटर, पहले से ही मान्यता प्राप्त आपातकालीन सेवाएं देने वाले लोगों को काम के दौरान उपलब्ध करना और पिता बनने पर छुट्टी देने की सुविधाओं से दूसरे जिन इकोसिस्टम में मैंने काम किया है, वहां महिलाओं को काफ़ी फ़ायदा मिला है. लेकिन, बैंगलुरू जैसे बड़े शहरों में भी अभी ऐसी सुविधाओं की भारी कमी है. जैसे-जैसे स्टार्टअप का इकोसिस्टम विकसित हो रहा है, शायद कंपनियां आपस में मिलकर इस सहयोगी नेटवर्क का निर्माण करें.

अनुसंधान एवं विकास के क्षेत्र में जो एक और उत्साहवर्धक अवसर दिख रहा है, वो है अकादेमिक क्षेत्र और बायोटेक क्षेत्र के उद्योगों के बीच बेहतर सहयोग एवं साझेदारी का है. अभी तो इस मामले में काफ़ी कमी दिख रही है. इस कमी को दूर करने से दोनों ही पक्षों को काफ़ी फ़ायदा हो सकता है. अकादेमिक अनुसंधान से उद्योग को एक नया ख़ज़ाना मिल सकता है और वास्तविक दुनिया की ज़रूरतों के हिसाब से अनुसंधान करने से अकादेमिक रिसर्च को भारी मात्रा में फंड मिलने का रास्ता खुलेगा.

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