ये लेख हमारी सीरीज़-दि चाइना क्रॉनिकल्स की 156वीं किस्त है.
25 अप्रैल को रूस के उद्योगपतियों और उद्यमियों की कांग्रेस (RSPP) को संबोधित करते हुए, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने ऐलान किया कि वो मई महीने में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाक़ात करने के लिए वहां के दौरे पर जाएंगे. पुतिन का ये आगामी चीन दौरा, इस साल मार्च में उनके एक बार फिर से राष्ट्रपति चुने जाने के बाद पहला विदेशी सफर होगा. ये साल चीन और रूस के रिश्तों की 75वीं सालगिरह का भी है. 2022 में यूक्रेन पर हमला करने के कुछ दिनों पहले ही राष्ट्रपति शी जिनपिंग और पुतिन ने एक साझा बयान जारी किया था, जिसमें उन्होंने दोनों देशों की साझेदारी को ‘असीमित’ बताते हुए दोस्ती और आपसी सहयोग को बढ़ाने पर ज़ोर दिया था. दुनिया में सत्ता के संतुलन की अहमियत को देखते हुए रूस और चीन के संबंधों के मिज़ाज को समझना ज़रूरी है.
रूस और चीन की ये जुगलबंदी क्यों अहम है?
रूस और चीन के भू-राजनीतिक संबंध एक दूसरे से बिल्कुल अलग हैं. चीन, अमेरिका के साथ लंबे समय की प्रतिद्वंदिता कर रहा है और वो हिंद प्रशांत क्षेत्र में पश्चिमी देशों के प्रभाव को ख़त्म करना चाहता है. वहीं रूस को चीन की ज़रूरत इसलिए है, क्योंकि वो यूरोप से दूरी बनाते हुए यूरेशिया पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहा है. जिससे वो विशाल यूरेशियाई महाद्वीप को शांति स्थिरता और समृद्धि के साझा महाद्वीप की बड़ी आकांक्षा की पूर्ति कर सके. इसी वजह से 2000 के दूसरे दशक से ही, पश्चिमी देशों ने रूस को अलग थलग करना शुरू कर दिया था, भले ही तब आंशिक रूप से ऐसा हो रहा था. रूस और चीन के बीच ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) जैसे मंचों के ज़रिए ज़्यादा तालमेल बनाते हुए साफ़ देखा जा सकता है. रूस, चीन की एक वैकल्पिक भू-आर्थिक ढांचा खड़ा करने की महत्वाकांक्षा का समर्थन करता है. हम इसका सबूत चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तौर पर देख सकते हैं. वेस्टर्न यूरोप- वेस्टर्न चाइना इंटरनेशनल ट्रांज़िट कॉरिडोर और चाइना- मंगोलिया- रशिया इकोनॉमिक कॉरिडोर जैसे आवाजाही के बहुआयामी गलियारों और व्यापारिक मार्गों के ज़रिए यूरेशिया का अधिक मज़बूती से एकीकरण करने से पूरे क्षेत्र में व्यापार को बढ़ाया जा सकता है.
रूस, चीन की एक वैकल्पिक भू-आर्थिक ढांचा खड़ा करने की महत्वाकांक्षा का समर्थन करता है. हम इसका सबूत चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तौर पर देख सकते हैं.
रूस और चीन के संबंधों को आर्थिक सहयोग, मानवीय सहायता और सैन्य क्षेत्रों में बेहद सामरिक साझेदारी के तौर पर देखा जा सकता है. हालांकि, हमें ये भी स्वीकार करना पड़ेगा कि भले ही दोनों देशों के रिश्ते बेहद अहम हैं. लेकिन हमें इन्हें गठबंधन समझने की ग़लती नहीं करनी चाहिए.
चीन और रूस के द्विपक्षीय संबंध
चूंकि, रूस पश्चिमी देशों से अलग थलग पड़ चुका है. ऐसे में चीन, उसका एक अहम आर्थिक साझीदार बनकर उभरा है. 2023 में दोनों देशों के बीच व्यापार, अपने लक्ष्य 200 अरब डॉलर से बढ़कर 240 अरब डॉलर तक पहुंच गया था. 2022 की तुलना में 2023 में रूस और चीन के बीच व्यापार में 26.3 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई थी (देखें Graph 1). चीन, रूस से सबसे ज़्यादा आयात ऊर्जा का करता है. 2023 में चीन ने रूस से 10.7 करोड़ टन तेल ख़रीदा था, जो 2022 की तुलना में 24 प्रतिशत अधिक था. पावर ऑफ साइबेरिया पाइपलाइन से 2022 में जहां रूस ने चीन को 15.4 अरब घन मीटर गैस की आपूर्ति की थी. वहीं, 2023 में ये तादाद बढ़कर 22.7 अरब घन मीटर पहुंच गई. अब पावर ऑफ साइबेरिया की दूसरी पाइपलाइन का निर्माण हो रहा है. इससे रूस से चीन को 50 अरब घन फुट अतिरिक्त प्राकृतिक गैस की आपूर्ति हो सकेगी, और आज जब रूस अपनी प्राकृतिक गैस की आपूर्ति श्रृंखला का रुख़ यूरोप से एशिया की ओर मोड़ रहा है, तो दोनों देशों के बीच गैस का व्यापार और बढ़ना तय है.
चीन इसके अलावा रूस से तांबा, तांबे का अयस्क, लकड़ी और सी-फूड आयात करता है. वहीं रूस, चीन से कारों, स्मार्टफोन, औद्योगिक मशीनरी और विशेष उपकरणों का आयात करता है.
प्रतिबंधों की वजह से रूस के लिए यूरोपीय बाज़ारों तक पहुंच पाना मुश्किल हो गया है. ऐसे में रूस ने चीन का रुख़ किया, जिससे व्यापार की संभावनाओं की पिछली कमियों को पूरा किया जा सके.
दिसंबर 2023 में रूसी गणराज्य के प्रधानमंत्री मिखाइल मिशुस्तिन ने चीन और रूस के संबंधों को इतिहास में सबसे ऊंचे शिखर पर बताते हुए कहा था कि दोनों देशों के रिश्ते ‘अंतरराष्ट्रीय संबंधों की बुनियाद और स्थिरता लाने वाले हैं.’
2015 से चीन और रूस के बीच व्यापार तीन गुना बढ़ चुका है
Graph 1
चीन और रूस के रिश्तों में मतभेद के बिंदु
पिछले साल दिसंबर में यूरोपीय संघ (EU) ने रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों की 12वीं किस्त का ऐलान किया था. इससे रूस के लिए अतिरिक्त बाधाएं खड़ी हो गई थीं. जैसे कि द्वितीयक प्रतिबंध लगाए जाने से चीन के बैंकों ने जनवरी महीने से रूबल में हो रहे लेन-देन को प्रोसेस करने से मना कर दिया था. इनमें चीन के तीन सबसे बड़े बैंक: बैंक ऑफ चाइना, इंडस्ट्रियल ऐंड कमर्शियल बैंक ऑफ चाइना, और कंस्ट्रक्शन बैंक ऑफ चाइना शामिल हैं. रूस के बैंकों ने इन प्रतिबंधों की मार से बचने के लिए चीन में अपने दफ़्तर खोले हैं, ताकि लेन-देन को जारी रखा जा सके.
इसके बाद, इस साल मार्च में यूरोपीय संघ ने प्रतिबंधों की 13वीं किस्त लगाने का एलान किया. इसकी वजह से रूस और चीन की कंपनियों के लिए वस्तुओं का समानांतर स्तर पर आयात करने के लिए मजबूर होना पड़ा. प्रतिबंधों के कसते शिकंजे और लेन-देन की बढ़ती लागत को देखते हुए, रूस और चीन के बीच व्यापार में हो रही तेज़ बढ़ोत्तरी की वो रफ़्तार कम हो सकती है, जो पिछले साल देखने को मिली थी.
अगाथे डेमाराई के मुताबिक़, असल में रूस और चीन के बीच व्यापार अब तक अपनी संभावना से बहुत कम हो रहा था. इसी वजह से इसमें तेज़ी दिखी. पिछले कुछ वर्षों के दौरान व्यापार में इज़ाफ़ा तो हुआ था. फिर भी, रूस और चीन के व्यापारिक संबंधों का असल विकास तो यूक्रेन संघर्ष के बाद से ही शुरू हुआ. प्रतिबंधों की वजह से रूस के लिए यूरोपीय बाज़ारों तक पहुंच पाना मुश्किल हो गया है. ऐसे में रूस ने चीन का रुख़ किया, जिससे व्यापार की संभावनाओं की पिछली कमियों को पूरा किया जा सके.
रूस के साथ भारत के गर्मजोशी भरे रिश्तों और चीन के साथ बिगड़ते संबंधों को देखते हुए, हालात में आ रहे बदलावों पर बारीक़ी से नज़र रखनी होगी.
वहीं, अमेरिका के साथ चीन का द्विपक्षीय व्यापार 2022 में 758 अरब डॉलर का था. वहीं EU के साथ उसका व्यापार 850 अरब डॉलर से भी अधिक था. रूस की तुलना में पश्चिमी देशों के साथ चीन का व्यापार कहीं ज़्यादा अधिक है. इसी वजह से दुनिया में रूस के साथ उसके रिश्तों के ‘असीमित’ होने की छवि चीन के लिहाज़ से अच्छी नहीं है. क्योंकि, रूस की मदद से एक वैकल्पिक विश्व व्यवस्था के निर्माण की आकांक्षा रखने के बावजूद चीन ऐसे आर्थिक गलियारों का निर्माण कर रहा है, जो रूस को दरकिनार कर रहे हैं. जैसे कि मिडिल कॉरिडोर. यही नहीं, चीन ख़ुद की एक ऐसे देश की छवि नहीं बनने देना चाहता, जो यूक्रेन में खुलकर पुतिन की महत्वाकांक्षाओं का समर्थन कर रहा है. हाल ही में, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन से कहा था कि अमेरिका और चीन को प्रतिद्वंदी होने के बजाय साझीदार बनना चाहिए. पुतिन के बीजिंग पहुंचने से पहले शी जिनपिंग यूरोप के दौरे पर हैं और वो फ्रांस भी जाएंगे. इससे पता चलता है कि चीन, पश्चिमी देशों के साथ अपना सहयोग बढ़ा रहा है. ऐसे में पिछले कुछ वर्षों के दौरान रूस और चीन के सामरिक समुदायों के सदस्यों ने दोनों देशों के रिश्तों के बारे में बात करते हुए, ‘असीमित’ शब्द के इस्तेमाल से परहेज़ किया है. ऐसे में ज़ाहिर तौर पर नज़र आ रहे इन मतभेदों को दूर करने के लिए ही पुतिन, चीन के दौरे पर जाने वाले हैं.
पुतिन के चीन दौरे का एजेंडा
पुतिन के चीन दौरे के एजेंडे में, डिजिटल मुद्रा या फिर क्रिप्टोकरेंसी के ज़रिए दोनों देशों के बीच भुगतान की व्यवस्था की दिक़्क़तों को दूर करना होगा, ताकि आपसी कारोबार को जारी रखा जा सके. इसके अलावा, पावर ऑफ साइबेरिया पाइपलाइन-2 का निर्माण शुरू करने के लिए दोनों देशों के बीच तकनीकी मामलों से जुड़े समझौतों पर दस्तख़त हो सकते हैं. इसके अलावा पुतिन के दौरे के एजेंडे में ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन के विस्तार की प्रक्रिया पर चर्चा भी शामिल हो सकती है.
निष्कर्ष
रूस और चीन के बीच साझेदारी भले ही सामरिक हो. मगर दोनों देशों के रिश्ते पेचीदा हैं, और उनके लक्ष्य भी बिल्कुल अलग हैं और उनके बीच और आपस में मतभेद भी हैं. रूस के साथ भारत के गर्मजोशी भरे रिश्तों और चीन के साथ बिगड़ते संबंधों को देखते हुए, हालात में आ रहे बदलावों पर बारीक़ी से नज़र रखनी होगी. हालांकि, पुतिन के इस दौरे का नतीजा बहुत हैरानी भरा शायद न हो और इससे शायद उनके देश में कोई बहुत उत्साह न पैदा हो सके. वैसे तो रूस और चीन के संबंधों की व्याख्या के लिए कोई सटीक शब्द नहीं खोजा जा सकता. लेकिन, इसे ‘असीमित’ संबंध कहने से बचा जाना चाहिए.
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