Published on Dec 14, 2021 Updated 0 Hours ago

जहाज़ पर लदकर आयी घटिया चीनी खाद को द्वीपीय राष्ट्र श्रीलंका अपने यहां प्रवेश की अनुमति देने से खुले तौर पर मना कर चुका है, लेकिन चीन इसके लिए उसे मजबूर कर रहा है.

‘एक देश एक क़ानून’ की क़वायद और चीनी खाद के ख़तरे से घिरा श्रीलंका

श्रीलंका में उच्च-स्तरीय टास्क फोर्स ‘एक देश एक क़ानून’ के नवनियुक्त अध्यक्ष वेन ज्ञानसारा (Ven Gnyanasara) ने इसके उद्देश्यों को लागू करने के प्रयास में उन युवाओं को अपने विचार और सुझाव टास्क फोर्स के समक्ष रखने के लिए आमंत्रित किया, जिन्होंने ‘नस्लीय, धार्मिक और प्रांतीय विभाजनों’ की वजह से तक़लीफ़ उठायी. इस तरह, इस प्रक्रिया में युवाओं की ख़ास जगह है. राष्ट्रपति गोटबाया श्रीलंका से ‘समृद्धि और वैभव के सुनहरे भविष्य’ का वादा कर चुके हैं. लेकिन समृद्धि गायब है. श्रीलंका गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा है. सैकड़ों युवा काम की तलाश में श्रीलंका से बाहर जाने के लिए आप्रवासन (immigration) और वाणिज्य-दूत संबंधी (consular) विभागों के सामने लाइन लगाकर अपनी नाख़ुशी का सार्वजनिक रूप से इज़हार कर रहे हैं. देश में आर्थिक संकट गहराने के साथ, आर्थिक अभाव और ज़िंदगी गुजारने की ऊंची लागत से रोज़मर्रा का संघर्ष और बढ़ गया है. और, युवाओं का प्रवासन (माइग्रेशन) एक विकासशील देश के लिए ‘प्रतिभा-पलायन’ (brain drain) के लिहाज से गंभीर नुक़सान है. 

अतीत में, श्रीलंका ने युवाओं के दो विद्रोहों का सामना किया, जिनकी वज़ह से हजारों ज़िंदगियां ज़ाया हुईं. आज, एक और पीढ़ी देश से भाग रही है. राजनीतिक परिवेश की ओर से जो धुर-राष्ट्रवाद पेश किया गया है, वह धधकती आग में घी डालेगा और मौजूदा सामाजिक-राजनीतिक चिंताओं को शांत नहीं होने देगा.

अतीत में, श्रीलंका ने युवाओं के दो विद्रोहों का सामना किया, जिनकी वज़ह से हजारों ज़िंदगियां ज़ाया हुईं. आज, एक और पीढ़ी देश से भाग रही है. राजनीतिक परिवेश की ओर से जो धुर-राष्ट्रवाद पेश किया गया है, वह धधकती आग में घी डालेगा और मौजूदा सामाजिक-राजनीतिक चिंताओं को शांत नहीं होने देगा. इन घरेलू चिंताओं में इज़ाफ़ा करते हुए एक और बाहरी फैक्टर भी सिर पर मंडराता दिख रहा है- वह है श्रीलंका पर चीनी दबाव.

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव शी जिनपिंग एक नयी ‘पार्टी-राज्य कानूनी प्रणाली’ बनाने की कोशिश में जुटे रहे हैं, जहां पार्टी के नियम और राज्य के क़ानून एक जीवंत इकाई के बतौर सह-अस्तित्व में रहें. वियेना यूनिवर्सिटी में चीनी राजनीति के विद्वान लिंग ली ने इसे यूं बयान किया-‘यह कितनी भी उलटबांसी क्यों न लगे, क़ानून के मुताबिक़ शासन करने के विचार के इर्द-गिर्द शी की विचारधारा केंद्रित है.’ उन्होंने यह भी कहा कि शी अगले साल जब अपने तीसरे कार्यकाल में प्रवेश करेंगे, तो ‘पार्टी चेयरमैन’ की माओ-युगीन पदवी को फिर से ज़िंदा कर सकते हैं. महासचिव शी का प्रभाव (agency) बीते कुछ सालों में हर स्तर पर और हर संस्था में बढ़ा है. देंग शियाओपिंग (Deng Xiaoping) ने जिस लेनिनवादी केंद्रीकरण का अनुसरण किया, ठीक उसी नुस्ख़े को शी ने अपनाया. इसने चीन की मुख्यभूमि (mainland China) में बखूबी काम किया और अब योजना है चीन के प्रभाव के दायरे को श्रीलंका समेत Belt and Road Initiative (BRI) देशों तक विस्तारित करने की. चीन इस ‘राष्ट्रीय नवशक्ति-संचार’ (national rejuvenation) को पूरी ताक़त से आगे बढ़ा रहा है. इस क्रम में वह कई भौगोलिक क्षेत्रों में नियम और तौर-तरीक़े बदल रहा है, और चीन पर अपनी निर्भरता के चलते इसका शिकार श्रीलंका बना है.

चीनी अधिकारी खाद का तीसरे पक्ष से आकलन चाहते हैं, जो एक बार फिर से श्रीलंकाई विशेषज्ञता को कमतर बनाता है और जिसका इस्तेमाल भविष्य के कई दूसरे शिपमेंट के लिए स्थानीय प्रक्रिया को दरकिनार करने में हो सकता है.

खाद का मामला

चीन से आयी 4.2 करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक की खाद के एक शिपमेंट को लेकर चीन ने एक प्रतिष्ठित श्रीलंकाई बैंक, पीपुल्स बैंक, को काली सूची में डाल दिया है. कोलंबो में चीनी दूतावास ने ट्वीट कर यह जानकारी दी. श्रीलंकाई अधिकारियों ने हाल ही में 20 हजार टन खाद लदे एक चीनी जहाज़ को लौटाया, क्योंकि अक्टूबर में शिपमेंट में नुक़सानदेह बैक्टीरिया मिले थे. चीनी अधिकारियों ने किंगदाओ सीविन बायोटेक कंपनी से हुए अपने इस निर्यात की उच्च गुणवत्ता का बचाव किया है. हैरत की बात है, वही जहाज़ (जिसका नाम बदलकर ‘हिप्पो-स्प्रिट’ से ‘सीयो-एक्सप्लोरर’ कर दिया गया) उसी माल (कंसाइनमेंट) के साथ नवंबर में फिर घुसा. इस बार वह चीन द्वारा बनाये गये दक्षिणी हमनटोटा बंदरगाह के ज्य़ादा क़रीब था. जहाज़ ने अपनी स्वचालित पहचान प्रणाली (automatic identification system) को निष्क्रिय कर दिया और बीच-समुद्र में अपना नाम बदल लिया. नामंज़ूरी के बावजूद, चीन दूषित खाद कंसाइनमेंट को श्रीलंकाई द्वीप पर उतारने के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर रहा है. बैंक को काली सूची में डालने से लेकर जहाज़ का नाम बदलने की हद तक जाना चीन के महत्वपूर्ण ‘पुश’ फैक्टर (विमुख करने वाले कारक) को दिखाता है. यह काली सूची में डाले गये बैंक का बचाव करने और स्थानीय जांच के डाटा को मानने के लिए चीन पर दबाव बनाने में श्रीलंका की संस्थानिक क्षमता (जैसे कि उसका विदेश मंत्रालय) की स्पष्ट कमज़ोरियों को दर्शाता है. चीनी अधिकारी खाद का तीसरे पक्ष से आकलन चाहते हैं, जो एक बार फिर से श्रीलंकाई विशेषज्ञता को कमतर बनाता है और जिसका इस्तेमाल भविष्य के कई दूसरे शिपमेंट के लिए स्थानीय प्रक्रिया को दरकिनार करने में हो सकता है. यह मामला सप्लाई चेनों को तिकड़म से चलाने की चीन की क्षमता का उदाहरण है, जहां श्रीलंका पर दबाव डाला जा रहा है और वह चीनी कर्ज़ों पर बुरी तरह निर्भर है.

हालिया खाद आयात विवाद इसका उदाहरण है कि जब बात चीनी निर्यातों की हो, तो श्रीलंका जैसे देशों को गुणवत्ता मानकों को लेकर चिंतित रहना चाहिए. श्रीलंका को बुनियादी ढांचे के मानकों और चीनी कर्ज़ों में पारदर्शिता, तथा प्रमुख रणनीतिक परियोजनाओं को श्रीलंकाई मालिकाने में हस्तांतरित किये जाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.

श्रीलंका जैसे देशों में स्थानीय नीति-निर्माताओं को अपने हिसाब से अनुकूलित करने और उन पर दबाव बनाने के लिए चीन रूल बुक और मानकों को बदल रहा है. कार्नेगी इन्डाउमेंट की हाल की एक समग्र रिपोर्ट ‘China’s influence in South Asia: Vulnerabilities and Resilience in Four Countries’ में श्रीलंकाई अभिजात वर्ग, सरकारी संस्थाओं और मीडिया जगत पर चीन के बढ़ते प्रभाव को ‘उच्च जोख़िम’ के रूप में देखा गया है. चीनी कर्ज़ों को लेकर जनता में बढ़ता आक्रोश इस पूरे घटनाक्रम का सूचक है. रिपोर्ट उस ‘उच्च जोख़िम’ को उपयुक्त ढंग से सामने लाती है जिसका सामना चीन की ओर से श्रीलंका कर रहा है, ख़ासकर जब बात आती है ‘जनता के बीच राजनेताओं के विकल्प के रूप में अपना नज़रिया पहुंचाने वाले श्रीलंका के जीवंत व सशक्त मीडिया में मौजूद प्रभावशाली अभिजात वर्ग (elites) और प्रमुख व्यक्तियों’ पर संभावित क़ब्ज़े की. रिपोर्ट आगे कहती है कि ‘चीन द्वारा क़ब्ज़ा किये गये या क़ब्ज़े में जा सकने वाले अभिजात वर्ग का मुद्दा बांग्लादेश के मुक़ाबले श्रीलंका में ज्यादा प्रासंगिक है.’

सत्तारूढ़ राजनीतिक दल और सरकारी प्रशासन पर चीनी प्रभाव ने राज्य संस्थाओं पर असर डाला है और उन्हें रिपोर्ट में ‘मध्य जोख़िम स्तर’ के बतौर सूचिबद्ध किया गया है. इस पर गंभीर चिंतन की ज़रूरत है क्योंकि यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बदल देगा, और वैकल्पिक चीनी मॉडल के आगमन को न्योता देगा. चीन के आक्रामक व्यवहार को पलटना चुनौतीपूर्ण होगा और इसके लिए कई दक्षिण एशियाई देशों की ओर से कूटनीतिक कौशल, वाणिज्यिक नवाचार (commercial innovation) और सांस्थानिक सृजनात्मकता की ज़रूरत होगी. और, रिपोर्ट इस सिलसिले में नीति-निर्माताओं के विचारार्थ अपनी बेहद ज़रूरी सिफ़ारिशों को पेश करती है. हालिया खाद आयात विवाद इसका उदाहरण है कि जब बात चीनी निर्यातों की हो, तो श्रीलंका जैसे देशों को गुणवत्ता मानकों को लेकर चिंतित रहना चाहिए. श्रीलंका को बुनियादी ढांचे के मानकों और चीनी कर्ज़ों में पारदर्शिता, तथा प्रमुख रणनीतिक परियोजनाओं को श्रीलंकाई मालिकाने में हस्तांतरित किये जाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. 

चीन की विस्तार नीति या आक्रमण

हालांकि, ‘चीनी आक्रमण’ (Chinese invasion) को लेकर जैसा अमेरिकी दृष्टिकोण है, श्रीलंका में वास्तविक ज़मीनी स्थिति अभी वहां तक नहीं पहुंची है. यह सही है कि बुनियादी ढांचे में निवेश, वैक्सीन आपूर्ति, और वित्तीय मदद की वजह से चीनी प्रभाव काफ़ी बढ़ा है, लेकिन श्रीलंका में कोई असल चीनी आक्रमण नहीं है. वैश्विक वित्तीय संकट, ट्रंप के राष्ट्रपति काल, ब्रेग्जिट और अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिका की निकासी जैसी कई वैश्विक व क्षेत्रीय घटनाओं के बाद चीन की विस्तार रणनीति और तेज़ हो गयी है. हालांकि, ‘चीनी आक्रमण’ (पेंटागन के कई अधिकारी जैसा पेश कर रहे हैं) के निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाज़ी होगी, ख़ासकर यह ध्यान में रखते हुए कि एक विश्व शक्ति को चुनौती देने के लिए क्षेत्रीय शक्ति की हैसियत होना हमेशा ज़रूरी नहीं है. रॉबर्ट गिलपिन कहते हैं, ‘क्षेत्रीय आधिपत्य न रखने के बावजूद एक उभरती शक्ति अधिपति (hegemon, दूसरों पर आधिपत्य रखनेवाले) को नियंत्रण के क्रॉस-कटिंग स्वरूपों (जो अर्थव्यवस्था, वित्त, तकनीक और सूचना जैसी वैश्विक आधिपत्यवादी व्यवस्था को टिकाये रखते हैं) को लेकर वैश्विक रूप से चुनौती दे सकती है.’ कुछ हफ्ते पहले, चीन ने हाइपरसोनिक मिसाइल में अपनी सैन्य क्षमता प्रदर्शित की, जिसे अमेरिकी Joint Chiefs of Staff (तीनों सेनाओं के सर्वोच्च अधिकारियों से मिलकर बना निकाय) के चेयरमैन मार्क मिली ने ‘स्पुतनिक मोमेंट’ कहा. डर काफ़ी बढ़ाया-चढ़ाया गया है इसलिए यह ख़तरे की घंटी लग सकता है, लेकिन यह स्पुतनिक मोमेंट नहीं है. रश दोशी (Rush Doshi) कहते हैं, ‘यह मायने नहीं रखता कि चीन के पास पूरा क्षेत्रीय आधिपत्य है कि नहीं, बल्कि उसने एक गृह क्षेत्रीय भरोसा निर्मित किया है जो उसके वैश्विक विस्तार को आगे बढ़ाने की स्थिति में आधिपत्यवादी हस्तक्षेप के जोखिम को संभाल सकता है.’ 

चीन ने धीरे-धीरे अपना भरोसा और अपना प्रभाव श्रीलंका में बनाया है. आर्थिक व राजनीतिक रूप से काम कर पाने में श्रीलंका की मौजूदा विफलता को देखते हुए, वह इस क्षेत्र में चीन के विस्तार के लिए एक आकर्षक जगह होगा. यह Middle Kingdom (चीन) के लिए एक लंबा खेल है. अगले दशक में, अमेरिका को चीन के विस्तारवादी रवैये पर लगाम के लिए हिंद-प्रशांत के राज्यों की मदद उनकी असमान क्षमताओं को उन्नत बनाने में करनी होगी. श्रीलंका गंभीर प्रतिकूल हवाओं के थपेड़े झेलेगा, क्योंकि उसके यहां चीन एक मज़बूत फैक्टर है. उसकी राजनीतिक अक्षमता (political dysfunctionality) की वजह से क़ब्जे में जा सकने लायक होने का ‘उच्च जोख़िम’ अब सरकार की सबसे संवेदनशील शाखाओं, और क़ानून-व्यवस्था तक तक पैर पसार रहा है.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.