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श्रम व सांख्यिकी ब्यूरो के अनुसार 2014 में भारत में 48 मिलियन लोग रोजगार के लिए पंजीकृत किए गए थे, इनमें से 1 प्रतिशत से भी कम लोगों को एक्सचेंजों द्वारा नौकरियां मिलीं।
भले ही स्वचालन (ऑटोमेशन), रोबोटिक्स और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) विकसित राष्ट्रों, विशेषकर अमेरिका में ज्यादातर नौकरियों में मनुष्यों को हटाकर उनका स्थान ले रहे हों, लेकिन लोगों को रोजगार देने का मनभावन वादा आज भी दुनिया भर में हो रहे चुनावों में नेताओं के लिए मानक नारा बना हुआ है। यूरोप, अमेरिका और भारत में बेरोजगारी की समस्या खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। राष्ट्रपति ट्रंप अमेरिका में नौकरियां वापस लाने के लिए बेताब हैं क्योंकि उनका स्पष्ट मानना है कि पिछली सरकार की नीतियों के चलते अमेरिका से भारत, मेक्सिको और चीन जैसे विकासशील देशों में नौकरियों की आउटसोर्सिंग हो गई है। उन्होंने इन नीतियों को दुरुस्त करने का वचन दिया है। ट्रंप को बड़ी संख्या में ऐसे बेरोजगार पुरुषों और महिलाओं के भरपूर समर्थन से देश की सत्ता मिली है जो अमेरिका से विनिर्माण कार्यों के सस्ते कामगारों वाले देशों में स्थानांतरित हो जाने के कारण अपनी नौकरियां गंवा बैठे थे।
ट्रंप भाग्यशाली हैं क्योंकि अमेरिका में रोजगार से जुड़े नवीनतम आंकड़ों से पता चला है कि वहां बेरोजगारी में गिरावट आई है। वैसे तो निर्माण गतिविधि को धीमा कर देने वाले अत्यंत खराब मौसम के चलते मार्च 2018 के दौरान रोजगार वृद्धि दर में थोड़ी कमी आई, लेकिन कुल मिलाकर अमेरिका में रोजगार वृद्धि दर पिछले एक साल से बेहतरी का रुख दर्शा रही है। चूंकि बेरोजगारी में कमी का रुख देखा जा रहा है, इसलिए वर्तमान में बेरोजगारी दर सिर्फ 4.1 प्रतिशत ही है।वाशिंगटन पोस्ट के अनुसार, देश में हर बेरोजगार व्यक्ति के लिए फिलहाल कोई-न-कोई पद या रोजगार अवसर उपलब्ध है और कामगार भागीदारी दर (एलपीआर) निरंतर बढ़कर 62.9 प्रतिशत के उच्च स्तर पर पहुंच गई है जो वर्ष 2008 में गहराए वैश्विक वित्तीय संकट से पहले दर्ज की गई 66 प्रतिशत की एलपीआर के इतने निकट इससे पहले कभी नहीं पहुंची थी।
भारत समेत कई देशों ने ट्रंप के संरक्षणवाद पर आपत्ति व्यक्त की है क्योंकि उन्होंने इस्पात और अल्युमीनियम पर भारी-भरकम शुल्क लगाने का अभूतपूर्व कदम उठाया है। इतना ही नहीं, इससे पहले ट्रंप ने वॉशिंग मशीनों एवं सोलर पैनलों पर देय शुल्क को बढ़ा दिया और यह दावा किया कि हजारों नौकरियां अमेरिका वापस लौट आई हैं।
जैसी उम्मीद थी, चीन ने ठीक वैसा ही कदम उठाते हुए अमेरिकी कृषि उत्पादों पर शुल्क लगाकर बदले की कार्रवाई की है। चीन यह बात अच्छी तरह से जानता है कि इससे अमेरिकी किसानों को काफी नुकसान होगा जो इससे परेशान होकर शुल्क दरों में की गई वृद्धि को वापस लेने या कम से कम उन्हें संशोधित करने के लिए ट्रंप पर दबाव डालेंगे। अत: अमेरिका और चीन द्वारा बातचीत के जरिए इस समस्या का समाधान निकाले जाने के प्रबल आसार नजर आ रहे हैं।
एक और विशेष बात यह है कि अब तक अमेरिका को बढ़ते वेतन के कारण उच्च महंगाई दर का भी सामना नहीं करना पड़ा है। दरअसल, महंगाई काफी बढ़ जाने की स्थिति में फेडरल रिजर्व को त्वरित कार्रवाई करते हुए ब्याज दरों में वृद्धि करनी पड़ेगी और ऐसा होने पर भारत एवं सभी उभरते बाजारों को तगड़ा झटका लगेगा क्योंकि विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) वापस अमेरिका की ओर मुखातिब हो जाएंगे और वैसी स्थिति में शेयर बाजार में भारी उथल-पुथल देखने को मिलेगी।
ट्रंप भाग्यशाली हैं क्योंकि अमेरिकी अर्थव्यवस्था ने 2.5 प्रतिशत की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि दर दर्ज की है, जो अमेरिका जैसे समृद्ध देश के लिए दमदार विकास को दर्शाती है। वहीं, दूसरी तरफ बेरोजगारी दर 17 वर्षों के न्यूनतम स्तर पर है। इससे बेहतर कुछ भी नहीं हो सकता है! यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि अमेरिका वैश्विक वित्तीय संकट के बाद गहराई मंदी और धीमे विकास के लंबे दौर से उबर रहा है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा एक प्रोत्साहनकारी उपाय के रूप में ‘मात्रात्मक सहजता (बैंकिंग प्रणाली में मुद्रा आपूर्ति बढ़ाने के लिए केंद्रीय बैंक द्वारा बाजार से सरकार प्रतिभूतियां खरीदना)’ का कदम उठाने से भी निवेश और मांग में नई जान फूंकने में मदद मिली।
प्रधानमंत्री मोदी भी युवाओं को नौकरियों का वादा करके सत्ता में आए, लेकिन इसके विपरीत वह हाल के रोजगार डेटा से काफी निराश हो जाएंगे। सीएमआईई (सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी) के अनुसार, वर्तमान में बेरोजगारी दर 6.3 प्रतिशत (1 अप्रैल 2018) है और पिछले चार वर्षों में बहुत कम नौकरियां सृजित की गई हैं। हर महीने लगभग 1 मिलियन (दस लाख) युवा श्रम बल में जुड़ रहे हैं और मोदी ने उनसे वादा किया था कि उनके कार्यकाल के दौरान हर साल 10 मिलियन नौकरियां उपलब्ध होंगी। फिर भी संगठित क्षेत्र में 2016-17 में केवल 4.18 लाख नौकरियां सृजित की गई थीं।
श्रम एवं सांख्यिकी ब्यूरो के अनुसार, वर्ष 2014 में 48 मिलियन लोग रोजगार के लिए पंजीकृत किए गए थे और इनमें से 1 प्रतिशत से भी कम लोगों को एक्सचेंजों द्वारा नौकरियों में प्लेसमेंट दिया गया था। फरवरी 2018 में, लगभग 41 मिलियन लोग पूरे भारत में अवस्थित रोजगार कार्यालयों में दर्ज या विज्ञापित 1.6 मिलियन नौकरियों के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे थे। नौकरी तलाश रहे बेरोजगारों की संख्या वर्ष 2015 के लगभग 3 प्रतिशत से दोगुनी होकर वर्ष 2018 के आरंभ में 7 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गई है। इनमें से नौकरी तलाशने वाले लगभग आधे लोग 18 से 34 साल तक की उम्र के हैं अथवा भारत के युवा हैं।
विमुद्रीकरण या नोटबंदी का अनौपचारिक क्षेत्र पर विघटनकारी असर पड़ा था जिसके चलते लोग शहर छोड़कर अपने-अपने गांवों के लिए रवाना हो गए थे। यही नहीं, ये लोग अपने गांव में निवास के दौरान नौकरियां तलाशने में सक्रिय रूप से जुटे भी नहीं रहे थे। सीएमआईई के अनुसार, वर्ष 2016 में ‘बेरोजगारी दर’ बढ़कर 9 प्रतिशत और ‘बृहद् बेरोजगारी दर’ बढ़कर 17 प्रतिशत के उच्च स्तर पर पहुंच गई थी जिसमें ‘कुछ हद तक बेरोजगार’ भी शामिल थे। ऐसे लोगों को ‘कुछ हद तक बेरोजगार’ कहा जाता है जो सक्रियतापूर्वक तो किसी नौकरी की तलाश नहीं करते हैं, लेकिन यदि किसी नौकरी की पेशकश कर दी जाए तो उसे करने के लिए तैयार रहते हैं। वर्ष 2017 में बेरोजगारी दर और ‘कुछ हद तक बेरोजगारी’ की दर भी गिर गई जिसका मतलब यही है कि उस समय बड़ी संख्या में ऐसे ‘लापता’ बेरोजगार भी थे जिन्होंने विमुद्रीकरण या नोटबंदी के दौरान स्वयं को श्रम बल से बाहर कर लिया था। हालांकि, उन्हें श्रम बल में वापस लाने का सवाल अत्यंत महत्वपूर्ण है।
इसके परिणामस्वरूप, भारत में पहले से ही दर्ज ‘कम एलपीआर’ उन कई अन्य देशों की तुलना में ओर भी घटकर 42.7 प्रतिशत के स्तर पर आ गई है, जहां यह औसतन लगभग 60 प्रतिशत है। भारत में श्रम बल में महिला भागीदारी भी अत्यंत कम 24 प्रतिशत के स्तर पर है। विनिर्माण क्षेत्र (सेक्टर) में नौकरियां लगभग 2 प्रतिशत की दर से धीरे-धीरे बढ़ रही हैं। यह एक खतरनाक स्थिति को दर्शाता है क्योंकि यह विनिर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) क्षेत्र ही है जो अधिकतम संख्या में अर्द्ध कुशल या अकुशल कामगारों को रोजगार देता है।
इसके अलावा, कई तरह के प्रोत्साहन देने के बावजूद मोदी सरकार निवेश में नई जान फूंकने में कामयाब नहीं हो पाई है जो यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान हुए निवेश की तुलना में अब भी कम है। जब तक निवेश रफ्तार नहीं पकड़ेगा तब तक रोजगार वृद्धि दर मंद ही रहेगी। उद्योगपति फिलहाल ‘इंतजार करो और देखो’ की रणनीति पर अमल कर रहे हैं। यही नहीं, उद्योगपति मांग में सुस्ती और मुख्य रूप से धीमी निर्यात वृद्धि के कारण अपनी मौजूदा अधिशेष क्षमता को देखते हुए अपने-अपने परिचालनों का विस्तार भी नहीं कर रहे हैं। कॉरपोरेट और बैंकिंग क्षेत्रों की जुड़वां (ट्विन) बैलेंस शीट समस्या औद्योगिक विकास में सुस्ती से जुड़ी समस्याओं के मूल में प्रतीत होती है। हालांकि, फरवरी 2018 में औद्योगिक विकास दर उल्लेखनीय तेजी को दर्शाते हुए 7.1 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गई है।
हालांकि, उम्मीद अब भी बनी हुई है क्योंकि 2040 सूचीबद्ध कंपनियों के हालिया नतीजे यह भी दर्शाते हैं कि एकबारगी लाभ और हानि के समायोजन के बाद कुल या समग्र शुद्ध लाभ दिसंबर 2017 में समाप्त तिमाही में 11.1 प्रतिशत बढ़ गया, जो पिछली चार तिमाहियों में सर्वाधिक है। यह देश की अर्थव्यवस्था में बेहतरी के प्रारंभिक लक्षणों का संकेत हो सकता है। हालांकि, कच्चे तेल और जिंसों (कमोडिटी) की बढ़ती कीमतों के कारण विनिर्माण क्षेत्र में रोजगार वृद्धि की संभावनाओं को तगड़ा झटका लग सकता है। अत: आर्थिक पूर्वानुमानों के मुताबिक, अर्थव्यवस्था में पूरी तरह से बेहतरी का दौर केवल 2019 की तीसरी तिमाही से ही शुरू हो सकता है और तब जाकर ही तेज गति से रोजगार वृद्धि की उम्मीद की जा सकती है। हालांकि, श्री मोदी के लिए तब तक संभवत: काफी देर हो जाएगी!
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Jayshree Sengupta was a Senior Fellow (Associate) with ORF's Economy and Growth Programme. Her work focuses on the Indian economy and development, regional cooperation related ...
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