चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के कैलेंडर में मार्च का महीना बहुत अहम होता है. इस महीने में कम्युनिस्ट पार्टी ये दिखाने की कोशिश करती है कि उसका लोकतंत्र बख़ूबी काम कर रहा है. मार्च महीने में ही चीन की विधायी संस्थाओं- चाइनीज़ पीपुल्स पॉलिटिकल कंसल्टेटिव कॉन्फ्रेंस और नेशनल पीपुल्स कांफ्रेंस (NPC) की बैठकें होती हैं. इनके ज़रिए चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की प्राथमिकताओं के बारे में संकेत मिलते हैं. इस साल चीन के ‘दोहरे सत्र’ के दौरान कम्युनिस्ट पार्टी के सत्ताधारी वर्ग की बैठक यूरोप में चल रहे संघर्ष के शोर के बीच हुई.
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने एक साथी स्लाव देश यूक्रेन के ख़िलाफ़ अपनी सैन्य शक्ति के इस्तेमाल को वाजिब ठहराया है. पुतिन का कहना है कि उन्होंने ये सैन्य अभियान पश्चिमी देशों द्वारा उन क्षेत्रों पर की जा रही गतिविधियों से निपटने के लिए उठाया है, जो ऐतिहासिक रूप से रूस का हिस्सा रहे हैं. पुतिन ये संकेत दे रहे हैं कि वो अब सोवियत संघ के विघटन के चलते पैदा हुई चुनौतियों के समाधान की तरफ़ बढ़ रहे हैं. यूरेशिया में दोस्ताना ताल्लुक़ वाली सोवियत सरकार के पतन ने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को भी चेतावनी देने का काम किया था. जिसके बाद CCP ने इस पतन के पीछे के कारणों को समझने की कोशिश की, ताकि ख़ुद वही ग़लती करने से बच सके.
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने अपनी नियंत्रित अर्थव्यवस्था का विघटन कर दिया और विदेशी निवेश को आमंत्रित किया, जिससे ग़रीबी रेखा के नीचे रह रहे उसके नागरिकों की संख्या उस वक़्त घट गई, जब वो गांवों से शहरों में रहने आ गए.
आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत
केंद्रीकृत योजना वाली अर्थव्यवस्था को सोवियत संघ के पतन की पहली सबसे बड़ी वजह माना जाता है. इसी वजह से चीन ने आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत की थी. चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने अपनी नियंत्रित अर्थव्यवस्था का विघटन कर दिया और विदेशी निवेश को आमंत्रित किया, जिससे ग़रीबी रेखा के नीचे रह रहे उसके नागरिकों की संख्या उस वक़्त घट गई, जब वो गांवों से शहरों में रहने आ गए. चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने राजनीतिक सुधार लागू करने में चतुराई से काम लिया. जहां पश्चिमी देश बहुदलीय लोकतंत्र और नागरिक अधिकारों को लोकतंत्र के बेहतरीन मानक मानते हैं. वहीं, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ये मानती है कि वो अपने देश की प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार करके, लोकतांत्रीकरण के फ़ायदों की फ़सल काट सकती है. CCP का ज़ोर ख़ास तौर से जवाबदेही और पार्टी कार्यकर्ताओं के कार्यकाल तय करने पर रहा है. हालांकि, उसने एक ही पार्टी के नियंत्रण में कोई ढील नहीं दी है.
दूसरी, अपने दौर में दुनिया के सबसे बड़े देश रहे सोवियत संघ का दायरा धरती के सातवें हिस्से पर फैला हुआ था और इसके पंद्रह गणराज्य में अलग अलग संस्कृतियों और जातीयताओं वाले लोग आबाद थे. घरेलू स्तर पर सोवियत संघ की मुश्किलें तब बढ़ने लगीं, जब उसके प्रभाव क्षेत्र वाले देश उसकी पकड़ से दूर जाने लगे. दूर-दराज़ के सोवियत गणराज्यों में राष्ट्रवादी जज़्बाद पनपने लगे. ये ठीक वैसे ही हालात थे जैसे इस वक़्त हमें चीन में देखने को मिल रहे हैं, जहां पर 56 जातीयताओं वाले लोग रह रहे हैं. यही वजह है कि चीन ने अपने दूर-दराज़ वाले इलाक़ों और ख़ास तौर से हॉन्ग-कॉन्ग पर तवज्ज़ो देनी शुरू की है. इसीलिए, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने 1989 में तियानमेन स्क्वायर की घटना के बाद से एक कुशल अफ़सरशाही, एक सामाजिक आर्थिक एजेंडे के ज़रिए सत्ता पर अपनी पकड़ बनाए रखने की कोशिश की है.
वर्ष 2020 में चीन ने हांगकांग में राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून लागू किया था. इस क़ानून के तहत देश विरोधी गतिविधियों, नुक़सान पहुंचाने वाली हरकतों, आतंकवाद और विदेशी ताक़तों से साठ-गांठ पर पाबंदी लगाई गई थी.
इस वजह से नेशनल पीपुल्स कांग्रेस की बैठक में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के शासक वर्ग के बीच हांगकांग एक बार फिर से परिचर्चा का विषय बन गया. 1997 में जब ब्रिटेन ने हांगकांग का शासन चीन को सौंपा था, तो चीनी जातीयता वाले वहां के बाशिंदों ने कई मुद्दों पर कम्युनिस्ट पार्टी के आदेशों का विरोध किया था. चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने इसकी वजह समझी थी कि हांगकांग में उसके विरोध के पीछे पश्चिमी देशों का हाथ है. वहां की जनता के बाग़ी सुरों से निपटने के लिए चीन की सरकार ने नए-नए क़ानूनों का इस्तेमाल किया है. इसका मतलब, कि कुछ ख़ास मक़सद हासिल करने के लिए संस्थाओं और क़ानूनी तरीक़ों का इस्तेमाल करना है. वर्ष 2020 में चीन ने हांगकांग में राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून लागू किया था. इस क़ानून के तहत देश विरोधी गतिविधियों, नुक़सान पहुंचाने वाली हरकतों, आतंकवाद और विदेशी ताक़तों से साठ-गांठ पर पाबंदी लगाई गई थी. पिछले साल ‘दोहरे सत्र’ के दौरान चीन ने हांगकांग की चुनावी व्यवस्था में बदलाव किए थे. इसके ज़रिए ये सुनिश्चित किया गया था कि सार्वजनिक पदों पर केवल ‘राष्ट्रभक्त’ ही क़ाबिज़ हो सकेंगे. इन बदलावों के ज़रिए हांगकांग की विधान परिषद में चुने हुए प्रतिनिधियों की तादाद घटा दी गई है. यही नहीं, प्रत्याशियों के चयन की प्रक्रिया भी तय कर दी गई.
सख़्ती के बाद नरम रुख़
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी हांककांग में अपने उसी जांचे-परखे नुस्खे को आज़मा रही है, जिसके तहत लोक प्रशासन की कुशल व्यवस्था लागू करने और समृद्धि बढ़ाने पर ज़ोर दिया जा रहा है. नेशनल पीपुल्स कांग्रेस के अध्यक्ष ली झांशू, जो चीन की कम्युनिस्ट पार्टी में तीसरे सबसे बड़े नेता और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के क़रीबी हैं, ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में हांगकांग के शासन व्यवस्था में ‘सुधार करने’ का वादा किया था. इसका मतलब ये है कि चीन की सत्ताधारी पार्टी हांगकांग के वरिष्ठ अधिकारियों पर नज़र रखने के साथ-साथ ऐसी राजनीतिक प्रतिभाओं का पालन पोषण करना चाहती है, जो कम्युनिस्ट पार्टी की सोच से सहमत हों. कम्युनिस्ट पार्टी को लगता है कि वैसे तो हांगकांग के अधिकारी, कोविड-19 के प्रकोप से चीन से बेहतर तरीक़े से निपटे थे. लेकिन, हांगकांग का विशेष प्रशासनिक क्षेत्र इस वक़्त महामारी की नई लहर से जूझ रहा है. इस वक़्त, वहां इस वायरस से मौत की दर दुनिया में सबसे अधिक है, क्योंकि हांगकांग के ज़्यादातर बुज़ुर्गों को कोरोना का टीका नहीं लग सका है. मरीज़ों के बोझ तले दबी स्वास्थ्य व्यवस्था और नागरिकों द्वारा ज़रूरी सामान की बेतहाशा ख़रीद के मंज़र कम्युनिस्ट पार्टी की छवि के लिहाज़ से बहुत ख़राब हैं. ख़ास तौर से तब और जब चीन दुनिया भर में ये शोर मचाता फिरता है कि ‘पश्चिमी देशों की तुलना में वो इस महामारी से सबसे अच्छे ढंग से निपट सका है.’ वायरस से संक्रमित बच्चों को लेकर हांगकांग के प्रशासन के रवैये से भी चिंता बढ़ी है. जब स्वास्थ्य अधिकारियों ने 11 महीने के एक बच्चे को उसके मां-बाप से अलग करके क्वारंटीन में डाल दिया था, तो इस पर बहुत हंगामा बरपा था. हांगकांग में एक राजनीतिक स्कैंडल ने चीन की सरकार को दख़ल देने को मजबूर किया था. तब चीन की सरकार ने स्थानीय प्रशासन को सख़्त फ़टकार लगाई थी. जिस वक़्त हांगकांग में महामारी की भयंकर पांचवीं लहर चल रही थी, उस दौरान कोरोना के दिशा- निर्देशों के ख़िलाफ़ जाकर नेशनल पीपुल्स कांग्रेस में हांगकांग के सदस्य विटमैन हुंग वाई-मैन द्वारा जन्मदिन का कार्यक्रम मनाए जाने से असहज स्थिति पैदा हो गई थी. इसके बाद विटमैन और समारोह में शामिल दूसरे 170 लोगों को क्वारंटीन करना पड़ा था. इसके अलावा समारोह में शामिल 13 अधिकारियों को निलंबित भी कर दिया गया था. हांगकांग के गृह विभाग के सचिव कैस्पर सुई ने इस स्कैंडल के चलते अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया था. इन घटनाओं से स्थानीय प्रशासन की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े हुए थे.
वायरस से संक्रमित बच्चों को लेकर हांगकांग के प्रशासन के रवैये से भी चिंता बढ़ी है. जब स्वास्थ्य अधिकारियों ने 11 महीने के एक बच्चे को उसके मां-बाप से अलग करके क्वारंटीन में डाल दिया था, तो इस पर बहुत हंगामा बरपा था.
हांगकांग में विरोध प्रदर्शन की एक वजह आर्थिक असमानता को भी बताया गया था. रहन-सहन के ख़र्च द इकॉनमिस्ट की इंटेलिजेंस यूनिट की साल 2021 की सालाना रिपोर्ट जिसमें शहरों की पायदान तय की जाती है, उसमें हांगकांग को पांचवें स्थान पर रखा गया था. 2020 में आई इसी रिपोर्ट में हांगकांग पहली पायदान पर था. एक वित्तीय केंद्र के तौर पर हांगकांग का विकास और बाहर से आकर बसने वालों की बढ़ती तादाद ने बुनियादी ज़रूरतों के दाम बहुत बढ़ा दिए हैं और बढ़ी हुई क़ीमतों का स्थानीय लोगों पर बोझ बढ़ गया है. आज एक औसत फ्लैट की क़ीमत, किसी परिवार की औसत आमदनी से बीस गुना अधिक है
ग्राफ देखें-
स्रोत: न्यूयॉर्क टाइम्स
हांगकांग के जनसंख्या और सांख्यिकी विभाग द्वारा किए गए हालिया सर्वे में ज़्यादा आमदनी वाले ऐसे घरों की तादाद 1,90,000 बताई गई थी, जिनकी मासिक आमदनी हांगकांग डॉलर 1,00,000 (12,794 अमेरिकी डॉलर) या इससे ज़्यादा थी. वहीं, 4,000 हांगकांग डॉलर (512 अमेरिकी डॉलर) से कम आमदनी वाले परिवारों की तादाद 2,20,000 बताई गई थी.
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को पता है कि आमदनी की ये असमानताएं चिंता का विषय हैं. 2021 में अपने नीतिगत भाषण में मुख्य कार्यकारी कैरी लैम ने कहा था कि उनके प्रशासन ने अगले दस साल में 3,30,000 सार्वजनिक फ्लैट बनाने के लिए प्लॉट निर्धारित कर लिए हैं.
हांगकांग की इस आर्थिक असमानता को दूर करने के लिए चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने मुख्य भूमि के साथ और अधिक एकीकरण का नुस्खा निकाला है. हांगकांग का प्रशासन युवा उद्यमियों को इस बात के लिए प्रोत्साहित कर रहा है कि वो ग्रेटर बे एरिया के नए आर्थिक क्षेत्र में अपने उद्योग स्थापित करें. इस नए विशेष आर्थिक क्षेत्र का मक़सद हांगकांग और दक्षिणी चीन के नौ अन्य शहरों को इनोवेशन के केंद्र के तौर पर विकसित करना है. कम्युनिस्ट पार्टी को उम्मीद है कि जैसे-जैसे समृद्धि बढ़ेगी, वैसे-वैसे हांगकांग की नई पीढ़ी की लोकतंत्र की मांग कमज़ोर होती जाएगी. चीन के प्रधानमंत्री और कम्युनिस्ट पार्टी में दूसरे नंबर के नेता ली कचियांग ने ‘दोहरे सत्र’ के उद्घाटन के वक़्त अपने भाषण में इस बात का उल्लेख किया था. ये बात ली के 2020 में दिए गए भाषण से अलग थी. तब उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा को मज़बूत करने की ज़रूरत पर बल दिया था.
निष्कर्ष
कुल मिलाकर कहें तो, कोविड-19 और यूक्रेन के संघर्ष ने महंगाई को बढ़ा दिया है. हांगकांग में ओमिक्रॉन के बढ़ते मामलों के चलते बहुत से क्षेत्रों ने सीमा पर नए सिरे से पाबंदियां लगा दी हैं, जिससे अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ा है. इसके अलावा, हो सकता है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को ये एहसास हुआ हो कि क़ानून थोपकर दबदबा क़ायम करने की उसकी रणनीति में हांगकांग के लिए कई जोखिम हैं और अब समय आ गया है कि वो सामाजिक आर्थिक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करे. शायद इन्हीं कारणों से कम्युनिस्ट पार्टी ने हांगकांग को लेकर अपनी रणनीति की नए सिरे से समीक्षा की है.
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