Author : Prasanna Karthik

Published on Jul 06, 2020 Updated 0 Hours ago

ऐसे वक़्त में ये ज़रूरी हो जाता है कि आर्थिक विकास के लिए पर्यावरण कल्याण की बलि नहीं दी जाए. ये दौर पर्यावरण अनुकूल आर्थिक विकास के रास्ते पर चलने का सही समय है.

भारतीय अर्थव्यवस्था का पुनर्निर्माण: पर्यावरण अनुकूल और टिकाऊ हो तभी होंगे सफल

1970 से 2015 के बीच भारत ने सामानों की खपत में 6 गुना बढ़ोतरी दर्ज की. 1.18 अरब टन से बढ़कर ये आंकड़ा 7 अरब टन हो गया. 2022 तक भारत दुनिया में सबसे ज़्यादा आबादी वाला देश बन जाएगा और उम्मीद की जाती है कि 2030 तक भारत में जनसंख्या बढ़ोतरी, शहरीकरण, आर्थिक गतिशीलता और इसकी वजह से प्रति व्यक्ति संसाधन के उपभोग में बढ़ोतरी के कारण सामानों की सालाना खपत दोगुना बढ़कर 14.2 अरब टन हो जाएगी. वर्तमान में भारत में संसाधन का संग्रह 1,580 टन प्रति एकड़ है जो विश्व के औसत 450 टन प्रति एकड़ से 251% ज़्यादा है. जहां यूरोप अपनी खपत के सामान में से 70% को रिसाइकल करता है, वहीं भारत सिर्फ़ 20% को रिसाइकल करता है. भारत ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन के मामले में भी तीसरा बड़ा देश है और विश्व के कुल उत्सर्जन में भारत का योगदान 9.2% है. ऐसे हालात में जब भारत वैश्विक उत्पादन का बड़ा केंद्र बनना चाहता है, हम भारत की घरेलू ज़रूरत से ज़्यादा कच्चे माल की खपत देखेंगे. ऐसे में भारत का परंपरागत आर्थिक दृष्टिकोण पर्यावरण को काफ़ी नुक़सान पहुंचाएगा जिसके कठिन आर्थिक और सामाजिक नतीजे होंगे.

कोविड-19 महामारी को देखते हुए जिन बड़े आर्थिक बदलावों का एलान किया गया है, उसके तहत केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के समन्वय से देश के लिए एक पर्यावरण अनुकूल आर्थिक विकास का मॉडल ज़रूर विकसित करनी चाहिए

कच्चे माल, तैयार सामान से अधिकतम संग्रह पर्यावरण अनुकूल अर्थव्यवस्था के लिए सबसे ज़रूरी है. ये देखते हुए कि भारत फिलहाल अपनी खपत के सिर्फ़ 20% हिस्से को रिसाइकल करता है, इस मामले में काम करने के लिए काफ़ी अवसर हैं और ये नये आविष्कार और रोज़गार के मौक़े मुहैया कराता है. इसलिए मौजूदा आर्थिक मॉडल से पर्यावरण अनुकूल आर्थिक मॉडल तक का सफ़र पर्यावरणीय और आर्थिक फ़ायदों से भरा हुआ है. एलन मैकआर्थर फ़ाउंडेशन के मुताबिक़ पर्यावरण अनुकूल अर्थव्यवस्था होने से 624 अरब अमेरिकी डॉलर का फ़ायदा होगा और सिर्फ 2050 में कार्बन उत्सर्जन में 44% की कमी आएगी (मौजूदा आर्थिक विकास के रास्ते के मुक़ाबले). कोविड-19 महामारी को देखते हुए जिन बड़े आर्थिक बदलावों का एलान किया गया है, उसके तहत केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के समन्वय से देश के लिए एक पर्यावरण अनुकूल आर्थिक विकास का मॉडल ज़रूर विकसित करनी चाहिए.

पर्यावरण अनुकूल अर्थव्यवस्था का निर्माण करने के लिए एक बहुपक्षीय दृष्टिकोण की ज़रूरत है जिसमें सरकार, उद्योग और नागरिकों की सक्रिय भागीदारी हो. इसके लिए मज़बूत रास्ते की ज़रूरत है जिसमें केंद्र, राज्य और स्थानीय सरकारों की भागीदारी हो और ये निम्नलिखित पहलुओं पर ज़रूर ध्यान दे:

  • पूरी जनसंख्या के नागरिकों की जागरुकता और संसाधनों का बंटवारा
  • कर प्रोत्साहन और वित्तीय मदद ताकि पर्यावरण अनुकूल अर्थव्यवस्था को वित्तीय रूप से और सक्षम बनाया जा सके
  • उद्योग विशेष रोडमैप ताकि प्रमुख उद्योगों को पर्यावरण अनुकूल अर्थव्यवस्था में बदला जा सके
  • तकनीकी आविष्कार जो पर्यावरण अनुकूल अर्थव्यवस्था को संभव और सक्षम बना सके
  • केंद्र सरकार, राज्य सरकार, स्थानीय सरकार और उद्योगों के बीच नीतिगत रोडमैप और समन्वय

नागरिक जागरुकता और संसाधनों का बंटवारा

प्रति व्यक्ति खपत बढ़ने के साथ नागरिकों को ये पता होना चाहिए कि उनकी खपत के तरीक़ों का पर्यावरण पर क्या असर होगा. ऐसा करने से वो ज़िम्मेदार उपभोक्ता बनेंगे. उदाहरण के तौर पर, एक किलोग्राम कपड़ा बनाने के लिए 27.6 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है. एक किलोग्राम कंप्यूटर का पुर्जा बनाने के लिए 96 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है. जिस तरह हर खाद्य उत्पाद पर उसकी कैलोरी वैल्यू का ज़िक्र होता है, ठीक उसी तरह पैकेज्ड उत्पादों और प्रदूषण फैलाने वाली सेवाओं जैसे एयरलाइंस उस उत्पाद/सेवा की खपत से होने वाले कार्बन उत्सर्जन का ज़िक्र करे. इसके अतिरिक्त पूरे भारत में स्कूल का पाठ्यक्रम बच्चों को पर्यावरण अनुकूल अर्थव्यवस्था के विषय पर ज़रूर जागरुक करे और पर्यावरण अनुकूल आर्थिक विकास के मॉडल को अपनाने के फ़ायदों के बारे में प्रोत्साहित करे.

भारत में 70% कूड़े को ट्रीट नहीं किया जाता और इसलिए देश भर में लैंडफिल की बढ़ती समस्या पर काबू पाने के लिए शुरुआती स्तर पर ही उन्हें अलग-थलग किया जाए

भारत को देशव्यापी जागरुकता अभियान भी ज़रूर चलाना चाहिए जिसमें घरेलू स्तर पर कूड़ों को अलग-थलग करने के महत्व पर ज़ोर दिया जाए. गीले और सूखे कूड़े का अलग-अलग निपटारा गीले कूड़े के कैलोरी वैल्यू का पता लगाने और सूखे कूड़े को रिसाइकल करने के लिए महत्वपूर्ण है. भारत में 70% कूड़े को ट्रीट नहीं किया जाता और इसलिए देश भर में लैंडफिल की बढ़ती समस्या पर काबू पाने के लिए शुरुआती स्तर पर ही उन्हें अलग-थलग किया जाए.

कर प्रोत्साहन और वित्तीय मदद

पर्यावरण अनुकूल अर्थव्यवस्था के लिए आधारभूत ढांचे और तकनीक में महत्वपूर्ण निवेश की ज़रूरत है. इस निवेश का एक बड़ा हिस्सा राज्य और स्थानीय सरकारों को करने की ज़रूरत है जबकि कुछ हिस्सा निजी क्षेत्र को. ऐसे निवेश को आर्थिक रूप से टिकाऊ बनाने के लिए केंद्र सरकार निश्चित रूप से राज्य और स्थानीय सरकारों को फंड पहुंचाए. ये देखते हुए कि पर्यावरण अनुकूल अर्थव्यवस्था बनाने के लिए शहर सबसे महत्वपूर्ण हैं, ये केंद्रीय सरकार के स्मार्ट सिटी मिशन का भी महत्वपूर्ण हिस्सा होना चाहिए.

निजी क्षेत्र की कंपनियों को पर्यावरण अनुकूल कार्यप्रणाली बढ़ाने के लिए और कार्बन फुट प्रिंट घटाने के लिए विशेष कर प्रोत्साहन मुहैया कराना चाहिए. उदाहरण के लिए फ्रांस की कार कंपनी रेनॉ यूरोप में अपनी सभी कार में 33% रिसाइकल कच्चे माल का इस्तेमाल करती है. अगर भारत में एक कार उत्पादक कंपनी ऐसा करती है तो उसे निश्चित रूप से कर फ़ायदा मुहैया कराया जाना चाहिए. ITC को उसकी बेहतरीन ESG (पर्यावरण, सामाजिक और शासन) मॉडल की मान्यता के तौर पर एक वैश्विक ESG रेटिंग कंपनी सस्टेनेलीटिक्स ने दुनिया भर में पहला स्थान दिया है. ITC, टाटा, महिन्द्रा इत्यादि जैसी कई कंपनियां हैं जो अपनी बिज़नेस रणनीति के तौर पर ESG पद्धति पर बहुत ज़्यादा ध्यान देती हैं. ऐसी कंपनियों को वित्तीय प्रोत्साहन ज़रूर मिलना चाहिए ताकि वो और ज़्यादा काम करें और दूसरी कंपनियों को भी पर्यावरण के फ़ायदे वाली कारोबारी पद्धति अपनाने के लिए मनाएं.

ये देखते हुए कि पर्यावरण अनुकूल अर्थव्यवस्था बनाने के लिए शहर सबसे महत्वपूर्ण हैं, ये केंद्रीय सरकार के स्मार्ट सिटी मिशन का भी महत्वपूर्ण हिस्सा होना चाहिए

उद्योग विशेष आधारित रोडमैप

भारत को उद्योग विशेष आधारित रोडमैप विकसित करने की ज़रूरत है। इसके तहत 10 ऐसे उद्योगों पर लक्ष्य करने की ज़रूरत है जो पर्यावरण को सबसे ज़्यादा नुक़सान पहुंचाते हैं, साथ ही पर्यावरण अनुकूल पद्धतियों को अपनाने पर महत्वपूर्ण प्रगति का अवसर भी मुहैया कराते हैं, जैसे: परिवहन, खाद्य और कृषि, प्लास्टिक, पैकेजिंग, धातु और खनिज, सीमेंट, कपड़ा, ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स और निर्माण. इनमें से परिवहन उद्योग को खाद्य और गीले कूड़े के दूसरे रूप के उचित निस्तारण से जोड़ कर इसे अधिक टिकाऊ बनाने में अलग-अलग स्तर पर सरकारें महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं.

संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक़ भारत में उत्पन्न 25% खाद्य पदार्थ बर्बाद होते हैं. इन बर्बाद खाद्य पदार्थों का इस्तेमाल भूखे नागरिकों को भोजन मुहैया कराने में किया जा सकता था. जिन खाद्य पदार्थों की खपत नहीं हो सकती है, उनमें भी महत्वपूर्ण कैलोरी वैल्यू होती है जिसे ऊर्जा में बदला जा सकता है. अगर संगठित तरीक़े से संग्रह हो तो खाद्य कूड़े के साथ गीले कूड़े के दूसरे रूपों (कृषि कूड़ा, बाज़ार कूड़ा इत्यादि) को बायो सीएनजी में बदला जा सकता है और इसका इस्तेमाल सार्वजनिक परिवहन प्रणाली के लिए ऊर्जा उत्पन्न करने में किया जा सकता है. यूरोप के कई शहरों जैसे स्टॉकहोम में इस तरह का सार्वजनिक परिवहन मॉडल काम कर रहा है. कई शहर ऐसे भी हैं जो जैव ईंधन पर आधारित सार्वजनिक परिवहन प्रणाली की शुरुआत के लिए बड़े पैमाने पर काम कर रहे हैं. भारत में खाद्य और कृषि कूड़े की विशाल मात्रा को देखते हुए बड़े शहरों में जैव ईंधन आधारित सार्वजनिक परिवहन प्रणाली की शुरुआत की जा सकती है और इससे पर्यावरण को काफ़ी फ़ायदा होगा.

ऐसा अनुमान है कि 2050 के हिसाब से भारत में 70% इमारतों का निर्माण होना अभी बाक़ी है. ऐसे में पूरे निर्माण उद्योग को पर्यावरण अनुकूल आर्थिक पद्धति से जोड़ना भारत के आवासीय और शहरीकरण रोडमैप के लिए महत्वपूर्ण है. इसी तरह हर उद्योग के लिए पर्यावरण अनुकूल पद्धति को अपने कारोबार और रणनीति में जोड़ना ज़रूरी है. उद्योग विशेष आधारित रोडमैप विकसित करना और उसका पालन करने से महत्वपूर्ण फ़ायदा हो सकता है.

तकनीकी आविष्कार

सफलतापूर्वक पर्यावरण अनुकूल आर्थिक मॉडल में बदलाव के लिए कई तरह के डिजिटल, इंजीनियरिंग और प्रोसेस टेक्नोलॉजी हैं जिन्हें बनाने और विकसित करने की ज़रूरत है. डिजिटल तकनीक का विकास करने से जहां बाज़ार से फ़ायदा होगा, वहीं पर्यावरण अनुकूल अर्थव्यवस्था बनाने के लिए ज़रूरी इंजीनियरिंग और प्रोसेस टेक्नोलॉजी के विकास को बढ़ावा देने के लिए सरकार को निश्चित तौर पर बड़ी भूमिका निभानी चाहिए. प्रदूषण फैलाने वाले 10 सेक्टर में उत्पादन के लिए मज़बूत पर्यावरण अनुकूल मॉडल विकसित करने के उद्देश्य से इंजीनियरिंग और प्रोसेस टेक्नोलॉजी की पहचान की जानी चाहिए. उनके विकास के लिए फंडिंग का इंतज़ाम या तो सीधे तौर पर सरकार करे या ऐसा मॉडल विकसित किया जाना चाहिए जिसमें निजी क्षेत्र निवेश के लिए आकर्षित हो.

सफलतापूर्वक पर्यावरण अनुकूल आर्थिक मॉडल में बदलाव के लिए कई तरह के डिजिटल, इंजीनियरिंग और प्रोसेस टेक्नोलॉजी हैं जिन्हें बनाने और विकसित करने की ज़रूरत है

नीतिगत रोडमैप और समन्वय

भारत की मौजूदा अर्थव्यवस्था को पर्यावरण अनुकूल अर्थव्यवस्था में बदलने के लिए मज़बूत नीतिगत रोडमैप और अलग-अलग सरकारी विभागों के बीच समन्वय की ज़रूरत है. इस मामले में केंद्र सरकार को पहल करनी चाहिए और राज्य और स्थानीय शासन के साथ नज़दीकी तौर पर समन्वय कर इस व्यापक और केंद्रित रोडमैप को विकसित करना चाहिए. साथ ही केंद्र सरकार की ओर से जारी अलग-अलग दूसरे नियम जैसे प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स, ई-वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स, कंस्ट्रक्शन एंड डेमोलिशन वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स, मेटल्स रिसाइकलिंग पॉलिसी इत्यादि को राष्ट्रीय पर्यावरण अनुकूल रोडमैप के साथ ज़रूर जोड़ा जाना चाहिए.

लॉकडाउन की वजह से जहां अभी भी आर्थिक मंदी के हालात बने हुए हैं, वहीं जालंधर और सहारनपुर में रहने वाले लोगों को वायु प्रदूषण में कमी की वजह से कई दशकों के बाद हिमालय की एक झलक मिली. पिछले तीन दशकों के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था ने बड़ा विकास दर्ज किया और इससे पर्यावरणीय और आर्थिक कल्याण के प्रतिकूल संबंधों का साफ़ पता चलता है. विकास का पर्यावरण अनुकूल आर्थिक मॉडल भारत में पर्यावरणीय और आर्थिक कल्याण को एक-दूसरे से जोड़ते हैं. कई प्रगतिशील शहरों और देशों ने पर्यावरण अनुकूल अर्थव्यवस्था के निर्माण के लिए रणनीतिक प्रेरणा को अपनाया है. कोविड-19 महामारी के आर्थिक असर को कम करने के लिए कई सुधारों का प्रस्ताव किया गया है, ऐसे वक़्त में ये ज़रूरी हो जाता है कि आर्थिक विकास के लिए पर्यावरण कल्याण की बलि नहीं दी जाए. ये दौर पर्यावरण अनुकूल आर्थिक विकास के रास्ते पर चलने का सही समय है. ऐसा पर्यावरण अनुकूल आर्थिक विकास जो न सिर्फ़ पूरे भारत में जीवन जीने की पद्धति बन जाए बल्कि जब हमारी प्रति व्यक्ति खपत अभूतपूर्व स्तर पर पहुंच जाए तो हम इसका फ़ायदा उठाने के लिए भी तैयार रहें.

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