Published on May 26, 2017 Updated 0 Hours ago

जीएसटी पर श्रीनगर में बनी आम सहमति के बाद इसी अनुचित आलोचना यह कहकर की जा रही है कि इन पर अमल करना मुश्किल है।

जीएसटी दरों पर सवालिया निशान ठीक नहीं

वस्‍तु एवं सेवा कर (जीएसटी) पर श्रीनगर में आम सहमति भले ही हो गई हो, लेकिन इसकी गलत आलोचना करने वालों की कमी नहीं है। इनमें से एक गलत आलोचना यह है कि जीएसटी प्रणाली के तहत ढेर सारी दरें तय कर दी गई हैं। इतना ही नहीं, यह आरोप तक लगा दिया गया है कि इससे भ्रम की स्थिति पैदा होगी, अनुपालन से जुड़ी समस्याएं उत्‍पन्‍न होंगी और यह दरअसल खुद जीएसटी की मूल भावना के विपरीत है। इन आलोचकों का कहना है कि केवल एक ही ऐसी टैक्स दर होनी चाहिए, जो सभी वस्तुओं पर लागू हो। इन आलोचकों के मुताबिक चार टैक्‍स दरें तो कतई नहीं होनी चाहिए जिन्‍हें जीएसटी परिषद द्वारा 18 मई, 2017 को श्रीनगर में मंजूरी दी गई है। इस बैठक के बाद जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया था, ‘परिषद ने वस्‍तुओं के लिए जीएसटी दरों को मोटे तौर पर अनुमोदित कर दिया है, कुछ वस्तुओं पर लगाई जाने वाली टैक्‍स दरें क्रमश: शून्य, 5, 12, 18 और 28 फीसदी हैं।’ कुल मिलाकर, परिषद द्वारा महज एक टैक्‍स दर के बजाय चार टैक्‍स दरें (छूट वाली वस्तुओं को 0% के रूप में मानने पर वास्‍तव में पांच टैक्‍स दरें हो जाती हैं) तय किए जाने की आलोचना यह कहते हुए की गई है कि इस कानून का मसौदा तैयार करते समय जिस ‘एक देश, एक कर’ के आइडिया की परिकल्‍पना की गई थी उससे यह बिल्‍कुल अलग हटकर है।

यह आलोचना इन तीन बिंदुओं पर बिल्‍कुल गलत साबित होती है: यह जीएसटी की अवधारणा से मेल नहीं खाती है, वैश्विक रुझानों के बारे में जागरूकता की कमी है और एक ऐसी टैक्‍स नीति बनाने के मामले में किसी भी संप्रभु राष्‍ट्र और राज्‍यों के अधिकारों एवं दायित्वों के बारे में भारी अज्ञानता को दर्शाती है जो उनके अधिकार क्षेत्रों की जमीनी वास्तविकताओं के अनुरूप है। वैसे, जीएसटी परिषद की आलोचना, यहां तक कि उसकी निंदा करने के कई अन्‍य कारण हैं, जिनके बारे में मैं अपने आगामी लेखों में चर्चा करूंगा। हालांकि破, परिषद ने पांच टैक्‍स दरें तय करने का जो निर्णय लिया है वह निश्चित रूप से इन अन्‍य कारणों में शामिल नहीं है।

पहली बात, जीएसटी व्यवस्था एक कर प्रणाली है, न कि टैक्‍स दर है। इस प्रणाली के तहत दरों का निर्धारण जीएसटी परिषद के माध्‍यम से केंद्र एवं राज्यों के संयुक्त प्रयासों से किया गया है। जीएसटी किसी वस्‍तु के उत्‍पादन अथवा प्रदान की जा रही सेवा में किसी आर्थिक एजेंट द्वारा किए गए मूल्य वर्धन पर लगाया गया कर है। इस बारे में भ्रम का कारण संभवत: ये दो शब्‍द हैं ‘मानक दर’ और ‘राजस्व तटस्थ दर’, जिनसे इस धारणा को बल मिला कि वास्‍तव में केवल ये दोनों ही दरें होंगी। मानक दर ही सबसे आम दर है जो 18 फीसदी तय की गई है। वहीं, दूसरी ओर राजस्व तटस्थ दर दरअसल वह दर है, जिस पर जीएसटी को अपनाया जाएगा और इसके साथ ही यह ख्‍याल रखा जाएगा कि केंद्र या राज्य सरकार की माली हालत को न्यूनतम नुकसान हो, जिसके बारे में विस्‍तृत जानकारी कर संग्रह की चार से छह तिमाहियां गुजर जाने पर ही मिलेगी। इसका मतलब ‘एकल दर’ तो कतई नहीं है।

जीएसटी व्यवस्था एक कर प्रणाली है, न कि टैक्‍स दर है। इस प्रणाली के तहत दरों का निर्धारण जीएसटी परिषद के माध्‍यम से केंद्र एवं राज्यों के संयुक्त प्रयासों से किया गया है।

दूसरी बात, पांच टैक्‍स दरें दरअसल वैश्विक चलन के अनुरूप ही तय की गई हैं। भारत कोई एकदम भिन्‍न देश नहीं है। भारत आर्थिक दृष्टि से प्रतिगामी या राजकोषीय लिहाज से अनपढ़ों का देश नहीं है। इस मामले में भारत जैसी स्थिति कई देशों में देखने को मिल रही है। उदाहरण के लिए, चीन में 17% की मानक दर के अलावा छह दरें (छूट या 0%, 3%, 5%, 6%, 11% और 13%) हैं, जिससे कुल दरों की संख्या सात हो जाती है। इसी तरह ब्राजील में टैक्‍स दरों की दो रेंज (0% से लेकर 35% तक और 0% से लेकर 365% तक), निर्धारित टैक्‍स दरों वाली दो रेंज (3% एवं 7.6%, तथा 0.65% एवं 1.65%); और तीन एकल (स्टैंडअलोन) टैक्‍स दरें (4%, 7% या 12%) हैं। कनाडा में पांच टैक्‍स दरें (0%, 5%, 9.975%, 13%, और 15%) हैं, फ्रांस में भी पांच टैक्‍स दरें (0%, 2.1%, 5.5%, 10%, 20%) है और इसी तरह इटली में भी पांच टैक्‍स दरें (0%, 4%, 5%, 10%, और 22%) हैं। स्विट्जरलैंड में चार टैक्‍स दरें (0%, 2.5%, 3.8%, और 8%) हैं। इसी तरह रूसी संघ में तीन टैक्‍स दरें (0%, 10%, और 18%) हैं और ब्रिटेन में भी तीन टैक्‍स दरें (0%, 5%, and 20%) हैं।

वहीं, दूसरी ओर अनेक देशों में केवल कुछ ही टैक्‍स दरें हैं। ऑस्ट्रेलिया (0% एवं 10%) और डेनमार्क में (0%, एवं 25%), इंडोनेशिया एवं दक्षिण कोरिया में (0%, एवं 10%), सऊदी अरब में (0%, एवं 5%), न्यूजीलैंड , नाइजीरिया, सिंगापुर, थाईलैंड और मैक्सिको, इत्‍यादि में दो टैक्‍स दरें हैं। जर्मनी में तीन टैक्‍स दरें (0%, 7%, और 19%) हैं। ऐसे कई देश हैं जहां एक से अधिक मानक दरें हैं जिनमें मिस्र (13% एवं 14%), इक्वाडोर (12% एवं 14%), मालदीव (6%, एवं 12%), ऑस्ट्रिया (19% एवं 20%), और पाकिस्तान (वस्तुओं के लिए 17% एवं सेवाओं के लिए 14% से लेकर 16% तक) शामिल हें। एक ही कर यानी जीएसटी अथवा मूल्य वर्धित कर (वैट) को विभिन्न देशों में अलग-अलग नाम से अभिव्‍यक्‍त किया गया है।

अत: भारत में पांच टैक्‍स दरें वैश्विक चलन के ही अनुरूप हैं। भारत में पांच टैक्‍स दरें न तो असामान्य हैं और न ही भ्रामक हैं।

तीसरी बात, भले ही यह असामान्‍य हो, लेकिन यह तो सच ही है कि प्रत्येक देश की अपनी संस्कृति, अर्थव्यवस्था, जनसंख्‍या, विषमता के स्‍तर और कई अन्य मापदंडों के लिहाज से विशिष्‍ट आवश्‍यकताएं होती हैं जिनका ख्‍याल उसे अपने राजकोषीय हालात को व्यक्‍त करते वक्‍त रखना ही पड़ता है। एक ही टैक्‍स दर अर्थशास्त्रियों के लिए तो आकर्षक हो सकती है, लेकिन यह जरूरी नहीं है कि हर देश की जरूरतों के लिहाज से यह बिल्‍कुल सही हो। उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था का आकार ग्रीस या न्यूजीलैंड के लगभग बराबर है। इसी तरह महाराष्‍ट्र की अर्थव्यवस्था का आकार ऑस्ट्रिया या थाईलैंड के कमोबेश बराबर और कर्नाटक की अर्थव्यवस्था का आकार पुर्तगाल या बांग्लादेश के लगभग बराबर है। ‘एक राष्ट्र, एक कर’ के प्रतिमान के लिए इन बड़े राज्यों की राजकोषीय आकांक्षाओं को छोटे राज्‍यों की अपेक्षाओं में मिश्रित करना होगा। इसके अलावा, हमारे देश में विषमताएं चरम पर हैं। ऐसे में जीवन निर्वाह के लिए आवश्‍यक वस्तुओं पर उतना ही टैक्स नहीं लगाया जा सकता है जितना टैक्‍स समृद्ध लोगों द्वारा उपभोग की जाने वाली वस्‍तुओं पर लगाया जाता है। इसी तरह के कई ऐसे मसले हैं जिन पर नीति निर्माताओं को गंभीर मंत्रणा करनी पड़ती है और उसके बाद ही टैक्‍स दरों की संख्‍या पर आम सहमति संभव हो पाती है। यही बात जीएसटी परिषद पर लागू होती है जिसने टैक्‍स दरों के बारे में निर्णय लेते वक्‍त सभी राज्यों को अपनी बातें कहने का पर्याप्‍त अवसर देकर आम सहमति सफलतापूर्वक सुनिश्चित की है।

टैक्‍स दरों को लेकर ज्‍यादातर आलोचना वास्तव में दरों पर अमल, अनुपालन में आने वाली बाधाओं, कर चोरी, करों के अप्रत्याशित होने, उद्यमियों को उलझन में डालने, जटिलता और इससे जुड़ी त्रुटियों के बारे में हैं। यह दलील दी जा रही है कि यदि हम एक अपेक्षाकृत अधिक कुशल कर प्रणाली को अपनाने जा रहे हैं, तो इसे निश्चित रूप से सरल होना चाहिए। उनकी दलील सही है। आखिरकार, सार्वजनिक वस्‍तुएं बनाने में सरकार तभी सक्षम होगी जब सरकारी खजाना लबालब भरा होगा और इसे भरने में कोई टैक्स प्रणाली तभी सक्षम हो पाएगी जब करदाताओं को इसके अनुपालन में आसानी होगी। यदि इसमें विफलता हाथ लगती है तो समस्‍त उत्‍कृष्‍ट एवं ठोस नीतियां और दरें अप्रासंगिक साबित हो सकती हैं। ये ऐसे मुद्दे हैं जिनकी तह में मैं अपने आगामी लेखों में जाऊंगा। हालांकि, यह कहना कि ज्‍यादा टैक्‍स दरों की तुलना में कम टैक्‍स दरें कहीं बेहतर होती हैं और इस आधार पर जीएसटी परिषद ने ऐसा कुछ नहीं किया जिसकी अपेक्षा उससे की जा रही थी, तो निश्चित रूप से वह ‘श्रीनगर में हुई आम सहमति’ की अनुचित आलोचना है।

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