Author : Satish Misra

Published on Mar 26, 2019 Updated 0 Hours ago

इस चुनाव में बहुत कुछ दांव पर लगा है।

सार्वजनिक जाँच के तहत भारतीय चुनाव आयोग?

10 मार्च रविवार को भारतीय चुनाव आयोग (ECI) ने सात चरणों में होने वाले आम चुनावों की घोषणा की, जो नई दिल्ली में अगली सरकार के गठन का मार्ग प्रशस्त करेंगे।

17 वीं लोकसभा को चुनने के लिए राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली सहित 29 राज्यों और 7 केंद्र शासित प्रदेशों में 90 करोड़ से अधिक संभावित मतदाता जो कि 2014 की चुनावी लड़ाई की तुलना में 8 करोड़ 40 लाख अधिक हैं इस बार के चुनाव में अपने मताधिकार का प्रयोग करने जा रहे हैं। चुनाव के पहले चरण के लिए मतदान 11 अप्रैल और अंतिम चरण का मतदान 19 मई को तय हुआ है साथ ही वोटों की गिनती 23 मई को होगी। संसदीय चुनावों के अलावा, चुनाव आयोग ने चार राज्य आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा और सिक्किम के विधानसभा चुनावों की भी घोषणा की कर दी है।

चुनाव के मद्देनजर देखें तो भारतीय चुनाव आयोग पर तार्किक और नैतिक दोनों दृष्टियों के साथ-साथ एक बड़ी कवायद की जिम्मेदारी और दबाव है। इसके कारण बेजोड़ है क्योंकि न केवल लोकतंत्र में आम आदमी का विश्वास दांव पर है, बल्कि देश की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सभी की नजर में है।

1951 में नव स्वतंत्र भारत के पहली बार हुए आम चुनाव के बाद से ही मतदाताओं की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। 1951-52 के पहले आम चुनावों में 17 करोड़ मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया थ। आज 10 लाख पोलिंग बूथ बनाये जा रहे हैं जहाँ मतदाता से उम्मीद है कि वे संवैधानिक रूप से स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से वोट डाल सकें।

चुनाव के मद्देनजर देखें तो भारतीय चुनाव आयोग पर तार्किक और नैतिक दोनों दृष्टियों के साथ-साथ एक बड़ी कवायद की जिम्मेदारी और दबाव है। इसके कारण बेजोड़ है क्योंकि न केवल लोकतंत्र में आम आदमी का विश्वास दांव पर है, बल्कि देश की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सभी की नजर में है।

भारतीय चुनाव आयोग ने पारदर्शी चुनावी अभ्यास सुनिश्चित करने के लिए कई कदम उठाए हैं जैसे पहली बार सभी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVM) के साथ मत सत्यापन ुके लिए Voter Verifiable Paper Audit Trail (VVPAT) का उपयोग होने जा रहा है।

VVPAT में एक प्रिंटर और एक VVPAT स्टेटस डिस्प्ले यूनिट (VSDU) होता है। यह 22.5 वोल्ट की बैटरी पर चलता है। कंट्रोल यूनिट और VSDUको पीठासीन अधिकारी / मतदान अधिकारी के साथ रखा जाएगा और मतदान केंद्र में बैलेटिंग यूनिट और प्रिंटर रखा जाएगा

राजनीतिक दलों द्वारा काफी दबाव में किए जाने के बाद ही चुनाव आयोग द्वारा ईवीएम के साथ वीवीपीएटी के उपयोग का निर्णय लिया गया है। राजनैतिक दलों द्वारा ईवीएम के हैक होने और मानवीय छेड़छाड़ होने की संभावना के बारे में गंभीर आशंका व्यक्त की गई थी।

2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा की व्यापक जीत के बाद, बसपा, सपा, आप जैसे विपक्षी दलों ने ईवीएम को हटाकर बैलेट पेपर के इस्तेमाल की मांग की। इससे पहले भाजपा के शीर्ष नेता और पूर्व उप प्रधान मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने भी चुनाव आयोग से बैलेट पेपर की वापसी की मांग की थी जब तक कि ईवीएम मशीनों से किसी भी तरह की छेड़छाड़ और खराबी के खिलाफ सुरक्षा और बचाव को सुनिश्चित किया जा सके।

मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने चुनावों में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए उठाए जा रहे कदमों के विवरण की घोषणा करते हुए सूचित किया कि यदि किसी उम्मीदवार का आपराधिक इतिहास है तो पहली बार राजनीतिक दल को उन कृत्यों के विवरण को अनिवार्य रूप से सूचित करना होगा। इसके अलावा उम्मीदवार द्वारा अपने नामांकन पत्र के साथ दायर किए गए मतदान हलफनामा यानि फॉर्म 26 को भी संशोधित किया गया है और अब उन्हें पिछले 1 वर्ष की आय और सभी सम्पतियों की घोषणा करने के बजाए बजाय पिछले 5 वर्षों में अपनी आय और सभी संपत्तियों की घोषणा करनी होगी।

एक अन्य पहल के रूप में सरकारी सेवारत मतदाता जो कि 2014 के बाद से लगभग 3.85 लाख हो चुके हैं अब इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रेषित बैलट पेपर सुविधा का उपयोग करने में सक्षम होंगे। यह सशस्त्र बलों, पुलिस और विदेश में तैनात सरकारी कर्मचारियों को अनुमति देगा जिससे वे ईमेल के माध्यम से डाक मतपत्र प्राप्त कर उसका प्रिंट भरकर साधारण मेल से वापिस कर सकेंगे।

एक अन्य पहल के रूप में सरकारी सेवारत मतदाता जो कि 2014 के बाद से लगभग 3.85 लाख हो चुके हैं अब इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रेषित बैलट पेपर सुविधा का उपयोग करने में सक्षम होंगे।

चुनाव आयोग ने इस तरह के उल्लंघनों पर आयोग का ध्यान आकर्षित करने के लिए लोगों से C-विजिल मोबाइल एप्लिकेशन का उपयोग करने के लिए कहकर आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन की रिपोर्टिंग का दायरा बढ़ाया है।

उपरोक्त सभी कदमों के बावजूद, जनता के मन में चुनाव आयोग की भूमिका को लेकर गंभीर आशंकाएं हैं। चुनाव आयोग द्वारा चुनावी कार्यक्रमों की घोषणा में हुई देरी के के निर्णय के कारण ये आशंकाएं पैदा हुई हैं।

2014 में यह चुनावी कार्यक्रम 5 मार्च को सार्वजनिक हो गया था अंतिम चरण 12 मई को था, 16 मई को चुनाव परिणाम की घोषणा हुई थी। आम लोग ये संदेह जता रहे हैं कि यह देरी चुनाव आयोग ने जानबूझकर करवाई जिससे सत्ता पक्ष और सरकार को नीतिगत निर्णय लेने के लिए, परियोजनाओं की शुरुआत, नींव डालना, योजनाओं के शुभारंभ और उद्घाटन के लिए पर्याप्त समय मिल सके।

प्रधानमंत्री मोदी और अन्य केंद्रीय मंत्रियों ने 16 फरवरी से 21 दिनों की अवधि में सभी क्षेत्रों में कम से कम 80 प्रमुख परियोजनाओं का उद्घाटन या उनकी घोषणा की। अकेले 4 मार्च और 9 मार्च को प्रधानमंत्री मोदी और उनके मंत्रियों ने कम से कम नौ मेगा परियोजनाओं की आधारशिला रखी।

सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों लगभग हर दिन एक दुसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रहे हैं।

जम्मू और कश्मीर में लोकसभा के साथ-साथ विधानसभा चुनाव न कराने का भी एक और ऐसा फैसला है जो चिंता पैदा करता है। चुनाव आयोग द्वारा उल्लेखित कारकों में से एक जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव नहीं करवाने का मुख्य कारण सुरक्षा कर्मियों की कमी थी।

तीन राज्यों बिहार, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में मतदान सभी सात चरणों में होगा, जबकि झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा और महाराष्ट्र के मतदाता सिर्फ चार दिनों में मतदान के साक्षी होंगे।

आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और गुजरात जैसे बड़े राज्यों में चुनाव एक ही चरण में हो रहे हैं जबकि मध्य प्रदेश जैसे अन्य राज्यों में जहां 29 सीटें दांव पर हैं, चार चरणों में मतदान हो रहा है। इस तरह के निर्णय जिनके लिए कोई आधिकारिक स्पष्टीकरण नहीं है आम आदमी में संदेह पैदा करते हैं।

इस चुनावों में बहुत कुछ दांव पर लगा है। सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों लगभग हर दिन एक दुसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रहे हैं। इन सबको देखते हुए ये लगता है की आने वाले चुनाव सबसे गंदे चुनवों में गिना जाएगा जिन का देश गवाह होगा।

इस तरह की पृष्ठभूमि में चुनाव आयोग को अतिरिक्त सतर्कता बरतने की आवश्यकता होगी ताकि लोकतंत्र और उसके संस्थानों में आम जनता का विश्वास न केवल बचा रहे बल्कि भविष्य में भी इसे सुदृढ़ और गाढ़ा बनाया जा सके।

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