Published on Sep 19, 2018 Updated 0 Hours ago

भारत की शहरी आबादी जिसके 2030 तक दोगुने हो कर 590 मिलियन तक हो जाने का अनुमान है एक लचर यातायात व्यवस्था को और खराब कर सकती है।

सार्वजनिक परिवहन — स्मार्ट सिटी की अहम कुंजी

8 अगस्त 2018 को न्यू यॉर्क के मेयर बिल डी ब्लैसियो और सिटी काउंसिल के स्पीकर कोरी जॉनसन ने एक बिल पास किया। ये बिल उबर और उसके जैसी दूसरी राइड शेयर सेवाओं को किराए पर लेने की संख्या को एक साल के लिए सीमित करने के लिए था। उनका कहना है कि इस कदम से न्यू यॉर्क की सड़कों पर ट्रैफिक के बिगड़ते हालात और ड्राइवरों को मिलने वाले कम वेतन पर लगाम लगेगी। इसी तरह से कड़े नियमों का पालन करने की शर्त को मानने के बाद उबर को हाल ही में लंदन में टैक्सी का दोबारा लाइसेंस मिला। ये घटनाएं शहरी वातावरण में न सिर्फ निजी टैक्सी के कारण बढ़ती समस्या की तरफ इशारा करती हैं बल्कि ये एक सक्षम सार्वजनिक जन यातायात व्यवस्था की फौरी जरूरत पर भी बल देती हैं।

आज जब भारत, स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के माध्यम से सेवाओं पर बढ़ती आबादी के दबाव को हल्का करने की कोशिश कर रहा है, तब इसकी सफलता को तय करने वाला एक अहम पहलू बढ़िया गतिशीलता और परिवहन व्यवस्था भी होगा। दिल्ली में प्रदूषण का स्तर, बेंगलुरु में ट्रैफिक और मुम्बई में गतिशीलता की औसत रफ़्तार का बहुत कम होना, इस बात का साफ संकेत है कि हमारे शहरों को फौरन टिकाऊ सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था का निर्माण करना होगा। भारतीय शहर ढेर सारी समस्याओं से जूझ रहे हैं, मसलन भीड़ , हवा की घटती गुणवत्ता, रोड रेज की बढ़ती घटनाएं और बढ़ते सड़क हादसे। लगातार बढ़ती शहरी आबादी जिसके 2030 तक दोगुने हो कर 590 मिलियन तक हो जाने का अनुमान है, इससे यातायात के हालात और ख़राब होने तय हैं।

आंकड़े बताते हैं कि लोग शहर में आने जाने के लिए मोटे तौर पर यातायात के निजी साधन पर ज्यादा निर्भर हैं। रजिस्टर्ड वाहनों की संख्या भी 2001 के 55 मिलियन से बढ़ कर मिलियन से बढ़ कर 2012 में 159 मिलियन तक पहुंच गई। 2001 के मुकाबले 2012 में दो पहिया वाहनों का हिस्सा चार प्रतिशत तक बढ़ गया है। कार, जीप और टैक्सी के हिस्से में भी 0.2 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो गई। चिंता की बात ये है कि इस दौरान बसों का हिस्सा 0.34 प्रतिशत तक कम हो गया है। यह सार्वजनिक यातायात व्यवस्था की क्षमता को बढ़ाने के लिए आवश्यकता से कम निवेश को दिखाता है।

भारत सरकार ने स्मार्ट सिटी मिशन के तहत शहरी गतिशीलता के मुद्दे पर गौर किया है। इसने ये बात रखी है कि भारत में स्मार्ट सिटी को बनाने वाले बुनियादी तत्वों में सक्षम शहरी गतिशीलता और सार्वजनिक परिवहन शामिल है। सक्षम शहरी गतिशीलता के लिए स्मार्ट सिटी मिशन ने तीन अहम बिंदुओं की पहचान की है: स्मार्ट पार्किंग, समझदारी वाला यातायात प्रबन्धन और कई मॉडल को एक साथ जोड़ने वाला यातायात।

हालांकि शहर में सुचारु गतिशीलता के लिए ये बहुत अहम बिंदु हैं लेकिन शहर के प्रशासन को निजी वाहनों पर सार्वजनिक परिवहन को तरजीह देनी चाहिए। स्मार्ट पार्किंग, बुद्धिमानी भरा ट्रैफिक प्रबन्धन और कई मॉडल को साथ जोड़ने वाला परिवहन — ये निजी वाहनों की संख्या पर उनकी दीर्घकालिक बढ़ोतरी को रोके बिना लगाम लगाएंगे। ऐसे उपाए असरदार नहीं रहेंगे यदि समाज के हर तबके का ध्यान रखते हुए सुरक्षित, समय की पाबन्द और आरामदायक सार्वजनिक यातायात की तरफ समानान्तर बदलाव नहीं होता।

आदर्श तौर पर एक सक्षम सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था में ये तत्व जरूरी हैं।

साफ रास्ते का अधिकार

किसी भी सफल सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था की सबसे बुनियादी जरूरत है कि कोई भी सार्वजनिक परिवहन गति और चक्कर की संख्या के मामले में निजी वाहनों के मुकाबले निर्बाध और बेहतर हो। इसे बस के लिए अलग से लेन बना कर पाया जा सकता है ताकि बड़े सार्वजनिक वाहन तेज गति से चल सकें और संकरे रास्ते में ना फंसें।

इस तरीके से निजी वाहन से सफर के बजाए सार्वजनिक परिवहन ज्यादा बेहतर विकल्प बन सकेगा, क्योंकि ज्यादातर शहरों में सबसे व्यस्त वक्त में वाहनों की रफ्तार 10 से 12 किलोमीटर प्रतिघंटा से ज्यादा नहीं होती। निजी वाहनों की बिक्री पर भी लगातार निगरानी की जरूरत है और लोगों को ज्यादा निजी वाहन खरीदने से हतोत्साहित करने के लिए टैक्स और पार्किंग के बढ़े शुल्क जैसे उपाए करने की भी ज़रूरत है।

निर्बाध कनेक्टिविटी

एक स्मार्ट सिटी में सार्वजनिक परिवहन के अलग अलग साधन एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा नहीं करते बल्कि वो एक दूसरे की पूरक की भूमिका अदा करते हैं। ये सोच बदलनी होगी कि सार्वजनिक यातायात की व्यवस्था का निर्माण करते हुए उसे आबादी की सघनता के हिसाब निर्भर किया जाए, इसके बजाए ज्यादा विश्लेषणात्मक हो कर ये लोगों के सफर करने की आदत पर निर्भर की जानी चाहिए। इनके रूट और किराए लोकप्रियता के बजाए वैज्ञानिक तरीके से तय किए जाने चाहिए। इसमें आखिरी मील को जोड़ने पर जोर होना चाहिए, जहां ट्रांसपोर्टेशन हब (उदाहरण के लिए ट्रेन या बस स्टॉप) से आने जाने वाले के गंतव्य का ख्याल रखा जाना चाहिए। हाल ही में डब्लू.आर.आई इंडिया और टोयटा मोबिलिटी फाउंडेशन की अगुवाई में स्टेशन एक्सेस एंड मोबिलिटी प्रोग्राम (स्टैम्प) के तहत बैंगलोर में मेट्रो के यात्रियों को आखिरी मील तक जोड़ने की समस्या का हल पेश किया गया। यहां तक कि इसी तरह से रेलवे स्टेशन और एयरपोर्ट पर उबर-ओला के किओस्क भी बनाए जा सकते हैं, ताकि शहरी मुसाफिर को शहर के कुछ तय मुकाम से आखिरी मील तक जुड़ने की सुविधा दी जा सके। इसका एक अहम उदाहरण दिल्ली के पांच डिविजन रेलवे स्टेशनों पर ‘ओला किओस्क्स’ हैं जो आखिरी मील तक जुड़ने की सुविधा भी दे रहे हैं और शहरी गतिशीलता के तजुर्बे को भी बेहतर कर रहे हैं।

व्पापक सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था

सार्वजनिक यातायात व्यवस्था का निजी वाहनों से फायदेमंद होने का एक पेचीदा पहलू ये है कि इसमें लोगों को बड़ी संख्या में एक साथ एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने की क्षमता होती है। सार्वजनिक परिवहन के साधनों की पी पी एच पी डी (पैसेंजर पर आवर पीक डायरेक्शन) क्षमता निजी वाहनों के मुकाबले बहुत ज्यादा होती है। इसकी वजह से लागत और फ़ायदे के विश्लेषण में सार्वजनिक यातायात व्यवस्था निजी वाहनों की अपेक्षा कहीं ज्यादा उपयोगी साबित होती है।

विभिन्न सार्वजनिक परिवहन का प्रबंध करने वाली एकीकृत संस्था

अलग अलग सार्वजनिक यातायात की सेवाओं को एक शीर्ष संस्था के तहत ले आना चाहिए। जैसे टी एफ एल (ट्रांसपोर्ट फॉर लंदन) है, वैसे ही हमें भारत के शहरों में यू एम टी ए (यूनीफाइड मेट्रोपॉलिटन ट्रांसपोर्टेशन अथॉरिटी) बना देना चाहिए। यू एम टी ए को शहर में परिचालन, नियम, अलग अलग निजी यातायात की सेवाओं के लिए कायदे कानून जैसे काम को देखना चाहिए। उदाहरण के लिए मुंबई में सार्वजनिक यातायात की कई सेवाएं हैं। जैसे कि वेस्टर्न और सेंट्रल रेलवे की सबअर्बन रेलवे सर्विस। ग्रेटर मुंबई, नवी मुंबई, कल्याण-डोंबिविली, ठाणे, मीरा-भयंदर की बस सेवा और इनके साथ मुंबई मेट्रोपॉलिटन रीजन डेवलपमेंट अथॉरिटी (एम एम आर डी ए) और मुंबई मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (एम एम आर सी एल) की मेट्रो रेल सेवाएं भी हैं। इसके साथ ही निजी सेवाएं भी हैं जो ऑटो रिक्शा और कालीपीली टैक्सी, ओला, उबर आदि साधन देती हैं। इन सभी की प्रशासन करने वाली अपनी स्वतंत्र संस्थाएं या यूनियन हैं। इनकी कोई भी एक एकीकृत संस्था नहीं है जो यात्रियों के रोजमर्रा के आने जाने के तजुर्बे को बेहतर बनाने के लिए इनके संचालन की निगरानी करे। ऐसी किसी शीर्ष संस्था के होने से सरकार के लिए एकीकृत बहु मॉडल यातायात व्यवस्था का लक्ष्य पाना ज्यादा आसान हो जाएगा।

GPS आधारित, रियल टाइम निगरानी और रास्ते की सूचना

सार्वजनिक यातायात सेवाओं पर निर्भरता बढ़ाने के लिए उनके बारे में वक्त पर सटीक जानकारी देना जरूरी है। यात्रियों को ये जानकारी होनी चाहिए कि उनकी ट्रेन और बस कब आएगी ताकि वो उनके मुताबिक अपनी यात्रा की योजना बना सकें। उदाहरण के लिए ‘m-इंडिकेटर ऐप’ मुंबई में सुलभ लगभग सभी सार्वजनिक परिवहन सेवाओं के समय की जानकारी देता है। इसे 10 मिलियन लोग इस्तेमाल करते हैं जिनमें ज्यादातर ट्रेन से सफर करने वाले यात्री हैं, इसने लोगों को अपना सफर समयबद्ध करने में मदद दी है। हालांकि ये ऐप न तो सफर की रियल टाइम निगरानी करता है और न ही देरी या रद्द सेवा की जानकारी देता है। रियल टाइम निगरानी और अपडेट से व्यवस्था में यात्री का भरोसा ज्यादा जम पाएगा और सार्वजनिक यातायात व्यवस्था उनकी प्राथमकिता में आ जाएगी। एक स्मार्ट सिटी में पुरातन तरीके से नहीं चल सकती है, इसे जो भी तकनीक मौजूद हो उसे अपनाने की ज़रूरत है।

आराम और सुरक्षा

सार्वजनिक परिवहन के साधन में यात्रा करने वाले का आराम और सुरक्षित महसूस करना बहुत जरूरी है। इसे विभिन्न तरीके के सार्वजनिक यातायात के विकल्प (उदाहरण के लिए एसी/एसी रहित बस), सीसीटीवी से निगरानी और जरूरत पड़ने पर एमरजेंसी हेल्पलाइन और खतरे की स्थिति के लिए बटन दे कर पाया जा सकता है।

निष्कर्ष

निजी परिवहन के मुकाबले सार्वजनिक परिवहन बड़े उद्देश्यों को पूरा करता है और ये ज्यादा फायदेमंद है। कम कार्बन उत्सर्जन इसका सबसे बड़ा फायदा है। इससे स्वस्थ्य शहरी वातावरण का निर्माण होगा। सीएनजी और इलेक्ट्रिक वाहनों जैसे वैकल्पिक ईंधन को भी प्रोत्साहन देना चाहिए। कुशल सार्वजनिक परिवहन से कामकाज में भी कुशलता बढ़ेगी जिससे राज्य की अर्थव्यवस्था भी बढ़ेगी। ये एक बार फिर वो वजह देती है जिसके लिए पहली जगह पर ऐसे शहरी वातावरण का निर्माण करना चाहिए।

अत: हमें अंधाधुंध शहरीकरण के नुकसान से सीख लेनी चाहिए और दूसरे ग्लोबल शहरी मॉडल की सफलताओं से भी सीखना चाहिए। चाहे ये बीजिंग हो, पेरिस हो, सिंगापूर हो, न्यूयॉर्क हो या लंदन हो सभी ने सार्वजनिक परिवहन को प्रोत्साहन दिया और निजी वाहनों के इस्तेमाल को हतोत्साहित किया। हाल ही में न्यू यॉर्क में उबर की गाड़ियों को सीमित करना भी बड़े सार्वजनिक यातायात व्यवस्था के लिए उनकी पसंद को जाहिर करता है। स्मार्टसिटी के योजनाकारों के पास इसके परिवहन के लिए एक ब्लू प्रिंट का होना जरूरी है जिसे पूरे भारत में स्थानीय जरूरत के मुताबिक गढ़ा जा सके और अपनाया जा सके। जैसे कि कोलंबिया के मेयर गुस्तावो पेट्रो ने कहा, “एक विकसित देश ऐसी जगह नहीं है जहां गरीबों के पास भी कार हो। ये ऐसी जगह है जहां अमीर भी सार्वजनिक यातायात का इस्तेमाल करते हों”

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