Author : Abhishek Mishra

Published on Aug 29, 2019 Updated 0 Hours ago

भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरतों और सुरक्षा से जुड़े हितों को देखते हुए अफ्रीकी देशों के साथ और नज़दीकी बढ़ा रहा है.

राष्ट्रपति के दौरे से भारत और अफ्रीका के संबंधों को नई धार

पिछले साल जुलाई में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने युगांडा की संसद को अपने संबोधन में भारत और अफ्रीका के बीच संबंध के दस बुनियादी उसूल बताए, तो इससे भारतीय कूटनीतिज्ञों को अफ्रीका के साथ परस्पर संबंधों की दशा-दिशा का फ्रेमवर्क मिल गया. प्रधानमंत्री ने अपने संबंधोन में जिन 10 निर्देशक तत्वों की बात की, वो असर में अफ्रीकी देशों से संबंध बेहतर बनाने का एक तरह से विज़न डॉक्यूमेंट था. इसका प्रथम सिद्धांत ये था कि भारत को अफ्रीकी महाद्वीप के साथ कूटनीतिक और राजनीतिक संवाद बढ़ाना होगा. इसके बाद से भारत और अफ्रीकी देशों के बीच लगातारउच्च स्तर के अधिकारियों और नेताओं के दौरे हो रहे हैं. ऐसे नियमित दौरों की मदद से ही अफ्रीका के साथ हमारी साझेदारी परिभाषित होती है. मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में अफ्रीका के संवाद बढ़ाने को प्राथमिकता देने का फ़ैसला किया है.

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का अफ्रीका के साथ विशेष संबंध रहा है. वर्ष 2017 और 2018 में राष्ट्रपति कोविंद ने चार अफ्रीकी देशों-डिजीबूती, इथियोपिया, मैडागास्कर और मॉरीशस का दौरा किया था. मोदी सरकार के नए कार्यकाल के पहले कुछ महीनों में ही राष्ट्रपति कोविंद ने तीन पश्चिमी अफ्रीकी देशों-बेनिन, गांबिया और गिनी का दौरा किया है. ये देश क़ुदरती संसाधनों से लबरेज़ हैं और कभी फ्रांस के अधीन रहे थे. भारत ने कई दशकों तक इन देशों से क़रीबी संबंध बनाने की कोई कोशिश नहीं की थी. जबकि, इनके मुक़ाबले उन पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीकी देशों से, जो ब्रिटेन के पूर्व उपनिवेश रहे थे, भारत ने हमेशा बेहतर संबंध बनाने की कोशिश की थी. हालांकि भारत के कूटनीतिक प्रयास जैसे कि 2004 का टेक्नो-इकोनॉमिक-अप्रोच फॉरअफ्रीका-इंडिया मूवमेंट (TEAM-9) जैसे आयोजन हो रहे थे, जिसमें आठ पश्चिमी अफ्रीकी देश शामिल थे. फिर भी, पश्चिमी अफ्रीकी देशों से भारत के रिश्ते सीमित ही थे.

आज भारत की ऊर्जा ज़रूरतें पूरी करने के लिए, पश्चिमी अफ्रीका सबसे नया बाज़ार बनकर उभरा है, जो भारत को कच्चा तेल और गैस जैसे संसाधन निर्यात करने लगा है.

हालांकि, अब इन संबंधों का आयाम बदल रहा है. अफ्रीका के दो सबसे बड़े कच्चे तेल के निर्यातक देश, नाइजीरिया और अंगोला पश्चिमी अफ्रीका में ही हैं. जैसा कि हमें पता ही है कि भारत को कच्चे तेल और दूसरे क़ुदरती संसाधनों की काफ़ी ज़रूरत होती है. इसीलिए भारत की ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने की मजबूरी ने भारत को पश्चिमी अफ्रीकी देशों से संबंध बेहतर करने की दिशा में आगे बढ़ाया है. आज भारत की ऊर्जा ज़रूरतें पूरी करने के लिए, पश्चिमी अफ्रीका सबसे नया बाज़ार बनकर उभरा है, जो भारत को कच्चा तेल और गैस जैसे संसाधन निर्यात करने लगा है.

भारत, अफ्रीकी महाद्वीप की विविधता का क़ायल है. इसके अलग-अलग क्षेत्रों से परस्पर संबंध बनाने के लिए एक जैसी नीति क़ामयाब हो ये ज़रूरी नहीं है. अफ्रीका महाद्वीप के हर क्षेत्र की कूटनीति अलग तरह से चलती है. फिर चाहे वो पूर्वी और पश्चिमी अफ्रीका हों, या फिर मध्य, उत्तर और दक्षिणी अफ्रीकी देशों से संबंध हों. इसीलिए अब भारत ने अफ्रीकी देशों से संबंध बेहतर करने के लिए क्षेत्रीय आर्थिक कॉनक्लेव आयोजित करने शुरू किए हैं. अक्टूबर 2018 में भारत ने पश्चिमी अफ्रीका के साथ प्रोजेक्ट पार्टनरशिप के लिए पहली क्षेत्रीय कांफ्रेंस आयोजित की थी, जो नाइजीरिया के शहर अबुजा में हुई थी. इस में भारत का कारोबारी संगठन कॉनफेडरेशन ऑफ़ इंडियन इंडस्ट्रीज़ (CII) अगुवा था, जिसने विदेश मंत्रालय, एक्ज़िम बैंक और इकोनॉमिक कमीशन ऑफ़ वेस्ट अफ्रीकन स्टेटस (ECOWAS) की मदद से आयोजित किया था. ऐसे ही क्षेत्रीय कॉनक्लेव आने वाले समय में पूर्वी अफ्रीका के युगांडा और दक्षिणी अफ्रीका के ज़ाम्बियामें भी प्रस्तावित हैं. इन बातों के मद्देनज़र ही राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की पश्चिमी अफ्रीकी देशों की यात्रा की अहमियत बढ़ जाती है.

पश्चिमी अफ्रीका के अपने दौरे में राष्ट्रपति कोविंद सबसे पहले बेनिन गए थे. लगातार तीन दशक से शांति और स्थिरता की वजह से इस छोटे से अफ्रीकी देश ने काफ़ी तरक़्क़ी की है. आज बेनिन पश्चिमी अफ्रीका में लोकतंत्र का सबसे अच्छा अफ्रीकी मॉडल माना जाता है. दुनिया भर के लोकतंत्र के हामी इसे सम्मान की नज़र से देखते हैं. राष्ट्रपति कोविंद का बेनिन का दौरा ऐतिहासिक था. क्योंकि भारत के किसी राष्ट्राध्यक्ष का ये पहला बेनिन दौरा था. भारत ने बेनिन को 10 करोड़ डॉलर का सॉफ्ट लोन देने का एलान किया. जिस रक़म को बेनिन की सरकार की अहम योजनाओं में इस्तेमाल किया जाएगा. इसका नाम है रिवीलिंग बेनिन:गवर्नमेंट एक्शन प्रोग्राम 2016-2021. भारत इस बात पर भी सहमत हुआ है कि वो बेनिन के राजनयिकों को अंग्रेज़ी भाषा में इंडियन टेक्निकल ऐंड इकोनॉमिक को-ऑपरेशन (ITEC) और स्पेशल प्रोफेशनल कोर्स कराने में मदद करेगा. ये कार्यक्रम विदेश मंत्रालय के फॉरेन सर्विस इंस्टीट्यूट के तहत चलेगा. बेनिन को भारत की ई-वीज़ा योजना का भी लाभ मिलेगा. इसके अलावा उसे ई-विद्याभारती और ई-आरोग्यभारती योजनाओं का फ़ायदा भी मिलेगा. ये योजनाएं टेलीमेडिसिन और टेली एजुकेशन में मददगार होंगी. इसके अलावा दोनों ही देश एक-दूसरे के राजनयिकों और अधिकारियों को वीज़ा की ज़रूरत से छूट देंगे. निवेश के बीमा और निर्यात के लिए क़र्ज़ की योजनाओं में भी भारत, बेनिन की मदद करेगा. आने वाले महीनों में भारत अपने यहां बेनिन-इंडिया ज्वाइंट कमीशन की मंत्रिस्तरीय बैठक की मेज़बानी के लिए भी राज़ी हो गया है. पश्चिमी अफ्रीकी देशों में बेनिन, भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के दौरे से इस द्विपक्षीय संबंध को नई रफ़्तार मिली है.

अफ्रीका में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का अगला पड़ाव गांबिया था. इसे अफ्रीका का मुस्कुराता हुआ तटीय देश कहा जाता है. भारत और गांबिया के बीच पारंपरिक रूप से अच्छे संबंध रहे हैं. भारत, गांबिया के बड़े कारोबारी साझीदार देशों में से एक है. वर्ष 2018-19 में दोनों देशों के बीच कारोबार बढ़कर 20 करोड़ डॉलर हो गया था. राष्ट्रपति कोविंद के सम्मान में गांबिया की नेशनल असेंबली की एक विशेष बैठक भी बुलाई गई, जिसे राष्ट्रपति कोविंद ने संबोधित किया. गांबिया के राष्ट्रपति का भारत और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से काफ़ी नज़दीकी ताल्लुक रहा है. गांबिया के राष्ट्रपति का मानना है कि महात्मा गांधी नई और पुरानी हर पीढ़ी के लिए मुक्ति के प्रासंगिक प्रतीक बने हुए हैं. राष्ट्रपति कोविंद का गांबिया की नेशनल असेंबली को संबोधित करना इसलिए भी ख़ास था, क्योंकि राजधानी बान्जुल में नेशनल असेंबली की जो नई इमारत बनी है, वो भारत की मदद से तैयार की गई है. भारत ने इसके लिए रियायती दरों पर वित्तीय समझौते के तहत मदद की थी. भारत ने गांबिया की सरकार के अपने युवाओं को हुनर की ट्रेनिंग देने के लिए चलाई जा रही योजनाओं के लिए भी 5 लाख डॉलर की मदद की थी. इस रक़म को गांबिया के कुटीर उद्योगों के विकास में भी ख़र्च किया जाएगा. भारत ने गांबिया के चैम्बर ऑफ़ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री के तहत वोकेशनल ट्रेनिंग सेंटर भी खोला है. साथ ही भारत ने गांबिया के टेक्निकल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट में एक इनक्यूबेशन सेंटर भी खोला है. आयुर्वेद और दवा-इलाज के पारंपरिक तरीक़ों और होम्योपैथी में भारत की क्षमताओं पर भरोसा करते हुए गांबिया ने भारत के साथ एक समझौते पर भी दस्तख़त किए हैं. भारत, गांबिया के कुछ ख़ास गांवों में 300 सोलर होम सिस्टम और 20 सोलर वाटर पम्प लगाने का भी वादा किया है.

पश्चिमी अफ्रीकी देशों में बेनिन, भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के दौरे से इस द्विपक्षीय संबंध को नई रफ़्तार मिली है.

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद अपने हालिया अफ्रीकी दौर के आख़िरी पड़ाव में गिनी पहुंचे थे. भारत की योजना है कि वो 2021 तक गिनी में अपना रेज़ीडेंट मिशन खोले. इससे पहले, इसी साल मार्च महीने में गिनी के प्रधानमंत्री इब्राहिम कसोरी फ़ोफ़ाना भारत के दौरे पर आए थे. वो सीआईआई-एग्ज़िम बैंक के कॉनक्लेव में हिस्सा लेने के लिए नई दिल्ली आए थे. भारत, गिनी के सबसे बड़े व्यापारिक साझीदार देशों में से एक है. भारत और गिनी के बीच सालाना व्यापार वर्ष 2017-281 में 90 करोड़ डॉलर पहुंच गया था. गिनी से भारत मोती, क़ीमती पत्थर, गहने, खनिज ईंधन और अलक़तरा ख़रीदता है. इसके अलावा भारत काजू, धातुओं वग़ैरह का भी आयात करता है. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के दौरे के दौरान भारत ने गिनी के कोनार्की शहर में पानी की आपूर्ति के एक प्रोजेक्ट के लिए 17 करोड़ डॉलर का सस्ता क़र्ज़ देने का वादा किया. इसके अलावा भारत और गिनी के बीच तीन सहमति पत्रों पर भी दस्तख़त हुए हैं. इनके तहत दोनों देश होम्योपैथी और आयुर्वेद के क्षेत्र में सहयोग करेंगे. साथ ही भारत के ई-वीबीएवी नेटवर्क प्रोजेक्ट में गिनी भी हिस्सा लेगा. इसके अलावा दोनों देश पुनर्नवीनीकृत ऊर्जा के क्षेत्र में भी सहयोग बढ़ाएंगे. इस वक़्त भारत सस्ते क़र्ज़ की मदद से गिनी में दो क्षेत्रीय अस्पतालों का निर्माण कर रहा है. जिसमें लंबे वक़्त के लिए भारत ने 3.5 करोड़ डॉलर का क़र्ज़ गिनी को दिया है. साथ ही गिनी के सात सरकारी विश्वविद्यालयों में बिजली और पीने के पानी की सप्लाई वाले प्रोजेक्ट में भी भारत डेढ़ करोड़ डॉलर का निवेश कर रहा है. इसके अलावा भारत 58.2 लाख डॉलर की मदद से गिनी के बिजली, रेफ्रिजरेशन और मेडिकल सेंटर के प्रोजेक्ट को पूरे करने में भी सहयोग दे रहा है.

मोज़ाम्बिक़-हिंद महासागर का मोती

हाल में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह अफ्रीकी देश मोज़ाम्बिक़ के तीन दिन के दौरे पर गए. रक्षा मंत्री का ये दौरा बहुत क़ामयाब रहा. ख़ास तौर से हमारी सुरक्षा और रक्षा की साझीदारी के लिहाज़ से ये दौरा बहुत ही सफल रहा. रक्षा मंत्री के दौरे से पहले दोनों देशों के बीच पिछले तीन वर्षों में दो उच्च स्तरीय दौरे हुए. इनसे साफ़ था कि भारत और मोज़ाम्बिक़ अपनी साझेदारी को कितनी अहमियत देते हैं. जुलाई 2017 में नौसेना प्रमुख एडमिरल सुनील लांबा ने मोज़ाम्बिक़ का दौरा किया था. इसके बाद विदेश राज्य मंत्री जनरल (रिटायर्ड) डॉक्टर वी. के. सिंह ने भी फ़रवरी 2018 में मोज़ाम्बिक़ का दौरा किया था. इन दोनों ही दौरों से समुद्री रास्तों की सुरक्षा और और सैन्य क्षेत्र में दोनों देशों में सहयोग और बढ़ा है. इसके अलावा, वर्ष 2016 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चार अफ्रीकी देशों के दौरे पर गए थे, तो वो सबसे पहले मोज़ाम्बिक़ ही गए थे.

मोज़ाम्बिक़, हिंद महासागर के पश्चिमी हिस्से में सामरिक रूप से बहुत अहम स्थान पर स्थित है. इसका समुद्र तट 2500 किलोमीटर से भी ज़्यादा लंबा है. मोज़ाम्बिक़, हिंद महासागर के प्रमुख समुद्री कारोबारी रास्ते मोज़ाम्बिक़ चैनल के क़रीब स्थित है. भारत का बहुत सा समुद्री कारोबार इसी रास्ते से होकर गुज़रता है. इसीलिए, इस रास्ते से गुज़रने वाले भारतीय वाणिज्यिक जहाज़ों की सुरक्षा भारत का सर्वोपरि राष्ट्रहित है. क्योंकि ये हमारी अर्थव्यवस्था पर सीधा असर डालता है. इससे पहले भारतीय नौसेना के जहाज़ नियमित रूप से मोज़ाम्बिक़ चैनल में गश्त लगाया करते थे. भारतीय नौसेना ने 2003 में हुए अफ्रीकी यूनियन के शिखर सम्मेलन और 2004 में विश्व आर्थिक मंच की बैठकों को सुरक्षा प्रदान की थी. ये दोनों ही बैठकें मोज़ाम्बिक़ की राजधानी मापुतो में हुई थीं.

इस क्षेत्र से भारत की ऊर्जा और सुरक्षा के हित जुड़े हुए हैं. भारत की तीन कंपनियां-भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन, ओएनजीसी विदेश लिमिटेड और ऑयल इंडिया लिमिटेड, मिल कर रोवुमा ऑफ़शोर एरिया 1 में 6 अरब अमरीकी डॉलर का निवेश कर रही हैं. इसके अलावा भारतीय कंपनियां मोज़ाम्बिक़ की गोल्फ़िन्हो और अटुम मोज़ाम्बिक़ को एलएनजी प्रोजेक्ट के लिए ट्रेनिंग दे रही हैं. इसके अलावा भारतीय कंपनियां, जैसे जिंदल स्टील ऐंड पावर, द एस्सार ग्रुप, कोल इंडिया लिमिटेड और टाटा स्टील ने कोयला, लौह अयस्क और दूसरे खनिजों के क्षेत्र में भी निवेश किया है.

इसीलिए भारत के व्यापारिक और ऊर्जा सुरक्षा से जुड़े समुद्री रास्तों को सुरक्षित बनाए रखने के लिए, राजनाथ सिंह के दौरे के दौरान भारत ने मोज़ाम्बिक़ के साथ दो सहमति पत्रों पर दस्तख़त किए. इनके तहत दोनों देश एक दूसरे के साथ व्हाइट शिपिंग यानी कारोबारी जहाज़ों की आवाजाही की जानकारी साझा करेंगे. साथ ही समुद्र में खनिज की तलाश के क्षेत्र में भी भारत और मोज़ाम्बिक़ सहयोग करेंगे. भारत ने इस दौरान मोज़ाम्बिक़ की पुलिस को 44 गाड़ियां भी सौंपीं. साथ ही मोज़ाम्बिक़ की नौसेना को भारत की तरफ़ से दो तेज़ रफ़्तार निगरानी नावें भी दी गईं, जो किसी संदिग्ध जहाज़ का पता लगाने और उसका पीछा करने में बहुत मददगार साबित होंगी. इन फास्ट इंटरसेप्टर बोट्स को समुद्र तटीय इलाक़े की निगरानी में प्रयोग किया जाएगा. इस में कोई दो राय नहीं है कि भारत के नज़रिए से देखें तो पूर्वी कारोबारी रास्तों के साथ-साथ पश्चिमी व्यापारिक समुद्री रास्तों की हिफ़ाज़त भी बहुत अहम है. ख़ास तौर से उस जगह जहां अरब सागर और हिंद महासागर मिलते हैं. हाल के दिनों में इस समुद्री रास्ते की अहमियत बहुत बढ़ गई है. इस संदर्भ में मोज़ाम्बिक़, हिंद महासागर में भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण साझीदार बनकर उभरा है. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का मोज़ाम्बिक़ का दौरा बहुत ही सही समय पर हुआ है. इस ने दोनों देशों के संबंधों को नई ऊंचाई पर पहुंचाया है.

जनवरी में रायसीना डायलॉग 2019 में बोलते हुए भारत के विदेश सचिव विजय गोखले ने ये राय ज़ाहिर की थी कि भारत अपनी गुटनिरपेक्षता की नीति को पीछे छोड़ चुका है. आज का भारत, तमाम देशों के साथ नज़दीकी संबंध रखने में यक़ीन रखता है. लेकिन, भारत हमेशा ये संबंध अपने मुद्दों और हितों को ध्यान में रखकर बनाता है. आज की तारीख़ में भारत तेज़ी से उभरती हुई विश्व शक्ति है. साथ ही अफ्रीका को लेकर उसकी अपेक्षाएं भी बढ़ी हैं. यही वजह है कि भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरतों और सुरक्षा से जुड़े हितों को देखते हुए अफ्रीकी देशों के साथ और नज़दीकी बढ़ा रहा है. ताकि इन देशों के साथ मिलकर साझा विकास, सुरक्षा और सभी देशों के हितों को पूरे करने की दिशा में आगे बढ़ सके.


ये लेख मूल रूप से The Economic Times में छपा था.

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