Author : Pritish Gupta

Published on Apr 01, 2022 Updated 0 Hours ago

क्या देश को मिला नया नेतृत्व तुर्कमेनिस्तान में वो बदलाव ला पाएगा, जिसकी आर्थिक और खाने के भयंकर संकट से गुज़र रहे तुर्कमेनिस्तान को सख़्त ज़रूरत है.

तुर्कमेनिस्तान में राष्ट्रपति चुनाव: क्या नया नेतृत्व तुर्कमेनिस्तान में बदलाव ला पाएगा?
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तीन दिनों की देरी के बाद जब 15 मार्च को मध्य एशियाई देश तुर्कमेनिस्तान में राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों का एलान किया गया, तो उसमें चौंकाने वाली कोई भी बात नहीं थी. लगभग 73 फ़ीसद वोट के साथ सरदार बर्दिमुखमादोव को विजेता घोषित किया गया था. सरदार बर्दिमुखम्मेदोव, मौजूदा राष्ट्रपति गुर्बांगुली के बेटे हैं. उनके राष्ट्रपति बनने का रास्ता ख़ुद सीनियर बर्दिमुखम्मेदोव ने साफ़ किया था. खल्क मस्लहत (जनता की परिषद) के सत्र के दौरान गुर्बांगुली बर्दिमुखम्मेदोव ने इशारा किया था कि वो अपना पद छोड़ रहे हैं, जिससे कि राजनीतिक सत्ता ‘युवा नेताओं’ के हाथ में सौंपी जा सके. हालांकि, राष्ट्रपति पद छोड़ने के बाद भी गुर्बांगुली बर्दिमुखम्मेदोव, संसद के ऊपरी सदन के अध्यक्ष बने रहेंगे. उनके इसरार पर ही संसद ने 12 मार्च को मध्यावधि चुनाव कराने का एलान किया था. आम तौर पर वोटिंग के अगले ही दिन तुर्कमेनिस्तान का चुनाव आयोग शुरुआती नतीजों का एलान कर देता है. लेकिन, इस बार चुनाव आयोग ने इसमें देरी की. मतदान के तीन दिन बाद जाकर सरदार बर्दिमुखम्मेदोव को विजेता घोषित किया गया. तुर्कमेनिस्तान के चुनाव आयोग का कहना था कि तब भी वोटों की गिनती जारी थी, क्योंकि विदेश में रहने वाले नागरिकों के वोट गिने ही जा रहे थे. गुर्बांगुली बर्दिमुखमम्मेदोव, तुर्कमेनिस्तान के राष्ट्रपति होने के साथ साथ प्रधानमंत्री और संसद के ऊपरी सदन के अध्यक्ष भी थे. 2017 में वो सात साल के लिए राष्ट्रपति चुने गए थे. वैसे वो 2006 से ही तुर्कमेनिस्तान की सत्ता में बने हुए हैं, क्योंकि देश में कोई मज़बूत विपक्ष नहीं है. ऐसे में ये तय ही था कि गुर्बांगुली के बेटे सरदार बर्दिमुखम्मेदोव ही उनकी जगह राष्ट्रपति बनेंगे.

तुर्कमेनिस्तान में ऐसे समय पर राष्ट्रपति चुनाव कराए गए, जब देश भयंकर आर्थिक संकट से जूझ रहा है. तेल और गैस के दाम लगातार कम बने रहने, और तुर्कमेनिस्तान पर चीन का भारी क़र्ज़ होने और दुनिया के अन्य गैस उत्पादकों से कड़ी टक्कर मिलने जैसी चुनौतियों के चलते तुर्कमेनिस्तान भयंकर आर्थिक संकट में फंस गया है.

जब तुर्कमेनिस्तान के चुनाव आयोग ने देश के तीन रजिस्टर्ड राजनीतिक दलों के लिए नामांकन की प्रक्रिया शुरू की, तो सरदार बर्दिमुखम्मेदोव को तुर्कमेनिस्तान की सत्ताधारी डेमोक्रेटिक पार्टी की कांग्रेस ने राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया था.

तुर्कमेनिस्तान में ऐसे समय पर राष्ट्रपति चुनाव कराए गए, जब देश भयंकर आर्थिक संकट से जूझ रहा है. तेल और गैस के दाम लगातार कम बने रहने, और तुर्कमेनिस्तान पर चीन का भारी क़र्ज़ होने और दुनिया के अन्य गैस उत्पादकों से कड़ी टक्कर मिलने जैसी चुनौतियों के चलते तुर्कमेनिस्तान भयंकर आर्थिक संकट में फंस गया है. वैसे तो तुर्कमेनिस्तान में जनता का विरोध प्रदर्शन करना बहुत असामान्य बात है. मगर, हाल ही में पड़ोसी देश कज़ाख़िस्तान में बढ़ती सामाजिक आर्थिक असमानता के ख़िलाफ़ मची उठा-पटक ने तुर्कमेनिस्तान के नेतृत्व को भी परेशान कर रखा है. इसी वजह से सीनियर बर्दिमुखम्मेदोव ने अचानक राष्ट्रपति चुनाव कराने का फ़ैसला किया.

चुनाव अभियान

तुर्कमेनिस्तान की राजधानी अश्गाबात में चुनाव आयोग ने जब राष्ट्रपति चुनाव के नामांकन की प्रक्रिया पूरी होने का एलान किया, तो मैदान में सरदार बर्दिमुखम्मेदोव समेत कुल नौ उम्मीदवार बचे थे. तुर्कमेनिस्तान की सत्ताधारी डेमोक्रेटिक पार्टी के अलावा देश में दो अन्य दल भी पंजीकृत हैं- एग्रैरियन पार्टी ऑफ़ तुर्कमेनिस्तान और पार्टी ऑफ़ इंडस्ट्रियलिस्ट्स ऐंड आंत्रेप्रेन्योर्स ऑफ़ तुर्कमेनिस्तान. इन दलों के बारे में माना जाता है कि वो सत्ताधारी दल के प्रति वफ़ादार हैं और मौजूदा राष्ट्रपति का समर्थन करते हैं.

तुर्कमेनिस्तान में चुनाव और जनमत संग्रह कराने के लिए ज़िम्मेदार केंद्रीय आयोग ने बताया कि राष्ट्रपति पद के लिए मैदान में जो अन्य उम्मीदवार हैं, उनमें तुर्कमेनिस्तान के उद्योगपतियों और उद्यमियों की पार्टी के बाबामुरात मेरेडोव, एग्रेरियन पार्टी के आगाजान बेकमुराडोव और पहल करने वाले समूहों द्वारा नामांकित किए गए छह अन्य प्रत्याशी- मकासतमुरात ओवेज़गेल्दिएव. काकागेल्दी सरयेव, बर्दयाममेत गुर्बानोव परहत बेगेंजोव, मस्कट ओडेशोव और हैदर नुनाएव शामिल हैं. विपक्ष के चार कार्यकर्ता और नेता जो इस समय देश निकाला झेल रहे हैं- अहमत रहमानोव, मुरात गुर्बानोव, गेल्दी कियारिज़ोव और नूरमुहम्मत अन्नायेव भी राष्ट्रपति चुनाव में हिस्सा लेना चाहते थे. लेकिन, उनकी उम्मीदवारी रद्द कर दी गई क्योंकि उनके तुर्कमेनिस्तान में प्रवेश करने पर पाबंदी लगी हुई है.

यूरोप में सुरक्षा और सहयोग के संगठन (OSCE) ने 2018 में तुर्कमेनिस्तान के संसदीय चुनाव की निगरानी की थी. OSCE ने कहा कि ‘चुनाव में एक ईमानदार लोकतांत्रिक चुनावी प्रक्रिया के लिए ज़रूरी बातों की कमी’ है.

ग़ैर पंजीकृत विपक्षी दल डेमोक्रेटिक च्वाइस ऑफ़ तुर्कमेनिस्तान के ख़ुद से बाहर गए नेता मुराद कुर्बानोव ने संभावित उम्मीदवारों को जान-बूझकर चुनाव मैदान से बाहर रखने के लिए अधिकारियों की आलोचना की और कहा कि उन्हें न तो रजिस्ट्रेशन के लिए वक़्त दिया गया और न ही मतदान के लिए. तुर्कमेनिस्तान ने विदेश में रह रहे अपने नागरिकों को चुनाव में मतदान देने से रोक लगा रखी थी.

बहुत से अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों ने तुर्कमेनिस्तान में हो रहे चुनावों की निष्पक्षता पर शक जताया था. यूरोप में सुरक्षा और सहयोग के संगठन (OSCE) ने 2018 में तुर्कमेनिस्तान के संसदीय चुनाव की निगरानी की थी. OSCE ने कहा कि ‘चुनाव में एक ईमानदार लोकतांत्रिक चुनावी प्रक्रिया के लिए ज़रूरी बातों की कमी’ है. पिछले महीने तुर्कमेनिस्तान के अधिकारियों और OSCE के सदस्यों के बीच अश्गाबात में आने वाले राष्ट्रपति चुनाव की तैयारियों को लेकर एक बैठक भी हुई थी.

सरदार सबसे आगे थे

पिछले एक साल से तुर्कमेनिस्तान में ऐसी अफ़वाहें गर्म थीं कि गुर्बांगुली बर्दिमुखम्मेदोव, सत्ता की बागडोर अपने बेटे सरदार के हाथों में सौंपने वाले हैं. सरदार पिछले साल ही 40 बरस के हुए हैं, जो तुर्कमेनिस्तान के संविधान के मुताबिक़, राष्ट्रपति बनने की न्यूनतम आयु है. 2018 से ही सरदार सरकार में अहम पदों पर रहे हैं. 2018 में उन्हें उप विदेश मंत्री बनाया गया था. जनवरी 2019 में सरदार को उनके पैतृक सूबे अहल का उप राज्यपाल बनाया गया था और पांच महीने बाद ही उन्हें गवर्नर बना दिया गया था. क़रीब एक साल तक सरदार देश के उद्योग मंत्री रहे. फ़रवरी 2021 में उन्होंने उद्योग मंत्री का पद छोड़कर उप- प्रधानमंत्री का पद संभाला और आर्थिक मामलों का विभाग देख रहे थे. वो सीधे अपने पिता और राष्ट्रपति गुर्बांगुली बर्दमुखम्मदेव को रिपोर्ट करते थे. पिछले साल ही सरदार को मंत्रिपरिषद का उपाध्यक्ष बनाया गया था और उन्हें अर्थव्यवस्था और बैंकिंग क्षेत्र को संभालने के साथ साथ अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों से संपर्क की ज़िम्मेदारी भी दी गई थी. इसके अलावा वो स्वतंत्र देशों के राष्ट्रमंडल (CIS) की आर्थिक परिषद में तुर्कमेनिस्तान की नुमाइंदगी भी करते थे. उन्हें बाल्कन क्षेत्र की ज़िम्मेदारी भी दी गई थी.

2018 से ही सरदार सरकार में अहम पदों पर रहे हैं. 2018 में उन्हें उप विदेश मंत्री बनाया गया था. जनवरी 2019 में सरदार को उनके पैतृक सूबे अहल का उप राज्यपाल बनाया गया था और पांच महीने बाद ही उन्हें गवर्नर बना दिया गया था. क़रीब एक साल तक सरदार देश के उद्योग मंत्री रहे.

उसके बाद से ही सरदार बर्दिमुखम्मेदोव ने कई देशों की आधिकारिक यात्राएं की थीं, जिनमें सबसे ज़्यादा ज़ोर पूर्व सोवियत गणराज्यों पर था. 2021 के ओलंपिक खेलों के दौरान सरदार ने जापान का भी दौरा किया था. इसके अलावा वो चीन और ईरान के दौरे पर भी गए. इसके साथ साथ ग्लासगो में हुए जलवायु सम्मेलन में भी सरदार ने शिरकत की थी. सरदार, तुर्कमेनिस्तान और जापान, तुर्कमेनिस्तान और रूस और तुर्कमेनिस्तान व चीन की सरकारों के बीच सहयोग के आयोग के अध्यक्ष की ज़िम्मेदारी भी संभालते रहे हैं.

आर्थिक चुनौतियां और चीन पर बढ़ती निर्भरता

तुर्कमेनिस्तान प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर देश है. माना जाता है कि दुनिया के दस फ़ीसद गैस भंडार तुर्कमेनिस्तान में ही हैं. मगर देश की अर्थव्यवस्था की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. तुर्कमेनिस्तान के कुल निर्यात में से 90 फ़ीसद हिस्सेदारी हाइड्रोकार्बन यानी तेल-गैस की है, और 2014 में अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में गैस के दाम में आई गिरावट ने तुर्कमेनिस्तान की अर्थव्यवस्था को बहुत कमज़ोर कर दिया है. तुर्कमेनिस्तान, चीन को मध्य एशिया और चीन के बीच गैस पाइपलाइन के ज़रिए गैस की आपूर्ति करता है. इस वक़्त इस पाइपलाइन से इसकी अधिकतम क्षमता तक गैस की आपूर्ति हो रही है. इससे तुर्कमेनिस्तान के सामाजिक कल्याण का ढांचा बेहद कमज़ोर हो गया है. देश की स्वास्थ्य और शिक्षा व्यवस्था पहले से ही कमज़ोर थी. आमदनी में कमी से तुर्कमेनिस्तान की आबादी का एक बड़ा हिस्सा खाद्य असुरक्षा की चुनौती का सामना कर रहा है. भयंकर आर्थिक हालात ने देश में पहले से चले आ रहे युवाओं की बेरोज़गारी के मसले को और भी बढ़ा दिया है. माना जाता है कि इस समय तुर्कमेनिस्तान में बेरोज़गारी की दर लगभग 60 प्रतिशत है बढ़ती महंगाई और करेंसी में गिरावट ने तुर्कमेनिस्तान को आर्थिक संकट के गहरे दलदल में धकेल दिया है. अर्थव्यवस्था में विविधता न होने और कोई आर्थिक सुधार न किए जाने से अर्थव्यवस्था का विकास कम-ओ-बेश ठप हो गया है. कोरोना वायरस को ख़ारिज करने से लेकर महामारी से निपटने में कुप्रबंधन और पूर्वी सूबे में तबाही मचाने वाले चक्रवात से निपटने में सरकार की लापरवाही के चलते, विदेश में रह रहे तुर्कमान नागरिकों ने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किए हैं. तुर्कमेनिस्तान के भीतर भी कुछ सरकार विरोधी प्रदर्शन हुए हैं.

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के मुताबिक़, तुर्कमेनिस्तान से चीन को होने वाले निर्यात सालाना 18 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है.

पिछले एक दशक के दौरान, चीन पर तुर्कमेनिस्तान की निर्भरता बढ़ती ही गई है. क्योंकि तुर्कमेनिस्तान की गैस का सबसे बड़ा बाज़ार चीन ही है. तुर्कमेनिस्तान को क़र्ज़ देने में भी चीन सबसे आगे है; इससे तुर्कमेनिस्तान पर चीन का प्रभाव काफ़ी बढ़ गया है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के मुताबिक़, तुर्कमेनिस्तान से चीन को होने वाले निर्यात सालाना 18 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है. हालांकि, रूस और तुर्कमेनिस्तान के रिश्तों में 2009 में हुए उस धमाके के बाद से दरार आ गई है, जिसमें तुर्कमेनिस्तान को रूस से जोड़ने वाली मध्य एशिया-टीसेंटर-4 पाइपलाइन को निशाना बनाया गया था.

‘सरदार’ का चुनाव

मध्यावधि राष्ट्रपति चुनाव को लेकर तुर्कमेनिस्तान में ज़रा भी उत्साह नहीं देखा गया. ऐसा लगता है कि तुर्कमेनिस्तान के नागरिकों ने ये मान लिया था कि मतदान का नतीजा चाहे जो भी हो, उनकी ज़िंदगियों में कोई बदलाव नहीं होने वाला है. सरदार के चुनाव जीतने के बाद तुर्कमेनिस्तान की नीति में कोई ख़ास बदलाव होने की उम्मीद नहीं है. चूंकि देश में कोई ठोस लोकतांत्रिक या आर्थिक सुधार होने की संभावना कम ही है. उस पर से सूचना का अभाव और सरकार के प्रति जनता की बढ़ती असंतुष्टि से साफ़ है कि सत्ता का तुर्कमेनिस्तान मॉडल, अब से दो दशक पहले की तुलना में बेहद कमज़ोर हालत में पहुंच गया है. ऐसे में हैरानी नहीं है कि तुर्कमेनिस्तान के नागरिकों ने इसे ‘सरदार चुनाव’ का नाम देकर उन्हीं की जीत पर मुहर लगाई है.

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