Authors : Kira Vinke | Bart W. Edes

Published on Sep 16, 2020 Updated 0 Hours ago

दुनिया के अलग-अलग देश महामारी की विकराल समस्या और विनाशकारी कोरोनावायरस से लड़ने में जुटे हैं, और ऐसे में यह आवाज़ बुलंद हो रही है कि वैश्विक ख़तरों से निपटने के लिए, सरकारें और उद्योग जिस तरह का रास्ता अपनाते रहे हैं और जो दृष्टिकोण रखते हैं उसमें मूलभूत परिवर्तन ज़रूरी है.

पोस्ट कोविड दुनिया: टिकाऊ और दीर्घकालिक विकास का ‘ट्रिपल-टी’ फार्मूला

कोविड19 की महामारी और इसके चलते विश्वभर में आई आर्थिक मंदी ने मानवता की अंतर्संबंधता और इसकी कमज़ोरियों को उजागर किया है. इस आपदा ने यह स्पष्ट किया है कि कई तरह की मुश्किलों और स्वास्थ्य संबंधी आपदाओं से निपटने में इंसान अब भी अपनी सीमाओं के भीतर ही काम कर रहा है. साथ ही मानवीय गतिविधियों से जलवायु परिवर्तन और जैव-विविधता को हो रहे नुकसान जैसी वैश्विक चुनौतियों का पर्याप्त रूप से जवाब देने में हमारी नीतियां और रणनीतिक फैसल किस तरह विफल रहे हैं, इस बात को भी इस संकट ने खुलकर उजागर किया है. यह ध्यान रखना होगा कि महामारी से अलग लेकिन वैश्विक आर्थिक और वित्तीय संकट के दौर में, एक दशक पहले अपनाए गए उपायों ने हमें परिवहन और ऊर्जा क्षेत्र में अस्वास्थ्यकर तरीके अपनाने की ओर धकेला.

अब जबकि दुनिया के सभी देश अपने-अपने स्तर पर इस विकराल समस्या और विनाशकारी वायरस से लड़ने में जुटे हैं, तो ऐसे में यह आवाज़ बुलंद हो रही है कि वैश्विक ख़तरों से निपटने के लिए सरकारें और उद्योग जिस तरह का रास्ता अपनाते रहे हैं और जो दृष्टिकोण रखते हैं, उसमें मूलभूत परिवर्तन ज़रूरी है. फिर भी कई सरकारों ने इस समस्या से निपटने के लिए जो तरीके अपनाएं हैं, उनमें एक नई सोच, निरंतरता और टिकाऊ विकास के प्रति प्रतिबद्धता की कमी झलकती है. यह एक नए अवसर को गंवाने की तरह है. लेकिन, कुछ चीज़ें हैं जो उम्मीद भी जगाती हैं. जैसे, यूरोपीय आयोग के प्रस्ताव के आधार पर, यूरोपीय नेताओं ने निवेश और सुधारों का समर्थन करने के लिए, “कुल 750 बिलियन यूरो की राशि पर सहमति व्यक्त की है. ये निवेश और सुधार, पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील और डिजिटल तौर तरीकों को बढ़ावा देने की दिशा में होंगे.”

एशिया में, मलेशिया के ऊर्जा और प्राकृतिक संसाधन मंत्रालय ने बड़े पैमाने पर चल रहे सौर कार्यक्रम के चौथे चरण की  घोषणा  की है. यह परियोजना, एक गीगावाट मूल्य के निविदा अनुबंधों की पेशकश करने के लक्ष्य से बनाई गई है, ताकि इसके ज़रिए देश की अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने में मदद मिल सके. दक्षिण कोरिया ने एक “नए सौदे” के तहत 63 बिलियन डॉलर से अधिक का खर्च कर, एक ऐसी परियोजना को अमली जामा पहनाने का फैसला किया है, जो देश की बुनियादी डिजिटल सुविधाओं और सेवाओं का विस्तार करेगी और हरित-अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने की दिशा में एक क़दम होगी.

बड़े पैमाने पर की जा रही ये सरकारी कोशिशें महत्वपूर्ण हैं, लेकिन यह ज़रूरी है कि इन्हें सर्वांगीण रूप से अमल में लाया जाए ताकि यह सभी क्षेत्रों में एक साथ लागू हों और उन्हें साथ लेकर चलें. यह ज़रूरी है कि इस तरह के प्रयास एक दूसरे के पूरक हों. कार्रवाई के निम्नलिखित तीन क्षेत्र हैं, जो नीति-निर्माण के विभिन्न आयामों को जोड़ते हुए, आर्थिक समृद्धि और सामाजिक विकास, दोनों दृष्टियों से सफलता के कई विकल्प खोल सकते हैं. हम इसे ‘ट्रिपल-टी’ परिवर्तन और परागमन कह सकते हैं, जिसके तहत वस्त्र (Textile), परिवहन (Transport) और प्रौद्योगिकी (Technology) क्षेत्र में बदलाव लाना और एक नए दृष्टिकोण से विकास करना शामिल है.

कपड़ा (टेक्सटाइल)

महामारी ने हम में से कई लोगों को उपभोग संबंधी उन आदतों पर सवाल उठाने के लिए मजबूर किया है, जिसमें कपड़ों और पोशाकों की खरीद शामिल है. हालांकि पिछले कुछ सालों में जागरुकता के चलते उपभोक्ता, फैशन के नकारात्मक सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभावों के बारे में अधिक सचेत हुए हैं और उसे ध्यान में रखकर फैसला करते हैं, लेकिन मौजूदा संकट में यह सोच और जागरुकता, कपड़ा उद्योग के लिए एक महत्वपूर्ण बदलाव की दस्तक हो सकती है. कपड़ा उद्योग सालाना आठ प्रतिशत ग्रीनहाउस गैसों का उत्पादन करता है.

मई के अंत में अंतरराष्ट्रीय डिज़ाइनर ब्रांड गुच्ची ने घोषणा की कि वह अपने फैशन शो की संख्य़ा को सालाना पांच से घटाकर दो कर रही है, और अब वह ऐसे कपड़े बनाएंगे और बाज़ार में उतारेंगे जो मौसमी-चक्र में न बंधे हों यानी जो हर मौसम काम आ सकें. आमतौर पर सभी डिज़ाइनर ब्रांड बदलते मौसम के साथ नई कलेक्शन बाज़ार में उतारते हैं. इससे पहले इटली में, वोग-इटालिया ने महामारी से पहले के अपने जनवरी 2020 के अंक में किसी भी फोटो शूट का उपयोग करने से इनकार कर दिया था क्योंकि इसका भी पर्यावरणीय प्रभाव होता है. पत्रिका ने बताया कि शूट रद्द करने से यात्रा और बिजली में खर्च होने वाली बहुत सी ऊर्जा बचेगी. हर अंक के लिए इस तरह की तैयारियां काफी ख़र्च लेकर आती हैं.

जीवन को व्यवस्थित करने और कम संसाधनों में जीवन जीने की अपनी पद्धति को लेकर दुनियाभर में मशहूर जापानी सलाहकार मैरी कॉंडो को मानने वाले और उनकी सलाह पर चलने वाले अनुयायी दुनियाभर में फैले हैं. वो वैश्विक स्तर पर इस नए दर्शन का प्रसार कर रही हैं और उन्हें मानने वाले इस प्रक्रिया में ढल कर अपनी खपत को कम करने और कम संसाधनों में जीवन जीने की कला सीखते हैं. जीवन जीने का यह तरीका उन्होंने यह सोचने के लिए प्रेरित करता है कि उनके लिए जीवन में वास्तव में क्या मायने रखता है.

जीवन को व्यवस्थित करने और कम संसाधनों में जीवन जीने की अपनी पद्धति को लेकर दुनियाभर में मशहूर जापानी सलाहकार मैरी कॉंडो को मानने वाले और उनकी सलाह पर चलने वाले अनुयायी दुनियाभर में फैले हैं.

ये रुझान कम संख्या में लेकिन लगातार हो रही उस पहल का हिस्सा हैं जो फैशन को पर्यावरण संबंधी सजगता और संवेदना के साथ चलने की ओर प्रेरित करती है, और हरित-अर्थव्यवस्था की दृष्टि से स्थिति को बेहतर बनाने की एक कोशिश है. इसके साथ ही डिज़ाइनर पर्यावरण के अनुकूल सामग्रियों का इस्तेमाल कर ऐसे उत्पाद बनाने संबंधी प्रयोग भी कर रहे हैं,  जो कम संसाधनों में बनें और पर्यावरण के लिए अनुकूल हों. जर्मनी में ऐसी ही एक कोशिश के तहत “ग्रीन बटन” लेबल के ज़रिए उन कपड़ों और उत्पादों की पहचान की जाती है जो हरित हैं और पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाते.

आर्थिक सलाहकार कंपनी मैकिंज़ी द्वारा पिछले साल जारी की गई एक रिपोर्ट से पता चला है कि फैशन उद्योग से जुड़े आधे से अधिक डिज़ाइनर और व्यापारी चाहते हैं कि उनके ज़्यादा से ज़्यादा उत्पाद 2025 तक टिकाऊ सामग्री से बने हों और पर्यावरण के लिए अनुकूल हों. इन सभी कोशिशों के ज़रिए दुनिया के पहनावे में टिकाऊ और स्थिरता की अवधारणा को बुना जा रहा है.

परिवहन  (ट्रांसपोर्ट)  

अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार, ईंधन दहन से  होने वाले प्रत्यक्ष कार्बन (CO2) उत्सर्जन का एक चौथाई भाग परिवहन से आता है. परिवहन से होने वाले कार्बन उत्सर्जन की बात करें तो सड़क वाहनों का इस उत्सर्जन में तीन-चौथाई हिस्सा होता है. ऐसे में कोविड19 की महामारी ने इस प्रमुख आर्थिक क्षेत्र में पहले से हो रहे बदलावों को और तेज़ कर दिया है.

इस साल, पेट्रोल से चलने वाले वाहनों की बिक्री में गिरावट आई है, जबकि साइकिल और ई-बाइक के उपयोग की लोकप्रियता बढ़ी है. साइकिल को परिवहन के ऐसे साधन के रुप में देखा जाता है जो ट्रैफ़िक की समस्या का हल प्रस्तुत करता है और ऐसे दौर में जब सामाजिक दूरी की ज़रूरत के चलते जिम इत्यादि बंद हैं, यह सेहत से जुड़ी एक गतिविधि है. महामारी के दौरान, कई लोगों ने सार्वजनिक परिवहन के विकल्प के रूप में साइकिल और बाइक का इस्तेमाल किया, क्योंकि वो दूसरों से नज़दीकी से बचना चाहते थे. सार्वजनिक परिवहन की यह समस्या और इससे पैदा हुई नई किस्म की ज़रूरतें आने वाले सालों में भी बने रहने की उम्मीद है.

लॉकडाउन ने जिस तरह वाहनों को सड़कों से दूर किया, इसके बाद — बर्लिन, बोगोटा, बुडापेस्ट, मॉन्ट्रियल और सिएटल सहित दुनियाभर के कई शहरों में, बाइक-लेन बनाई गईं ताकि सड़क सुरक्षा को बेहतर किया जा सके और प्रदूषण पर भी नियंत्रण हो. इनमें से कई बाइक-लेन महामारी खत्म होने के बाद भी बनी रहेंगी. इसके अलावा स्मार्टफोन ऐप के माध्यम से संचालित किराये की बाइक और स्कूटर भी कई छोटे और बड़े शहरों में आम हो गए हैं.

लॉकडाउन ने जिस तरह वाहनों को सड़कों से दूर किया, इसके बाद — बर्लिन, बोगोटा, बुडापेस्ट, मॉन्ट्रियल और सिएटल सहित दुनियाभर के कई शहरों में, बाइक-लेन बनाई गईं ताकि सड़क सुरक्षा को बेहतर किया जा सके और प्रदूषण पर भी नियंत्रण हो.

अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, इस साल सड़क पर इलेक्ट्रिक कारों की संख्या लगभग 10 मिलियन तक पहुंचने की उम्मीद है. इन वाहनों को मुख्यधारा में   समायोजित करने के लिए बुनियादी ढांचे में निवेश किया जा रहा है- जैसे सार्वजनिक जगहों पर बनाए जाने वाले चार्जिंग स्टेशन, ताकि बिजली से चलने वाली कारों को आसानी से कहीं भी चार्ज किया जा सके. इसके अलावा हाइड्रोजन-चालित और बिजली से चलने वाले सार्वजनिक वाहनों का दायरा बढ़ा कर उन्हें नए इलाकों में शुरु किया जा रहा है. शहरों में बढ़ता प्रदूषण एक विकट समस्या है और ये प्रयास शहरी वायु और ध्वनि प्रदूषण को कम करने में मददगार साबित होंगे.

प्रौद्योगिकी (टेकनोलॉजी) 

संकट की इस घड़ी में ऐसी प्रौद्योगिकी और तकनीक का अधिक से अधिक उपयोग किया गया है जिनके ज़रिए  श्वेत-कॉलर श्रमिक घर पर रहकर अपना काम कर सकें. रिमोट-वर्किंग की ये अवधारणा महामारी के बाद की दुनिया का सच है जो  महामारी के बाद भी व्यापक उपयोग में रहेगी. इसके चलते आवागमन कम होगा, व्यावसायिक यात्राओं की संख्य़ा घटेगी और दफ्तरों का निर्माण भी घटेगा. हालांकि, घर से काम करने के नकारात्मक सामाजिक प्रभावों को कम करने की ओर भी ध्यान दिया जाना चाहिए.  महामारी ने शहरों को खाली कर, उन्हें अधिक व्यवस्थित करने के लिए स्मार्ट, सुरक्षित और स्वस्थ तरीकों के बारे में सोचने को प्रेरित किया है. लोगों से खाली हुए इन शहरों को चलाने के लिए डेटा प्रोसेसिंग, सॉफ्टवेयर ऐप और मशीन लर्निंग को लागू कर ट्रैफ़िक प्रबंधन, पार्किंग, सार्वजनिक सेवा वितरण और बुनियादी ढांचे के रखरखाव और मरम्मत जैसे काम किए जा रहे हैं.

रिमोट-वर्किंग की ये अवधारणा महामारी के बाद की दुनिया का सच है जो  महामारी के बाद भी व्यापक उपयोग में रहेगी. इसके चलते आवागमन कम होगा, व्यावसायिक यात्राओं की संख्य़ा घटेगी और दफ्तरों का निर्माण भी घटेगा.

सर्च इंजन इकोसिया, जो अपने लाभ का एक बड़ा हिस्सा ऐसे गैर-लाभकारी संगठनों को देता है, जो जंगलों को बचाने का करते हैं, मार्च  के महीने में नए सिरे से लोकप्रिय हुआ और गूगल क्रोम के लगभग 47 बाज़ार देशों में उसे सर्च इंजन की श्रेणी में प्रथम विकल्प के रूप में रखा गया है. टेलीहेल्थ और अन्य आभासी सेवाओं को (जैसे कोचिंग, थेरेपी, संगीत से जुड़े सबक और व्यायाम की दिनचर्या) अब तकनीक के सहारे पूरा किया जा रहा और संकट के दौरान इन क्षेत्रों में लगातार बढ़ोत्तरी भी देखी गई है.

ऐसे में स्मार्ट तकनीक चक्रीय-अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दे रही है. इसके चलते व्यापार अब अधिक कार्यकुशल हैं, उनके अतिरिक्त व्यय कम हुए हैं, कचरा उत्पादन में कमी आई है और उनके उत्पाद ज़्यादा समय तक चलने की उम्मीद है.

निष्कर्ष

कोविड19 महामारी ने लोगों की ज़िंदगी पर ख़ासा असर डाला है, फिर वो चाहे बीमारी से असमय हुई मौत हो या छोटी कंपनियों का घाटे के चलते बंद हो जाना या फिर बढ़ती बेरोज़गारी. कार्बन उत्सर्जन संबंधी साल भर के आंकड़ों को देखें तो दुनियाभर में हुए लॉकडाउन का वैश्विक उत्सर्जन पर कुछ हद तक  प्रभाव पड़ा है. यह बताता है कि विभिन्न क्षेत्रों में प्रणालीगत बदलावों की ज़रूरत है, और इनके ज़रिए पर्यावरण को बचाने की दिशा में काम किया जा सकता है. इन क्षेत्रों में ऊर्जा, पानी और कृषि जैसे क्षेत्र भी शामिल हैं. कुल मिलाकर महामारी ने हमारी आंखों पर लगी पट्टी को हटा दिया है और हमें यह देखने और सोचने पर मजबूर किया है कि पहले जिसे हमने असंभव मान लिया था, वह संभव है यानी- प्रकृति के साथ अधिक सद्भाव मे रहने के नए तरीके इजाद करना.

कुल मिलाकर महामारी ने हमारी आंखों पर लगी पट्टी को हटा दिया है और हमें यह देखने और सोचने पर मजबूर किया है कि पहले जिसे हमने असंभव मान लिया था, वह संभव है यानी- प्रकृति के साथ अधिक सद्भाव मे रहने के नए तरीके इजाद करना. 

अब हमें इस बदलाव का दामन थाम कर बेतहाशा बढ़ती खपत, कार्बन उत्सर्जन और पृथ्वी के प्राकृतिक आवासों को खत्म करने वाली जीवनशैली से दूर होकर एक नई तरह की जीवनशैली का निर्माण करना चाहिए. ट्रिपल-टी यानी टेक्सटाइल, ट्रांसपोर्ट और टेकनोलॉजी  के क्षेत्र में बदलाव, आने वाले समय में होने वाली आर्थिक उन्नति को हरित-अर्थव्यवस्था की दिशा में मोड़ सकते हैं. यह मानव सभ्यता के लिए उम्मीद की एक किरण बन सकती है.

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