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क्या हाल ही में ट्रंप पर लगाए आरोपों का असर, उनके फिर से चुनाव जीतने की संभावनाओं पर भी पड़ेगा?
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति को हाल ही में आरोपी बनाए जाने की पूरी दुनिया में चर्चा हुई है. और, इसे लेकर अमेरिका ही नहीं विदेशों में भी इस बात को लेकर चर्चा हो रही है कि ट्रंप पर लगे आरोपों का, उनके दोबारा चुनाव जीतने की संभावनाओं पर क्या असर होगा? ट्रंप के ख़िलाफ़ अभियोग दाख़िल करने और उनको सज़ा होने की संभावनाओं को लेकर शायद इतनी ही चिंता इस बात की भी हो रही है कि इसका रिपब्लिकन पार्टी पर क्या असर पड़ेगा.
ट्रंप ने देश के वामपंथी राजनेताओं पर सियासी बदले की भावना से काम करने और उनके राष्ट्रपति चुनाव के अभियान को अन्यायपूर्ण तरीक़े से कमज़ोर करने का इल्ज़ाम भी लगाए हैं.
गोपनीय दस्तावेज़ों की जांच के जिस मामले में ट्रंप को आरोपी बनाया गया है, उसमें पूर्व राष्ट्रपति पर 37 संघीय इल्ज़ाम लगाए गए हैं. इनमें राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े दस्तावेज़ों को अवैध रूप से FBI और दूसरी अमेरिकी जांच एजेंसियों से छुपाकर अपने पास रखने का आरोप और दस्तावेज़ों को छुपाकर इंसाफ़ में बाधा डालने का इल्ज़ाम भी शामिल है. न्याय विभाग के विशेष वकील जैक स्मिथ ने हाल ही में अपनी टीम के काम का बचाव किया था और पूर्व राष्ट्रपति द्वारा किए गए अपराध की गंभीरता को दोहराते हुए बताया था कि ऐसे कृत्यों के लिए सज़ा क्यों मिलनी चाहिए, जो अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए नुक़सानदेह हो सकते हैं. वहीं दूसरी ओर, डोनाल्ड ट्रंप ने ख़ुद को दोषी मानने से इनकार करते हुए अपने ऊपर लगे आरोपों से दूरी बना ली है. ट्रंप ने देश के वामपंथी राजनेताओं पर सियासी बदले की भावना से काम करने और उनके राष्ट्रपति चुनाव के अभियान को अन्यायपूर्ण तरीक़े से कमज़ोर करने का इल्ज़ाम भी लगाए हैं.
हालांकि ये कोई पहली बार नहीं है, जब ट्रंप पर अभियोग लगाए जा रहे हैं. ट्रंप पर इससे पहले भी ये अभियोग लगाया जा चुका है कि उन्होंने वयस्क फिल्मों की एक अभिनेत्री को अपने साथ 2006 में सेक्स करने की बात को दबाने के बदले में भारी रक़म का भुगतान किया था. हालांकि, ताज़ा आरोप इस मामले में अलग हैं कि ट्रंप पर पहली बार राष्ट्रीय सुरक्षा को आधार बनाकर इल्ज़ाम लगाए गए हैं. डोनाल्ड ट्रंप के ख़िलाफ़ अभियोग लगाने की मौजूदा प्रक्रिया के बीच, एक बड़ा सवाल जिस पर बड़े पैमाने पर चर्चा हो रही है, वो ये है कि ये अभियोग लगने के बाद, ट्रंप आने वाला राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के योग्य रह पाएंगे या नहीं. यहां इस बात पर ध्यान देने की ज़रूरत है कि अमेरिका में राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने की शर्तें बस इतनी है कि कोई भी इंसान जो अमेरिका में पैदा हुआ हो, जिसकी उम्र 35 साल या उससे अधिक हो और वो पिछले 14 साल से अमेरिका में रह रहा हो, तो वो राष्ट्रपति का चुनाव लड़ सकता है. इन शर्तों में स्पष्ट रूप से आपराधिक मामलों में आरोपी होने का कोई उल्लेख नहीं है. हालांकि इसकी संभावना तो न के बराबर है. लेकिन अगर आने वाले दिनों में ट्रंप को कोई क़ानूनी बॉन्ड भरने को मजबूर होना पड़ता है, तो इस बात की संभावना ज़रूर है कि पूर्व राष्ट्रपति के तौर पर उनके यात्रा करने की आज़ादी सीमित की जा सकती है. तब इससे उनके चुनाव अभियान के प्रयासों पर असर पड़ने की आशंका ज़रूर पैदा होगी. हालांकि, इस बात की संभावना बेहद कम है कि इन आरोपों का मुक़दमा हाल-फिलहाल में शुरू होगा. इससे ट्रंप को अभी तो अपनी उम्मीदवारी पर ध्यान केंद्रित करने की छूट मिल जाएगी. मोटे तौर पर ट्रंप की उम्मीदवारी की राह में किसी क़ानूनी बाधा से ज़्यादा कोई व्यावहारिक ख़लल पड़ने की आशंका ज़्यादा है.
ट्रंप द्वारा चोरी चुपके मोटी रक़म के भुगतान वाले केस की सुनवाई मार्च 2024 से शुरू होने की उम्मीद है. इसके बाद ही गोपनीय दस्तावेज़ों का मुक़दमा शुरू हो सकेगा. यानी किसी भी मुक़दमे की सुनवाई से पहले ट्रंप के पास काफ़ी समय होगा.
आवाजाही पर पाबंदियां और कई मामलों में ज़मानत की शर्तें, दो बातों के आधार पर तय होती हैं. किसी आरोपी के न्यायिक व्यवस्था से भागने का डर और उसको शारीरिक क्षति पहुंचने की आशंका. ट्रंप के मामले में उनके भागने की संभावना तो लगभग न के बराबर है. इसके अलावा ट्रंप की सुरक्षा में हर वक़्त अमेरिका की सीक्रेट सर्विस के जवान तैनात रहते हैं. इससे उनको शारीरिक नुक़सान पहुंचने का डर भी बहुत कम हो जाता है. इसका मतलब ये है कि अदालत के पास डोनाल्ड ट्रंप की ज़मानत में शर्तें जोड़ने की कोई वजह नहीं होगी और वो इस वक़्त तो सियासी अभियान चलाने के लिए आज़ाद हैं. ट्रंप द्वारा चोरी चुपके मोटी रक़म के भुगतान वाले केस की सुनवाई मार्च 2024 से शुरू होने की उम्मीद है. इसके बाद ही गोपनीय दस्तावेज़ों का मुक़दमा शुरू हो सकेगा. यानी किसी भी मुक़दमे की सुनवाई से पहले ट्रंप के पास काफ़ी समय होगा. जहां तक बात गोपनीय दस्तावेज़ों चुराने की जांच की है, तो न्यायिक समीक्षा के बाद जज एइलीन कैनन, मुक़दमे को ख़ारिज करने की अर्ज़ी पर सुनवाई की तारीख़ तय करेंगी. डोनाल्ड ट्रंप के वकील कोशिश करेंगे कि जूरी द्वारा सुनवाई से पहले ही उनके मुवक्किल के ऊपर लगे आरोप ख़ारिज कर दिए जाएं. वहीं, सरकारी वकील ये चाहेंगे कि ट्रंप के ऊपर उन्होंने जो आरोप लगाए हैं, वो बने रहें. अगर ट्रंप की लीगल टीम शुरुआत में ही ये मुक़दमा ख़ारिज करा पाने में सफल रही, तो ये उसके लिए इस केस का आदर्श नतीजा और क़ानूनी कार्यवाही में एक अहम मोड़ होगा.
रिपब्लिकन पार्टी के सियासी हालात पर अभी से ही डॉनल्ड ट्रंप को आरोपी बनाए जाने का असर दिखने लगा है. रिपब्लिकन पार्टी इस मुद्दे पर मोटा-मोटी तीन गुटों में बंटी हुई है. पूर्व राष्ट्रपति पर लगाए गए आरोपों को लेकर तीनों ही गुटों के अपने अलग अलग विचार हैं. एक गुट जिसमें विवेक रामास्वामी जैसे नेता शामिल हैं, उनका ये मानना है कि ट्रंप पर लगाए गए इल्ज़ाम के पीछे सियासत है और इनके ज़रिए ट्रंप को दोबारा राष्ट्रपति बनने से रोकने की कोशिश की जा रही है. वहीं दूसरी तरफ़, क्रिस क्रिस्टी जैसे नेता हैं, जिनका तर्क ये है कि इन आरोपों को गंभीरता से लिया जाना चाहिए और इसकी गंभीरता के मुताबिक़ ही कार्रवाई की जानी चाहिए. आख़िर में एक गुट रॉन डेसांटिस जैसे उन रिपब्लिकन नेताओं का है, जो ये तो मानते हैं कि ट्रंप पर सियासी मक़सद से इल्ज़ाम लगाए गए हैं. लेकिन, वो मतदाताओं को प्रोत्साहित कर रहे हैं कि वो अब ट्रंप के नेतृत्व से आगे की सोचें और भविष्य पर ध्यान केंद्रित करें.
यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप रिपब्लिकन मतदाताओं के बीच काफ़ी लोकप्रिय बने हुए हैं. इसलिए, ट्रंप के ज़्यादातर प्रतिद्वंदी आम रिपब्लिकन समर्थकों के उस ग़ुस्से से हमदर्दी तो जताते हैं, जो ये मानते हैं कि ट्रंप के साथ ‘नाइंसाफ़ी’ हो रही है. वहीं, रिपब्लिकन नेता ख़ुद को ट्रंप के विकल्प के तौर पर भी पेश करते हैं. इसके अलावा, जिस हफ़्ते में ट्रंप के ऊपर अभियोग लगाए गए थे, उसी हफ़्ते रिपब्लिकन पार्टी के तीन और नेता सामने आए और उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव के लिए अपनी संभावित दावेदारी ठोक दी. राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के इरादे का ऐलान करने वाले नेताओं की बाढ़ से ये ज़ाहिर होता है कि रिपब्लिकन पार्टी में ऐसे कई नेता हैं, जो ख़ुद को ट्रंप के सबसे अच्छे विकल्प के तौर पर पेश करने में जुटे हैं.
रिपब्लिकन पार्टी के लगभग 80 प्रतिशत समर्थक या तो इन आरोपों के प्रति बेपरवाह हैं, या फिर ये आरोप लगाए जाने के बाद वो ट्रंप के और बड़े समर्थक बन गए हैं.
वैसे तो पूर्व राष्ट्रपति अगर इन मामलों में दोषी भी पाए जाते हैं, तो उनके राष्ट्रपति चुनाव लड़ने की राह में कोई बाधा नहीं आएगी. लेकिन, इसका ये मतलब नहीं है कि ट्रंप की उम्मीदवारी पर कोई असर पड़ेगा ही नहीं. अगर मुक़दमे के दौरान डोनाल्ड ट्रंप अपने ऊपर लगे आरोपों के आधार पर दोषी ठहराए जाते हैं, और उन्हें क़ैद की सज़ा हो जाती है, तो निश्चित रूप से पूर्व राष्ट्रपति की साख पर बट्टा लग जाएगा. वैसे तो अमेरिकी क़ानूनों के मुताबिक़ जेल में बंद किसी अपराधी के राष्ट्रपति बनकर देश चलाने पर कोई रोक नहीं है. लेकिन, सज़ायाफ़्ता होने पर चुनाव जीतने की संभावना ज़रूर धूमिल पड़ जाती है. हालांकि, अमेरिका में इस मामले पर संवैधानिक तस्वीर साफ़ नहीं है. और, इस बात का साफ़ तौर पर कोई जवाब नहीं है कि अगर सज़ा काट रहा कोई इंसान सच में चुनाव जीत जाए, तब क्या होगा. उस वक़्त सबसे तार्किक बात तो ये होगी कि चुनाव जीतने वाले की सज़ा उसके राष्ट्रपति पद के कार्यकाल तक के लिए स्थगित कर दी जाए, ताकि राष्ट्रपति के तौर पर वो अपनी ज़िम्मेदारियां निभा सके. इसके बात इस बात की पूरी संभावना है कि राष्ट्रपति बनने के बाद वो इंसान ख़ुद को माफ़ कर ले. 1920 के राष्ट्रपति चुनावों के दौरान ऐसा देखने को भी मिला था, जब जेल में बंद उम्मीदवार यूजीन वी डेब्स ने राष्ट्रपति चुने जाने के बाद अपने जुर्म माफ़ कर देने का वादा किया था.
इन हालात से क़ुदरती तौर पर एक सवाल पैदा होता है; क्या रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रपति उम्मीदवार के तौर पर रॉन डे सांटिस को ट्रंप के ऊपर बढ़त मिल जाएगी? हालांकि, हाल में किए गए सर्वेक्षणों से संकेत मिलता है कि हो सकता है कि रॉन डेसांटिस 2024 के राष्ट्रपति चुनावों में अपने संभावित प्रतिद्वंदी बाइडेन के साथ मुक़ाबले की स्थिति में आ रहे हों. लेकिन, ट्रंप अभी भी रिपब्लिकन पार्टी के समर्थकों के बीच काफ़ी लोकप्रिय हैं. ऐसा लगता है कि पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप के ऊपर लगाए गए अभियोगों का रिपब्लिकन पार्टी के समर्थकों के बीच उनकी छवि पर कोई ख़ास असर पड़ा ही नहीं है. रिपब्लिकन पार्टी के लगभग 80 प्रतिशत समर्थक या तो इन आरोपों के प्रति बेपरवाह हैं, या फिर ये आरोप लगाए जाने के बाद वो ट्रंप के और बड़े समर्थक बन गए हैं. अपने ऊपर क़ानूनी कार्रवाई को ट्रंप ने बड़ी कामयाबी से अपने समर्थकों को ये बात समझा दी है कि उनके ऊपर लगाए गए आरोप असल में उनके सियासी दुश्मनों का नाइंसाफ़ी भरा क़दम है. इससे रिपब्लिकन पार्टी के मतदाताओं के बीच उनकी लोकप्रियता बनी हुई है. इससे इस बात को भी बल मिला है कि 2024 में अमेरिका के राष्ट्रीय चुनावों में डॉनल्ड ट्रंप के जो बाइडेन पर जीत हासिल करने की अच्छी संभावना है. हालांकि, अभी रॉन डेसांटिस के रिपब्लिकन पार्टी का राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनने की संभावना से इनकार करना जल्दबाज़ी होगी. क्योंकि ट्रंप की उम्मीदवारी और छवि को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है.
राष्ट्रपति पद के लिए रिपब्लिकन पार्टी का उम्मीदवार कौन बनता है और कौन नहीं. लेकिन, ये तो तय है कि अमेरिका चुनाव के आख़िरी नतीजे इस बात से तय होंगे कि अमेरिकी राष्ट्रपति और डेमोक्रेट नेता जो बाइडेन और उनके रिपब्लिकन प्रतिद्वंदी का मुक़ाबला कैसा रहता है. बाइडेन ने हाल ही में फिर से राष्ट्रपति चुनाव लड़ने का ऐलान किया था.
अमेरिका के सियासी अखाड़े में क़ानूनी दलदल के बीच, राष्ट्रपति बाइडेन की सेहत और उनके चुस्त दुरुस्त होने को लेकर बढ़ी हुई चिंताओं ने माहौल और जटिल बना दिया है. हाल ही में वॉशिंगटन पोस्ट ने अमेरिकी नागरिकों द्वारा बाइडेन के दोबारा चुनाव जीतने पर देश की अगुवाई करने को लेकर उनकी शारीरिक फिटनेस को लेकर चिंता जताने वाला सर्वेक्षण प्रकाशित किया था. लगभग 68 प्रतिशत मतदाता ये महसूस करते हैं कि दोबारा राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के नज़रिए से जो बाइडेन काफ़ी बूढ़े हो गए हैं. वहीं, ट्रंप के बारे में केवल 44 प्रतिशत लोगों ने ये चिंता जताई थी. हालांकि, आम तौर पर लोग ये मानते हैं कि दोबारा राष्ट्रपति बनने के लिहाज़ से, बाइडेन की तुलना में ट्रंप दिमाग़ी तौर पर अधिक मज़बूत और चतुर हैं. बाइडेन की अप्रूवल रेटिंग भी काफ़ी गिर गई हैं. इसकी वजह उनकी कुछ ऐसी नीतियां हैं, जिन्हें जनता ने पसंद नहीं किया है.
2024 का अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव बहुत नज़दीकी और पेचीदा मुक़ाबला होगा. इसमें तीन प्रमुख दावेदार हैं. जो बाइडेन, जिनका नेतृत्व उनकी बढ़ती हुई उम्र की चुनौतियों और जनता के बीच लोकप्रियता की कमी से जूझ रहा है; डोनाल्ड ट्रंप जो क़ानूनी लड़ाइयां लड़ रहे हैं, जिससे देश उनके भविष्य को लेकर उम्मीदों और आकांक्षाओं के बीच त्रिशंकु बनकर लटक रहा है, और आख़िर में; वाइल्ड कार्ड रॉन डेसांटिस, जिनके वोक विरोधी बेलाग रवैया और कट्टर दक्षिणपंथी सोच की पूरे अमेरिका में बारीक़ी से पड़ताल की जा रही है और उसे लेकर लोग सवाल कर रहे हैं.
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Vivek Mishra is Deputy Director – Strategic Studies Programme at the Observer Research Foundation. His work focuses on US foreign policy, domestic politics in the US, ...
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