Author : Naghma Sahar

Published on Aug 18, 2018 Updated 0 Hours ago

प्रतिबन्ध किसी भी तरह की भूराजनीतिक चुनौती के लिए पश्चिमी देशों की कार्यवाई का सबसे अहम् हथियार बन गए हैं। चाहे वो उत्तर कोरिया का परमाणु कार्यक्रम हो, रूस का यूक्रेन में हस्तक्षेप और अमरीकी चुनाव में घुसपैठ की कोशिश, तुर्की में अमरीकी पादरी की गिरफ़्तारी या ईरान के परमाणु कार्यक्रम। सब पर प्रतिबन्ध का हमला हुआ है।

प्रतिबंधों की पॉलिटिक्स, कितने कारगर होंगे अमेरिकी प्रतिबन्ध

ट्रम्प टावर्स, इस्तांबुल | छवि: रापसर — विकिमीडिआ कॉमन्स/CC BY-SA 4.0

अमेरिका के प्रतिबंधों का ताज़ा हमला तुर्की पर हुआ है। यानी अमेरिका का एक और सहयोगी तुर्की अमेरिकी प्रतिबन्ध के हमले से घायल। ट्रम्प ने टर्की से आने वाले एल्युमीनियम और स्टील पर आयात शुल्क दुगना कर दिया है।

ट्रंप ने अपने ट्वीट में कहा, “हमारे मज़बूत डॉलर की तुलना में उनकी मुद्रा कमज़ोर है। अमरीका और तुर्की के संबंध अभी ठीक नहीं हैं।”

कहा जा रहा है की अपने नाटो सहयोगी टर्की से अमेरिका की ये नाराज़गी एंड्र्यू ब्रुसन नाम के एक पादरी की गिरफ़्तारी की वजह से है जो २०१६ से अर्दोआन के खिलाफ नाकाम तख्तापलट की साज़िश में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया। ट्रंप प्रशासन तुर्की के इस क़दम से काफ़ी ख़फ़ा है।

अमरीकी प्रतिबंध से तुर्की की मुद्रा लीरा में गिरावट आई है। लेकिन तुर्की के अर्दोआन भी झुकने के मूड में नहीं हैं।अर्दोआन ने कहा: “अगर उनके पास डॉलर है तो हमारे पास लोग हैं, हमारे पास अपने अधिकार हैं और हमारे पास अल्लाह हैं।”


कहा जा रहा है की अपने नाटो सहयोगी टर्की से अमेरिका की ये नाराज़गी एंड्र्यू ब्रुसन नाम के एक पादरी की गिरफ़्तारी की वजह से है जो २०१६ से अर्दोआन के खिलाफ नाकाम तख्तापलट की साज़िश में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया। ट्रंप प्रशासन तुर्की के इस क़दम से काफ़ी ख़फ़ा है।


खबर है कि जैसे ही ट्रम्प ने एल्युमीनियम पर २० फीसदी और स्टील पर 50 फीसदी आयात शुल्क का ऐलान किया उसी दौरान अर्दोआन ने रूस के राष्ट्रपति पुतिन से फ़ोन पर बात की और अपने आर्थिक और कारोबारी रिश्ते पर संतोष जताया। अर्दोआन ने ये साफ़ कर दिया है की वो दुसरे सहयोगियों की तलाश करेगा और इसी के तहत कुवैत के अमीर से भी द्विपक्षीय रिश्तों की बात हुई है।

अमेरिकी विदेश नीति का सबसे बड़ा हथियार इन दिनों प्रतिबन्ध हैं। ईरान, रूस और तुर्की तीनो ही अमेरिकी प्रतिबन्ध झेल रहे हैं। दिलचस्प है कि ईरान, तुर्की और रूस, सीरिया के मुद्दे पर असताना में शुरू हुई बातचीत के तहत एक दुसरे के सहयोगी हैं।

रूस यूक्रेन को लेकर अमेरिकी प्रतिबंधों से जूझ रहा है। उसके बाद भी अमेरिकी चुनावों में हस्तक्षेप और पूर्व रूसी जासूस, डबल एजेंट सर्गेई स्क्रिपल और उनकी बेटी को ज़हर देने के मामले में रूस पर नए प्रतिबन्ध लगाए गए हैं। नए प्रतिबन्ध 22 अगस्त से लागू होंगे। और कह चुका है कि और प्रतिबन्ध का मतलब ये होगा कि अमेरिका उसके खिलाफ आर्थिक युद्ध छेड़ रहा है।


अमेरिकी विदेश नीति का सबसे बड़ा हथियार इन दिनों प्रतिबन्ध हैं। ईरान, रूस और तुर्की तीनो ही अमेरिकी प्रतिबन्ध झेल रहे हैं। दिलचस्प है कि ईरान, तुर्की और रूस, सीरिया के मुद्दे पर असताना में शुरू हुई बातचीत के तहत एक दुसरे के सहयोगी हैं।


ईरान के साथ हुई परमाणु संधि को तहस नहस करने के बाद, ट्रम्प प्रशासन ने तेहरान पर फिर से प्रतिबन्ध लगा दिए हैं। इस उम्मीद में की ईरान के परमाणु हथियार ख़त्म करने और उसका बर्ताव बदलने में उसे बेहतर डील मिल पाएगी। २०१५ में हुए परमाणु समझौते से अमेरिका एकतरफा फैसला लेकर बाहर आ गया जबकि संधि में कई देश सम्मिलित थे। ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, चाइना और रूस। फ्रांस, रूस, चीन जैसे देश अब इस नए प्रतिबन्ध में शामिल नहीं, अमेरिका चाहता है की अब कोई भी देश ईरान के साथ कारोबार न करे, अगर ऐसा किया तो अमेरिका के साथ व्यापार नहीं कर पायेगा। लेकिन फ्रांस रूस और चीन अमेरिका की धमकी मानने को तैयार हैं। वो इसे अमेरिका की तरफ से एक्स्ट्रा टेरीटोरियल यानी कानूनी क्षेत्र से बाहर लगाया जा रहा प्रतिबन्ध मानते हैं जो उनकी संप्रभुता पर हमला है।

ईरान के मामले में इसी प्रतिबन्ध कूटनीति के ज़रिये २०१५ की परमाणु संधि हासिल की गयी थी। अमेरिका, संयुक्त राष्ट्र और यूरोपियन यूनियन ने मिल कर कड़े प्रतिबन्ध लगाते हुए ये प्रस्ताव रखा था कि इन्हें हटा दिया जाएगा अगर ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को सीमित कर लेगा और जांच के लिए तैयार हो जायेगा। IAEA ने २०१६ से २०१८ में १० बार ये जांच की कि ईरान अपनी शर्तों को मान रहा है या नहीं। प्रतिबन्ध हटे लेकिन ट्रम्प ने अब इस पर पानी फेरते हुए बिना सहयोगी देशों की सलाह के अपनी तरफ से इस संधि को ख़त्म कर दिया। ऐसे में दुसरे देश अमेरिका के इस एकतरफा फैसले से नाराज़ हैं।

प्रतिबन्ध अपने लक्ष्य को पाने के लिए कारगर हथियार हो सकते हैं। लेकिन क्या ये सच है? क्या मास्को, तेहरान और अंकारा के खिलाफ ये नए प्रतिबन्ध कामयाब होंगे? एकतरफा प्रतिबन्ध जैसा की तेहरान और अब टर्की और मास्को के खिलाफ लगाए गए हैं, कम ही कामयाब होते हैं।

प्रतिबन्ध कूटनीति और युद्ध के बीच का रास्ता हैं, जिसकी लागत कम है, जिसमें खतरे भी कम हैं। जहाँ सैनिक कार्यवाई एक विकल्प नहीं वहां प्रतिबन्ध एक जवाब होते हैं। लेकिन प्रतिबन्ध तब ज्यादा कारगर होते हैं जब उनमें ज्यादा देशों की सहमती हो, ख़ास कर के तब जब जिस देश या संस्था पर प्रतिबन्ध लगाये जा रहे हों उनकी अर्थव्यवथा आर्थिक तौर पर एक ही देश पर निर्भर न हो। तभी दक्षिण अफ्रीका की रंगभेदी सरकार के खिलाफ या फिर सद्दाम हुसैन के इराक पर लगे प्रतिबन्ध कारगर हुए।


प्रतिबन्ध कूटनीति और युद्ध के बीच का रास्ता हैं, जिसकी लागत कम है, जिसमें खतरे भी कम हैं। जहाँ सैनिक कार्यवाई एक विकल्प नहीं वहां प्रतिबन्ध एक जवाब होते हैं।


हालाँकि यूक्रेन में रूस की कार्यवाई की वजह से यूरोपीय संघ ने भी रूस पर प्रतिबन्ध लगाये लेकिन जो ताज़ा प्रतिबन्ध लगाने की बात है वो एकतरफा है। अमेरिकी कांग्रेस जिस पर रिपब्लिकन काबिज़ हैं वो अब इस डर से नए प्रतिबन्ध लगाने में झिझक भी रही है कि अमेरिका में नवम्बर में होने वाले मध्यवर्ती चुनावों में कहीं रूस फिर से छेड़छाड़ न करे।

प्रतिबन्ध किसी भी तरह की भूराजनीतिक चुनौती के लिए पश्चिमी देशों की कार्यवाई का सबसे अहम् हथियार बन गए हैं। चाहे वो उत्तर कोरिया का परमाणु कार्यक्रम हो, रूस का यूक्रेन में हस्तक्षेप और अमरीकी चुनाव में घुसपैठ की कोशिश, तुर्की में अमरीकी पादरी की गिरफ़्तारी या ईरान के परमाणु कार्यक्रम। सब पर प्रतिबन्ध का हमला हुआ है।

प्रतिबंधों का आर्थिक परिणाम तो व्यापक है

नए अमेरिकी प्रतिबन्ध के डर से रूस का रूबल लुगढ़ गया और दो सालों के अपने सबसे निचले स्तर पर पहुँच गया। रूस ने चेतावनी दी है कि और प्रतिबन्ध लगे तो रूस इसे अपने खिलाफ आर्थिक युद्ध मानेगा।

तुर्की जितना स्टील आयात करता है उसका १३ फीसदी हिस्सा अमेरिका आयात होता है। तुर्की पर अमेरिकी प्रतिबन्ध के फैसले से तुर्की का स्टील अमेरिकी बाज़ार से लगभग गायब हो गया। अमेरिका और तुर्की के बीच बिगड़ते सम्बन्ध विश्व की अर्थव्यवस्था में हलचल पैदा कर गए। पूरे मध्य पूर्व में अनिश्चितता फैल गयी। तुर्की जो ईरान इराक और सीरिया की सीमा से लगा हुआ वो उसकी आर्थिक स्थिति इन देशों की अर्थव्यवस्था को अस्थिर कर सकती है।

ईरान पहले से ही अमेरिकी प्रतिबंधों की वजह से बुरी आर्थिक स्थति से जूझ रहा है हालाँकि ईरान के सुप्रीम धर्मगुरु अयातुल्ला खमेनी ने इस आर्थिक बदहाली के राष्ट्रपति हसन रूहानी को ज़िम्मेदार ठहराया है, लेकिन साथ ही अमेरिका से किसी भी बातचीत से इंकार किया है। ऐसे में अमेरिका को अपने प्रतिबन्ध की कामयाबी की उम्मीद रखना कितना ठीक है इस पर सवाल है।

प्रतिबन्ध हो सकता है कि अपने आर्थिक लक्ष्य में सफल हों लेकिन कई बार वो देशों के बर्ताव को बदल नहीं पाते। अफ़ग़ानिस्तान में साल २००० और २००१ में लगे संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबन्ध का आर्थिक असर बड़ा हुआ लेकिन फिर भी तालिबान शासकों ने ओसामा बिन लादेन को नहीं सौंपा।


CAATSA का असर भारत और रूस की १५ मिलियन डॉलर से ऊपर की सैन्य खरीद पर भी पड़ सकता है। भारत इस मुद्दे को वाशिंगटन में रक्षा और विदेश मंत्री के बीच होने वाली 2 प्लस 2 बातचीत में उठा सकता है।


२१वीं शताब्दी में शक्ति का विकेंद्रीकरण लगातार हो रहा है, दुनिया को बड़ी, माध्यम और छोटी शक्तियों में बांटना इसे सीमित करना होगा। तभी अमेरिका के एक आर्थिक और सैनिक महाशक्ति होने के बावजूद उसके वैश्विक शासक होने पर सवाल उठ रहे हैं । अब देशों के पास दुसरे सहयोगी तलाशने के विकल्प हैं। जब कोई देश प्रतिबंधों से जूझ रहा होता है तो वो दुसरे सह्होगियों की तलाश करता है।जैसे क्यूबा ने फिदेल कास्त्रो के सत्ता में आने के बाद किया। जब फिदेल कास्त्रो ने सत्ता संभाली तो अमेरिका ने अपने पूर्व कारोबारी पार्टनर क्यूबा पर प्रतिबन्ध लगा दिया तो हवाना ने मास्को का रुख किया और कम्युनिस्ट ब्लॉक का हिस्सा बन गया।

तुर्की और अमेरिका में मौजूदा तनाव के बाद अर्दोआन ने कहा है कि अमेरिकी प्रतिबन्ध से तुर्की के फैसलों पर असर नहीं पड़ेगा। अर्दोआन ने कहा कि अगर अमेरिका सोंचता है कि वो हमसे असमानता का रिश्ता रख सकता है, और अगर वो इस एकपक्षीय अहंकारी बर्ताव को रोकता नहीं है तो उसे समझ जाना चाहिए कि हम नए दोस्त तलाश सकते हैं।

अर्दोआन के वरिष्ठ सलाहकार यिगित बुलुत ने एक टीवी इंटरव्यू में अमेरिका पर कटाक्ष करते हुए कहा कि उम्मीद करते हैं कि वो हमें F35 फिटर प्लेन न दें ताकि हम रूस से सुखोई बॉम्बर जेट खरीद सकें जो S४०० मिसाइल से ज्यादा सुसंगत है।

इरान ने अमेरिकी प्रतिबंधों के मद्देनज़र अपनी अर्थव्यवस्था को और विस्तृत किया है। वो भारत, चीन और दूसरी एशिया के देशों के साथ व्यापार कर रहा है, तेल भी बेच रहा है और सामान खरीद भी रहा है।


दुनिया तेज़ी से भूमंडलीकरण की तरफ बढ़ रही है, ऐसे में एकतरफा प्रतिबंधों की राह में कई रोड़े हैं, बेशक वो दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की तरफ से क्यूँ न लगाए जा रहे हों।


अमेरिका ने एक साल पहले अगस्त २०१७ में रूस के खिलाफ CAATSA पारित किया, (Combating American Adversaries through Sanctions ), अमेरिका के दुश्मनों से प्रतिबंधों के ज़रिये मुकाबला करना। तब इसकी वजह थी अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में रूस का कथित हस्तक्षेप। जनवरी २०१८ से रूसी कंपनियों और बड़े राजनीतिक और कारोबारी शख्सियतों पर ये प्रतिबन्ध लागु हो गए।

CAATSA का असर भारत और रूस की १५ मिलियन डॉलर से ऊपर की सैन्य खरीद पर भी पड़ सकता है। भारत इस मुद्दे को वाशिंगटन में रक्षा और विदेश मंत्री के बीच होने वाली 2 प्लस 2 बातचीत में उठा सकता है।

इसके बावजूद भारत S४०० यानी Triumf मिसाइल की खरीद पर आगे बढ़ रहा है। ये मुमकिन नहीं कि अमेरिका भारत पर प्रतिबन्ध लगाए लेकिन फिर भी हो सकता है कि ये आगे की अमेरिका भारत डिफेन्स सौदों पर असर डाले।

दुनिया तेज़ी से भूमंडलीकरण की तरफ बढ़ रही है, ऐसे में एकतरफा प्रतिबंधों की राह में कई रोड़े हैं, बेशक वो दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की तरफ से क्यूँ न लगाए जा रहे हों।

१९९० में पीटरसन इंस्टिट्यूट के एक अध्यन में पाया गया कि विदेश नीति के लक्ष्य को हासिल करने के लिए लगाए गए एकतरफा अमेरिकी प्रतिबन्ध की कामयाबी दर सिर्फ १३ फीसदी है।

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