Published on Dec 17, 2020 Updated 0 Hours ago

दो बेहद मारक बदलावों यानी तकनीकी व बुनियादी ढांचे में फेरबदल के ज़रिए, सस्ते लेकिन उच्च गुणवत्ता वाले स्मार्टफोन और लगभग मुफ्त डेटा, के साथ इंटरनेट समाज को समान व्यवस्था वाले क्षेत्र में बदल रहा है.

पॉकेट एसेस: बोरियत की समस्या को हल करने वाली भारत की अग्रणी डिजिटल मनोरंजन कंपनी

ORF: पॉकेट एसेस (Pocket Aces) ने सैकड़ों घंटों के रोचक मनोरंजन के साथ लाखों भारतीयों के दिलों पर कब्ज़ा कर लिया है. आने वाले समय के लिए आपका मिशन क्या है, और भारतीय दर्शकों में अपनी पकड़ बनाए रखते हुए आप इस मिशन के कैसे जारी रखना चाहते हैं?

Aditi Shrivastava: हमारा मिशन बोरियत की समस्या को हल करना है. इस मिशन के बारे में मुझे जो सबसे अधिक पसंद है, वह यह है कि यह बिना कोई दूसरी बात सोचे, पूरी तरह से दर्शकों पर केंद्रित है. यह मूल मंत्र हमें दर्शकों की संतुष्टि की दिशा में एक मजबूत फोकस के साथ और एक कंपनी के रूप में आगे बढ़ने, सोचने और निर्णय लेने के लिए प्रेरित करता है. आज हम भारत की सबसे बड़ी डिजिटल मनोरंजन कंपनी हैं, जो मोबाइल वीडियो पर केंद्रित है. यह कंपनी एक सप्ताह में 50 मिलियन से अधिक लोगों तक पहुंचती है और हर महीने 700 मिलियन से अधिक व्यूज़ (digital views) यानी हमें देखने वाले लोगों का डिजिटल आंकड़ा दर्ज़ कर रही है. इस तंत्र को मज़बूत तरीके से विकसित करने के लिए, हमें तीन काम करने होंगे:

पहला कि हर पैमाने पर हम विभिन्न प्रकार के दर्शकों के लिए अधिक से अधिक प्रासंगिक बने रहें. इस तथ्य का लाभ उठाते हुए कि डिजिटल एक दो तरफा माध्यम है, हम अपने दर्शकों के लगातार क़रीब बने हुए हैं. हम सतत आधार पर दर्शकों से बात करने के लिए डिज़ाइन थिंकिंग (design thinking) यानी उत्पाद के इस्तेमाल को ध्यान में रखते हुए अपने सिद्धांतों को लागू करते हैं, और उनकी बदलती प्राथमिकताओं व व्यवहारों पर अंतर्दृष्टि (insights) इकट्ठा करते हैं. इससे हमें यह तय करने में मदद मिलती है कि कौन से नए प्रारूप बनाने हैं, कौन सी नई सामग्री किन शैलियों में लॉन्च करनी है, और किस नए प्लेटफॉर्म पर उपस्थिति दर्ज करनी है.

आज हम भारत की सबसे बड़ी डिजिटल मनोरंजन कंपनी हैं, जो मोबाइल वीडियो पर केंद्रित है. यह कंपनी एक सप्ताह में 50 मिलियन से अधिक लोगों तक पहुंचती है और हर महीने 700 मिलियन से अधिक व्यूज़ (digital views) यानी हमें देखने वाले लोगों का डिजिटल आंकड़ा दर्ज़ कर रही है. 

दूसरा, कि अलग-अलग प्लेटफ़ॉर्म और माध्यमों पर, यानी जहां भी दर्शक समय बिता रहे हैं, वहां उनका ध्यान आकर्षित करना जारी रखें. यूट्यूब (YouTube), फेसबुक (Facebook), इंस्टाग्राम (Instagram) और स्नैपचैट (Snapchat) जैसे सभी सोशल मीडिया माध्यमों पर अपनी मज़बूत उपस्थिति बनाने और  नेटफ्लिक्स, अमेज़न प्राइम, एमएक्सप्लेयर व सोनी-लिव (Netflix, Amazon Prime, MXPlayer, SonyLiv) जैसे ओटीटी (over the top) यानी टेलिविज़न व फिल्म संबंधी सामग्री को इंटरनेट के ज़रिए उपलब्ध कराने वाले माध्यमों पर अपनी सामग्री साझा करने के अलावा, हम टेलीविज़न, इन-फ्लाइट मनोरंजन, दूरसंचार कंपनियों और यहां तक कि कैब में दिखाए जाने के लिए भी अपनी सामग्री का लाइसेंस जारी करते है. यह सुनिश्चित करता है कि दर्शक हमें जहां भी  देखना चाहते हैं, और हमारे ज़रिए मनोरंजन पाना चाहते हैं, वहां हमें देख सकें.

तीसरा, प्रयोग जारी रखें. पुनर्निवेश यानी नई से नई तकनीक व आइडिया में निवेश करें और विविधता बनाए रखें. हम भारत में मीडिया और मनोरंजन उद्योग के लिए बेहद रोमांचक समय में हैं, इसलिए किसी भी कंपनी के लिए बेहद कम समय में बेमानी या अप्रासंगिक हो जाना आसान है. अंतिम समय तक ख़ुद को प्रासंगिक रखने के लिए, हम मौलिक रूप से ऐसा तंत्र बना रहे हैं जो मज़बूत व्यावसायिक आधार पर टिका हो और जिसमें विविध प्रकार की सुविधाएं, मुनाफ़े के अवसर और मूल्य श्रृंखलाएं मौजूद हों, जो सभी रूप में मुनाफ़ा कमा सकें.

ORF: मनोरंजन सामग्री बनाने को लेकर पॉकेट एसेस की परिकल्पना या उसका दर्शन क्या है, और आप इसे पूरा करने के लिए तकनीक का उपयोग कैसे करते हैं?

Aditi Shrivastava: मनोरंजन सामग्री बनाने को लेकर हमारी फिलॉसफी या परिकल्पना अत्यधिक रिलेटेबल कंटेंट यानी ऐसी सामग्री जिसके साथ हर कोई जुड़ सके व हर कोई सहज हो, तैयार करना है. यह ऐसी चीज़ें हैं जिन्हें दर्शक साझा करना चाहते हैं और इसलिए इसे लोगों के माध्यम से बहुत कम लागत पर ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सकता है. यह वही बातें हैं, जो स्वाभाविक रूप से किसी सामग्री को ‘वायरल’ बनाती हैं. डेटा और तकनीक, हमारे सामग्री बनाने के तरीकों के केंद्र में हैं. सामग्री यानी कंटेंट को हमेशा रचनाकारों की व्यक्तिगत प्राथमिकताओं के कारण क्लिक व हिट द्वारा संचालित व्यवसाय माना जाता है, लेकिन यह बड़े पैमाने पर काम नहीं कर सकता. डेटा से मिलने वाली जानकारियों का इस्तेमाल करके और रचनाकारों के लिए फीडबैक की प्रक्रिया बनाकर, हमने यह साबित कर दिया है कि सफलता को दोहराया जा सकता है और सप्ताह दर सप्ताह वायरल वीडियो वितरित की जा सकती हैं.

हमारी उस सामग्री के लिए जो नॉन-गेमिंग वर्ग में बनाई जाती है, हम दर्शकों द्वारा सामग्री इस्तेमाल करने के तरीकों, उनके उपयोग संबंधी व्यवहार और वरीयताओं (user preference) को पकड़ने के लिए तकनीकी उपकरणों का उपयोग करते हैं. हम इन उपकरणों का उपयोग जारी की गई सामग्री के प्रदर्शन की निगरानी करने (performance analytics) के लिए करते हैं, और उस डेटा को वास्तविक समय (real time) के आधार पर अपनी रचनात्मक प्रक्रिया में शामिल करते हैं. हम दर्शकों के इस बड़े वर्ग को एक संसाधन के रूप में देखते हैं. इतनी बढ़ी संख्या में दर्शकों तक अपनी पहुंच का इस्तेमाल हम डेटा जुटाने और अपने प्रयोगों, नए विचारों, नए विषयों, कथानक बिंदुओं, अभिनेताओं और सूक्ष्म और लघु-रूप में सामग्री के साथ परीक्षण करने के लिए करते हैं, ताकि महंगी और अधिक लागत से बनने वाली सामग्री और लंबे प्रारूप वाली सामग्री (long form content) बनाने व उसमें निवेश से पहले इन बातों को समझा और परखा जा सके. हम दुनिया भर से ट्रेंडिंग कंटेंट पर नज़र रखने और सामग्री के नएपन की भविष्यवाणी करने के लिए अपने खास तकनीकी उपकरणों का उपयोग भी करते हैं.

हमारे गेमिंग ऐप ‘लोको’ (Loco) पर, हमने कई अत्याधुनिक तकनीकों का विकास किया है. एक उदाहरण हमारी कम विलंबता (minimum delay) वाली लाइव स्ट्रीमिंग तकनीक है जो एक मिलियन से अधिक समवर्ती (concurrent) उपयोगकर्ताओं को एक साथ यह सुविधा प्रदान कर सकती है. इसके साथ, हम 2018 में भारत के सबसे बड़े लाइव स्ट्रीमिंग ऐप बन गए हैं, जो हॉटस्टार (hotstar) के बाद दूसरे स्थान पर है. हमारे पास एक एआई-संचालित (AI-driven) इंजन भी है जो तकनीक के ज़रिए उपभोक्ताओं को उनकी पसंद से संबंधित सुझाव (recommendation) जारी करता है, जो व्यक्तिगत रूप से सुझाई गई गेमिंग सामग्री (personalised gaming content) के साथ उपभोक्ताओं की टाइमलाइन पर इस तरह के सुझाव भेजता है. ‘लोको’ (Loco) की रिवॉर्ड आधारित प्रणाली (reward based system) व सोशल मीडिया बटन एक अन्य विशेषता है जो सामग्री को देखने में बिताए गए समय (session time) और प्रतिधारण दरों (retention rates) के रूप में उपभोक्ताओं के साथ बेहतर जुड़ाव सुनिश्चित करता है.

ORF: पॉकेट एसेस की सामग्री आश्चर्यजनक रूप से व्यापक और विविध है, लघु एनीमेशन मीम (Memes) से लेकर कई-सीज़न तक चलने वाली वेब-सीरीज़ तक, और हाल ही में आपने गेमिंग दुनिया में भी सफलतापूर्वक कदम रखा है. आप इस पूरे स्पेक्ट्रम का प्रबंधन कैसे करते हैं?

Aditi Shrivastava: हम ख़ुद को नए ज़माने के डिजिटल मीडिया समूह के रूप में समझते हैं. जिस तरह एक पारंपरिक मीडिया कंपनी के पास टीवी पर सामग्री जारी करने के लिए अलग-अलग शैलियों और भाषाओं में चैनल हैं, हम उसी तर्ज़ पर मोबाइल के माध्यम से सामग्री ग्रहण करने वाले दर्शकों के लिए श्रेणियां बना रहे हैं. विस्तार का यह तरीका एक बार फिर, दर्शकों को सर्वोपरि रखने की हमारी मानसिकता का ही परिणाम है- भारत में इंटरनेट पर मौजूद दर्शकों की मनोरंजन संबंधी ज़रूरतें और प्राथमिकताएं विविधता से भरी हैं, और हमने इन दर्शकों के बीच मौजूद अंतरालों और क्षेत्रों की पहचान करने के लिए काफ़ी काम किया है. हम उन व्यवहार पद्धतियों को भी समझने की कोशिश करते हैं जो बदलाव के मामले में अभी नवजात हैं, और उनसे संबंधित व्यवहार निर्माण में वक्त लगेगा.

हमारे एनीमेशन चैनल ‘जम्बो’ (Jambo) का लक्ष्य अंततः भारत के लिए ‘फैमिली गाई’ या ‘साउथ पार्क’ की तर्ज़ पर कार्यक्रम बनाना है. वयस्कों के लिए एनिमेटेड सामग्री को लेकर भारत में असीम संभावनाएं हैं क्योंकि इस क्षेत्र में सामग्री की बेहद कमी है. 

इस मायने में आप देख सकते हैं कि हमारे चैनल बोरियत की समस्या को हल करने के हमारे मिशन के साथ मिलकर कैसे काम करते हैं और साझा करने योग्य सामग्री के ज़रिए हमारे दर्शकों को बांधे रखते हैं:

  • फ़िल्टरकॉपी (लघु वीडियो फिक्शन) और डाइस मीडिया (कई सीज़न की वेब श्रृंखला) बड़े व सामान्य मनोरंजन से जुड़े चैनल हैं, जो आम जिंदगी की परिस्थितियों पर आधारित हैं और इन कहानियों को प्रगतिशील कथानक के ज़रिए, भारतीय दर्शकों कीव्यापक भावनाओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए परोसा जाता है.
  • हमारा लाइफस्टाइल चैनल गॉबल (Gobble) भोजन, यात्रा और घरेलू चीज़ों से जुड़ी सामग्री पर केंद्रित है. ये ऐसी श्रेणियां हैं जिनमें दर्शक सामग्री के साथ सबसे अधिक रूप से जुड़ते हैं. जहां दर्शक न केवल सामग्री की खोज कर रहे हैं और इसका उपभोग कर रहे हैं, बल्कि बड़ी मात्रा में उपयोगकर्ता-जनित सामग्री (user-generated content) भी बना रहे हैं.
  • हमारा इंफोटेनमेंट चैनल नटशैल (Nutshell) उस भारतीय व्यवहार को ध्यान में रखकर बनाया गया है, जिसके तहत लोगएक दूसरे के साथ ज्ञान साझा करना चाहते हैं, भले ही यह व्हाट्सएप पर हो. हम इतिहास, खेल, फिल्मों, प्रौद्योगिकी और अन्य विषयों पर क्या आप जानते हैं’ और जानिए कि यह कैसे बनता है की तरह के वीडियो बनाते व साझा करते हैं. यह वो विषय हैं जिन पर भारतीय सामग्री साझा करना पसंद करते हैं.
  • हमारे एनीमेशन चैनल ‘जम्बो’ (Jambo) का लक्ष्य अंततः भारत के लिए ‘फैमिली गाई’ या ‘साउथ पार्क’ की तर्ज़ पर कार्यक्रम बनाना है. वयस्कों के लिए एनिमेटेड सामग्री को लेकर भारत में असीम संभावनाएं हैं क्योंकि इस क्षेत्र में सामग्री की बेहद कमी है.जम्बो के साथ खासतौर पर हम टियर 2 और टियर 3 शहरों के हिंदी बेल्ट दर्शकों को लक्षित करते हैं और यह उनकी संवेदनाओं को ध्यान में रखकर व उन पर केंद्रित सामग्री है.
  • लोको (Loco) हमारी सबसे महत्वाकांक्षी परियोजना है क्योंकि यह एक स्वतंत्र ऐप/प्लेटफॉर्म है. तेज़ी से लोगों के बीच फैलते, सस्ते स्मार्टफोन और मुफ्त डेटा के साथ, भारतीय आखिरकार अपने फोन पर गेमिंग कर रहे हैं. यह एक नया सामग्री क्षेत्र है, और इसलिए इस संबंध में उपभोक्ताओं के व्यवहार को आकार देना और उनकी पसंद का मंच बनाना संभव है. गेमिंग सामग्री के रूप और प्रारूप भी बहुत दिलचस्प हैं, क्योंकि इसका पुनरावृत्ति मूल्य (repeat value) बेहद अधिक है. यदि आप एक फिल्म या शो पसंद करते हैं, तो आप इसे ज़्यादा से ज़्यादा एक या दो बार देख लेंगे, लेकिन यदि आप किसी गेम को पसंद करते हैं, तो आप इसे हजारों बार खेलेंगे. यह सीधे बोरियत की समस्या को सुलझाने और अधिक से अधिक ध्यान खींचने (maximum attention minutes) की दिशा में हमारे मिशन के साथ संलग्न (align) होता है.
  • भारतीय ऊब गए हैं, वे मनोरंजन के भूखे हैं, और इस बोरियत की प्रकृति तेज़ी से बदल रही है. केवल निष्क्रिय रूप से उपभोग करने वाली सामग्री (passively consuming content) के अलावा, वे अब अपने सामाजिक व्यक्तित्व का निर्माण करना चाहते हैं

एक साथ कई चैनल होना, व्यवसायिक दृष्टिकोण से भी बहुत तालमेल भरा काम है- जबकि प्रत्येक चैनल की अपनी रचनात्मक टीम होती है यानी बिक्री, मार्केटिंग, प्रतिभा का विकास, वित्त और मानव संसाधन जैसे अन्य सभी कार्यों साझा रूप से किए जाते हैं. विभिन्न प्रकार की सामग्री और ऑडियंस होने से भी हमें विज्ञापनदाताओं को विविध प्रकार के समाधानों की पेशकश करने की सहूलियत मिलती है, इस प्रकार हम सभी प्रकार के मार्केटिंग अभियानों के लिए सही भागीदार खोज पाते हैं.

ORF: भारत के प्रौद्योगिकी पारिस्थितिकी तंत्र ने आपको पॉकेट एसेस को किन तरीकों से बनाने और विस्तारित करने का मौका दिया है, जो शायद एक दशक पहले भी संभव नहीं थे?

Aditi Shrivastava: कुछ साल पहले तक, आसान रूप से डेटा का उपलब्ध होना एक तरह का विलास यानी लक्ज़री माना जाता था, जिसका उपयोग मुख्य रूप से मेट्रो और टियर 1 शहरों में रहने वाले लोग ही करते थे. लेकिन प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढांचे से जुड़े दो बड़े बदलावों- सस्ते और उच्च गुणवत्ता वाले स्मार्टफोन और लगभग मुफ्त डेटा ने इंटरनेट को समान रूप से लोगों तक पहुंचाने का काम किया है, जिससे इंडिया और भारत का फ़र्क कम हो गया है. अब कई पहलुओं में भारत और इंडिया समान वृद्धि कर रहे हैं. आज, भारत में 480 मिलियन से अधिक लोग हैं, जिनकी इंटरनेट तक पहुंच है. रिपोर्ट के मुताबिक इंटरनेट का 45 प्रतिशत उपयोग सोशल मीडिया और मनोरंजन के लिए है, और इसका 75 प्रतिशत उपभोग मोबाइल फोन के माध्यम से हो रहा है. एक औसत भारतीय दिन में 35 बार अपना फोन देखता है यानी हर सात मिनत में एक बार, जो कि दिन में चार घंटे है. भारतीय ऊब गए हैं, वे मनोरंजन के भूखे हैं, और इस बोरियत की प्रकृति तेज़ी से बदल रही है. केवल निष्क्रिय रूप से उपभोग करने वाली सामग्री (passively consuming content) के अलावा, वे अब अपने सामाजिक व्यक्तित्व का निर्माण करना चाहते हैं, अपनी राय साझा करते हैं, अपनी प्रतिभा दिखाते हैं, दोस्तों के साथ संपर्क में रहते हैं और यहां तक कि पैसा भी कमाते हैं. पॉकेट एसेस हर दिन, हर जगह, हर किसी का मनोरंजन करके ध्यान आकर्षित करने की रणनीति के तहत बोरियत की इस समस्या का हल कर रहा है.

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