Author : Harsh V. Pant

Published on Dec 14, 2019 Updated 0 Hours ago

ब्रिटिश जनता भले चाहती हो कि ब्रेग्जिट संकट जल्दी टल जाए, लेकिन ब्रिटेन का राजनीतिक भविष्य अभी संघर्ष का विषय है.

चुनाव नतीजों से एक संकट खत्म हुआ, तो दूसरा शुरू

ब्रिटेन में हुआ चुनाव एक बार फिर ब्रेग्जिट चुनाव में बदल गया. ब्रिटेन और यूरोपीय संघ की भूमिका वाले सतत ड्रामे से थके ब्रिटिश मतदाताओं ने बोरिस जॉनसन को एक और मौका दे दिया, ताकि वह ब्रेग्जिट पर काम कर सकें. इस बार कंजर्वेटिव को मजबूत जनादेश मिला है. बे्रग्जिट ने एक तरह से ब्रिटेन का नया राजनीतिक नक्शा खींच डाला है. इस वजह से ही कुछ लोगों ने कुछ महीने पहले यह कल्पना की थी और यह आशा भी कि तीन साल से जारी संकट को किनारे रखकर बेहतर भविष्य की ओर बढ़ा जा सकता है. यह ब्रिटेन में पिछले पांच वर्षों में हुआ तीसरा चुनाव था. यह संकट तब शुरू हुआ था, जब डेविड कैमरून प्रधानमंत्री थे. उन्होंने सोचा था कि जनमत संग्रह से इस संकट का हमेशा के लिए हल निकाला जा सकता है, लेकिन उसके बाद देश दो प्रधानमंत्रियों को जाते देख चुका है, और अब तीसरे प्रधानमंत्री को नया जानदेश मिला है. लोग चाहते हैं कि 2016 में जो संकट शुरू हुआ था, बोरिस जॉनसन उसे हल कर दें.

जॉनसन से पहले प्रधानमंत्री रहीं थेरेसा मे ने भी 2017 में चुनाव कराया, ताकि उन्हें व्यापक जनादेश मिल जाए, लेकिन बढ़ने की बजाय उनकी सीटें घट गईं. नतीजा यह हुआ कि उन्हें डेमोक्रेटिक यूनियनिस्ट पार्टी का समर्थन लेना पड़ा, ताकि उनकी अल्पमत सरकार चल सके. जब थेरेसा के ब्रेग्जिट वापसी समझौते को ब्रिटिश संसद ने तीसरी दफा खारिज कर दिया, तब उन्हें इस्तीफा देना पड़ा और जॉनसन ने कार्यभार संभाला. जॉनसन आश्वस्त थे कि वह 31 अक्तूबर, 2019 तक ब्रिटेन को यूरोपीय संघ से बाहर ले आएंगे. हालांकि इस कोशिश में उन्हें जब संसद का साथ नहीं मिला, तब आम चुनाव की जरूरत पड़ी. अब यह कंजर्वेटिव के लिए बहुत खुशी की बात है कि पार्टी को हाउस ऑफ कॉमन्स में बहुमत हासिल हो गया है. जॉनसन ने जीत के तुरंत बाद घोषणा की है कि यह जनादेश ब्रेग्जिट के लिए है और ब्रिटेन अगले महीने यूरोपीय संघ से बाहर आ जाएगा.

दूसरी ओर, लेबर पार्टी के लिए यह चुनाव आपदा की तरह रहा. पार्टी ने अपने मजबूत चुनावी क्षेत्रों में भी सबसे खराब प्रदर्शन किया है. अत: अब पार्टी ने फैसला कर लिया है कि वह अगला चुनाव जेरेमी कॉर्बिन के नेतृत्व में नहीं लड़ेगी. लिबरल डेमोक्रेट्स को सर्वाधिक नुकसान हुआ है, उनकी नेता जो स्विनसन खुद चुनाव हार गई हैं. उधर स्कॉटिश नेशनल पार्टी को स्कॉटलैंड में अप्रत्याशित जीत हासिल हुई है. प्रधानमंत्री की दौड़ में दो मुख्य नेता थे, लेबर पार्टी के जेरेमी कॉर्बिन और कजर्वेटिव पार्टी के निवर्तमान प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन. दोनों के साथ अपनी-अपनी समस्याएं हैं. एक ब्रिटिश टिप्पणीकार ने चुटकी ली थी कि लोगों को ‘अधिनायकवादी’ और ‘झूठे’ के बीच ही एक खतरनाक चुनाव करना है. चूंकि इन्हीं दो नेताओं पर पूरा फोकस था, इसलिए ब्रिटेन का यह चुनाव ब्रिटिश संसदीय शैली में न होकर अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव जैसे ज्यादा हो गया था.

जॉनसन का पूरा जोर ब्रेग्जिट पर था, लेकिन उनकी विश्वसनीयता का सवाल हमेशा बना रहा. उन्हें एक ऐसे चतुर नेता के रूप में देखा जाता है, जो अपनी महत्वाकांक्षाओं के लिए रिश्ते बनाता है और बिगाड़ भी लेता है. दूसरी ओर, जेरेमी कॉर्बिन की ब्रेग्जिट पर कोई स्पष्ट सोच नहीं थी. वह तात्कालिक जरूरतों के हिसाब से अपना पक्ष बदलते रहते थे. जो लोग यूरोपीय संघ के साथ रहना चाहते हैं और जो नहीं रहना चाहते, दोनों ने ही जेरेमी कॉर्बिन को नुकसान पहुंचाया. अब ब्रेग्जिट की प्रक्रिया तेज हो जाएगी, लेकिन कुछ मुश्किल सवाल भी सिर उठाएंगे. स्कॉटिश नेशनल पार्टी की नेता और स्कॉटलैंड की फस्र्ट मिनिस्टर निकोला स्टर्जेअन ने कह दिया है कि स्कॉटलैंड का संदेश स्पष्ट है.

स्कॉटलैंड बोरिस जॉनसन की कंजर्वेटिव सरकार को नहीं चाहता, प्रधानमंत्री को यह जनादेश नहीं है कि वह स्कॉटलैंड को यूरोपीय संघ से बाहर ले आएं. यह पार्टी एक स्वतंत्र जनमत-संग्रह के पक्ष में दिखती है. ब्रिटिश जनता भले चाहती हो कि ब्रेग्जिट संकट जल्दी टल जाए, लेकिन ब्रिटेन का राजनीतिक भविष्य अभी संघर्ष का विषय है. बोरिस जॉनसन ने भले ही बड़ी जीत हासिल कर ली हो, लेकिन उनकी चुनौतियों का सिलसिला अभी खत्म नहीं हुआ है.


यह लेख मूल रूप से Live हिंदुस्तान में प्रकाशित हो चुका है.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.