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नॉर्वे ने आर्कटिक काउंसिल के अध्यक्ष के रूप में अपनी ज़िम्मेदारी को संभाल लिया है, ऐसे में अब उसे अपनी प्राथमिकताओं और क्षेत्रों में चल रही भू-राजनीति के बीच संतुलन बनाते हुए आगे का रास्ता तय करना होगा.
नॉर्वे ने मई 2023 में रूस से वर्ष 2023-2025 के लिए आर्कटिक काउंसिल की अध्यक्षता का कार्यभार संभाला है. नॉर्वे ने आर्कटिक परिषद की अध्यक्षता ऐसे नाज़ुक वक़्त में संभाली है, जब यूक्रेन में युद्ध की वजह से आर्कटिक की भू-राजनीति तेज़ी से करवट ले रही है. हालांकि, आर्कटिक काउंसिल एक ऐसा अंतर-सरकारी मंच है, जो न तो सुरक्षा और न ही राजनीतिक रूप से संचालित होता है. इसके बावज़ूद इस पूरे आर्कटिक क्षेत्र में यूक्रेन-रूस युद्ध का प्रभाव प्रमुखता के साथ महसूस किया गया है, क्योंकि रूस आर्कटिक में सबसे बड़ा देश है. मार्च 2022 में यूक्रेन में रूस की ओर से की गई कार्रवाइयों की प्रतिक्रिया के तौर पर इस काउंसिल के आठ सदस्य देशों में से सात देशों ने आर्कटिक परिषद के कामकाज को अस्थाई रूप से रोक दिया था. जून 2022 में आर्कटिक परिषद का कामकाज दोबारा आंशिक रूप से शुरू किया गया था, लेकिन देखा जाए तो यह काफ़ी हद तक उन्हीं क्षेत्रों तक सीमित था, जहां रूस का कोई दख़ल नहीं था. यह लेख आर्कटिक परिषद की दो साल की अध्यक्षता के दौरान नॉर्व के समक्ष आने वाली चुनौतियों और उसकी प्राथमिकताओं का विस्तार से विश्लेषण करता है.
आर्कटिक परिषद की स्थापना वर्ष1996 में हुई थी और इसका मक़सद आर्कटिक के सतत् विकास और पर्यावरण संरक्षण से जुड़े मुद्दों पर आठ निकटवर्ती देशों के बीच सहयोग को मज़बूती देना और सरकारों के स्तर पर पारस्परिक समन्वय को बढ़ावा देना है. आर्कटिक परिषद का मुख्य ध्यान उन क्षेत्रों पर काम करने का रहा है, जिनका राजनीति से कुछ ख़ास लेना-देना नहीं है, अर्थात आर्कटिक काउंसिल विवादास्पद राजनीतिक और सुरक्षा मुद्दों में शामिल होने से भी बचता रहा है. अपने आर्कटिक काउंसिल स्ट्रैटेजिक प्लान 2021-2030 में काउंसिल के प्रमुख कार्य को "आर्कटिक क्षेत्र को शांति, स्थिरता और रचनात्मक सहयोग के क्षेत्र के रूप में बरक़रार रखने के लिए परिभाषित किया गया था, जो कि यहां रहने वाले स्थानीय लोगों समेत सभी के लिए एक जीवंत, समृद्ध, टिकाऊ और सुरक्षित जगह है और जहां उनके अधिकारों एवं रहन-सहन की तरीक़ों व कल्याण का पूरा सम्मान किया जाता है." आर्कटिक काउंसिल की कार्यप्रणाली में राजनीति को बाहर रखने के विचार का अनुसरण करते हुए नॉर्वे की सरकार ने अपनी प्राथमिकताओं को निम्नलिखित चार नीतिगत क्षेत्रों के ढांचे के अंतर्गत परिभाषित किया है:
आर्कटिक परिषद की स्थापना वर्ष1996 में हुई थी और इसका मक़सद आर्कटिक के सतत् विकास और पर्यावरण संरक्षण से जुड़े मुद्दों पर आठ निकटवर्ती देशों के बीच सहयोग को मज़बूती देना और सरकारों के स्तर पर पारस्परिक समन्वय को बढ़ावा देना है.
सबसे पहली प्राथमिकता का क्षेत्र महासागर है, जहां समुद्री पर्यावरण पर पड़ने वाले दबाव के प्रबंधन और आर्कटिक महासागर के उद्योग में स्थिरता को बढ़ावा देने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया जाता है. इसके तहत, नॉर्वे भागीदारों के साथ मिलकर आर्कटिक प्रबंधन के लिए विभिन्न साधन विकसित करने और बर्फ़ पर निर्भर प्रजातियों एवं पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा के लिए काम करेगा. इसके अतिरिक्त, जैसा कि आर्कटिक तेज़ी के साथ अपनी आइस कैप्स यानी जमी हुई बर्फ़ को खोता जा रहा है, ओस्लो ने आर्कटिक क्षेत्र में बर्फ को पिघलने से रोकने के लिए आपातकालीन इंतज़ाम, तैयारी और प्रतिक्रिया को बढ़ाने की ज़रूरत पर बल दिया है. इसके लिए, नॉर्वे आर्कटिक कोस्ट गार्ड फोरम के साथ सहयोग को मज़बूत करेगा और अन्य भागीदारों के साथ मिलकर एयरोनॉटिकल यानी वैमानिकी व समुद्री खोज एवं बचाव, तेल रिसाव की स्थिति में हर तरह की तैयारी और प्रतिक्रिया के साथ ही समुद्र में रेडियोलॉजिकल व परमाणु प्रदूषण को लेकर काम करेगा.
नॉर्वे की प्राथमिकता वाला दूसरा क्षेत्र जलवायु और पर्यावरण है. उल्लेखनीय है कि आर्कटिक का क्षेत्र उम्मीद से ज़्यादा तेज़ी के साथ गर्म हो रहा है, नॉर्वे की अध्यक्षता ने मानवीय गतिविधियों के कारण पैदा होने वाले पर्यावरणीय मुद्दों से निपटने और जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए एक प्रबंधन प्रणाली को अपनाने पर महत्व दिया है, ताकि इन दोहरी चुनौतियों का सामना किया जा सके. इन मुद्दों को आर्कटिक से संबंधित जलवायु और पर्यावरण के बारे में जानकारी के आधार को बढ़ाकर, साथ ही आर्कटिक से जुड़े विभिन्न आंकड़ों तक पहुंच और उनके उपयोग में सुधार के माध्यम से संबोधित किया जाना है. ब्लैक कार्बन एवं मीथेन उत्सर्जन को कम करने पर भी बल दिया गया है. ऐसा करने पर समुद्र में जमी हुई बर्फ़ के तेज़ी से पिघलने से रोका जा सकता है.
तीसरा क्षेत्र, सतत आर्थिक विकास है, जिसके अंतर्गत ब्लू इकोनॉमी, टिकाऊ नौवहन, हरित संक्रमण और आर्कटिक फूड प्रणालियों को नॉर्वे सरकार द्वारा प्राथमिकताओं के रूप में चिन्हित किया गया है. ओस्लो इसके लिए न केवल आर्थिक सहयोग को मज़बूत करने के लिए आर्कटिक इकोनॉमिक काउंसिल के साथ काम करेगा, बल्कि आर्कटिक उद्योगों के लिए सर्वोत्तम प्रथाओं, नए तकनीक़ी समाधानों और मानकों को साझा करने के लिए भी प्रोत्साहित करेगा. सबसे ख़ास बात यह है कि नॉर्वे टिकाऊ आर्थिक विकास और स्थानीय स्तर पर जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन के लिए स्थानीय लोगों की पारंपरिक जानकारी पर भी ज़ोर देगा.
नॉर्वे की प्राथमिकता वाला दूसरा क्षेत्र जलवायु और पर्यावरण है. उल्लेखनीय है कि आर्कटिक का क्षेत्र उम्मीद से ज़्यादा तेज़ी के साथ गर्म हो रहा है.
नॉर्थ में लोगों द्वारा इन सभी का पालन किया जाना चौथी प्राथमिकता है. जिस प्रकार से जलवायु परिवर्तन आर्कटिक में निवास करने वाले समुदायों के रहने के तरीक़े को परिवर्तित कर देता है और उनकी आजीविका को प्रभावित करता है, ऐसे में नॉर्वे इस प्रकार के "लचीले, विविधिता पूर्ण और समावेशी आर्कटिक समुदायों को विकसित करना चाहता है, जो सभी के लिए रहने के आकर्षक स्थान हों." आर्कटिक परिषद की कार्यप्रणाली में युवाओं को शामिल करने और उन्हें आर्कटिक यूथ कॉन्फ्रेंस के तहत एक मंच देकर नॉर्वे की अध्यक्षता का प्रमुख फोकस युवाओं पर भी होगा. नॉर्वे ने आर्कटिक में सार्वजनिक स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को भी परस्पर जोड़ने का काम किया है. नॉर्वे इस परिघटना का अध्ययन और इसके बारे में पता लगाने के लिए आर्कटिक देशों के सहयोग से "आर्कटिक ह्यूमन बायोबैंक्स का नेटवर्क" स्थापित करने की उम्मीद करता है.
आर्कटिक काउंसिल की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक यह है कि यह राष्ट्रों, स्थानीय लोगों और समुदायों समेत स्थायी प्रतिभागियों के रूप में क्षेत्र के प्रमुख हितधारकों को एक मंच पर लेकर आती है. इसने आर्किटिक परिषद की एक ऐसी विशिष्ट पहचान को सामने लाने का काम किया है, जिसमें न केवल आर्कटिक के दो हिस्से (रूस और पश्चिम) सहयोग करते हैं, बल्कि जहां आर्कटिक से जुड़े मुद्दों को संबोधित करने के लिए स्वदेशी या स्थानीय नज़रियों को भी उचित स्थान दिया गया है. पिछले ढाई दशकों में देखा जाए तो आर्किटक काउंसिल ने जलवायु परिवर्तन जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों को सामने लाने के साथ ही उन्हें विस्तृत तरीक़े से प्रस्तुत करने का अहम कार्य पूरी ज़िम्मेदारी से किया है. आर्कटिक परिषद ने सहयोग को बढ़ावा देने के लिए मैरीन बायो-डायवर्सिटी मॉनिटरिंग या आर्कटिक माइग्रेटरी बर्ड्स इनीशिएटिव जैसे विभिन्न कार्य समूहों, पहलों और परियोजनाओं को शुरू किया है. वर्षों से पर्यवेक्षकों के रूप में गैर-आर्कटिक देशों और गैर-सरकारी किरदारों को शामिल करने के लिए इसका विस्तार भी हुआ है और इस प्रक्रिया के अंतर्गत आर्कटिक से जुड़े मुद्दों पर बातचीत एवं सहयोग के लिए यह सबसे अहम मंच के रूप में भी उभर कर सामने आया है.
नॉर्वे की अध्यक्षता की सफलता न सिर्फ़ रूस के साथ इसके जुड़ाव पर निर्भर करेगी, बल्कि इस बात पर भी निर्भर करेगी कि वह किस प्रकार से बाक़ी सदस्य देशों के बीच काउंसिल की गतिविधियों को लेकर संवाद को सुगम बनाने का कार्य करेगा.
हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में रूस और पश्चिम के बीच बढ़ते मतभेदों की वजह से आर्कटिक में तनाव बढ़ गया है. देखा जाए तो आर्कटिक मुद्दों को हाई पॉलिटिक्स यानी देश के अस्तित्व के लिए बेहद ज़रूरी राजनीति के दृष्टिकोण के ज़रिए देखने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, जिसके कारण सतत विकास पर सुरक्षा संबंधी विचार हावी होते जा रहे हैं. यूक्रेन संकट ने पश्चिम और रूस के बीच बिगड़ते संबंधों के फलस्वरूप आर्कटिक के सुरक्षाकरण पर नए सिरे से चर्चा-परिचर्चा शुरू की है. जबकि आर्कटिक भू-राजनीतिक मुक़ाबलों के लिए कोई नया नहीं है, आर्कटिक काउंसिल इस प्रकार की भिन्नताओं के लिए और परिषद की गवर्नेंस की संरचनाओं को कमज़ोर करने के लिए आवश्यक रूप से मंच नहीं रही है. ज़ाहिर है कि मार्च 2022 में आर्कटिक परिषद के कामकाज के निलंबन के कारण इस मंच पर गैर-सुरक्षा मामलों पर सहयोग का विचार और भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता को बाहर रखने का विचार एक लिहाज़ से समाप्त हो गया.
नॉर्वे आर्कटिक काउंसिल की अध्यक्षता कर रहा है, ऐसे में उसे अपनी प्राथमिकताओं और क्षेत्र में भू-राजनीति के बीच संतुलन स्थापित करते हुए आगे बढ़ना होगा. ओस्लो की आर्कटिक काउंसिल की अध्यक्षता के दौरान चार मुद्दों एवं क्षेत्रों से संबंधित प्राथमिकताएं, आर्कटिक के लिए नॉर्वे की दीर्घकालिक प्राथमिकताओं को स्पष्ट तौर पर सामने लाती हैं, साथ ही उसकी आर्कटिक नीतियों के भी अनुरूप हैं. ज़ाहिर है कि ये नीतियां जानकारी एवं ज़िम्मेदार व टिकाऊ प्रबंधन के सिद्धांतों पर आधारित हैं. नॉर्वे के लिए चुनौती अपनी प्राथमिकताओं पर ध्यान केंद्रित करने और अपने अन्य भागीदारों के साथ काम करने की होगी, हालांकि यह आर्कटिक के सबसे बड़े देश यानी रूस की भागीदारी के बग़ैर बेहद मुश्किल होने वाला है. ऐसा इसलिए है क्योंकि आर्कटिक परिषद में नॉर्वे इसके सबसे बड़े राष्ट्र यानी रूस की भागीदारी के बिना कोई भी कार्य आगे नहीं बढ़ा सकता है. रूस में आर्कटिक महासागर के समुद्र तट का 53 प्रतिशत हिस्सा है और दुनिया भर में आर्कटिक में रहने वाली लगभग आधी आबादी है. पूरे क्षेत्र में सैन्य और नागरिक उपस्थिति के अपने लंबे इतिहास के कारण आर्कटिक भी मास्को की राष्ट्रीय प्राथमिकताओं का एक आंतरिक हिस्सा है. इतना ही नहीं रूस एकमात्र ऐसा आर्कटिक देश भी है, जो दिन-प्रतिदिन के आधार पर क्षेत्र के विशिष्ट मुद्दों को संभालने में व्यापक रूप से संलग्न है.
पश्चिम और रूस के बीच सहयोग की किसी भी प्रकार की गैरमौज़ूदगी का क्षेत्र के भीतर खोज व बचाव, पर्यावरण एवं वैज्ञानिक अध्ययन और डेटा संग्रह से लेकर स्वदेशी लोगों तक के लिए शुरू की गई विभिन्न पहलों और कार्यक्रमों पर गंभीर असर पड़ेगा. ऐसे में जबकि आर्कटिक परिषद ने भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धाओं में शामिल नहीं होने के अपने निर्णय को बरक़रार रखा है, काउंसिल के सदस्यों के बीच मौज़ूदा संबंध और तनाव नॉर्वे की दो साल की अध्यक्षता के कार्यकाल के दौरान अपने एजेंडे को पूरा करने में सबसे बड़ी बाधा साबित होंगे. यही कारण है कि नॉर्वे की अध्यक्षता की सफलता न सिर्फ़ रूस के साथ इसके जुड़ाव पर निर्भर करेगी, बल्कि इस बात पर भी निर्भर करेगी कि वह किस प्रकार से बाक़ी सदस्य देशों के बीच काउंसिल की गतिविधियों को लेकर संवाद को सुगम बनाने का कार्य करेगा.
अंकिता दत्ता ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम की फेलो हैं.
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Ankita Dutta was a Fellow with ORFs Strategic Studies Programme. Her research interests include European affairs and politics European Union and affairs Indian foreign policy ...
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