Published on Mar 13, 2019 Updated 0 Hours ago

आर्कटिक में महान शक्तियों के बीच टकराव कम करने में ‘छोटे’ नायकों की लीडर के तौर पर भूमिका महत्वपूर्ण रही है। इसकी वजह से आर्कटिक काउंसिल की चर्चा बेहद क्षेत्रीय और मुद्दा आधारित हो गई है।

क्या आर्कटिक काउंसिल की सफलता दक्षिण एशिया में दोहराई जा सकती है?

नॉर्वे के ट्रोम्सो में वार्षिक आर्कटिक फ़्रंटियर्स सम्मेलन के उद्घाटन से पहले दोपहर में शहर के मेयर ने आर्कटिक मेयर्स फ़ोरम की मेज़बानी की, जिसमें नॉर्वे, डेनमार्क, कनाडा, स्वीडन, आइसलैंड और संयुक्त राज्य अमेरिका के आर्कटिक शहरों के मेयर एक साथ इकट्ठा हुए। दो आर्कटिक देशों फ़िनलैंड और रूस की अनुपस्थिति के बावजूद यह एक आश्चर्यजनक विकास था। यह पेशावर, काठमांडु, श्रीनगर, ल्हासा, गैंगटोक, थिम्पू और काबुल के मेयर अपने विभिन्न पहाड़ी समुदायों के मुद्दे पर एक साथ बैठकर चर्चा कर सकते है।

दोनों क्षेत्रों के बीच कई महत्वपूर्ण समानताएं हैं। आर्कटिक और हिंदू कुश हिमालय (HKH) दोनों ही क्षेत्र जलवायु परिवर्तन से गंभीर रूप से प्रभावित हैं। दोनों ही क्षेत्र आठ देशों से घिरे हुए हैं, जिनमें कुछ बहुत शक्तिशाली हैं और एक-दूसरे के प्रति कोई नरम रुख़ नहीं है। दोनों ही क्षेत्र चीन के प्रभाव को एक नायक के तौर पर देख रहे हैं जो सिस्टम में बहुत ज़्यादा उलझा हुआ है। जहां हिमालय क्षेत्र में चीन ने अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए अपने पश्चिमी इलाके के इन्फ़्रास्ट्रक्चर में भारी निवेश किया है, विशेषकर तिब्बती पठार और मध्य एशियाई देशों की सीमा से सटे इलाक़ों में चीन का निवेश ख़ूब चर्चित है, हालांकि तुलनात्मक तौर पर आर्कटिक और “पोलर बेल्ट ऐंड रोड” पर चीन के श्वेत पत्र पर बहुत कम चर्चा हुई है।

आर्कटिक और हिंदू कुश हिमालय (HKH) दोनों ही क्षेत्र जलवायु परिवर्तन से गंभीर रूप से प्रभावित हैं। दोनों ही क्षेत्र आठ देशों से घिरे हुए हैं, जिनमें कुछ बहुत शक्तिशाली हैं और एक-दूसरे के प्रति कोई नरम रुख़ नहीं है। दोनों ही क्षेत्र चीन के प्रभाव को एक नायक के तौर पर देख रहे हैं जो सिस्टम में बहुत ज़्यादा उलझा हुआ है।

आर्कटिक में पिघलती बर्फ़ तेल और खनिज की खोज के लिए शिपिंग में नए हितों को बढ़ावा दे रही है, और यह फ़िशिंग पर एक बड़ा प्रभाव डालेगा। रूस और नॉर्वे द्वारा संयुक्त रूप से संचालित कॉड स्टॉक भी इसमें शामिल है, जो दुनिया का सबसे बड़ा दीर्घकालिक फ़िशिंग स्टॉक है। दो साल पहले हेरिंग मछली के बाद अब व्हेल मछली के ग्रुप ट्रोम्सो से ग़ायब हो गए। अब ये दोनों उत्तर की ओर आगे बढ़ गए हैं, क्योंकि वॉर्मिंग समुद्र हेरिंग को उत्तर की ओर ले जाता है।

कुछ भी हो, हिंदू कुश हिमालय में चुनौतियां ज़्यादा हैं। क्षेत्र के ग्लेशियर्स, उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों के बाद दुनिया का सबसे बड़ा बर्फ़ का भंडार मैदानी इलाक़ों की तुलना में तेज़ी से पिघल रहा है। ये बर्फ़ पिघलकर सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेकांग बेसिन जैसी ट्रांसबाउंड्री नदियों के साथ-साथ चीन की येलो और यांग्त्ज़ी नदियों को भी पानी देता है।

क़रीब 2 बिलियन लोगों पर उनके भविष्य का सीधा प्रभाव पड़ेगा, साथ ही साथ उस गणित को भी बदल देगा जिसके आधार पर हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र से सीमा लगनेवाले सभी आठ देशों- अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, चीन, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और म्यांमार में हाइड्रोपावर और कृषि बांध बनाए जा रहे हैं। हिमालय दुनिया के सबसे युवा और सबसे नाज़ुक पर्वतों में एक है। क्लाइमेट वार्मिंग के परिणामस्वरूप बाढ़ और सूखे की वजह से इस क्षेत्र में रहनेवाले सभी लोगों के जीवन और आजीविका के लिए जोखिम बढ़ रहे हैं।

आर्कटिक के साथ, हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र की नगरपालिकाएं सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं, साथ ही साथ संकट के समय सबसे पहले उत्तरदाता भी। फिर भी आर्कटिक की तुलना में पर्वतीय इलाक़ों के मेयरों के साथ बैठने की संभावना दूर-दूर तक नहीं दिखती है। इसके कारणों में से एक यह है कि एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है जिसके अंतर्गत हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र के मेयर मिल सकते हैं और वो आर्कटिक काउंसिल की तरह बातचीत कर सकते हैं, जिसका आर्कटिक के सभी आठ देशों द्वारा बहु-स्तरीय प्रतिनिधित्व है। लेकिन आर्कटिक परिषद की सफलता कुछ बहुत ही सरल विचारों पर आधारित है जिन्हें हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र में दोहराया जा सकता है।

आर्कटिक परिषद का गठन दो अंतर-संबंधित स्तंभों पर टिकी हुई है: पर्यावरण पर एक शोध-आधारित फोकस, और एजेंडा से सुरक्षा नीति के मुद्दों का स्पष्ट बहिष्कार।

सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण, आर्कटिक परिषद का गठन दो अंतर-संबंधित स्तंभों पर टिकी हुई है: पर्यावरण पर एक शोध-आधारित फोकस, और एजेंडा से सुरक्षा नीति के मुद्दों का स्पष्ट बहिष्कार। आर्कटिक काउंसिल एक डी ज्यूरेंस गवर्नेंस बॉडी नहीं है, क्योंकि इसमें केवल आम सहमति से काम होता है और इसमें किसी भी सदस्य को कुछ भी करने, या उन्हें किसी भी तरीक़े से मंज़ूरी देने के लिए बाध्य करने की शक्ति नहीं है। इसने उन मुद्दों को संकुचित कर दिया जिन पर काउंसिल ने शुरू में ध्यान केंद्रित किया था, और इसे उस विश्वास के निर्माण की अनुमति दी थी जिस पर इसकी वास्तविक प्रशासनिक शक्ति टिकी हुई है।

दूसरा पहलू यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन ऑन द लॉ ऑफ़ द सी (UNCLOS) है, जिसका सभी पक्ष सम्मान करते हैं। काउंसिल के सबसे शक्तिशाली सदस्य संयुक्त राज्य अमेरिका ने अभी इस संधि की पुष्टि नहीं की है, लेकिन फिर भी इसके प्रावधानों के मुताबिक़ काम करता है। इसी तरह आर्कटिक पर चीनी श्वेत पत्र स्पष्ट रूप से UNCLOS के प्रति निष्ठा रखने या उसका पालन करने की इसकी चाहत को बयां करता है। दक्षिण चीन सागर में जटिल मुद्दों को देखते हुए और उस संबंध में चीन का लॉ ऑफ़ द सी को ख़ारिज करना  दो बड़े देशों — अमेरिका और चीन द्वारा असुविधाजनक अंतरराष्ट्रीय संधियों को ख़ारिज करने की प्रवृति पर एक करारी टिप्पणी है। रूस का ज़िक़्र न कर, जिसने हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मानकों को चुनौती दी है, इस तरह के शासक गठबंधन के दायरे में एक साथ लाया जा सकता है।

जवाब का एक हिस्सा महत्वाकांक्षाओं को कम रखने और ग़ैर महाशक्ति देशों द्वारा प्रवचन के तौर पर लगता है। ज़्यादातर आर्कटिक देश NATO का हिस्सा हैं, लेकिन रूस भी इसमें शामिल है। बहुत महत्वपूर्ण छोटे राज्यों में से एक नॉर्वे की आर्कटिक मामलों में बहुत सक्रिय भूमिका इस बिंदू की व्याख्या करता है। नॉर्वे की सुरक्षा अमेरिकी सेना द्वारा की जा रही है, लेकिन इसने संयुक्त रूप से रूस के साथ विश्व के सबसे बड़े कॉड स्टॉक का प्रबंधन किया है, तब जबकि शीत युद्ध जारी था और रूस सोवियत संघ में प्रमुख नायक था। इतिहास की लंबी भूमिका रही है, उत्तर में नॉर्वे के लोग इस तथ्य को जानते थे कि नाज़ी पॉवर का पहला रोलबैक तब हुआ जब सोवियत ने नाज़ी अधिकृत नेज़ोनल सैमलिंग पार्टी को हटा दिया और फिर क्रेमलिन के आदेशों पर अपने बॉर्डर पर चले गए। उत्तर में अक्सर सामी के मूल निवासियों के प्रभुत्व में रहनेवाले छोटे शहर आधुनिक युग में सीमाओं के सख़्त होने से पहले सदियों तक हिमालयी राज्यों में कुछ देशी समुदायों की तरह सीमाओं पर व्यापार करते रहे हैं।

इतिहास की लंबी भूमिका रही है, उत्तर में नॉर्वे के लोग इस तथ्य को जानते थे कि नाज़ी पॉवर का पहला रोलबैक तब हुआ जब सोवियत ने नाज़ी अधिकृत नेज़ोनल सैमलिंग पार्टी को हटा दिया और फिर क्रेमलिन के आदेशों पर अपने बॉर्डर पर चले गए।

आर्कटिक में महान शक्तियों के बीच टकराव कम करने में ‘छोटे’ नायकों की लीडर के तौर पर भूमिका महत्वपूर्ण रही है। इसकी वजह से आर्कटिक काउंसिल की चर्चा महान शक्तियों की प्रतिद्वंद्विता में फंसने के बजाय बेहद क्षेत्रीय और मुद्दा आधारित हो गई है।

संगठन के सभी स्तरों पर चार्टर में स्वदेशी लोगों का प्रतिनिधित्व, मंत्रिस्तरीय से लेकर राजदूत तक और विशेषज्ञ समूहों तक मदद करता है, क्योंकि यह समुदायों को सबसे अधिक प्रभावित करता है और अधिकतर चर्चाओं में उन्हें केंद्र में रखता है। यह हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र से बहुत अलग है। एक वरिष्ठ चीनी टिप्पणीकार ने कहा था, “अगर हम कुछ भी करते हैं तो उसे संदेह की नज़र से देखा जाएगा।” यह दक्षिण एशिया और यहां तक कि पाकिस्तान में भारतीय पहल के लिए भी उतना ही सच है।

दूसरा पहलू सुरक्षा संबंधी उच्च राजनीति को काउंसिल की कार्यवाही से अलग रखने में एक “चरम अनुशासन” है। इसे बेहतर ढंग से इस बात से समझा जाता है कि आर्कटिक एक क्षेत्र है, जो समुद्र से घिरा हुआ है, और जो एक क्षेत्र में होता है वह बाक़ी हिस्सों को बहुत जल्दी प्रभावित करता है।

क्या इस तरह का मॉडल हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र में दोहराया जा सकता है? इसकी संभावना बहुत ही कम है। काठमांडु स्थित इंटरनेशनल सेंटर फ़ॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट द्वारा समन्वित हिंदू कुश हिमालय मॉनिटरिंग और असेस्मेंट प्रोग्राम ने 4 फ़रवरी 2019 को अपनी रिपोर्ट रिलीज़ की। क्लाइमेट चेंज और हिंदू कुश हिमालयन क्षेत्र में सतत विकास लक्ष्यों की पूर्ति के लिए अब तक की सबसे बड़ी कोशिश की सबसे व्यापक रिपोर्ट है। महत्वपूर्ण रूप से यह रिपोर्ट उस क्षेत्र के नेताओं के अनुरोध पर आई, जिनमें से सभी का ICIMOD में औपचारिक, सरकारी स्तर पर प्रतिनिधित्व है। जैसे-जैसे इस रिपोर्ट के आंकड़े विभिन्न देशों की विकास रणनीतियों का हिस्सा बनते हैं, हम देखेंगे कि क्या हिमालय के देश आर्कटिक काउंसिल की सफलता को दोहरा सकते हैं।


ओमैर अहमद द थर्ड पोल में एक एडिटर हैं, जो दक्षिण एशिया के जल विवाद पर लिखते रहते है।

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