Author : Abhijit Singh

Published on Jul 29, 2023 Updated 0 Hours ago

“क्वॉड “चारों देशों के लिए आपसी फ़ायदे और दुनिया के हित के लिए आपसी सहयोग सुनिश्चित करने का एक मंच है. शीत युद्ध के ज़माने की गुटबंदी नेटो के विपरीत, क्वॉड भविष्य की ओर देखने वाला संगठन है.”

#Maritime Diplomacy: क्वॉड की सफलता का आधार बन सकती है समंदर से जुड़ी कूटनीति
#Maritime Diplomacy: क्वॉड की सफलता का आधार बन सकती है समंदर से जुड़ी कूटनीति

सितंबर 2021 में भारत और ऑस्ट्रेलिया (India-Australia) के बीच पहली बार मंत्रिस्तरीय 2+2 बैठक हुई थी. उस मीटिंग में भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर (S. Jaishankar) ने क्वॉड को लेकर एक अहम सफ़ाई दी थी. दरअसल चीन लगातार क्वॉड को “एशिया के नेटो” के तौर पर प्रचारित करने की जुगत लगाता आ रहा था. मीडिया में इस तरह की ख़बरों पर प्रतिक्रिया देते हुए एस. जयशंकर ने कहा था कि ऐसा लगता है कि ये “असलियत को तोर-मरोड़कर पेश करने” की कोशिश है.[1] उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि क्वॉड “चारों देशों के लिए आपसी फ़ायदे और दुनिया के हित के लिए आपसी सहयोग सुनिश्चित करने का एक मंच है. शीत युद्ध के ज़माने की गुटबंदी नेटो के विपरीत क्वॉड भविष्य की ओर देखने वाला संगठन है. ये वैश्वीकरण का प्रतीक है, जो दुनिया के देशों की मिल-जुलकर काम करने की बाध्यताओं को दर्शाता है.” [2]

 “चारों देशों के लिए आपसी फ़ायदे और दुनिया के हित के लिए आपसी सहयोग सुनिश्चित करने का एक मंच है. शीत युद्ध के ज़माने की गुटबंदी नेटो के विपरीत क्वॉड भविष्य की ओर देखने वाला संगठन है. 

जयशंकर की सफ़ाई का चीन पर असर नहीं

स्वाभाविक रूप से जयशंकर की सफ़ाई का चीन के नीति-निर्माताओं पर कोई ख़ास असर नहीं हुआ. सितंबर 2021 में न्यूयॉर्क में क्वॉड देशों का शिखर सम्मेलन आयोजित हुआ. पहली बार चारों देशों के नेताओं की आमने-सामने मीटिंग हुई. इस सम्मेलन से ठीक पहले चीन के प्रवक्ता ने क्वॉड की आलोचना करते हुए इसे “एक तीसरे देश को निशाना बनाने के मक़सद से बनाया गया गिरोह” करार दिया.[3] चीनी अधिकारी के मुताबिक इस समूह की “फ़िज़ूल सोच और वैचारिक पूर्वाग्रह क्षेत्रीय राज्यसत्ताओं के बीच भरोसा क़ायम करने और तालमेल बिठाने के हिसाब से नामुनासिब हैं.”

हालांकि, चीनी अधिकारियों द्वारा क्वॉड का विरोध किए जाने की ये कोई पहली घटना नहीं थी. मार्च 2021 में पहली बार क्वॉड के बैनर तले नेताओं के स्तर पर शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया था. सम्मेलन के बाद नेतृत्व-स्तरीय विज्ञप्ति और बयान भी जारी किए गए थे. दरअसल, उस समय से ही चीन क्वॉड और उसके सदस्यों के बीच बढ़ती गर्मजोशी को लेकर चिंतित नज़र आने लगा है.[4] मुक्त और खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर क्वॉड नेताओं द्वार बढ़-चढ़कर किए गए दावे और प्रतिबद्धताएं उस वक़्त कुछ हद तक कोरी बयानबाज़ी लग रही थी. बहरहाल, मार्च 2021 के बाद से क्वॉड देशों के बीच नौसैनिक जुड़ावों में काफ़ी बढ़ोतरी हो चुकी है. इससे चीनी पर्यवेक्षकों को ये साफ़ हो गया है कि क्वॉड का फ़ौजी स्वरूप एशियाई समंदर में चीन की हसरतों के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो सकता है.

 अक्टूबर 2021 में भारत ने भी अपनी तीनों सेनाओं के साझा अभ्यास में यूनाइटेड किंगडम की रॉयल नेवी के साथ नौसैनिक अभ्यास में हिस्सा लिया. ज़ाहिर तौर पर इन तमाम घटनाक्रमों से चीन के कान खड़े होना लाज़िमी है. 

इसमें कोई शक़ नहीं है कि क्वॉड देशों की नौसेनाओं के बीच बढ़ता तालमेल सबके सामने ज़ाहिर हो चुका है. नवंबर 2020 से रॉयल ऑस्ट्रेलिया नेवी भी बंगाल की खाड़ी में भारत, जापान और अमेरिका के साझा मालाबार अभ्यासों में हिस्सा लेने लगी है.[5] इस बीच क्वॉड के भागीदार देशों के बीच बहुपक्षीय नौसैनिक जुड़ावों के अनेक उदाहरण भी सामने आने लगे हैं. अप्रैल 2021 में क्वॉड से जुड़ी ताक़तों ने पूर्वी हिंद महासागर में फ़्रांस के साथ ला पेरूज़ अभ्यास में भी हिस्सा लिया था. आम तौर पर ये बहुत बड़ी क़वायद होती है. इसके तहत जटिल पारस्परिक अभ्यास किए जाते हैं. इनमें कैरियर स्ट्राइक ग्रुप्स, पनडुब्बियों को निशाना बनाने वाले लड़ाकू विमानों और लड़ाकू पनडुब्बियों का इस्तेमाल किया जाता है.[6] अगस्त 2021 में क्वॉड देशों की नौसेनाओं ने पश्चिमी प्रशांत के गुआम तट के क़रीब मालाबार 2021 अभ्यास का पहला चरण शुरू किया था.[7] और तो और अक्टूबर 2021 में भारत ने भी अपनी तीनों सेनाओं के साझा अभ्यास में यूनाइटेड किंगडम की रॉयल नेवी के साथ नौसैनिक अभ्यास में हिस्सा लिया. ज़ाहिर तौर पर इन तमाम घटनाक्रमों से चीन के कान खड़े होना लाज़िमी है. इसके अलावा इसी कालखंड में अमेरिका, यूके और ऑस्ट्रेलिया ने भी एक नई त्रिपक्षीय गुटबंदी (ऑकस, AUKUS) का एलान कर दिया. इस गुटबंदी से ऑस्ट्रेलिया को परमाणु क्षमता से लैस पनडुब्बियां हासिल करने में मदद मिलेगी. ऐसे में चीन के कई विश्लेषकों का विचार है कि क्वॉड को लेकर उनकी चिंताएं सच साबित हो रही हैं.[8]

चीन को आईना दिखाने वाली नीति

हालांकि, ये बात सच है कि भारत में भी कई विश्लेषक क्वॉड को लेकर चीन के आकलनों से सहमत दिखाई देते हैं. भारत के राजनीतिक पर्यवेक्षकों और विदेश नीति से जुड़े विश्लेषकों का मानना है कि मालाबार नौसैनिक अभ्यासों में ऑस्ट्रेलिया को शामिल किया जाना क्वॉड को एक नया फ़ौजी आयाम देने से भी कहीं आगे की क़वायद है. दरअसल ये साफ़ तौर से चीन के ख़िलाफ़ एकजुट संकल्प का संकेत देता है. [9] ज़ाहिर है कि भारत हिंद महासागर में चीन की एकतरफ़ा आक्रामकता से निपटने के लिए अपने साथी देशों के साथ एकजुटता दिखा रहा है. भारतीय विश्लेषक ज़ोर देकर कहते हैं कि भारत को अब पश्चिमी प्रशांत में चीन को आईना दिखाने वाली नीति और तौर-तरीक़े अपनाने से भी कोई परहेज़ नहीं है. कुछ पर्यवेक्षक तो तटीय इलाक़ों में भारत द्वारा और भी आक्रामक नीतियां अपनाए जाने की वक़ालत करते हैं. उनका कहना है कि भारतीय नौसेना को “पूर्वी हिंद महासागर में चीनी तेल टैंकरों की आवाजाही को रोकने या प्रतिबंधित करने” के बारे में गंभीरता से विचार करना चाहिए.[10]

इन बातों का मक़सद महज़ शेखी बघारने से कहीं बढ़कर है. भारत के सामरिक मसलों से ताल्लुक़ रखने वाले कई लोगों का मानना है कि चीन और भारत के बीच सामुद्रिक प्रतिस्पर्धा के हालात को टालना नामुमकिन है.[11] उनका विचार है कि हिंद महासागर में चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की नौसैनिक शाखा (PLAN) की विस्तारवादी हरकतों का देर सवेर भारतीय हितों से टकराव होना तय है. यथार्थवादियों का तर्क है कि भारत के पड़ोस में अपना दबदबा क़ायम करने की चीनी जद्दोजहद के चलते सामुद्रिक संघर्ष के हालात बनने से रोक पाना असंभव है.

हालांकि, इन तमाम वास्तवकिताओं के बावजूद अंडमान सागर में आक्रामक भारतीय रणनीति के रास्ते में कई तरह की पेचीदगियां होने के पूरे आसार हैं. पहली बात ये है कि शांति काल में ‘व्यापारिक जंग’ अक्सर बेअसर रहती है. ऐसे में हिंद महासागर में चीनी जहाज़ों को रोकने की भारत की किसी भी क़वायद से क्षेत्रीय स्तर पर भारत को प्रतिरोध का सामना करना पड़ सकता है. आसियान और बंगाल की खाड़ी में स्थित देश नियमित तौर पर जहाज़ों की आवाजाही में खलल डालने की ऐसी किसी कार्रवाई को शत्रुतापूर्ण हरकत के तौर पर देखेंगे. इन कार्रवाइयों से इलाक़े के तटस्थ देशों की परेशानियां बढ़ जाएंगी. ज़ाहिर है उन्हें ये हालात कतई गवारा नहीं होंगे. अंडमान सागर में चीनी तेल टैंकरों को निशाना बनाए जाने से पश्चिमी प्रशांत में भारतीय जहाज़ों की आवाजाही के लिए भी गंभीर हालात खड़े हो सकते हैं. वैसे मोटे तौर पर चीन की नौसेना अब तक भारतीय हितों और दायरों से उचित दूरी बनाकर रखती आई है. दक्षिण चीन सागर में अपने तमाम आक्रामक पैंतरों के बावजूद चीनी नौसेना भारत की सामुद्रिक सरहद या विशेष आर्थिक क्षेत्रों में या उनके इर्द-गिर्द किसी तरह की तैनाती से परहेज़ करती रही है. अगर भारत इन समुद्री इलाक़ों में चीनी जहाज़ों की आवाजाही को बाधित करने की कोशिश करता है तो ये तमाम हालात तेज़ी से बदल सकते हैं.

यहां ये ध्यान रखना ज़रूरी है कि चीन की नौसेना (PLAN) दुनिया की दूसरी सबसे ताक़तवर नौसेना है. हिंद महासागर में कामकाज से जुड़ी रसद, समुद्री जहाज़ों पर आधारित हवाई सहायता प्रणाली और ज़मीन पर स्थित सामुद्रिक टोही क्षमताओं के अभाव के चलते चीनी कमांडरों के हाथ बंधे हो सकते हैं. माना कि भारतीय नौसेना चीन की इन कमियों का फ़ायदा उठाने की सोच सकती है लेकिन चीन की जंगी क्षमताओं को कम करके आंकना भारत के लिए बड़ी भूल साबित हो सकती है.

भारतीय नौसेना को जापान, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, फ़्रांस और अमेरिकी नौसेनाओं के साथ और गहरे जुड़ाव बनाने की क़वायद पर पूरी तरह से ध्यान देना चाहिए. पारस्परिक क्रियाशीलता को बढ़ावा देने के साथ-साथ सामरिक रूप से अहम तकनीक हासिल करने के लिहाज़ से भी ये बेहद ज़रूरी है. 

दरअसल इन क़वायदों की बजाए भारतीय नौसेना को बंगाल की खाड़ी में चीनी नौसैनिक गतिविधियों की पड़ताल करने पर और उन पर नज़र रखने पर ज़ोर देना चाहिए. भारत के आसपड़ोस में चीन के फ़ौजी जमावड़े की पहले से ही काट तैयार करने और वैसी किसी परिस्थिति की रोकथाम के लिए ये निहायत ज़रूरी है. दरअसल हाल के वर्षों में चीन की ग़ैर-फ़ौजी तैनातियां ही असल चुनौतियों के रूप में भारत के सामने आती रही हैं. इनमें शोध और सर्वे में शामिल जहाज़, ख़ुफ़िया जानकारियां इकट्ठा कर रहे जहाज़ और पानी के नीचे की तस्वीरें लेने वाले ड्रोन से लैस खनन जहाज़ शामिल हैं. पूर्वी हिंद महासागर में अपनी कमज़ोर रणनीतिक क्षमताओं से पार पाने के लिए चीन ने अपनी महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) से जुड़ी परियोजनाओं के इस्तेमाल पर भी ज़ोर दिया है.[12] ऐसे माहौल में भारतीय नौसेना को बंगाल की खाड़ी में ख़ुफ़िया जानकारियों और सूचनाओं को साझा करने और सामुद्रिक कूटनीति के प्रयासों को तेज़ करने से जुड़ी क़वायदों को प्राथमिकता देनी चाहिए. भारत को ये सुनिश्चित करना होगा कि बंगाल की खाड़ी और हिंद महासागर के क्षेत्र में चीनी मदद से तैयार असैनिक परिसरों का इस्तेमाल चीनी नौसैनिक युद्धपोतों और पनडुब्बियों के लिए आपूर्ति ठिकानों के तौर पर न हो.

भूमि विवाद का शांतिपूर्ण समाधान

बहरहाल भारत में चीन को संदेह की नज़रों से देखने वाले पर्यवेक्षकों को कुछ एहतियात बरतने की ज़रूरत है. भारत और चीन की नौसेना के बीच टकराव को भविष्य की एक लाज़िमी घटना मानकर चलना कतई मुनासिब नहीं होगा. उत्तर के हिमालयी क्षेत्र में द्विपक्षीय स्तर पर चाहे जितने भी तनाव भरे हालात रहे हों लेकिन सामुद्रिक दायरों में एक-दूसरे के हितों के प्रति भारत और चीन मोटे तौर पर सम्मानजनक बर्ताव करते रहे हैं. दोनों ही देश समुद्री सरहदों में जाने-अनजाने होने वाली किसी भी तरह की गरमागरमी के ख़तरों से पूरी तरह से वाक़िफ़ हैं. इस सिलसिले में क्वॉड के तेवरों और पैतरों को किनारे रखकर देखने की ज़रूरत है. भारतीय नौसेना हमेशा से ही दक्षिण चीन सागर के विवादित इलाक़ों के आसपास बहुपक्षीय अभ्यासों के साथ किसी तरह के जुड़ावों से बचती आई है. हिंद महासागर में भी भारतीय नौसेना इसी तरह का एहतियात बरतती रही है. नौसेना ने पूरी कोशिश की है कि वो कोई ऐसा क़दम ना उठाए जिससे चीन के साथ भूमि विवाद का शांतिपूर्ण समाधान सुनिश्चित करने की कोशिशों में और पेचीदगियां पैदा हों.

निश्चित रूप से हिंद महासागर में क्वॉड के जुड़ाव दोस्ताना नौसैनिक ताक़तों के साथ सहयोग की आदतों के विकास के लिहाज़ से उपयोगी साबित हो सकते हैं. भारतीय नौसेना को जापान, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, फ़्रांस और अमेरिकी नौसेनाओं के साथ और गहरे जुड़ाव बनाने की क़वायद पर पूरी तरह से ध्यान देना चाहिए. पारस्परिक क्रियाशीलता को बढ़ावा देने के साथ-साथ सामरिक रूप से अहम तकनीक हासिल करने के लिहाज़ से भी ये बेहद ज़रूरी है. हालांकि इसके साथ-साथ भारतीय नौसैनिक नेतृत्व को सामुद्रिक कूटनीति की अहमियत भी समझनी होगी. इस वक़्त भारत और चीन दोनों ही लद्दाख के विवादित सरहदी इलाक़ों में शांति समझौते की कोशिशों में लगे हैं. ऐसे में समुद्री दायरों में चीन को उकसाने या टकराव को न्योता देने के मकसद से फ़ौजी तौर-तरीक़ों वाली कोई भी कार्रवाई नहीं होनी चाहिए.

ये लेख ओआरएफ़ की स्पेशल रिपोर्ट नं. 161, द राइज़ एंड राइज़ ऑफ़ द ‘क्वॉड’: सेटिंग एन एजेंडा फ़ॉर इंडिया का हिस्सा है.

Endnotes

[1] Quad looks into future, say India and Australia, rebuff China”, Times of India, September 12, 2021.

[2] “Quad looks into future”

[3] China slams upcoming in-person Quad summit in Washington”, Hindustan Times, September 14, 2021.

[4]  “Quad meet: China says ‘exclusive blocs’ should not ‘target third party”, The Hindu, March 12, 2021.

[5] Navies of India, US, Japan, Australia conclude phase 1 of Malabar 2020 naval exercise”, The Economic Times, November 7, 2020.

[6] Quad navies join France-led drills in Indian Ocean”, Hindustan Times, April 5, 2021.

[7] Quad navies begin 4-day Malabar exercise off Guam”, The Hindu, August 26, 2021.

[8] Australia to get nuclear-powered submarines as first initiative of AUKUS”, Hindustan Times, September 16, 2021.

[9]  C Raja Mohan, “Consolidation of the Quad reflects Delhi’s political will to break free from old shibboleths”, November 3, 2020, Indian Express.

[10] Raja Menon, “This is how Indian defence can really deter China”, Indian Express, July 24, 2021.

[11] Sriram Chaulia, “Malabar 2021 and Beyond: India’s Naval Pushback Against China, The Diplomat, September 12, 2021,

[12] Abhijit Singh, “Rules-Based Maritime Security in Asia: A View from New Delhi”, Occasional Paper 266, Observer Research Foundation, August 17, 2020.

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