सहकारी बैंकों में होने वाले धांधली को रोकने के लिए केंद्र सरकार बैंकिग विनियमन अधिनियम 1949 में संशोधन कर चुकी है. केंद्र सरकार का यह फैसला देश में हुए धोखाधड़ी एवं गंभीर वित्तीय अनियमितताओं के कई मामलों के बाद आया है, जिसमें वर्ष 2019 का पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव (पीएमसी) बैंक घोटाला भी शामिल है. पीएमसी बैंक सहित देश में कुछ और सहकारी बैंकों में हुए करोड़ो के घोटालें जिससे लाखों ग्राहक प्रभावित हुए तथा पिछले कुछ सालों में जिस तरह से बैंकों में घोटालों और गड़बड़ियों का खुलासा होता रहा है. उससे आम लोगों का बैंकों से भरोसा उठ गया है. सहकारी बैंकों में लोग खाता खुलवाना इसलिए पसंद करते है क्योंकि सहकारी बैंक दूसरे व्यावसायिक बैंकों की तुलना में ज्यादा ब्याज़ देते है. इसलिए छोटे कारोबारियों से लेकर सेवानिवृत्त लोग अपनी जीवनभर की कमाई को इन बैंकों में एफडी के रूप में रखते है और एफडी का ब्याज़ ही इनकी आमदनी का मुख्य ज़रिया होता है. ऐसे में अगर पैसा मिलना बंद हो जाये तो कैसे-कैसे गंभीर संकटों से दो-चार होना पड़ता है इसको हम मुंबई में हुए पीएमसी बैंक घोटालें के ग्राहकों को हम देख चुके है.
भविष्य में सहकारी बैंकों में होने वाले ऐसे घोटालों की घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए हाल ही में केंद्र सरकार ने सहकारी बैंकों के 8.6 करोड़ खाताधारकों के हितों की रक्षा के लिए सभी शहरी सहकारी बैंकों और बहु-राज्यीय सहकारी बैंकों को रिज़र्व बैक की निगरानी में लाने वाले बैंकिग नियमन (संशोधन) अध्यादेश, 2020 को मंजूरी दे दी है. यह संशोधन राज्य सहकारी कानून के तहत राज्य सहकारी समिति पंजीयक की मौजूदा शक्तियों को प्रभावित नहीं करता है सहकारी बैंक उनके संगठन, उद्देश्यों, मूल्यों और शासन के आधार पर वाणिज्यिक बैंकों से भिन्न होते हैं. सहकारी बैंकों का स्वामित्व और नियंत्रण सदस्यों द्वारा ही किया जाता है, जो लोकतांत्रिक रूप से निदेशक मंडल का चुनाव करते हैं. ये भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा विनियमित किये जाते हैं एवं बैंकिग विनियमन अधिनियम 1949 के साथ-साथ बैंकिग कानून अधिनियम 1965 के तहत आते हैं. ये संबंधित राज्यों के सहकारी समिति अधिनियम या बहु-राज्यीय सहकारी समिति अधिनियम, 2002 के तहत पंजीकृत होते हैं.
यह अध्यादेश बैंकिग विनियमन अधिनियम 1949 की धारा 45 में भी संशोधन करता है, ताकि जनता, जमाकर्ताओं और बैंकिग प्रणाली के हितों की रक्षा के लिए किसी भी बैंकिग कंपनी के पुनर्गठन या विलय की योजना बनाई जा सके. उल्लेखनीय है कि भारत में 1482 शहरी सहकारी बैंक एवं 58 बहु-राज्यीय सहकारी बैंक हैं. इन बैंकों के पास 8.6 करोड़ रुपए का एक जमाकर्त्ता आधार (Depositor Base) है जिससे इन बैंकों में 4.84 लाख करोड़ रुपए के रूप में एक बड़ी राशि की बचत है.
सहकारी बैंक प्रणाली में कॉर्पोरेट प्रशासन की कमी एक गंभीर समस्या रही है. केंद्रीय कैबिनेट ने सहकारी बैंकों को पूरी तरह आरबीआई के अधीन लाने के फैसले पर मुहर लगाकर इस समस्या को ख़त्म कर दिया है
सहकारी बैंकों के आरबीआई के प्रत्यक्ष नियंत्रण में आने से दोहरे नियमन की समस्या से छुटकारा मिल जायेगा अभी तक इनका नियमन और नियंत्रण रिजर्व बैंक के अधीन होता था लेकिन इसका प्रशासन राज्य सरकार के अधीन आने वाली सहकारी कंपनियों के निबंधक (आरसीएस) के हाथ में होता था. इसके अतिरिक्त RBI के पास सहकारी बैंक के पुनर्निर्माण से संबंधित एक प्रवर्तनीय योजना बनाने का अधिकार नहीं था. इस दोहरे विनियमन नियम के कारण इनके प्रबंधन में ऐसी कई समस्याएं आती थी जिनपर अब विराम लग जाएगा. सहकारी बैंक प्रणाली में कॉर्पोरेट प्रशासन की कमी एक गंभीर समस्या रही है. केंद्रीय कैबिनेट ने सहकारी बैंकों को पूरी तरह आरबीआई के अधीन लाने के फैसले पर मुहर लगाकर इस समस्या को ख़त्म कर दिया है. आरबीआई के द्वारा योग्य और उपयुक्त क्षमता के आधार पर मुख्य कार्यकारी अधिकारी की नियुक्ति किये जाने से बैंकों की प्रशासनिक कुशलता में सुधार आएगा जिससे प्रबंधन की मनमानी कम होगी तथा मुख्य कार्यकारी अधिकारी की व्यक्तिगत तौरपर ज़िम्मेदारी भी बढ़ेगी.
केंद्र सरकार का यह निर्णय RBI को वाणिज्यिक बैंकों की तर्ज पर सभी शहरी एवं बहु-राज्यीय सहकारी बैंकों को विनियमित करने का अधिकार देगा. यह सभी शहरी एवं बहु-राज्यीय सहकारी बैंकों के जमाकर्त्ताओं को अधिक सुरक्षा प्रदान करेगा. सरकार द्वारा लाये गए इस अध्यादेश का मकसद अन्य बैंकों के संबंध में आरबीआई के पास पहले से उपलब्ध शक्तियों को सहकारी बैंकों तक बढ़ाकर उनके कामकाज और निगरानी में सुधार और श्रेष्ठ बैंकिग नियमन लागू करके, और पेशेवर आचरण सुनिश्चित करके तथा पूंजी तक पहुंच में उन्हें सक्षम बनाकर, जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा करना और सहकारी बैंकों को मजबूत बनाना है पहले सहकारी बैंक सामान्तयः आरबीआई के द्वारा जारी किये गए जिन दिशा निर्देशों को सलाह या सुझाव के तौरपर लेती थी. अब उन्हें उन दिशा निर्देशों का अनिवार्य रूप से पालन करना होगा. इससे सहकारी बैंकों की ज़वाबदेही बढ़ेगी तथा सावधानी बरतने के लिए बनाये गए आवश्यक नियमों के उल्लंघन में कमी आएगी. सहकारी बैंकों के कामकाज में अब राज्य सरकार का रोल काफी हद तक कम होगा यानी जंहा अब राज्य की भूमिका केवल चुनाव तक सिमट कर रह जाएगी. वहीं प्रबंधन के कामकाज तक में आरबीआई का दखल बढ़ेगा. आरबीआई के इस एकल नियंत्रण से तथा निगरानी की इस नयी बढ़ी हुयी शक्ति से सहकारी बैंकों के कार्यशैली व प्रबंधन में सुधार एंवम पारदर्शिता बढ़ेगी. अब सहकारी बैंकों में राजनैतिक हस्तक्षेप कम होगा जिससे निष्पक्ष तरीके से गुणवत्ता के आधार पर ऋण वितरण संभव हो पायेगा. नियमित रूप से प्रतिवर्ष ऑडिट होने से बैंकों में होने वाली अनियमितताओं की जानकारी जल्दी मिल पायेगी तथा आरबीआई के नए बढे अधिकार क्षेत्र के कारण जो जाँच पहले सालों दर साल लटकती रहती थी. अब वो समय से पूरी हो पायेगी तथा पाए गए दोषियों को सजा भी मिल पायेगी और ऐसे उदाहरण भविष्य में सहकारी बैंकों के कार्यबल को अपनी जिम्मेदारियों के प्रति अधिक सचेत और सावधान रखने में मददगार साबित होंगे. बड़े शहरी सहकारी बैंकों को वाणिज्यिक बैंक से अलग तरीके से संचालित व् नियमित करने का कोई औचित्य नहीं बनता है क्योंकि ये बैंक भी शहरी क्षेत्रों में वाणिज्यिक बैंकों कि तरह ही काम करते है और ऋण देते है. अंतर केवल इतना होता है कि वाणिज्यिक बैंक बड़े ऋण देते है और सहकारी बैंक छोटे ऋण देते है.
सहकारी बैंकों के कामकाज में अब राज्य सरकार का रोल काफी हद तक कम होगा यानी जंहा अब राज्य की भूमिका केवल चुनाव तक सिमट कर रह जाएगी. वहीं प्रबंधन के कामकाज तक में आरबीआई का दखल बढ़ेगा
भविष्य में सहकारी बैंकों को विकास को ध्यान में रखते हुए एक सीमा के ऊपर उनकी पूंजी बढ़ने के साथ उन्हें छोटे वित्त बैंक में परिवर्तित कर इन्हे वाणिज्यिक बैंकों के नियमों के अंतर्गत संचालित कर इनकी रोज़मर्रा के कामों में गुणवत्ता को बढ़ाया जा सकता है. इससे इनकी निगरानी भी आसान हो जाएगी तथा जिस तरह क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की संख्या को उनके विलय के द्वारा कम करके उन्हें वाणिज्यिक बैंकों के अंतर्गत कर उनमें बेहतर कार्यशैली तथा प्रबंधन अपनाया गया उसी तरह सहकारी बैंकों के विलयन के बाद इनकी संख्या को सीमित कर इन्हे भी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के अंतर्गत लाने पर सरकार को विचार करने की आवश्यकता है. इससे इनके रोज़मर्रा के कार्य को बेहतर ढंग से प्रभावी बनाने में मदद मिलेगी तथा इनका नियमित निरीक्षण, ऑडिट तथा नियुक्ति जैसे कार्यों को आसानी से किया जा सकता है जिससे सहकारी बैंक पूरी तरह वाणिज्यिक बैंक के तौर पर काम कर सकेंगे. क्योंकि रिज़र्व बैंक के पास देश में इतनी बड़ी संख्या में उपलब्ध सहकारी बैंकों की इस अतिरिक्त संख्या के नियमित निरीक्षण, ऑडिट, नियुक्ति (निदेशक व् मुख्य कार्यकारी अधिकारी) तथा प्रभावी ढंग से हो रहे अनियमितताओं की जानकारी तथा जाँच करने के लिए मानव संसाधन पर्याप्त नहीं है.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.