Author : Rumi Aijaz

Published on Nov 22, 2021 Updated 0 Hours ago

जल आपूर्ति का मसला लगातार बना हुआ है. इसे देखते हुए पानी के प्रशासनिक और नागरिक दुरुपयोग में कमी लाने के उपाय लागू करने ज़रूरी हैं.

शहरों के नियोजित इलाकों में जल आपूर्ति की चुनौतियां

कुछ भारतीय शहरों में, जो लोग नियोजित आवासीय कॉलोनियों में रह रहे हैं उन्हें अपनी रोजमर्रा की खपत के लिए म्युनिसिपल एजेंसियों से पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं मिल रहा है. हालांकि, इन कॉलोनियों में जल आपूर्ति का बुनियादी ढांचा मौजूद है और पाइपों में पानी छोड़ा जाता है, फिर भी ज़्यादातर घरों को पानी की कमी की समस्या का सामना करना पड़ता है. स्थिति का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि समस्या की वजह आपूर्ति एजेंसी के पास पानी की कम उपलब्धता होना उतना नहीं है, जितना कि प्रशासनिक कुप्रबंधन और नागरिक दुरुपयोग. लिहाजा, स्थिति सुधरने के बजाय साल-दर-साल खराब हुई है. तकरीबन 15-20 साल पहले, निवासियों की कम संख्या के कारण पानी की मांग कम थी, और आपूर्ति के साथ-साथ जिस प्रेशर पर पानी मिलता था उसे ठीकठाक माना जाता था. उस वक्त, पानी हर दिन मिलता था, आपूर्ति का समय भी तय था, और चूंकि प्रेशर अच्छा रहता था पानी को छतों पर बने स्टोरेज या टैंकों में चढ़ाने के लिए इलेक्ट्रिक पंप की जरूरत नहीं पड़ती थी. मगर, बीतते वक्त के साथ स्थिति बदल गयी है. जैसे-जैसे आबादी बढ़ी, पानी की मांग भी बढ़ती गयी. इस बदलाव को समझने के लिए, पानी की आपूर्ति और उसके उपभोग के लिए अपनाये जा रहे तौर-तरीकों से जुड़े कुछ दिलचस्प तथ्य यहां पेश किये जा रहे हैं.

आम तौर पर, म्युनिसिपल एजेंसी द्वारा उपभोक्ताओं तक पानी पहुंचाने के लिए सुबह, दोपहर, शाम- दिन में तीन बार पाइप नेटवर्क में पानी पंप किया जाता है. हालांकि, अगर एक साल की अवधि के दौरान की स्थिति की समीक्षा की जाए, तो इस पैटर्न में बड़ा उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है. कभी पानी दिन में तीन बार मिलता है, तो कभी नहीं. उपभोक्ताओं को जलापूर्ति के समय के बारे में न तो सूचित रखा जाता है और न ही अपडेट, नतीजतन लोग अनिश्चित रहते हैं कि उन्हें तय वक्त पर पानी मिलेगा या नहीं. इतना ही नहीं, जलापूर्ति दिन में कितनी बार होगी, यह पूरे साल के दौरान बदलता रहता है. मानसून के मौसम में इसमें बढ़ोतरी हो जाती है, और साल के दूसरे वक्त में इसमें काफी गिरावट आ जाती है. गर्मी के महीनों में सबसे खराब स्थिति होती है क्योंकि उस वक्त खपत बहुत ज़्यादा होती है और आपूर्ति दयनीय.

जलापूर्ति की अवधि को लेकर भी बहुत कम स्पष्टता रहती है. उपभोक्ता यह नहीं जानते कि उन्हें तय समय पर कितनी देर तक पानी मिलेगा. नगरीय जलापूर्ति कभी आधे घंटे के लिए मिलती है, तो कभी महज पांच या दस मिनट के लिए. इतने कम समय में, उपभोक्ताओं के लिए अपनी जरूरतों को पूरा करना या पानी को स्टोर करना मुश्किल हो जाता है.

इसी तरह, जलापूर्ति की अवधि को लेकर भी बहुत कम स्पष्टता रहती है. उपभोक्ता यह नहीं जानते कि उन्हें तय समय पर कितनी देर तक पानी मिलेगा. नगरीय जलापूर्ति कभी आधे घंटे के लिए मिलती है, तो कभी महज पांच या दस मिनट के लिए. इतने कम समय में, उपभोक्ताओं के लिए अपनी जरूरतों को पूरा करना या पानी को स्टोर करना मुश्किल हो जाता है. मानसून के मौसम के दौरान, आपूर्ति अनियमित और लंबे समय के लिए होती है. कम प्रेशर होने की वजह से भी जलापूर्ति पर असर पड़ता है. आम तौर पर, घरों के जो नलके दो फुट या उससे ज़्यादा ऊंचाई पर होते हैं, उनमें पानी नहीं आ पाता. जब आता भी है, तो पानी की धार बेहद पतली होती है. इतने कम प्रेशर पर होने वाली आपूर्ति उपभोक्ताओं को छत की टंकी में या फिर बरतनों में पानी स्टोर नहीं करने देती.

जो पानी मिलता है उसकी गुणवत्ता चिंता का बड़ा विषय है, क्योंकि इसका असर उपभोक्ताओं की सेहत पर पड़ सकता है. कई बार पानी में बुरी गंध होती है. पाइपों के नगरीय नेटवर्क में बहने वाला पानी दूषित हो जाता है. ऐसा पाइपलाइनों में लीकेज की वजह से उसमें सीवेज और कीचड़ घुसने की वजह से होता है. पानी को उपचारित करने की प्रक्रिया में आपूर्ति एजेंसी द्वारा क्लोरीन के अत्यधिक इस्तेमाल से पानी का स्वाद भी प्रभावित होता है. पानी की घटिया गुणवत्ता और स्वास्थ्य चिंताओं के मद्देनजर, घरों में पानी शुद्ध करनेवाले उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता है और पीने के पानी की जरूरत के लिए बोतलबंद पानी खरीदा जाता है.

घरों में अमल में लाये जानेवाले तौर-तरीके

जलापूर्ति की टाइमिंग, उसकी फ्रीक्वेंसी, अवधि, प्रेशर और गुणवत्ता को लेकर पानी से जुड़ी चिंताओं के मद्देनज़र, बहुत से घरों ने इन समस्याओं से निपटने के लिए कदम उठाये हैं. इसके लिए अमल में लाये जाने वाले कुछ तौर-तरीकों का नीचे जिक्र किया जा रहा है.

जिस वक्त तक पानी पाइपलाइनों से होते हुए घरों तक पहुंचता है, उसकी मात्रा और प्रेशर काफी कम हो चुका होता है. ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि बहुत से उपभोक्ताओं ने म्युनिसिपल पाइपलाइन से शक्तिशाली इलेक्ट्रिक मोटर पंप सीधे जोड़े रखे हैं. उनके परिसर में जहां पाइपलाइन घुसती है, वहीं पर पंप लगाये गये हैं, ताकि जोर से पानी खींचा जा सके. इस तरीके से, सामान्य आपूर्ति के जरिये जितना पानी मिलता, उसके मुकाबले कहीं ज़्यादा मात्रा में पानी हासिल किया जाता है. सप्लाई लाइनों से जबरिया पानी खींचे जाना पानी के दूषित होने की वजह बनता है, क्योंकि इस प्रक्रिया में अशुद्धियां खींचकर पाइपलाइन नेटवर्क में चली आती हैं. इसके अलावा, पाइपलाइनें पुरानी, जंग खायी हुई, और दरारों से भरी हैं. पाइप के जरिये आनेवाले नगरपालिका के पानी में सबसे ज़्यादा कीचड़ मानसून के मौसम में रहता है, क्योंकि बहुत सी जगहों पर जलजमाव हो जाता है और कीचड़ दरारों के जरिये पाइपलाइनों में घुस जाता है.

बहुत से घरों में लोग इलेक्ट्रिक मोटर पंप का इस्तेमाल कर म्युनिसिपल पाइपलाइनों से पानी खींचने के पक्ष में नहीं हैं. उनकी नजर में यह अनैतिक है. लेकिन, वे ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि उन्हें सामान्य आपूर्ति प्रक्रिया के जरिये पानी नहीं मिल पाता है.

बहुत से घरों में लोग इलेक्ट्रिक मोटर पंप का इस्तेमाल कर म्युनिसिपल पाइपलाइनों से पानी खींचने के पक्ष में नहीं हैं. उनकी नजर में यह अनैतिक है. लेकिन, वे ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि उन्हें सामान्य आपूर्ति प्रक्रिया के जरिये पानी नहीं मिल पाता है. नगरपालिका का जो उपचारित जल लोगों को मिलता है, उसका इस्तेमाल पीने और दूसरी जरूरतों के लिए किया जाता है, जिनमें खाना पकाना, नहाना, गाड़ी व ड्राइव-वे को धोना और बागवानी शामिल हैं. कई घर इस पानी का इस्तेमाल बगल के खाली पड़े प्लॉट में सब्जियां उगाने के लिए करते हैं, जिससे कि खपत बहुत ज़्यादा बढ़ जाती है. इसके अलावा, कुछ घरों ने अपनी जरूरतें पूरी करने के वास्ते भूगर्भीय जल निकालने के लिए बोरवेल करा रखा है. इलेक्ट्रिक पंप का इस्तेमाल कर जबरन पानी खींचने, खाली प्लॉटों में सब्जियां उगाने, और बोरवेल खुदवाने की क़ानून के तहत इजाज़त नहीं है, क्योंकि ये आसपास की जलापूर्ति को गंभीर रूप से बाधित करते हैं. हालांकि, पानी के इस दुरुपयोग क ख़िलाफ प्रशासन शायद ही कभी कोई कार्रवाई करता है.

जल सेवा बेहतर बनाने के लिए उठाये गये कदम

इन सबके बावजूद, जल सेवा मुहैया कराने में दक्षता सुनिश्चित करने के लिए कुछ कदम उठाये जाते देखे गये हैं. नगरपालिका की वेबसाइट उपभोक्ताओं को अपनी शिकायतें दर्ज कराने और उन पर हुई प्रगति को जानने का मौका देती है. आम तौर पर, सरल शिकायतों पर सबसे पहले ध्यान दिया जाता है. मसलन, पानी की कमी झेल रहे घरों तक टैंकर भेजे जाते हैं. लेकिन पानी की गुणवत्ता, प्रेशर, पाइपलाइन में लीकेज जैसी जटिल शिकायतों की अमूमन अनदेखी कर दी जाती है.

इसके अलावा, म्युनिसिपल एजेंसी जलापूर्ति की टाइमिंग को लेकर प्रयोग करती रहती है. कभी-कभी जलापूर्ति नेटवर्क में अजीबोगरीब वक्त, जैसे आधी रात को, पानी पंप किया जाता है. क्योंकि उस वक्त लोग सो रहे होते हैं और इलेक्ट्रिक पंप बंद रहते हैं. उस वक्त मिलने वाला पानी गुणवत्ता और प्रेशर के लिहाज से बेहतर होता है, और जलापूर्ति का यह तरीका समानतापूर्ण वितरण में मददगार होता है. यानी, नगरपालिका का पानी सभी घरों तक पहुंचता है और जमीन पर बने और/या भूमिगत टैंकों को (पूर्ण या आंशिक रूप से) भर देता है. एक और संस्थागत तरीका यह अपनाया जाता है कि जलापूर्ति के समय के दौरान तकरीबन आधे घंटे के लिए उस इलाके की बिजली काट दी जाती है. इस कदम का मक़सद यह होता है कि नगरपालिका द्वारा पाइप नेटवर्क में पानी छोड़े जाने के समय उपभोक्ता अपने इलेक्ट्रिक मोटर पंप न चला पाएं. इस तरह, जब बिजली विभाग द्वारा विद्युत आपूर्ति बंद की जाती है, तो नगरपालिका का पानी हर घर तक पहुंच पाता है.

नगरपालिका की वेबसाइट उपभोक्ताओं को अपनी शिकायतें दर्ज कराने और उन पर हुई प्रगति को जानने का मौका देती है. आम तौर पर, सरल शिकायतों पर सबसे पहले ध्यान दिया जाता है. 

निष्कर्ष

पानी की आपूर्ति और उसकी खपत के मौजूदा तौर-तरीकों (जैसा कि ऊपर जिक्र किया गया है) की समीक्षा के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि नागरिकों को आपूर्ति के लिए जलापूर्ति एजेंसी द्वारा अभी अपनाया जा रहा तरीका बस कामचलाऊ है और लंबा चलने वाला नहीं है. यह घरों तक नियमित, पर्याप्त और इस्तेमाल के लिए सुरक्षित पानी की आपूर्ति सुनिश्चित नहीं करता. यह भी देखा गया है कि कुछ घरों में होने वाला दुरुपयोग पानी तक सभी की समान पहुंच के मुद्दे को और गंभीर बना देता है. मौजूदा हालात ये मांग करते हैं कि जलापूर्ति एजेंसी के कामकाज में सुधार हो, साथ ही उपभोक्ताओं द्वारा होने वाला दुरुपयोग रोकने के लिए उचित उपाय लागू किये जाएं. इस संबंध में कुछ सुझाव नीचे दिये जा रहे हैं. म्युनिसिपल एजेंसी द्वारा प्रति व्यक्ति जलापूर्ति के मानदंड का पालन किया जाना चाहिए. हर घर से उन्हें मिले पानी की मात्रा और गुणवत्ता का फीडबैक एकत्र किया जाना चाहिए.

पानी की आपूर्ति किये जाने का समय तय होना चाहिए, और जो टाइम टेबल फाइनल हुआ है उसी के मुताबिक म्युनिसिपल एजेंसी को नेटवर्क में पानी छोड़ना चाहिए. जलापूर्ति के समय को लेकर उपभोक्ताओं को सूचित रखा जाना चाहिए.

पाइपलाइनों में पानी के प्रेशर, नेटवर्क में लीकेज, साथ ही साथ स्टोरेज टैंकों और पाइपलाइनों में पानी की गुणवत्ता पर नजर रखने के लिए म्युनिसिपल एजेंसी द्वारा उपयुक्त प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. म्युनिसिपल एजेंसी को दिन के वक्त लंबी अवधि के लिए जलापूर्ति सुनिश्चित करनी चाहिए, और 24X7 जलापूर्ति की दिशा में बढ़ने के लिए काम करना चाहिए. इस संदर्भ में, उसे संभावित सार्वजनिक स्थानों पर रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम स्थापित करने के लिए कदम उठाने चाहिए, और इस तरह के सिस्टम लगाने में दिलचस्पी रखनेवाले उपभोक्ताओं की मदद करनी चाहिए. साथ ही, सारे अपशिष्ट/निकास जल को उपचारित कर उसका इस्तेमाल पीने के अलावा बाकी उपभोक्ता जरूरतों को पूरा करने के लिए करना चाहिए.

पानी के दुरुपयोग के नकारात्मक प्रभावों के बारे में उपभोक्ताओं के बीच जागरूकता पैदा की जानी चाहिए. म्युनिसिपल एजेंसी को उपभोक्ताओं द्वारा किये जानेवाले उल्लंघनों, जैसे कि इलेक्ट्रिक मोटर पंप का इस्तेमाल, बोरवेल बनवाने वगैरह, को रोकने के लिए नियमित जांच-पड़ताल करनी चाहिए. यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि हर घर में वाटर मीटर बिठाये जाएं, और पानी के लिए शुल्क पानी की मात्रा की खपत के आधार पर लगाये जाएं, न कि प्रॉपर्टी के आकार के आधार पर.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.