Published on Nov 22, 2021 Updated 0 Hours ago

कोविड-19 के बाद के दौर में, जैसे-जैसे हिंद प्रशांत क्षेत्र की परिकल्पना रफ़्तार पकड़ रही है, वैसे वैसे भारत इस क्षेत्र के पड़ोसी देशों के साथ संवाद बढ़ाकर अपनी भूमिका बढ़ा रहा है.

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत: चीन, कोविड-19 और क्षेत्रीय व्यवस्था में आया बदलाव

हिंद प्रशांत क्षेत्र एक विशाल बाज़ार होने के साथ साथ दुनिया का सबसे व्यस्त समुद्री परिवहन क्षेत्र है. यहां पर बाहर के देशों के साथ-साथ ऐसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं वाले देश स्थित हैं, जो हिंद प्रशांत क्षेत्र की शांति और स्थिरता में साझीदार हैं. ऐसे में हैरानी की बात नहीं है कि साझा हितों और चिंताओं को देखते हुए, हिंद प्रशांत क्षेत्र में कई तरह के द्विपक्षीय, बहुपक्षीय और सीमित संवाद और सहयोग के मंच उभर रहे हैं. इसके साथ ही जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत जैसे देशों से ये उम्मीद भी बढ़ी है कि वो इस क्षेत्र में अपनी मौजूदगी और संवाद को बढ़ाएं, और ऐसा करने के साथ-साथ अब तक चीन पर बहुत अधिक निर्भर रहे देशों को सहयोग के वैकल्पिक स्रोत मुहैया कराएं. इस संदर्भ में भारत की बढ़ती हुई भूमिका- जो पिछले कुछ वर्षों के दौरान लगातार बढ़ रही है- को समझने और इसका मूल्यांकन करने की ज़रूरत है. क्योंकि इस महामारी ने निश्चित रूप से हिंद प्रशांत क्षेत्र में भारत की भागीदारी की रफ़्तार को बढ़ा दिया है.

प्रभुत्व और ताक़त बढ़ाने में जुटा चीन

2020 के दशक की शुरुआत ऐसे माहौल में हुई थी, जब वैश्विक स्तर पर संस्थागत प्रतिद्वंदिता तेज़ हो चुकी थी. दूसरे विश्व युद्ध के बाद नियमों पर आधारित जो अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था वैश्विक संवाद का माध्यम बनी थी, उसके लिए चीन के लगातार उभार और उसकी दादागीरी के चलते ख़तरा बढ़ता ही जा रहा है. आज न सिर्फ़ पूरे एशिया में, बल्कि विश्व स्तर पर चीन अपना प्रभुत्व और ताक़त बढ़ाने में जुटा हुआ है. ऐसे हालात में दुनिया भर के लिए बड़ी चुनौती के तौर पर आए स्वास्थ्य के संकट ने दुनिया को ऐसी अनिश्चितता की तरफ़ धकेल दिया है, जिसकी कोई उम्मीद नहीं की जा रही थी. महामारी के चलते वैश्विक संवाद और समीकरण भी बदल रहे हैं. साल 2020 की शुरुआत के साथ ही कोविड-19 महामारी ने हिंद प्रशांत क्षेत्र की व्यवस्था में पड़ी दरारों को न सिर्फ़ उजागर किया, बल्कि उन्हें और चौड़ा कर दिया है. हिंद प्रशांत क्षेत्र में पहले ही क्षेत्रीय और वैश्विक ताक़तों के बीच आपसी सहयोग और होड़ लगाने के नए नए जियोपॉलिटिकल समीकरण बन रहे थे. ऐसे में विश्व व्यवस्था में मौजूदा उठा-पटक और ख़लल से निपटने और वैकल्पिक व्यवस्था बनाने की मांग हिंद प्रशांत क्षेत्र से भी उठ रही थी.

हिंद प्रशांत क्षेत्र में पहले ही क्षेत्रीय और वैश्विक ताक़तों के बीच आपसी सहयोग और होड़ लगाने के नए नए जियोपॉलिटिकल समीकरण बन रहे थे. ऐसे में विश्व व्यवस्था में मौजूदा उठा-पटक और ख़लल से निपटने और वैकल्पिक व्यवस्था बनाने की मांग हिंद प्रशांत क्षेत्र से भी उठ रही थी.

अब जबकि हिंद प्रशांत क्षेत्र का निर्माण रफ़्तार पकड़ चुका है. तो भारत भी इस सच को स्वीकार करके अपने संसाधन और नीतिगत ढांचे के ज़रिए इस क्षेत्र में अपनी भूमिका और संवाद को बढ़ा रहा है. इसी वजह से हिंद प्रशांत क्षेत्र के लिए भारत का ज़ोर, आज सकारात्मक समुद्री नीति और नौसेना की भूमिका बढ़ाने के साथ-साथ साझा हितों वाले साझेदारों के साथ रिश्ते मज़बूत बनाने पर है. महामारी के चलते हुई उठा-पटक और इससे निपटने के लिए भारत की कोशिशों के चलते हिंद प्रशांत क्षेत्र में भी भारत का कद और संवाद बढ़ा है.

चीन जिस तरह से महाद्वीपों और समुद्री व्यापारिक मार्गों का निर्माण कर रहा है, उसका मक़सद बंगाल की खाड़ी और हिंद प्रशांत क्षेत्र के देशों को चीन की अर्थव्यस्था से और क़रीब से जोड़ने के साथ-साथ, ऐसे व्यापारिक मार्गों की स्थापना करना है, जिससे चीन के लिए हिंद प्रशांत, यूरोप और अफ्रीका तक पहुंचना आसान हो जाए. चीन लगातार अपने लक्ष्य हासिल करने में जुटा हुआ है. लेकिन, इस बात पर भी ध्यान देने की ज़रूरत है कि भारत भी आस-पास के देशों के साथ अपने रिश्तों में नई जान डाल रहा है, और अमेरिका के साथ अपने रिश्तों को और नज़दीकी बनाने के साथ-साथ, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसी मध्यम दर्जे की ताक़तों के साथ भी अपने रिश्ते को मज़बूत कर रहा है. भारत को अंदाज़ा है कि वो पैसे के मामले में चीन का मुक़ाबला नहीं कर सकता है. लेकिन, भारत के पास अपने पड़ोसी देशों के साथ सभ्यता और सांस्कृतिक विरासत वाले संबंधों की बढ़त है. ये भारत की ऐसी पूंजी है, जो चीन के पास नहीं है (मुलेन ऐंड पॉपलिन 2015).

 

इन बातों से इतर हिंद प्रशांत क्षेत्र एक ऐसी भौगोलिक आर्थिक हक़ीक़त है, जिसको आधार बनाकर चीन अपनी ताक़त बढ़ा रहा है. हालांकि, हिंद प्रशांत की परिकल्पना के बारे में अक्सर ये कहा जाता है कि ये चीन के उभार का नतीजा है. लेकिन ये तर्क ग़लत है. इसी वजह से इस क्षेत्र के देशों के बीच आपस में और बाहर के देशों के साथ सहयोग और निर्भरता भी क़ुदरती तौर पर आगे बढ़ रही है. जापान, सिंगापुर और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश, पहले भी यहां अलग अलग स्तर पर सक्रिय रहे हैं. लेकिन भारत की क्षमता और यहां पर ज़्यादा बड़ी भूमिका निभाने का इरादा कई तरह से हिंद प्रशांत क्षेत्र की बढ़ती अहमियत के हिसाब से ही है.

हिंद प्रशांत की परिकल्पना के बारे में अक्सर ये कहा जाता है कि ये चीन के उभार का नतीजा है. लेकिन ये तर्क ग़लत है. इसी वजह से इस क्षेत्र के देशों के बीच आपस में और बाहर के देशों के साथ सहयोग और निर्भरता भी क़ुदरती तौर पर आगे बढ़ रही है.

मिसाल के तौर पर भारत और अमेरिका के बीच सामरिक साझेदारी, जो मुख्य रूप से रक्षा संबंधों के ज़रिए मज़बूत हो रही है, वो आज भारत के क्षेत्रीय प्रतिद्वंदियों के ख़िलाफ़ संतुलन बनाने का काम करती है. अमेरिका के साथ रिश्तों का विस्तार उन हालात में हो रहा है, जब चीन साउथ चाइना सी और हिंद महासागर क्षेत्र में ज़्यादा आक्रामक गतिविधियां कर रहा है. समुद्री क्षेत्र के अलावा 2014 के बाद से भारत ने अपनी नए रंग रूप वाली एक्ट ईस्ट पहल, नेबरहुड फर्स्ट और सागर (SAGAR) नीतियों के ज़रिए पूर्वी और दक्षिणी पूर्वी एशियाई देशों के साथ भी संवाद को नई ऊंचाई दी है. ये सहयोग ज़्यादातर समुद्री क्षेत्र पर केंद्रित रहा है. भारत ने अपने हितों और इरादों को साफ़ करते हुए, न केवल वियतनाम, इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया और जापान जैसे देशों के साथ अपनी साझेदारी को आगे बढ़ाया है, बल्कि पूरब पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित करने के लिए आसियान जैसे क्षेत्रीय संगठन के साथ भी सहयोग को मज़बूत कर रहा है. ये व्यापक पूर्वी पड़ोसी क्षेत्र के साथ और नज़दीक से जुड़ने की भारत की पहले की हिचक और अक्षमता से ठीक उलट है.

 

नई दक्षिणी नीति और एक्ट ईस्ट नीति के मायने

जापान के साथ भारत के नज़दीकी रिश्ते रहे हैं. इसके अलावा हिंद प्रशांत क्षेत्र को लेकर दोनों देशों का नीतिगत नज़रिया भी एक जैसा ही रहा है. इसके चलते दोनों देश क़ुदरती साझीदार बन गए हैं. भारत और जापान न केवल, क्षेत्रीय संगठनों के सदस्य हैं, बल्कि दोनों ही देशों ने इस क्षेत्र के किसी तीसरे देश में भी मूलभूत ढांचे के विकास की परियोजनाओं में सहयोग करने का इरादा जताया है. भारत ने ताइवान की नई दक्षिण की तरफ़ ध्यान केंद्रित करने की नीति में भी दिलचस्पी दिखाई है और ताइवान के साथ व्यापार, निवेश, शिक्षा और पर्यटन में सहयोग को और आगे बढ़ाकर रिश्तों को और बेहतर बनाने का इरादा ज़ाहिर किया है. यहां पर इस बात का भी ज़िक्र ज़रूरी हो जाता है कि कोविड-19 महामारी के दौरान ताइवान ने भी अहम भूमिका निभाई है. इसी तरह दक्षिण कोरिया की ‘नई दक्षिणी नीति’ के कई पहलू भारत की एक्ट ईस्ट नीति से मेल खाते हैं. इसके अलावा, मुक्त एवं स्वतंत्र हिंद प्रशांत क्षेत्र को लेकर भी दोनों देशों के विचार काफ़ी मिलते हैं. ऑस्ट्रेलिया के साथ नज़दीकी संबंधों से भी भारत की सामरिक भूमिका और मज़बूत हुई है. 2020 में दोनों ही देशों ने अपने रिश्तों को व्यापक सामरिक साझेदारी के रूप में और ऊंचा दर्ज़ा दिया था. इसी तरह भारत, अफ्रीकी महाद्वीप में भी लगातार अपनी मौजूदगी बढ़ाने की कोशिश कर रहा है.

जापान के साथ भारत के नज़दीकी रिश्ते रहे हैं. इसके अलावा हिंद प्रशांत क्षेत्र को लेकर दोनों देशों का नीतिगत नज़रिया भी एक जैसा ही रहा है. इसके चलते दोनों देश क़ुदरती साझीदार बन गए हैं.

भारत न केवल हिंद प्रशांत क्षेत्र के सक्रिय और इच्छुक भागीदार के तौर पर उभरा है. बल्कि, उसने दवाओं के निर्माण की अपनी क्षमता का इस्तेमाल करते हुए दवाओं की आपूर्ति से लेकर, स्वास्थ्य के क्षेत्र के ज़रूरी सामान और मेडिकल मदद की आपूर्ति कई देशों को करके अपनी ज़िम्मेदारी भरी भूमिका का भी एहसास कराया है. इनके साथ साथ क्वाड इस क्षेत्र में एक ऐसे अहम मंच के रूप में उभरा है, जिससे इस महामारी के दौरान हिंद प्रशांत क्षेत्र में भारत की भूमिका का विस्तार हुआ है. भारत द्वारा निभाई जा रही सकारात्मक भूमिका इस बात का अहम संकेत है कि वो अपनी क्षमता के साथ इस क्षेत्र में भागीदारी की राजनीतिक इच्छाशक्ति रखता है. कई मामलों में भारत की त्वरित और सक्रिय भूमिका उसके अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ-साथ आसियान के साथ बढ़ते सामरिक रिश्तों का नतीजा है. इसके अलावा भारत हिंद प्रशांत क्षेत्र में भी इन देशों के साथ अपने संबंध को मज़बूत बना रहा है.

एक संतुलित ढांचा बनाने की ज़रूरत

इस महामारी से कई सबक़ सीखे जा सकते हैं. संभवत: सबसे अहम सबक़ तो यही है कि लगातार कोशिशों से तमाम क्षेत्रों, सेवाओं और रणनीतियों में लचीलापन लाने की ज़रूरत है. इसमें कोई दो राय नहीं कि महामारी के दूरगामी असर तो इस बात से तय होंगे कि सरकारों द्वारा इससे निपटने के लिए क्या नीतियां और बदलाव किए गए. क्योंकि, महामारी भले ही एक वैश्विक स्वास्थ्य संकट हो, लेकिन इसका असर जीवन के हर पहलू पर पड़ा है और आने वाले कई साल तक हम इसके दूरगामी असर पड़ते देख सकेंगे. इस संदर्भ में भारत की इस क्षेत्र में सीधे भागीदार की भूमिका उसे ऐसे संवाद शुरू करने की बढ़त, और उसमें सहयोग देती है, जिससे सुरक्षा का एक ऐसा संतुलित ढांचा बनाया जा सके, जो पारंपरिक और ग़ैर पारंपरिक सुरक्षा के मसलों से निपटने में सक्षम हो.

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