Author : Khalid Shah

Published on Jan 06, 2021 Updated 0 Hours ago

निश्चल की हत्या ने आलोचनाओं से घिरे डोमिसाइल क़ानून की तरफ़ ध्यान आकर्षित किया है. इस क़ानून का जम्मू-कश्मीर में चौतरफ़ा विरोध हो रहा है.

कश्मीर: श्रीनगर में कारोबारी की हत्या से बढ़ेगा घाटी में ‘स्थानीय-बाहरी’ का विवाद

मुसीबतों का साल 2020 ख़त्म होने से बस कुछ ही घंटे पहले कश्मीर के श्रीनगर शहर के बीचों-बीच एक पंजाबी कारोबारी सतपाल निश्चल की हत्या कर दी गई. जिस तरह से निशाना बनाकर निश्चल की हत्या की गई उससे न सिर्फ़ कश्मीर में साल 2021 में आने वाले ख़तरे के बारे में पता चलता है बल्कि क़रीब तीन दशक पहले की घटनाओं की याद भी आती है, जिसकी वजह से कश्मीरी पंडितों का घाटी से पलायन हुआ और उसके बाद हिंसा की ऐसी शुरुआत हुई जिसका अंत अभी तक नहीं हुआ है. इस तरह निश्चल की हत्या ने नये साल के मौक़े को निराशा से भर दिया है.

शुरुआती रिपोर्ट से पता चला कि “अज्ञात हमलावरों” ने ये हत्या की है. लेकिन जल्द ही नये बने आतंकी संगठन द रेज़िस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ़) ने अपने टेलीग्राम चैनल पर संक्षिप्त बयान जारी कर हमले की ज़िम्मेदारी ले ली. इस बयान में निश्चल की हत्या को 2020 में भारत सरकार द्वारा लागू किए गए नये डोमिसाइल क़ानून से जोड़ा गया. बयान में कहा गया: “डोमिसाइल सर्टिफिकेट मंज़ूर नहीं है और ऐसे लोगों से कब्ज़ा करने वाले की तरह सलूक किया जाएगा. निश्चल ज्वेलर्स ऐसे ही पिट्ठुओं में से एक था. और भी हमले होंगे.”

शुरुआती रिपोर्ट से पता चला कि “अज्ञात हमलावरों” ने ये हत्या की है. लेकिन जल्द ही नये बने आतंकी संगठन द रेज़िस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ़) ने अपने टेलीग्राम चैनल पर संक्षिप्त बयान जारी कर हमले की ज़िम्मेदारी ले ली. 

कुछ घंटों के बाद इस आतंकी संगठन ने एक लंबा बयान जारी किया. फिर श्रीनगर शहर के बीचों-बीच में स्थित कारोबारी की दुकान निश्चल ज्वेलर्स की तस्वीर भी जारी की. तस्वीर के ऊपर लिखा गया था: “डोमिसाइल के चालबाज़. हम तुम्हारा नाम, तुम कहां रहते हो, क्या करते हो सब जानते हैं. हम आ रहे हैं.”

अपने दूसरे बयान में टीआरएफ़ ने दावा किया कि कारोबारी के ऊपर हमला “खुफ़िया जानकारी के आधार पर किया गया ऑपरेशन” था. उसने ये भी आरोप लगाया कि मृत कारोबारी “कश्मीर की डेमोग्राफी बदलने के लिए हिंदू फासीवादी जो परियोजना चला रहे हैं उसका एक सक्रिय भागीदार था.” बयान में आगे ये भी जोड़ा गया था कि कोई भी व्यक्ति जो जम्मू-कश्मीर का डोमिसाइल सर्टिफिकेट चाहता है, उससे आरएसएस के एजेंट की तरह सलूक किया जाएगा. इससे पता चलता है कि आने वाले दिनों में इस तरह की और भी हत्याएं होंगी.

निश्चल की हत्या से 10 दिन पहले एक और नये बने आतंकी संगठन, पीपुल्स एंटी-फासिस्ट फ्रंट ने “बाहरियों” के लिए धमकी जारी की थी. उसने कहा कि “बाहरियों” को जम्मू-कश्मीर में बसने की इजाज़त नहीं दी जाएगी.

मूल रूप से पंजाब के अमृतसर के रहने वाले निश्चल ने हाल ही में श्रीनगर में एक दुकान और एक घर ख़रीदा था. निश्चल की हत्या डोमिसाइल सर्टिफिकेट हासिल करने वाले किसी व्यक्ति पर पहला हमला है. 

टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित एक रिपोर्ट ने तस्दीक की कि निश्चल ने 40 साल तक राज्य में रहने के बाद हाल ही में जम्मू-कश्मीर का डोमिसाइल सर्टिफिकेट हासिल किया था. मूल रूप से पंजाब के अमृतसर के रहने वाले निश्चल ने हाल ही में श्रीनगर में एक दुकान और एक घर ख़रीदा था. निश्चल की हत्या डोमिसाइल सर्टिफिकेट हासिल करने वाले किसी व्यक्ति पर पहला हमला है.

डोमिसाइल सर्टिफिकेट से जुड़ी है हत्या

नये साल की पूर्व संध्या पर हुई इस हत्या ने ये साबित कर दिया कि आतंकी संगठनों के निशाने पर वो व्यक्ति हैं जिन्होंने जम्मू-कश्मीर का डोमिसाइल सर्टिफिकेट हासिल किया है. इस नई वजह ने इस इलाक़े के पहले से जटिल सुरक्षा हालात को और मुश्किल बना दिया है. पिछले साल आतंकी संगठनों ने सुरक्षा बलों के जवानों और आम लोगों, ख़ास तौर पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के कार्यकर्ताओं, पर हमला करने की गुरिल्ला रणनीति अपनाई थी.

राजनीतिक कार्यकर्ताओं पर नये ख़तरे की वजह से जम्मू-कश्मीर पुलिस का काम पहले से ही बढ़ा हुआ था. ख़तरे का सामना कर रहे लोगों और राजनीतिक नेताओं की हिफ़ाज़त का ज़िम्मा उठाने वाली पुलिस की सुरक्षा शाखा पर पहले से ही काफ़ी ज़्यादा बोझ है. पिछले साल पुलिस को पंचों, सरपंचों और बीजेपी के सदस्यों को सुरक्षा के लिए होटल में ले जाना पड़ा. श्रीनगर के कारोबारी की हत्या के बाद सुरक्षा की मांग कई गुना ज़्यादा बढ़ने वाली है और इस तरह किसी व्यक्ति की सुरक्षा और भी मुश्किल हो जाएगी.

हालांकि, सभी राजनीतिक पार्टियों ने इस हत्या की निंदा की है लेकिन बीजेपी अपनी विरोधी पार्टियों की मांग को डोमिसाइल क़ानून के ख़िलाफ़ आतंकी संगठनों और अलगाववादी गुटों की सोच से जोड़कर उन्हें कठघरे में खड़ा करने की कोशिश करेगी.

निश्चल की हत्या ने आलोचनाओं से घिरे डोमिसाइल क़ानून की तरफ़ ध्यान आकर्षित किया है. इस क़ानून का जम्मू-कश्मीर में चौतरफ़ा विरोध हो रहा है. मुख्य़धारा की पार्टियां भी इसके ख़िलाफ़ हैं. नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी जैसी क्षेत्रीय पार्टियों ने इस क़ानून के ख़िलाफ़ बयान जारी किया है. उन्होंने दावा किया कि इस क़ानून का मक़सद केंद्र शासित प्रदेश की डेमोग्राफी बदलना है. यहां तक कि जम्मू क्षेत्र में भी नया क़ानून लागू होने के बाद प्रदर्शन हुए थे.

निश्चल की हत्या के बाद नये डोमिसाइल क़ानून का विरोध करने वाली पार्टियों का रुख़ कमज़ोर हुआ है. आम तौर पर जम्मू-कश्मीर में इस तरह की हत्याएं मीडिया में बड़ा मुद्दा बन जाती हैं लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं हुआ. मगर इस हत्या का राजनीतिकरण ज़रूर होगा. हालांकि, सभी राजनीतिक पार्टियों ने इस हत्या की निंदा की है लेकिन बीजेपी अपनी विरोधी पार्टियों की मांग को डोमिसाइल क़ानून के ख़िलाफ़ आतंकी संगठनों और अलगाववादी गुटों की सोच से जोड़कर उन्हें कठघरे में खड़ा करने की कोशिश करेगी.

बाहरियों को बसाने के खिलाफ़

आतंकी संगठनों, अलगाववादी गुटों और अलगाववादी बुद्धिजीवियों ने नये डोमिसाइल क़ानून को “बाहरियों को बसाने वाला” प्रोजेक्ट बताया है जिसका मक़सद इलाक़े की डेमोग्राफी को बदलना है. इस मामले में उनकी सोच मुख्य़धारा की पार्टियों जैसी है जिन्होंने डेमोग्राफिक बदलाव को लेकर शोरगुल मचाया है.

इस बात में कोई शक नहीं है कि जम्मू-कश्मीर में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की नई लहर आने वाली है. श्रीनगर में हत्या पर बाक़ी देश में ख़राब प्रतिक्रिया होगी और इससे जम्मू-कश्मीर के बाहर रहने वाले कश्मीरी व्यापारियों, छात्रों और परिवारों पर बदले में हमले का जोख़िम बढ़ेगा जैसा कि पुलवामा आत्मघाती हमले के बाद हुआ था. हत्या श्रीनगर के बीचों-बीच हुई थी और उसके बाद सोशल मीडिया पर जिस तरह का दुष्प्रचार किया गया उससे जम्मू-कश्मीर की नई डोमिसाइल नीति के लाभार्थियों के बीच पहले से दहशत है. इससे 90 के दशक की हत्याओं की याद आ गई जिसकी वजह से कश्मीरी पंडियों का पलायन हुआ था.

सोशल मीडिया पर जिस तरह का दुष्प्रचार किया गया उससे जम्मू-कश्मीर की नई डोमिसाइल नीति के लाभार्थियों के बीच पहले से दहशत है. इससे 90 के दशक की हत्याओं की याद आ गई जिसकी वजह से कश्मीरी पंडियों का पलायन हुआ था. 

बीजेपी के लिए डोमिसाइल नीति से पीछे हटना उसके हिंदू-राष्ट्रवादी मतदाताओं पर नकारात्मक असर डालेगा. इसलिए दिल्ली में राजनीतिक नेतृत्व निश्चित रूप से डोमिसाइल नीति के लिए अपना समर्थन फिर से दोहराएगा. इससे उन लोगों पर ख़तरा और बढ़ जाएगा जिन्होंने हाल में जम्मू-कश्मीर का डोमिसाइल दर्जा हासिल किया है. सुरक्षा बलों को आने वाली चुनौतियों के लिए ख़ुद को तैयार करना होगा और सांप्रदायिक तनाव वाले माहौल में आने वाले ख़तरे के लिए रणनीति बनानी होगी. जम्मू-कश्मीर और वहां के लोगों के लिए नया साल अंधेरे की एक और मियाद के साथ आया है.

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