Author : Ayjaz Wani

Published on Sep 20, 2018 Updated 0 Hours ago

क्या जम्मू-कश्मीर सरकार के प्रशासनिक अधिकारी राष्ट्रीय सुरक्षा को दाव पर लगा रहे हैं?

जम्मू-कश्मीर का भ्रष्टाचार राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन रहा

किसी राज्य में जब भ्रष्टाचार काफी जड़ें जमा लेता है तो यह ना सिर्फ राज्य की संस्थाओं और उसके प्रभाव को कम करता है, बल्कि आम जनता में व्यापक गुस्सा और क्षोभ भी पैदा करता है। अगर इसे लगातार कई दशकों तक चलने दिया जाए तो यह एक ऐसे अस्थिर माहौल का निर्माण करता है जो आंतरिक और बाहरी कारकों से होने वाली बाधाओं को नहीं झेल पाता। राज्य के संस्थान अपने नागरिकों का विश्वास खो देते हैं। समाज पर अंकुश रखने के पारंपरिक तरीके क्षीण हो जाते हैं। खास तौर पर संघर्ष वाले क्षेत्रों में भारी भ्रष्टाचार गरीब और खतरे की जद में रहने वाली आबादी को जरूरी सेवाओं से भी वंचित कर देता है। वे लगातार डर और फिरौती के साये में जीते हैं, जबकि अमीर, प्रभावशाली और राजनीतिक लोग इस स्थिति का फायदा अपने पक्ष में आसानी से उठाते रहते हैं। संघर्ष वाले क्षेत्रों में भ्रष्टाचार जब सांस्थानिक स्वरूप ले लेता है तो सामाजिक अशांति और बगावत के लिए एक प्रमुख तत्व बन जाता है और आखिरकार आगे चल कर आतंकवादी संगठनों और विभिन्न देशों में संचालित होने वाले आपराधिक नेटवर्क के हाथ में एक औजार बन जाता है।

जम्मू-कश्मीर जो दुनिया के सर्वाधिक ज्वलंत संघर्ष वाले इलाकों में है, वहां मौजूद भारी भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद का प्रभाव अब देश के दूसरे हिस्सों में भी दिखाई देने लगा है। इससे साफ जाहिर हो रहा है कि यह सिर्फ सीमावर्ती राज्य की समस्या नहीं रह गई है, बल्कि एक राष्ट्रीय खतरा बन गई है। हाल के ‘नकली हथियार लाइसेंस मामले’ जिनमें भारत के छह राज्य शामिल हैं, इस खतरनाक स्थिति की गवाही देते हैं। आतंकवादी संगठन इन फर्जी लाइसेंस का पूरे भारत में कहीं भी लोगों को निशाना बनाने या हत्या करने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं।

इस मामले का खुलासा तब हुआ जब राजस्थान सरकार के आतंकवाद रोधी दस्ते (एटीएस) ने तीन हथियार दलालों को गिरफ्तार किया। इनमें राहुल को जम्मू से, विशाल को पंजाब के अबोहर से और जुबैर खान को अजमेर से 11 सितंबर 2017 को गिरफ्तार किया गया। इन तीनों पर राजस्थान, गुजरात, नई दिल्ली, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के ग्राहकों को नकली हथियार लाइसेंस सप्लाई करने का आरोप है। राजस्थान एटीएस के पास उपलब्ध साक्ष्यों के मुताबिक आतंकवाद प्रभावित राज्य के कुपवाड़ा, बारामुला, कठुआ, रामबन, उधमपुर और जम्मू जिले से 4.29 लाख नकली लाइसेंस जारी किए गए हैं। राजस्थान एटीएस ने विभिन्न राज्यों में फैले इस फर्जी लाइसेंस के रैकेट के पर्दाफाश के लिए ‘ऑपरेशन जुबैदा’ शुरू किया। जम्मू-कश्मीर के फर्जी लाइसेंस देश के दूसरे हिस्सों में बेचे जाते थे। इस ऑपरेशन के दौरान ऊपर बताए गए पांच राज्यों के विभिन्न स्थलों पर 12 ठिकानों पर 100 फर्जी हथियार लाइसेंस और हथियारों का बड़ा जखीरा बरामद हुआ।

बार-बार के प्रयास के बावजूद, एटीएस को जम्मू-कश्मीर सरकार ने सरकारी रिकार्ड देखने नहीं दिया और खुद अपने आप भी ऐसे लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई करने में नाकाम रही। जम्मू-कश्मीर के गृह मंत्रालय से राजस्थान के एटीएस को जारी एक पत्र में कहा गया, “सूचित किया जाता है कि 2001 से हथियार के विभाग में पदस्थापित अधिकारियों की तालिका के मुताबिक, 2014 की बाढ़ में सभी रिकार्ड बेकार हो गए।” ऐसे ही बहाने बना कर जम्मू-कश्मीर सरकार के अधिकारियों ने इस जांच में अड़ंगा डाले रखा।

इस जांच में तेजी तब आई जब कश्मीर कैडर के एक आईएएस अधिकारी के बड़े भाई को 10 जुलाई 2018 को गुरुग्राम से गिरफ्तार किया गया। इस मामले में पिछले एक साल के दौरान यह 52वीं गिरफ्तारी थी। राजस्थान सरकार ने जम्मू-कश्मीर के गृह मंत्रालय को यह सुझाव देते हुए पत्र लिखा है, “बिना और देरी किए यह मामला सीबीआई को ट्रांसफर कर दिया जाए।” इसने मामले को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा भी बताया है। खबरों में बताया गया है कि राजस्थान एटीएस के वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा है कि जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन मुख्य सचिव बीबी व्यास ने इस मामले के ब्योरे बार-बार के अनुरोध के बावजूद कभी साझा नहीं किए। राज्य सरकार से सिर्फ एक ही बहाना बार-बार बनाया गया और वह था कि 2014 की बाढ़ में सारे रिकार्ड बह गए। यह पूरी तरह से एक बहाना लगता है और इस पर संदेह होता है।

जम्मू-कश्मीर में जून के महीने में राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद सरकार ने आखिरकार राजस्थान सरकार के अनुरोध का संज्ञान लिया और 12 जुलाई को अधिसूचना जारी की। इसमें सभी संभागीय आयुक्तों और उपायुक्तों को निर्देश दिया गया था कि वे 2017-18 के दौरान जारी किए गए सभी लाइसेंस की विस्तृत रिपोर्ट दें। अधिसूचना में सभी संबंधित उपायुक्तों को यह भी कहा गया है कि वे एक महीने के अंदर अपनी रिपोर्ट जमा करें और इन्हें अगले आदेश तक लाइसेंस जारी करने से रोक भी दिया गया। इसके अलावा राज्यपाल ने फैसला ले कर सभी जिला मजिस्ट्रेट को निर्देश जारी किया कि वे सुरक्षा बलों के अलावा निजी व्यक्तियों को जारी सभी लाइसेंस रद्द कर दें।

ये फर्जी लाइसेंस दलालों की ओर से पेश किए गए फर्जी कागजात के आधार पर जारी किए गए थे। ये दलाल जम्मू-कश्मीर राज्य के प्रशासनिक अधिकारियों की मिलीभगत में ही काम करते रहे हैं और लोगों से चार लाख तक की राशि वसूलते थे। पाकिस्तान की ओर से छेड़े गए छद्म युद्ध से संघर्ष करते हुए जब देश की रक्षा में सीमा पर रोज हमारे बहादुर सैनिक शहीद हो रहे हैं, जम्मू-कश्मीर सरकार के बाबू (प्रशासनिक अधिकारी) राष्ट्रीय सुरक्षा को दाव पर लगा रहे हैं।

9 अगस्त 2018 को दिल्ली फर्जी हथियार लाइसेंस की जांच शुरू करने वाला पांचवां राज्य बन गया। इसके अलावा जो राज्य पहले ही ऐसी जांच शुरू कर चुके हैं, वे हैं — राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश। यह मामला दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल को सौंप दिया गया है। आखिरकार राज्यपाल शासन लागू होने के बाद, जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल ने दिल्ली पुलिस को जांच के लिए मंजूरी दे दी है ताकि यह “इस मामले के संबंध में किए गए उल्लंघनों से जुड़े अपराधों, प्रयासों, प्रेरित करने के मामलों और साजिशों आदि की” जांच कर सके।

राष्ट्रीय सुरक्षा को ले कर प्रत्यक्ष और गंभीर खतरे वाले इस मामले में लापरवाही के लिए नई दिल्ली और जम्मू-कश्मीर सरकार दोनों ही दोषी हैं। नई दिल्ली ने राजनीतिक तुष्टीकरण की अपनी नीति को जारी रखते हुए जम्मू-कश्मीर में 1947 से ही भ्रष्टाचार को सांस्थानिक स्वरूप प्रदान किया है और राज्य को अपने कुशासन के लिए जवाबदेह बनाने में यह नाकाम रहा है।

“फर्जी हथियार लाइसेंस” के मामले से पर्दा हटने के एक साल बाद विभिन्न राज्यों की पुलिस और दूसरी जांच एजेंसियों की ओर से जारी जांच के पुख्ता साक्ष्य के अभाव और तथ्यों को तोड़े-मरोड़े जाने की वजह से भटक जाने की पूरी आशंका है। राज्य के अधिकारियों ने अब तक बड़ी आसानी से राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा पैदा करने वाले इस मामले को टाले रखा है, वह भी अजीब-अजीब से बहाने बना कर, जिनमें 2014 की बाढ़ में सरकारी रिकार्ड बह जाने जैसे बहाने भी शामिल हैं। हालांकि जिस तथ्य की ओर अब तक लोगों ने ध्यान नहीं दिया है, वह यह है कि इस राष्ट्रव्यापी घोटाले को जिस जिले से संचालित किया गया, वहां कभी बाढ़ का प्रभाव रहा ही नहीं।

इस घोटाले ने एक बार फिर साबित किया है कि जम्मू-कश्मीर में जब भ्रष्टाचार का मामला होता है तो पुलिस, अफसरशाही और अपराधियों का कितना मजबूत गठजोड़ है। अगर कश्मीर को अच्छा शासन उपलब्ध करवाना है तो राज्य के प्रशासन और इसके संस्थानों में पूरी तरह उलट-फेर बेहद जरूरी है।

जम्मू-कश्मीर में भ्रष्टाचार ने लोकतंत्र में आम कश्मीरियों के विश्वास को डिगाया है और अब यह ना सिर्फ राज्य के अंदर चल रही शांति प्रक्रिया को नुकसान पहुंचा रहा है बल्कि देश की सुरक्षा के सामने एक बड़ी चुनौती भी बन गया है। इस मामले की जांच सर्वाधिक वरीयता से होनी चाहिए क्योंकि इससे राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों का पिटारा खुलने की आशंका है जिन्हें गहरे जमे आपराधिक गठजोड़ की मदद से संचालित किया जा रहा है और जो कश्मीर के आवाम और खास तौर पर युवाओं के मोहभंग का कारण बन रहा है।

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