Author : Satish Misra

Published on Oct 18, 2017 Updated 0 Hours ago

भाजपा से मुकाबला करने के लिए गैर-वामपंथी सेकुलर पार्टियों के साथ तालमेल को ले कर माकपा पूरी तरह बंटी हुई है।

कांग्रेस को ले कर माकपा के आंतरिक विरोध

पार्टी के मौजूदा महा सचिव सीताराम येचुरी पूर्व महा सचिव प्रकाश करात के साथ

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) इस समय अपने अस्तित्व के प्रश्न से जूझ रही है जिसमें वह ऐसे आंतरिक विरोध में फंसी है जहां उसे अपनी राजनीतिक दिशा तय करनी है। छद्म राष्ट्रवादी और फासीवादी ताकतों से मिल रही चुनौती को देखते हुए उसके लिए यह बेहद जरूरी हो गया है।

माकपा का राजनीतिक प्रसार पिछले एक दशक से लगातार संकुचित होता जा रहा है और ऐसे में यह अब अपने राजनीतिक पुनरुद्धार के लिए रास्ते तलाशने में व्यस्त है।


माकपा में इस बात को ले कर बहुत गहरे मतभेद हैं कि भाजपा के विरोध में ‘गैर-वामपंथी और सेकुलर पार्टियों’ के साथ समझौता करना है या नहीं।


दो अक्तूबर को हुई पार्टी की पोलित ब्यूरो की बैठक में इस मुद्दे पर विस्तार से चर्चा हुई। पश्चिम बंगाल, केरल और त्रिपुरा में सरकार चला रही माकपा पिछले कुछ समय से इस वैचारिक बहस में फंसी हुई है कि देश और समाज के सामने फासीवादी ताकतों की वजह से आए खतरे के बाद बदली परिस्थिति में पार्टी की लाइन बदली जाए या नहीं।

हालांकि देश की सबसे बड़ी वामपंथी पार्टी के सामने जो सवाल है वह इसके वैचारिक पहलू से जुड़ा है लेकिन इस पूरे प्रश्न में व्यक्तित्व का टकराव भी कम महत्वपूर्ण नहीं है

पार्टी के पूर्व महा सचिव प्रकाश करात का गुट गैर-वामपंथी सेकुलर ताकतों के साथ सहयोग के तौर पर कांग्रेस को साथ लेने के पूरी तरह खिलाफ है। जबकि मौजूदा महा सचिव सीताराम येचुरी के नेतृत्व वाले गुट का कहना है कि 2015 में पार्टी ने जो लाइन अपनाई थी, उसे पिछले तीन साल के दौरान सामने आए फासीवादी ताकतों के खतरे को देखते हुए अब बदल देना चाहिए।

पार्टी की ‘राजनीतिक-रणनीतिक’ दिशा तय करने के लिए पोलित ब्यूरो की दो बैठकें हो चुकी हैं। हालांकि दोनों ही बैठकों में पार्टी किसी सहमति तक पहुंचने में नाकाम रही है। पोलित ब्यूरो की दूसरी बैठक में तय किया गया कि यह मामला पार्टी की केंद्रीय समिति के सामने रखा जाए जो 14 से 16 अक्तूबर तक होनी है। फिर इस संबंध में अगले साल अप्रैल में होने वाले पार्टी कांग्रेस में प्रस्ताव पारित किया जाएगा।

येचुरी लगातार कह रहे हैं कि भाजपा केंद्र की सत्ता में आने और उसके बाद कई विधानसभा चुनाव जीतने के बाद ज्यादा बड़ा खतरा बन गई है। पिछले कुछ वर्षों से फासीवादी ताकतें तेजी से कदम बढ़ा रही हैं और 2015 के पार्टी के कांग्रेस के बाद से देश और समाज के सामने यह खतरा काफी बढ़ गया है।

इस विचार का पोलित ब्यूरो के अधिकांश सदस्यों ने विरोध किया। इनमें सबसे ज्यादा मुखर केरल के सदस्य थे, जिनका नेतृत्व प्रकाश करात और उनकी पत्नी बृंदा करात करती हैं। यह गुट लगातार इस बात पर जोर देता है कि केरल में जो कांग्रेस माकपा की सबसे बड़ी दुश्मन है येचुरी गुट उसी के साथ गठबंधन करवाने की कोशिश कर रहा है।

जहां पहले करात गुट यह मानने को ही तैयार नहीं था कि देश में संघ-भाजपा के उत्थान के बाद से जमीनी स्तर पर काफी बदलाव हुए हैं और अल्पसंख्यकों और दलितों पर फासीवादी हमले बढ़ गए हैं। लेकिन पोलित ब्यूरो की पिछली बैठक के बाद से इसके विचार थोड़े नरम हुए हैं और इसने यह तो मानना शुरू कर दिया है कि वाकई वास्तविकता के धरातल पर स्थिति काफी बदल गई है।


करात गुट लगातार इस बात पर जोर देता रहा है कि ऐसे गठबंधन से पार्टी के लक्ष्यों को पूरा करने में कोई मदद नहीं मिलेगी। इनका मानना है कि महज कांग्रेस या दूसरी राजनीतिक पार्टियों के साथ खड़े हो जाने से भाजपा का मुकाबला करने में कोई प्रभावी मदद नहीं मिलेगी।


यह समूह येचुरी को लगातार कांग्रेस के प्रति लगाव रखने वाले नेता के तौर पर पेश करता आ रहा है। 2015 में हुई पार्टी की पिछली कांग्रेस के दौरान तब के महा सचिव प्रकाश करात इस पद पर येचुरी के पहुंचने के प्रबल विरोधी थे, लेकिन वे इसे रोक नहीं सके।

माकपा को पश्चिम बंगाल में तीन दशक से ज्यादा के शासन के बाद हार का सामना प्रकाश करात के महा सचिव के कार्यकाल के दौरान ही झेलना पड़ा। इसी तरह 2014 के चुनाव में उन्हीं के नेतृत्व में पार्टी महज दो सीटों पर सिमटने को मजबूर हुई। यहां तक कि 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी पार्टी की ताकत घटी थी। प्रकाश करात के नेतृत्व में ही पार्टी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार से भारत-अमेरिका परमाणु संधि के मुद्दे पर जुलाई, 2008 में समर्थन वापस लिया था।

उसके उपरांत, माकपा की लोक सभा में अंक तालिका लगातार नीचे गई है। अपनी कट्टर कांग्रेस-विरोधी लाइन की वजह से करात ने यह सुनिश्चित किया कि पूर्व लोक सभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी को पार्टी से निष्कासित किया जाए।

इससे पहले 1996 में पोलित ब्यूरो के सदस्य के तौर पर करात उन लोगों में शामिल थे, जिन्होंने पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ज्योति बसु के देश के प्रधानमंत्री बनने की इजाजत दिए जाने का विरोध किया था। यह प्रस्ताव तब के युनाइटेड फ्रंट की ओर से आया था।

उन्हें दुख है कि आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने अपने सालाना संबोधन में यहां तक कह दिया कि पश्चिम बंगाल और केरल की सरकारें राष्ट्र-विरोधी तत्वों के साथ मेल-जोल कर रही हैं, इसके बावजूद राजधानी दिल्ली के एके गोपालन भवन स्थित माकपा मुख्यालय में खतरे की घंटी बजती नहीं सुनाई दे रही।


पार्टी के एक पुराने समर्थक कहते हैं कि माकपा और वामपंथी ताकतें पिछले 15 साल से देश में कमजोर हो रही हैं, लेकिन पार्टी धरातल पर बदलती राजनीतिक सच्चाई को स्वीकार करने को तैयार नहीं है।


भाजपा अध्यक्ष अमित शाह इस समय जन रक्षा यात्रा निकाल रहे हैं, जिसके दौरान वे लगातार माकपा पर हमला बोल रहे हैं, इसके बावजूद माकपा की केरल इकाई सामने मैजूद वास्तविकता को समझने को तैयार नहीं है। बहुत से पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं ने पार्टी छोड़ना शुरू कर दिया है, इसके बावजूद पार्टी का कांग्रेस-विरोधी रवैया अब तक बदला नहीं है।

इस बात की उम्मीद बहुत कम है कि पार्टी की केंद्रीय समिति दोनों गुटों में से किसी के भी रुख पर अपनी मुहर लगाए। ऐसे में मुद्दा अगले साल पार्टी की कांग्रेस के सामने उठेगा और वहीं इसका समाधान भी निकलेगा।

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.