Published on Feb 02, 2019 Updated 0 Hours ago

क्या यह सरकार संसाधन जुटाने के असंभव गणित को अगली सरकार के जिम्मे छोड़ना चाहती है?

अंतरिम बजट: किसान-मध्‍य वर्ग को संतुष्‍ट करने की कोशिश, लेकिन कहां से आयेगा पैसा?

उम्मीद के मुताबिक ही चुनावी वर्ष के इस आंतरिक बजट में योजनाओं और सहायता के जरिए किसानों एवं मध्य वर्ग को संतुष्ट करने की कोशिश की गयी है। इनमें करीब 12 करोड़ छोटे किसानों को छह हजार रुपये हर साल देने की 75 हजार करोड़ सालाना खर्च की योजना सबसे बड़ी है, जो 60 हजार करोड़ रुपये की मनरेगा से भी ज्यादा है। मौजूदा कृषि संकट के बुनियादी कारणों का इससे समाधान शायद न हो, पर इस पहल से किसानों को कुछ राहत मिलने की आशा की जा सकती है।

दो हेक्टेयर तक की जमीन के मालिकाने की सीमा के भीतर देश के 85 से 90 फीसदी गरीब किसान इस योजना के तहत आयेंगे। लेकिन, हमेशा की तरह किसानी के किसी भी संकट से सर्वाधिक प्रभावित भूमिहीन कामगारों को इस पहल से बाहर रखा गया है। हर लाभुक को नगदी हस्तांतरित करने की इस पहल में संकट से गंभीर रूप से प्रभावित इलाकों को नजरअंदाज करने जैसी कुछ अन्य समस्याएं भी हैं। किंतु, कुल मिलाकर यह स्वागतयोग्य कदम है।

इसी तरह से असंगठित क्षेत्र के कामगारों के लिए पेंशन योजना भी सराहनीय है। आयकर में पांच लाख रुपये (6.5 लाख, यदि कमानेवाला 1.5 लाख की बचत करता है) की आय तक की छूट से मध्यवर्ग को भी कुछ राहत मिलेगी। सत्ताधारी दल की विचारधारा को देखते हुए रक्षा बजट का तीन लाख करोड़ रुपये से ज्यादा किया जाना भी आश्चर्यजनक नहीं है।

बहरहाल, बजट के मसौदे को देखकर किसी के भी मन में यह सवाल उठेगा कि इन सभी योजनाओं के लिए पैसा कहां से आयेगा। बजट के दस्तावेज से पता चलता है कि सरकार को वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) और अन्य प्रत्यक्ष करों से राजस्व घटने की आशंका है तथा उसे कॉरपोरेशन कर और आयकर यानी प्रत्यक्ष करों में बढ़ोतरी की उम्मीद है। यदि हम इस अंतरिम बजट के अनुमानों की तुलना 2018-19 के बजट के अनुमानों से करें, तो कॉरपोरेशन कर (सरचार्ज व सेस को छोड़कर) में 23.6 फीसदी की बड़ी छलांग यानी 1.24 लाख करोड़ की वसूली का आकलन है। आय कर (बिना सरचार्ज व सेस के) में 2019-20 में 17.2 फीसदी की बढ़त का अनुमान है यानी 79.4 हजार करोड़ अधिक आने की उम्मीद है।

पिछले साल के बजट में कॉरपोरेशन टैक्स में 11 फीसदी और आय कर में 11.8 फीसदी की वृद्धि का अनुमान था। प्रत्यक्ष करों से इस स्तर पर वसूली का अनुमान समझ से परे है, क्योंकि अर्थव्यवस्था कमजोर हो रही है तथा बेरोजगारी की दर बहुत उच्च स्तर पर है। जीएसटी से भी कर-संग्रहण की यह उम्मीद भी काफी ज्यादा है। बजट दस्तावेजों में संशोधित अनुमानों के हिसाब से इंगित होता है कि पिछले साल के बजट अनुमानों से एक लाख करोड़ रुपये की कमी है। असली आंकड़ों में यह और ज्यादा हो सकती है। पिछले वित्त वर्ष में जीएसटी संग्रहण लक्ष्य से बहुत पीछे रह गया था। राजस्व के ये आंकड़े बजट में घोषित बड़ी-बड़ी योजनाओं के खोखलेपन की ओर संकेत करते हैं।

क्या यह सरकार संसाधन जुटाने के असंभव गणित को अगली सरकार के जिम्मे छोड़ना चाहती है? या, सरकार बजट के हिसाब से बाहर जाकर कर्ज लेकर अपने वादे पूरा करना चाहती है, जिसकी भरपाई अगली सरकार को करनी होगी? या फिर, सरकार वही कर रही है, जो यह करने में माहिर है- झूठे वादे करना। ये ऐसे सवाल हैं, जिनका विश्लेषण आगामी दिनों में विस्तृत आंकड़ों के साथ करने की जरूरत है।


ये लेख मूल रूप से प्रभात खबर में छपा था।

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