Published on Jul 30, 2023 Updated 0 Hours ago

वियतनाम के साथ करीबी संबंध का दावा करने के बावजूद हक़ीक़त दूसरी कहानी बयां करती है.

#India-Vietnam Relations: भारत के प्रति वियतनाम का ‘दृष्टिकोण’
#India-Vietnam Relations: भारत के प्रति वियतनाम का ‘दृष्टिकोण’

अपने साझा इतिहास और सामान हितों के चलते भारत और वियतनाम के बारे में समझा जाता है कि दोनों ही देश आपस में ख़ास संबंध रखते हैं. भारत से शांतिपूर्ण सांस्कृतिक पलायन और नए क्षेत्र के साथ-साथ समुद्री रास्ते की खोज ने इस संबंध को मज़बूत किया है. क्या दोनों देशों के बीच आधुनिक संबंध के लिए इतिहास ज़िम्मेदार है? सामान्य हित क्या हैं? क्या इस संबंध में पर्याप्त रणनीतिक विषय भी शामिल हैं? क्या आर्थिक संबंधों के चलते भी राजनीतिक रिश्ते बढ़ते हैं? क्या वाकई संस्कृति की अहमियत है?

सर्वे में 56 फ़ीसदी वियतनाम के नागरिकों को यह भरोसा था कि “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वैश्वकि मुद्दों को लेकर सही कदम उठाएंगे,” जबकि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के प्रति केवल 20 फ़ीसदी लोगों ने ऐसा भरोसा जताया.

भारत के साथ वियतनाम के करीबी संबंध 

आईएसईएएस यूसुफ ईशाक इंस्टीट्यूट के द्वारा 2021 में कराये गये एक चुनाव के मुताबिक़, जबकि आसियान देशों के 50.3 फ़ीसदी लोगों को भारत पर कोई भरोसा नहीं था लेकिन 31.4 फ़ीसदी वियतनाम के नागरिकों को भारत पर भरोसा था. म्यांमार के बाद 29.1 फ़ीसदी वियतनाम के नागरिकों को यह भरोसा था कि वैश्विक शांति, सुरक्षा, समृद्धि और प्रशासन के लिए भारत हर मुमकिन सही काम करेगा. कुल मिलाकर भारत पर 19.8 फ़ीसदी लोगों ने अपना भरोसा जताया तो चीन के लिए महज़ 16.5 फ़ीसदी लोगों ने ही अपना भरोसा जताया. साल 2015 में प्यू रिसर्च सेंटर ने एक सर्वे में पाया कि 66 फ़ीसदी वियतनाम के लोग भारत के पक्ष में थे, जबकि महज़ 19 फ़ीसदी लोग ही चीन के पक्ष में दिखे. सर्वे में 56 फ़ीसदी वियतनाम के नागरिकों को यह भरोसा था कि “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वैश्वकि मुद्दों को लेकर सही कदम उठाएंगे,” जबकि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के प्रति केवल 20 फ़ीसदी लोगों ने ऐसा भरोसा जताया. हालांकि, ऐसी वाहवाही के लिए योग्यता होनी चाहिए. उदाहरण के तौर पर जिस कोविशील्ड वैक्सीन को वियतनाम को देने को लेकर जनवरी 2021 में सहमति बनी थी उसे पूरा करने में जैसे ही भारत नाकाम रहा, वियतनाम ने जून में चीन से उसकी वैक्सीन साइनोफार्म ख़रीद लिया.

ऐतिहासिक संबंधों को स्थापित करना


इंस्टीट्यूट फ़ॉर इंडियन एंड साउथवेस्ट एशियन स्टडीज़, वियतनाम एकेडेमी ऑफ़ सोशल साइसेंज़ की  ले थी हैंग ना (Le Thi Hang Nga) का मानना है कि “वियतनाम में चीन का सांस्कृतिक असर काफी साफ और जबरन है जबकि भारत इस मामले में उदार और शांतिप्रिय है”[1]. चीन के बढ़ते हस्तक्षेप को रोकने के लिए ही वियतनाम ने भारत के संबंधों को आगे बढ़ाया है. हिंदुवादी चंपा साम्राज्य में शामिल चंपा विरासत के प्रति दृष्टिकोण जटिल तो है लेकिन व्यावहारिक है. भले ही चंपाओं को विदेशी घुसपैठियों के रूप में देखा जाता है लेकिन यह स्पष्ट रूप से कभी बताया नहीं गया है. ना ही चाम समुदाय, जिनकी आबादी साल 2009 में क़रीब 161,729 थी और जो बहुसंख्यक किन्ह समुदाय के लिए ख़तरा हैं. इस प्रकार एक शांतिप्रिय चंपा समुदाय की विरासत भारत के अभिजात वर्ग के लिए उपयोगी बन जाती है. यह न सिर्फ़  वियतनाम की चीन-आधारित पहचान की राजनीति के लिए ठीक है बल्कि विरासत को बचाने में स्वागत योग्य भागीदार के रूप में भारत के साथ वियतनाम के रिश्तों को मज़बूत करता है.

भारत (रूस और चीन के साथ) इन तीन में केवल ऐसा एक देश है जिसके साथ वियतनाम की व्यापक रणनीतिक साझेदारी है. लेकिन फिर भी सांस्कृतिक दृष्टिकोण भारत को वियतनाम के सबसे महत्वपूर्ण भागीदारों की तुलना में इस सूची में नीचे रखता है.

21 दिसंबर 2020 को  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गुयेन जुआन फुक (Nguyen Xuan Phuc) के बीच हुए वर्चुअल सम्मेलन के आयोजन के बाद, क्वांग नाम में डोंग डुओंग बौद्ध मठ, और फु येन में न्हान स्तूप के संरक्षण के लिए भारत की मदद से एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था. डा नांग के चंपा मूर्तिकला संग्रहालय में छह मूर्तियां ऐसी हैं जो वियतनाम के राष्ट्रीय खजाने की सूची में शामिल हैं [2].  भले ही सामान्य वियतनाम के नागरिकों का चंपाओं के साथ कोई संबंध न हो लेकिन विद्वान इनके सांस्कृतिक दावे की बात करते हैं और मानते हैं कि चीनी किरदारों के बगैर किसी भी संस्कृति को समायोजित करना मुमकिन है.

इन्हीं कारणों से वियतनाम भी इतिहास का पुनर्मूल्यांकन करने में जुटा है. हालांकि प्रचलित दृष्टिकोण यह है कि वियतनाम को चीन से बौद्ध धर्म हासिल हुआ था लेकिन नगा ने ले वान टोआन (Le Van Toan) के शोध का हवाला देते हुए कहा कि, “वियतनाम में नए सबूत बताते हैं कि भारतीय नाविकों ने अशोक के शासनकाल के दौरान बौद्ध धर्म की शुरुआत की थी” [3].  एक सहस्राब्दी (एक हजार वर्ष) में चीनी घुसपैठ को शामिल करने के बाद  इतिहास को फिर से मोड़ना एक आश्वासन है भले ही बौद्ध धर्म स्वदेशी न हो.

कई तरह की बाधाएं


भारत (रूस और चीन के साथ) इन तीन में केवल ऐसा एक देश है जिसके साथ वियतनाम की व्यापक रणनीतिक साझेदारी है. लेकिन फिर भी सांस्कृतिक दृष्टिकोण भारत को वियतनाम के सबसे महत्वपूर्ण भागीदारों की तुलना में इस सूची में नीचे रखता है. मीडिया में रचनात्मक और विघटनकारी विचारों को बेहद सावधानी से नियंत्रित किया जाता है. वियतनाम न्यूज़ जैसे समाचार पत्रों में दोनों मुल्कों के संबंधों के बारे में ऊपर-नीचे की बातें होना लाज़िमी हैं. इससे भारत और वियतनाम स्थायी सहयोगी तो लगते हैं लेकिन हक़ीक़त इससे उलट है. मज़बूत राजनीतिक संबंधों और ज़मीन स्तर पर कमज़ोर उपायों के बीच विरोधाभास भी भारत को इस सूची में नीचे की ओर धकेलता है. नगा कहते हैं कि वियतनाम कई प्रमुख देशों के राष्ट्रीय दिवस के आयोजन में अपने मंत्रियों को भेजता है लेकिन भारत के राष्ट्रीय दिवस के मौके पर केवल उप मंत्री भेजता है, हालांकि “धीरे-धीरे इसमें सुधार हो रहा है”[4].

भारत सरकार द्वारा प्रदान की गई 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर की लाइन ऑफ़ क्रेडिट के तहत वियतनाम बॉर्डर गार्ड कमांड के लिए एक हाई स्पीड गार्ड बोट बनाने का प्रोजेक्ट शुरू किया गया है. 

चीनी वजह


चीन को वियतनाम के लोग भारत से ज़्यादा बेहतर समझते हैं.  नगा इस बात पर जोर देते हैं कि “चीन के प्रति वियतनामी रवैया एक ही समय में सहयोग और संघर्ष दोनों का है”[5].  रीना मारवाह, जीसस एंड मैरी कॉलेज की प्रोफेसर और भारत-वियतनाम संबंधों पर नगा की एक नई किताब की सह-लेखिका कहती हैं: “मई, 2020 के बाद से भारत-चीन सीमा पर गतिरोध पर बमुश्किल कोई रिपोर्टिंग कभी हुई थी. हमने जिन वियतनाम के लोगों का इंटरव्यू लिया उन्होंने कहा कि यह एक द्विपक्षीय मुद्दा है और उन्होंने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया”[6].

अगर वियतनामी नेता चीन के साथ दक्षिण चीन सागर विवाद पर भारत का समर्थन चाहते हैं तो उन्हें चीन-भारत संबंधों पर खुल कर टिप्पणी करना चाहिए या फिर कम से कम मीडिया में इसे लेकर मुक्त चर्चा कराने के लिए माहौल बनाना चाहिए लेकिन राजनयिक और राजनीतिक समर्थन देने से इतर, वियतनाम का एक दोस्त (भारत) उसके पड़ोसी मुल्क चीन से मौजूदा ख़तरों का सामना करने में सीधी मदद करने में असमर्थ नज़र आता है. जब बात भारत और चीन से निपटने की होती है तो इसे लेकर वियतनाम बेहद व्यावहारिक है. इस प्रकार हम संबंधों को और क़रीब लाने में प्रतीकात्मक दूरी का अहसास कराते हैं. यही नहीं  व्यापक रणनीतिक साझेदारी का भी  क्या मतलब है यह साफ नहीं है.

रक्षा साझेदारी


भारत का वियतनाम के साथ मज़बूत नौसेना सहयोग है और यह उन कुछ देशों में से एक है जिसके साथ वियतनाम नौसैनिक युद्धाभ्यास करता है. भारत की नौसेना को हनोई अपने बंदरगाहों में रखने की इजाज़त देता है. इतना ही नहीं, हैलॉन्ह खाड़ी के साथ-साथ नाह त्रांग और कैम रान्ह खाड़ी को भी बेहतर बनाने के लिए भारत को कहा गयाभारत सरकार द्वारा प्रदान की गई 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर की लाइन ऑफ़ क्रेडिट के तहत वियतनाम बॉर्डर गार्ड कमांड के लिए एक हाई स्पीड गार्ड बोट बनाने का प्रोजेक्ट शुरू किया गया है.  भारत ने प्रधानमंत्री मोदी और फुक के बीच साल 2020 के वर्चुअल  सम्मेलन के दौरान वियतनाम को पहली नाव सौंपी भारत में बनी दो और नाव लॉन्च की गई हैं जबकी सात और वियतनाम में बनाई जाने वाली है.

इस तरह का सहयोग दक्षिण चीन सागर में चीन के आक्रामक विस्तारवाद को देखते हुए अंजाम दिया गया है जो सीधे वियतनाम और भारतीय हितों को प्रभावित करता है. उदाहरण के लिए, चीन दक्षिण चीन सागर में वियतनाम के विशेष आर्थिक क्षेत्र में ब्लॉक 128 में ओएनजीसी विदेश द्वारा तेल की खोज का विरोध करता है इस कोशिश में बाधा डालता रहा है, क्योंकि यह क्षेत्र चीन की अपनी घोषित “नाइन-डैश लाइन” के साथ ओवरलैप करता है. तत्कालीन भारतीय नौसेना प्रमुख एडमिरल डी.के. जोशी ने कहा था कि भारत के हाइड्रोकार्बन हितों की रक्षा के लिए भारतीय नौसेना दक्षिण चीन सागर में तैनाती के लिए तैयार है.

वियतनाम और भारत हिंद-प्रशांत शब्दावली का इस्तेमाल एक जैसे करते हैं, हिंद-प्रशांत शब्दावली को पहली बार हनोई ने साल  2018 में भारत के साथ एक साझा बयान के दौरान किया था. वियतनाम के 2019 के रक्षा श्वेत पत्र में इसका ज़िक्र है : “वियतनाम सुरक्षा और रक्षा सहयोग तंत्र में भाग लेने के लिए तैयार ह… जिसमें हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा भी शामिल है“. वियतनाम क्वाड संगठन का सदस्य नहीं है, ऐसे में चीन को ध्यान में रखते हुए यह सत्यापन का संकेत देता है. भारत में वियतनाम के राजदूत फाम सान चाऊ कहते हैं कि, “इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता में योगदान देने वाले किसी भी विचार या कदम का स्वागत किया जाना चाहिए .

जैसे-जैसे भारत के अमेरिका से संबंध गहराते जा रहे हैं, वियतनाम की कोशिश अमेरिका और चीन के साथ अपने संबंधों को संतुलित करने की है लेकिन भारत और अमेरिका के बीच मज़बूत संबंध की वजह से वियतनाम भारत के साथ संभलकर आगे बढ़ेगा.

फिलीपींस को ब्रह्मोस मिसाइल के निर्यात किए जाने की घोषणा के बाद ऐसा माना गया था कि वियतनाम अगला संभावित ग्राहक है. सिल्विया मिश्रा का कहना है कि पिछली यूपीए सरकार के साथ ब्रह्मोस मिसाइल की बिक्री पर बातचीत के बावजूद “रक्षा हार्डवेयर के निर्यात को लेकर यूपीए सरकार की हिचकिचाहट की वजह से इस दिशा में बेहद कम प्रगति हुई.” माना जाता है कि इसे लेकर चीन की नकारात्मक प्रतिक्रिया के कारण ही भारत की हिचकिचाहट शुरू हुई लेकिन भारत के मौजूदा नेतृत्व का मानना ​​​​है कि, जैसा कि जेफ एम स्मिथ कहते हैं “अमेरिका, जापान और वियतनाम के साथ मज़बूत रक्षा संबंध वास्तव में भारत को चीन के साथ सौदेबाजी करने में मज़बूत स्थिति में लाता है“. ऐसे में वियतनाम भारत के दृष्टिकोण में बदलाव के संकेत के इंतज़ार में है.

आर्थिक वजह


साल 2020-2021 में 11.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर  के साथ वियतनाम, भारत का 10वां सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार था1.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश के साथ भारत, वियतनाम का 26वां सबसे बड़ा निवेशक है. साल 2020 में चीन के साथ वियतनाम का व्यापार 133 बिलियन अमेरिकी डॉलर के साथ 12 गुना अधिक था और नवंबर 2020 में 2.4 बिलियन डॉलर के साथ चीन सबसे बड़ा निवेशक था, और वियतनाम में भारतीय निवेश न केवल चीन बल्कि जापान, दक्षिण कोरिया और सिंगापुर से भी कम है. इसके अलावा, भारत के पक्ष में कमज़ोर आर्थिक संकेतकों से भी आशंका पैदा होती है. उदाहरण के तौर पर साल 2020 में, वियतनाम की प्रति व्यक्ति जीडीपी 3,525 अमेरिकी डॉलर थी और भारत की 1,928 अमेरिकी डॉलर थी. विदेशी भागीदारों की धारणाएं ज़मीनी हक़ीक़त पर निर्धारित होती है, जैसे कि आयात और निवेश का हिस्सा. अगर भारत चीन से और यहां तक ​​कि वियतनाम से भी ख़राब है तो वह आने वाले भविष्य में चीन का भरोसेमंद विकल्प नहीं बन सकता है. 

कुछ भी हो, चीन के साथ वियतनाम के संबंध भारत के साथ उसके रिश्तों को सीमित करता है. जैसे-जैसे भारत के अमेरिका से संबंध गहराते जा रहे हैं, वियतनाम की कोशिश अमेरिका और चीन के साथ अपने संबंधों को संतुलित करने की है लेकिन भारत और अमेरिका के बीच मज़बूत संबंध की वजह से वियतनाम भारत के साथ संभलकर आगे बढ़ेगा.

भारतीय सांस्कृतिक प्रभाव


वियतनाम में भारत की सांस्कृतिक मौजूदगी बेहद कम है. वहां के  टेलीविजन चैनलों पर शायद ही कभी भारतीय फिल्म और टेलीविजन शो का प्रसारण किया जाता है. प्राचीन परंपराओं को दिखाने वाली फिल्में वहां के युवाओं को प्रभावित नहीं करती हैं और वो भारत के विकास पर मिलीजुली प्रतिक्रिया देते हैं [7]. नगा बताते हैं कि एक सर्वेक्षण के मुताबिक “सबसे अधिक रेटिंग देने वाले भारतीय शो बालिका वधू के 70 प्रतिशत दर्शकों में गृहिणियां और बुज़ुर्ग शामिल थे” [8]. भारत में आने वाले वियतनामी पर्यटक यहां बौद्ध समुदाय की छोटी आबादी को लेकर सदमे में हैं.

इस तरह की वास्तविकता होने के बाद भी भारत को एक ऐसे रिश्ते को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए जिसकी नींव मज़बूत हो लेकिन उसकी संरचनात्मक सीमाएं भी हों. दक्षिण चीन सागर में वियतनाम के दावे वाले इलाक़े इसे इस क्षेत्र में रणनीतिक चर्चा के केंद्र में रखता है. दक्षिण चीन सागर पर कई दावेदारों के साथ, वियतनाम इस विवाद को लेकर उसे सुलझाने की स्थिति में है. साउथ चाइना सी में भारत के कारोबार और हाइड्रोकार्बन हितों को देखते हुए वियतनाम क्षेत्रीय शक्ति होने के तौर पर भारत के साथ ही फ़ायदेमंद सौदा कर सकता है.


[1] 25 जनवरी, 2022 का इंटरव्यू

[2] 31 दिसंबर, 2020 को, प्रधानमंत्री गुयेन जुआन फुक (Prime Minister Nguyen Xuan Phuc) ने राष्ट्रीय खजाने को मान्यता देते हुए निर्णय संख्या 2283 / QĐ-TTg पर हस्ताक्षर किए थे, जिसमें गणेश और गजसिम्हा की दो मूर्तियां शामिल हैं. इन्हें चंपा मूर्तिकला संग्रहालय में राष्ट्रीय खजाने के तौर पर सूचीबद्ध की गई चार मूर्तियों की लिस्ट में जोड़ा गया था, दा नांग.

[3] Interview on January 25, 2022.

[4] Interview on January 25, 2022.

[5] Interview on January 25, 2022.

[6] Interview on January 24, 2022.

[7] Discussion with Marwah and Nga.

[8] Interview on January 25, 2022.

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