Published on Jan 20, 2018 Updated 0 Hours ago

भारत रत्न एवं आभूषण, मोटर वाहनों के कलपुर्जों और सेवाओं के मामले में जीवीसी में एकीकृत होने में समर्थ रहा है।

क्षेत्रीय वैल्‍यू चेन से ही भारत को मिलेगा चैन

बार्सिलोना बंदरगाह पर कंटेनरों की लंबी-लंबी कतारें।

भारत से हो रहे निर्यात को नई गति प्रदान करने के संदर्भ में आजकल हमारे देश में एक नया शब्‍द काफी प्रचलित है और वह है वैश्विक मूल्य श्रृंखला या ग्लोबल वैल्यू चेन (जीवीसी)। यही नहीं, वाणिज्य मंत्री सुरेश प्रभु अपने भाषणों में अक्सर ‘जीवीसी’ की विशेष अहमियत का उल्लेख करते हैं। विश्व व्यापार का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा बहुराष्ट्रीय कंपनियों (एमएनसी) की जीवीसी के अंतर्गत ही अपना विशिष्‍ट आकार ग्रहण करता है। जीवीसी के अंतर्गत किसी भी उत्पाद के निर्माण में प्रत्येक प्रतिभागी देश का योगदान छोटा होता है और वह केवल मूल्य वर्द्धन से ही संबंधित होता है। इसके तहत किसी उत्पाद की परिकल्‍पना के साथ-साथ उसका डिजाइन तैयार करने का काम किसी विकसित देश में होता है। उदाहरण के लिए, एपल के आई-फोन की डिजाइनिंग अमेरिका में होती है, जबकि इसके कलपुर्जों को विभिन्न देशों में बनाया जाता है। हालांकि, अंतिम उत्पाद की एसेम्‍बिलंग चीन में होती है जिसे विपणन के लिए वापस अमेरिका भेज दिया जाता है।

जीवीसी से जुड़ना अब और भी अधिक जरूरी हो गया है क्योंकि कई विकासशील देशों के लिए श्रम बहुल उत्पादों को बेचना कठिन होता जा रहा है। नौबत यहां तक आ गई है कि जब तक उत्पादक उच्च मूल्य वर्द्धन के जरिए अपने उत्पादों की गुणवत्ता बेहतर नहीं करेंगे तब तक उन्‍हें निरंतर कम होते रिटर्न से ही संतोष करना पड़ेगा। यह समस्या विशेष रूप से विकासशील देशों के छोटे एवं मझोले उद्यमों (एसएमई) के लिए प्रासंगिक है, क्‍योंकि उनके पास आम तौर पर मूल्य निर्धारण की सीमित गुंजाइश होती है और अपने उत्पादों को उन्‍नत करने के लिए उनके पास सीमित क्षमताएं एवं विकल्प होते हैं। ऐसे में जिस तरीके से वे निर्यात कर सकते हैं उसके मद्देनजर उनके लिए अंतरराष्ट्रीय उत्पादन नेटवर्कों के साथ जुड़ना आवश्‍यक है। हालांकि, ऐसी स्थिति में उन्हें गुणवत्ता, मूल्य, समय पर डिलीवरी और लचीलेपन से संबंधित कठोर वैश्विक मानकों की एक विस्तृत श्रृंखला को पूरा करना होगा। केवल कुछ ही देश स्वयं को ‘जीवीसी’ में एकीकृत करने में कामयाब रहे हैं और इस मामले में चीन सबसे आगे है। दुनिया की लगभग सभी बड़ी रिटेल चेन अपने उत्पादों को चीन में ही तैयार करवाती हैं। हालांकि, हाल के महीनों में कई उत्‍पाद अन्य देशों में भी तैयार करवाए गए हैं।

भारत रत्न एवं आभूषण, मोटर वाहनों के कलपुर्जों और सेवाओं के मामले में जीवीसी में एकीकृत होने में समर्थ रहा है। हालांकि, ऐसा क्यों है कि भारत और अधिक वस्‍तुओं (आइटम) के मामले में जीवीसी में एकीकृत होने में सक्षम नहीं है? इसके कई कारण हो सकते हैं जिनमें कम मजदूरी, जो उदाहरणस्‍वरूप बांग्लादेश के परिधान उद्योग में है, और बांग्लादेश के महिला कामगारों का उच्च कौशल स्तर भी शामिल हैं। बांग्लादेश के परिधान उत्पादक यूरोपीय संघ और अमेरिका के बड़े खुदरा विक्रेताओं जैसे कि जीएपी, सियर्स, जरा, एचएंडएम इत्‍यादि से जुड़े हुए हैं। अन्य कारणों में संभवत: रसद (लॉजिस्टिक्‍स), बेहतर बुनियादी ढांचा और कम नियमों की बदौलत समय पर खेप मुहैया कराने की क्षमता शामिल हैं। हालांकि, जीवीसी में एकीकृत होने के बजाय भारत वस्‍त्रों और कई अन्य वस्तुओं के मामले में बड़ी आसानी से पड़ोसी देशों के साथ एक क्षेत्रीय मूल्य श्रृंखला या क्षेत्रीय वैल्‍यू चेन (आरवीसी) में एकीकृत हो सकता है। खासकर ऐसे समय में जब इस क्षेत्र के देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौता हो चुका है, क्षेत्रीय वैल्‍यू चेन की इस परिकल्‍पना को आसानी से मूर्त रूप दिया जा सकता है।

क्षेत्रीय वैल्‍यू चेन के विजन को साकार करने के लिए भारत को अपने सीमा पार बुनियादी ढांचे को बेहतर करना होगा, शुल्‍क (टैरिफ) एवं गैर शुल्‍क बाधाओं को दूर करना होगा और नियमों एवं तकनीकी मानकों को सुसंगत करने के लिए नियमों के कार्यान्वयन में तेजी लानी होगी जिनके परिणामस्‍वरूप इस क्षेत्र के देशों के बीच व्यापार का प्रवाह और अधिक बढ़ सकता है।

आरवीसी के लिए उतने सख्त मानदंडों की आवश्‍यकता नहीं है जैसा कि जीवीसी में देखने को मिलता है। कारण यह है कि संबंधित सामान स्थानीय बाजार की मांग की बारीकियों और खपत के पैटर्न को पूरा करते हैं जो समूचे क्षेत्र में एकसमान हो सकते हैं। हो सकता है कि आरवीसी अर्थव्यवस्था में व्‍यापक बदलाव लाने और तेजी से औद्योगीकरण को बढ़ावा देने में जीवीसी के मुकाबले कम गतिशील साबित हों, लेकिन अफ्रीका के कुछ क्षेत्रों में स्वदेशी फर्मों को संयुक्‍त करते वक्‍त इनकी बदौलत बेहतर लॉजिस्टिक प्रणालियां संभव हो पाई हैं। इनके परिणामस्‍वरूप एकीकरण एवं उत्पादकता बढ़ी है और श्रम का बेहतर विभाजन संभव हुआ है जो रोजगार और उपलब्ध कौशल के लिहाज से प्रतिभागी देशों के लिए फायदेमंद है। ‘आरवीसी’ के अंतत: स्थापित हो जाने के बाद गुणवत्ता में बेहतरी की संभावनाओं को देखते हुए अंतिम उत्पादों को विश्व स्तर पर, विशेष कर विकसित देशों को निर्यात किया जा सकता है।

आरवीसी में एकीकृत होने से प्रतिभागी विकासशील देशों में उत्पादन प्रक्रियाओं के समेकन और उन्नयन की नींव पड़ी है, ताकि उन्‍हें अंततः वैश्विक मूल्य श्रृंखला (जीवीसी) में एकीकृत करने के अगले चरण से जोड़ा जा सके।

आरवीसी के लिए विकास स्‍तंभ (ग्रोथ पोल) हो सकते हैं। जहां तक भारत का सवाल है, वह बिमस्टेक (बहु क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिए बंगाल की खाड़ी पहल) के सदस्य देशों यथा भारत, श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, म्यांमार और थाईलैंड वाले उप-क्षेत्र में अनेक विकास स्‍तंभों में से एक हो सकता है। यदि सातों सदस्‍य देशों के बीच कोई मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) हो जाए तो थाईलैंड भी एक और विकास स्‍तंभ हो सकता है। ये विकास स्‍तंभ, जो निवेश राशि के केंद्र (हब एंड स्पोक) की तरह कार्य करते हैं, पहले से ही इस क्षेत्र की वित्तीय राजधानियां हैं और दूसरों की तुलना में कहीं अधिक निवेश आकर्षित करते हैं। ये आरवीसी के मुख्यालय के रूप में काम कर सकते हैं और मुख्य रूप से इस क्षेत्र में विदेशी एवं अंतर-क्षेत्रीय उत्पादक निवेश का मार्ग प्रशस्‍त कर संसाधनों की तैनाती में अग्रणी भूमिका निभा सकते हैं। ये दोनों विकास स्‍तंभ इस क्षेत्र में विनिर्माण सेक्‍टर के विकास को नई गति प्रदान करने के लिए एक महत्वपूर्ण मार्ग बना सकते हैं जो मुख्य रूप से कृषि है और जिससे लोगों का जीवन बदल जाएगा एवं इसके साथ ही लोगों की आमदनी बढ़ जाएगी। स्थानीय नियामक एवं विकास आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए ‘आरवीसी’ बनाई जा सकती है और यह क्षेत्र के भीतर ज्ञान एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण का मार्ग प्रशस्‍त कर सकती है।

‘आरवीसी’ में एसएमई के स्थानीय खिलाड़ी या महारथी शामिल होंगे और वे नई औद्योगिक ज्ञान-प्राप्ति प्रक्रिया का हिस्सा हो सकते हैं तथा ग्‍लोबल वैल्‍यू चेन से जुड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों और ऐसे उत्पादकों के क्षेत्रीय नेटवर्क के बीच एक अंतराफलक (इंटरफेस) के रूप में कार्य कर सकते हैं जो कौशल एवं बुनियादी ढांचे के उन्नयन के लिए इस क्षेत्र का औद्योगिक आधार तैयार करने में मददगार साबित होंगे।

हालांकि, इस राह में समस्याएं उत्पन्न हो सकती है, क्योंकि इस क्षेत्र के कई देश आपस में पूरक सहयोगी नहीं, बल्कि प्रतिद्वंद्वी हैं। इनमें से ज्यादातर देश समान तरह की वस्‍तुओं का उत्पादन कर रहे हैं। फिर भी, बिम्सटेक उप क्षेत्र में रत्न एवं आभूषण के उत्पादन में म्यांमार, भारत, श्रीलंका और थाईलैंड के बीच सहयोग की संभावनाएं टटोली जा सकती हैं क्‍योंकि म्यांमार, श्रीलंका और थाईलैंड बहुत अच्छी गुणवत्ता वाले रत्नों का उत्पादन करते हैं। भारत को मणि या रत्‍नों की कटाई और उन पर पॉलिश करने के साथ-साथ सोने, चांदी एवं जड़े हुए गहने बनाने में विशेषज्ञता हासिल है। इसी प्रकार बांस से बनी वस्तुओं, जिनमें फर्नीचर, कपड़ा और कलाकृतियों को शामिल किया जा सकता है, के उत्पादन में भारत के पूर्वोत्‍तर क्षेत्र, म्यांमार, थाईलैंड एवं भूटान के बीच एक आरवीसी संभव है। इसी तरह हर्बल उत्पादों के लिए नेपाल, भारत और भूटान के बीच आरवीसी की गुंजाइश निकल सकती है। उधर, वस्त्रों के लिए श्रीलंका, बांग्लादेश और भारत के बीच आरवीसी की व्‍यापक संभावनाएं नजर आ रही हैं। भारत के कई परिधान निर्माता पहले से ही बांग्लादेश को अपने-अपने उत्‍पादन आधार स्थानांतरित कर चुके हैं। वहीं, चमड़े से बनी वस्‍तुओं के उत्‍पादन में भारत, बांग्लादेश और थाईलैंड के बीच आरवीसी की संभावनाओं पर गौर किया जा सकता है।

इससे उप क्षेत्र में औद्योगीकरण का व्‍यापक विस्‍तार होने के अलावा रोजगार अवसरों का सृजन होगा और इसके साथ ही कौशल विकास भी संभव होगा।

जैसा कि सर्वविदित है, आज जीवीसी को मुख्य खतरा स्वचालन (ऑटोमेशन) और कृत्रिम बुद्धिमत्‍ता (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) के व्‍यापक फैलाव या प्रसार से है। अब अधिक से अधिक विकसित देश रोबोटिक्स, 3डी प्रिंटिंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के जरिए अपनी तकनीक को उन्‍नत (अपग्रेड) करने की कोशिश कर रहे हैं क्‍योंकि इससे उन सस्ते स्थानों से उत्पादों की आउटसोर्सिंग कराने की आवश्यकता कम हो जाती है जहां सस्ते अर्द्ध कुशल कामगारों से काम कराया जाता है। दरअसल जहां एक ओर विकसित देश केवल अत्‍यंत कुशल कामगारों की ही मांग करेंगे, वहीं दूसरी ओर महज कुछ ही ऐसे विकासशील देश हैं जहां इस तरह के कुशल कामगार बड़ी संख्‍या में हैं। यही कारण है कि बिम्सटेक जैसे उप-क्षेत्र के विकास के लिए क्षेत्रीय मूल्य श्रृंखलाएं या क्षेत्रीय वैल्‍यू चेन (आरवीसी) अत्यावश्यक हैं।

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