Author : Nivedita Kapoor

Published on Nov 22, 2021 Updated 0 Hours ago

जेनेवा शिखर सम्मेलन के बाद अमेरिका और रूस के संबंध और अधिक स्थिर हुए हैं; हालांकि कई मुद्दों पर मतभेद से ज़ाहिर है कि ये रिश्ता कितना नाज़ुक है.

अमेरिका और रूस के बीच टिकाऊ और उम्मीद भरे रिश्तों का निर्माण: ख़्वाब या हक़ीक़त?

2 नवंबर को रूस की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सचिव निकोलाई पत्रुशेव और CIA के निदेशक विलियम बर्न्स के बीच मुलाक़ात हुई. दोनों अधिकारियों ने अमेरिका और रूस के संबंधों से जुड़े कई मसलों पर चर्चा की. वरिष्ठ अधिकारियों के साथ, विलियम बर्न्स का दो दिनों का रूस दौरा दोनों देशों के बीच, अलग-अलग स्तरों पर सिलसिलेवार संपर्कों के बाद हुआ था. इसकी शुरुआत जून 2021 में अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच जेनेवा में शिखर वार्ता के बाद हुई थी.

CIA निदेशक के दौरे से कुछ हफ़्तों पहले ही अमेरिका के राजनीतिक मामलों की अवर विदेश सचिव विक्टोरिया नुलैंड, रूसी अधिकारियों से बातचीत के लिए मॉस्को आई थीं. इस दौरान उन्होंने रूस के उप प्रधानमंत्री सर्गेई रियाबकव, राष्ट्रपति के सलाहकार यूरी उशाकोव और रूस के राष्ट्रपति कार्यालाय के उप-प्रमुख दिमित्री कोज़ाक (यूक्रेन मामलों के प्रभारी) से मुलाक़ात की थी. ये दौरे इस बात का संकेत हैं कि दोनों ही देश अब अपने संबंधों में स्थिरता लाना चाहते हैं, जो शीत युद्ध के बाद से ही गिरावट से गुज़र रहे हैं.

कोज़ाक और नुलैंड की मुलाक़ात में यूक्रेन, फ्रांस और जर्मनी के साथ-साथ ‘साझा हितों’ पर हुई बातचीत मिंस्क समझौतों को पूरी तरह लागू करते हुए ‘नतीजों वाली’ साबित हुई. ये दौरा, पुतिन-बायडेन के शिखर सम्मेलन के बाद हुआ था

विक्टोरिया नुलैंड का मॉस्को दौरा इसलिए संभव हो सका, क्योंकि रूस ने उनके अपने यहां आने पर लगे प्रतिबंध हटा लिए. इसके बदले में अमेरिका ने भी रूस के निरस्त्रीकरण विशेषज्ञ कोंस्टटैंटिन वोरोनत्सोव को अपने यहां आने का वीज़ा दिया था. ऐसे हालात तब से बने हुए थे, जब 2014 में यूक्रेन संकट के बाद दोनों ही देशों ने कुछ ख़ास अधिकारियों को अपने प्रतिबंधों का निशाना बनाया था. वैसे तो विक्टोरिया नुलैंड के रूस दौरे के बाद, कोई ख़ास एलान नहीं हुआ और दूतावास के कर्मचारियों का विवाद अभी अनसुलझा ही है. लेकिन, अमेरिका और रूस दोनों ही ने इन मुलाक़ातों पर सकारात्मक प्रतिक्रियाएं दीं.

अमेरिका और रूस के रिश्तों का मूल्यांकन

नुलैंड की पुतिन के सलाहकार उशाकोव के साथ मुलाक़ात में अमेरिका और रूस के रिश्तों का ‘खुलकर’ मूल्यांकन हुआ. वहीं, कोज़ाक और नुलैंड की मुलाक़ात में यूक्रेन, फ्रांस और जर्मनी के साथ-साथ ‘साझा हितों’ पर हुई बातचीत मिंस्क समझौतों को पूरी तरह लागू करते हुए ‘नतीजों वाली’ साबित हुई. ये दौरा, पुतिन-बायडेन के शिखर सम्मेलन के बाद हुआ था, जिसमें दोनों ही नेताओं ने समझौतों का समर्थन किया था. मिंस्क समझौतों को लागू करने को लेकर मतभेद और यूक्रेन के विरोध के बावजूद इसे लागू करने पर ज़ोर देने की बात से रूस में इस बात की उम्मीद जगी है कि वो यूक्रेन को इस प्रक्रिया के लिए रज़ामंद करेगा. नुलैंड और कोज़ाक ने यूक्रेन मसले पर लगातार संपर्क रहने पर भी सहमति जताई, जो कि इस मुलाक़ात की एक सकारात्मक उपलब्धि रही.

हालांकि, उम्मीदों के बावजूद, दोनों ही पक्ष अभी भी फूंक-फूंककर क़दम रख रहे हैं. क्योंकि अमेरिका और रूस के रिश्तों में फौरी तौर पर बड़े बदलाव की उम्मीद कम ही दिख रही है. लेकिन, दोनों देशों के अधिकारियों के बीच नियमित बातचीत एक स्वागतयोग्य क़दम है. इससे संबंधों में बेवजह का तनाव बढ़ने की आशंका कम होती है और रिश्तों के सामान्य होने की उम्मीद भी जगी है. इसके साथ साथ, इन मुलाक़ातों से ये भी ज़ाहिर हुआ है कि अमेरिका और रूस को अपने संबंध सामान्य करने के लिए अभी कितना काम करना बाक़ी है. मॉस्को में हुई हालिया मुलाक़ातें, दूतावासों के कर्मचारियों की संख्या के विवाद को सुलझाने में नाकाम रहीं. रूस का आरोप है कि अमेरिका ने वीज़ा नियम सख़्त कर दिए हैं, जिससे अमेरिका में उसके दूतावास के कर्मचारियों की संख्या सीमित हो गई है. रूस ने प्रस्ताव रखा है कि पहले लगाए गए सारे प्रतिबंध हटाए जाएं. माना जाता है कि इससे अमेरिका में रूस के उन दो कूटनीतिक ठिकानों के दोबारा खुलने की राह निकलेगी, जिन पर गोपनीय जानकारियां जुटाने के आरोप लगाकर उन्हें बंद कर दिया गया था. वहीं दूसरी तरफ़, अमेरिका का कहना है कि वो रूस में वीज़ा और कॉन्सुलर सेवाएं नहीं दे पा रहा है क्योंकि उसे स्थानीय कर्मचारियों को नौकरी पर रखने में बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है. अमेरिका ने रूस के साथ कूटनीतिक अधिकारी तैनात करने में बराबरी की मांग की है. अभी ये तय हुआ है कि इस मसले पर आगे की बातचीत विशेषज्ञों के स्तर पर की जाएगी.

अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिका की विदाई के बाद, तेज़ी से बदलते हुए हालात में रूस ने अमेरिका द्वारा मध्य एशिया में ठिकाने बनाने के इरादों पर अपनी आशंका ज़ाहिर की है. दोनों ही देशों ने साइबर सुरक्षा पर भी विशेषज्ञ स्तर की बातचीत शुरू की है. 

जून में दोनों देशों के राष्ट्रपतियों के शिखर सम्मेलन के बाद से सामरिक स्थिरता पर दो दौर की बातचीत हो चुकी है. ये बातचीत क़रीब एक साल के अंतराल के बाद, पहले जुलाई में और फिर सितंबर में हुई थी. दूसरे दौर के बाद, ‘भविष्य में हथियारों पर नियंत्रण और सामरिक असर रखने वाले सिद्धांतों और मक़सदों पर चर्चा’ के लिए दो कार्यकारी समूह भी बनाए गए थे. वहीं, तीसरे दौर की बातचीत अगले कुछ महीनों में हो सकती है. वैसे तो विक्टोरिया नुलैंड का इस मामले से कोई सीधा ताल्लुक़ नहीं है. लेकिन, माना जा रहा है कि उन्होंने अपने दौरे में रूसी अधिकारियों के साथ इस मसले पर भी बातचीत की थी.

हथियारों पर नियंत्रण के भविष्य और नई सामरिक हथियार नियंत्र संधि (START) पर चर्चा के साथ-साथ, दोनों देशों के एजेंडे में नई तकनीकें, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और अंतरिक्ष भी है; इसके अलावा दोनों देश अफ़ग़ानिस्तान, ईरान, कोरियाई प्रायद्वीप और सीरिया के मसलों पर भी बात करना चाहेंगे. अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिका की विदाई के बाद, तेज़ी से बदलते हुए हालात में रूस ने अमेरिका द्वारा मध्य एशिया में ठिकाने बनाने के इरादों पर अपनी आशंका ज़ाहिर की है. दोनों ही देशों ने साइबर सुरक्षा पर भी विशेषज्ञ स्तर की बातचीत शुरू की है. इस वक़्त इस बातचीत का मुख्य ज़ोर रैनसमवेयर और इससे जुड़ी जानकारियां साझा करने पर है. इस मामले में सबसे पेचीदा मसले, यानी साइबर दुनिया को हथियार बनाने को लेकर बातचीत अभी नहीं हो रही है. लेकिन, इस दिशा में भी कुछ प्रगति के संकेत तब दिखे जब दोनों ही देशों ने अक्टूबर महीने में 53 अन्य देशों के साथ मिलकर साइबर सुरक्षा के ख़तरों से जुड़े एक प्रस्ताव का समर्थन किया था.

पिछले कुछ महीनों के दौरान उठाए गए इन क़दमों के चलते ही रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने ये माना है कि ‘दोनों ही देश एक कार्यकारी और टिकाऊ संबंध स्थापित करने में सफल रहे’ हैं. पुतिन ने ये भी कहा कि मौजूदा अमेरिकी प्रशासन के साथ संवाद ‘सकारात्मक’ रहा है. अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने कहा है कि बाइडेन प्रशासन रूस के साथ ‘टिकाऊ और सकारात्मक संबंध’ चाहता है. इसके अलावा, दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों (जेक सुलीवन और निकोलाई पत्रुशेव) के बीच भी नियमित संवाद देखने को मिला है. वहीं दोनों ही देशों के आला सैन्य अधिकारियों (अमेरिका के ज्वाइंट चीफ ऑफ़ स्टाफ जनरल मार्क मिली और रूस के चीफ ऑफ जनरल स्टाफ जनरल वैलेरी गेरासिमोव) के बीच भी रक्षा क्षेत्र के अहम द्विपक्षीय और क्षेत्रीय मसलों पर चर्चा हुई है. चूंकि रूस ने जासूसी के आरोप में अपने आठ राजनयिकों के निष्कासन के बाद, 1 नवंबर से नैटो के साथ संवाद ख़त्म कर दिया है. ऐसे में अमेरिका और रूस के बीच इन संपर्कों की अहमियत और भी बढ़ गई है. रूस ने न केवल ब्रसेल्स में नैटो में अपने स्थायी मिशन को बंद कर दिया है, बल्कि नैटो के कर्मचारियों को भी 29 अक्टूबर को मॉस्को छोड़ना पड़ा क्योंकि रूस ने उनकी मान्यता वापस ले ली थी.

दोनों देशों के रिश्ते अभी भी कितने नाज़ुक मोड़ पर हैं, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अभी भी ‘तनाव और बढ़ने’ के जोखिम की चेतावनी दी जा रही है.

इस बीच, रूस ने अपना पूरा ध्यान चीन पर केंद्रित कर दिया है और ये इरादा जताया है कि वो ऐसे मोर्चों पर तनाव कम करने का इच्छुक है जो उसके मूल राष्ट्रीय हितों का हिस्सा नहीं हैं. वैसे तो रूस और चीन के रिश्ते काफ़ी मज़बूत हुए हैं. लेकिन, अगर उभरते हुए चीन पर क़ाबू करने के दौरान अमेरिका, रूस को चीन के साथ जोड़कर नहीं देखता, तो ये बात रूस के हक़ में ही जाती है. इससे दोनों ही पक्षों को आपसी रिश्तों को टिकाऊ बनाने में फ़ायदा दिखता है. पिछले कुछ महीनों के दौरान हुई बठकों से जो प्रगति हासिल हुई है, उससे आपसी चिंता वाले मसलों पर ठोस नतीजे हासिल करके और मज़बूत बनाया जाना चाहिए.

रिश्ते अभी भी नाज़ुक मोड़ पर

हालांकि, अभी हम ये नहीं कह सकते हैं कि अमेरिका और रूस के संबंध पूरी तरह सामान्य हो गए हैं. क्योंकि, प्रतिबंधों, यूक्रेन, साइबर सुरक्षा, हथियारों पर नियंत्रण, नैटो और यूरोप की सुरक्षा और उभरते हुई विश्व व्यवस्था में बुनियादी तौर पर मतभेद जैसे मसलों पर विवाद बने हुए हैं. हाल ही में अमेरिका ने काउंटर रैनसमवेयर इनिशिएटिव की मेज़बानी की थी और इसमें रूस को नहीं बुलाया था. जबकि हाल के महीनों में दोनों देशों ने साइबर क्षेत्र में काफ़ी प्रगति की है. दोनों देशों के रिश्ते अभी भी कितने नाज़ुक मोड़ पर हैं, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अभी भी ‘तनाव और बढ़ने’ के जोखिम की चेतावनी दी जा रही है.

जेनेवा शिखर सम्मेलन के बाद से अमेरिका और रूस के रिश्तों में साफ़ तौर पर संवाद सुधरा है. हालांकि, मतभेद अभी भी बने हुए हैं. 

इसके सुबूत नवंबर की शुरुआत में देखने को भी मिले, जब अमेरिका के प्रमुख सीनेटरों ने राष्ट्रपति जो बायडेन को चिट्ठी लिखकर मांग की कि अगर रूस, अमेरिकी राजनयिकों को बराबरी की संख्या में अपने यहां तैनात करने के लिए वीज़ा नहीं जारी करता, तो अमेरिका भी अपने यहां से 300 रूसी राजनयिकों को निष्कासित करे. रूस पहले ही ये कह चुका है कि वो कोई तनाव बढ़ाने से परहेज़ करना चाहेगा. लेकिन, अगर अमेरिका कोई रूस विरोधी क़दम उठाता है, तो फिर वो अपने यहां मौजूद अमेरिकी कूटनीतिक मिशन बंद कर देगा.

दूसरे शब्दों में कहें तो, जेनेवा शिखर सम्मेलन के बाद से अमेरिका और रूस के रिश्तों में साफ़ तौर पर संवाद सुधरा है. हालांकि, मतभेद अभी भी बने हुए हैं. लेकिन, सामरिक स्थिरता औऱ साइबर सुरक्षा जैसे साझा आपसी हितों को लेकर अधिकारियों/ विशेषज्ञों के बीच नियमित संवाद स्थापित करने को लेकर ठोस क़दम उठाए गए हैं. ये बात जेनेवा सम्मेलन में तय हुई थी और साइबर सुरक्षा पर संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव पर दोनों देशों के बीच सहयोग इसकी मिसाल है. ये अपने आप में बहुत बड़ा सुधार है. क्योंकि, 2014 के बाद से दोनों देशों के रिश्ते टूट के कगार पर खड़े थे. अब ये उम्मीद जगी है कि अमेरिका और रूस एक तयशुदा राह पर चलेंगे. अब इन मुलाक़ातों से आने वाले समय में कोई असरदार समझौता होगा या नहीं, ये तो आने वाला वक़्त ही बताएगा. यही रूस और अमेरिका के इरादों का असल इम्तिहान भी होगा.

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