भारत और अमेरिका के बीच व्यापार और निवेश (व्यावसायिक) कई वर्षों से नियमित तौर पर बढ़ रहा है. इसका भविष्य रोमांचक और परिवर्तनकारी हो सकता है, लेकिन दशकों से दोनों देशों की तरफ से व्यापारिक रिश्ते की अनदेखी होती आई है. कभी-कभी इसमें तल्खी भी आ जाती है तो कभी विवाद पैदा हो जाते हैं.
विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में भारत और अमेरिका एक दूसरे को ऐसे खेमे के नेता के तौर पर देखते रहे हैं, जो मल्टीलेटरल सिस्टम (बहुउद्देश्यीय व्यवस्था) के भविष्य को लेकर संघर्षरत है. इसकी तुलना मध्ययुगीन इंग्लैंड में सत्ता के उस संघर्ष से की जा सकती है, जिसे ‘वॉर ऑफ रोजेज’ कहा जाता है. यह युद्ध टुडॉर राज परिवार के उभार से खत्म हुआ, जो लैंकास्टर और यॉर्क को 15वीं सदी में साथ लाने में सफल रहा. इसी तरह भारत और अमेरिका के व्यापारिक रिश्तों में नए युग की शुरुआत नहीं होती, तब तक यह अनबन और मन-मुटाव जारी रहेगा. दोनों के बीच द्विपक्षीय व्यापार का भी यही हाल है. कई वर्षों तक दोनों में से किसी ने भी इसे बढ़ाने पर ध्यान नहीं दिया. उनके बीच नियमित अंतराल पर बैठकें होती रहीं, जिनमें एक दूसरे की वजह से होने वाली परेशानियों का जिक्र किया जाता रहा. साल में कभी-कभार मंत्रिस्तर की बातचीत भी होती है तो उसके बाद जारी होने वाले बयानों में एक दूसरे को उलाहना ही दिया जाता है.
भारत और अमेरिका के व्यापारिक संबंध आज दोराहे पर हैं. दोनों के बीच तनाव अप्रत्याशित स्तर तक बढ़ गया है. दोनों ने एक दूसरे पर ऐसी पाबंदियां लगाई हैं, जिनसे व्यापारिक हितों को नुकसान पहुंच रहा है.
यह दोनों देशों के बीच रक्षा क्षेत्र में बढ़ते सहयोग का उलटा है, जिसमें पिछले दो दशकों में ज़बरदस्त सुधार हुआ है. क्लिंटन और जॉर्ज डब्ल्यू. बुश की सरकारों के वक्त से भारत के साथ अमेरिका के रक्षा संबंध काफी मज़बूत हुए हैं. कई लोगों का कहना है कि व्यापारिक संबंध भी इससे निर्देशित होने चाहिए, लेकिन ये लोग भारत और अमेरिका के बीच ऐसे मजबूत व्यापारिक रिश्ते की अहमियत नहीं समझते, जो अपने पांव पर खड़ा रहे. सच है कि व्यापारिक रिश्तों को रक्षा संबंधों से ऊपर नहीं रखा जा सकता, लेकिन इसमें भी कोई शक नहीं होना चाहिए कि रक्षा संबंधों को व्यापारिक रिश्तों के ऊपर नहीं रखना जाना चाहिए. दोनों ही क्षेत्रों में स्वतंत्र लेकिन एक दूसरे को सहारा देने वाले संबंध बनाने के लिए काफी जतन करने पड़ते हैं. उसे मजबूत बनाने की काफी कोशिश करनी पड़ती है. डोनल्ड ट्रंप सरकार से पहले इसकी कई मिसालें थीं. अमेरिका के यूरोपीय संघ, जापान, दक्षिण कोरिया, कनाडा आदि के साथ ऐसे ही रिश्ते थे और यह लिस्ट बहुत लंबी है. भारत और अमेरिका के व्यापारिक संबंध आज दोराहे पर हैं. दोनों के बीच तनाव अप्रत्याशित स्तर तक बढ़ गया है. दोनों ने एक दूसरे पर ऐसी पाबंदियां लगाई हैं, जिनसे व्यापारिक हितों को नुकसान पहुंच रहा है. दोनों मुल्कों ने संरक्षणवादी कदम उठाए हैं. इससे ऐसी आवाजें मजबूत हुई हैं, जो व्यापारिक मामलों के रत्ती भर की छूट दूसरे पक्ष को देने के लिए तैयार नहीं हैं. जो आंख के बदले आंख की सोच को सही मानती हैं. इस दोराहे से एक तरफ ज़रा सा आगे बढ़े तो टकराव और बढ़ेगा और सुलह काफी मुश्किल हो जाएगी. दूसरे रास्ते पर कदम बढ़ाने पर सुलह हो सकती है और आपसी भरोसे और सहयोग का नया दौर शुरू हो सकता है. शायद यह रास्ता साफ न दिख रहा हो और टकराव की आशंका कहीं ज्यादा दिख रही हो, लेकिन इस मसले का हल निकल सकता है. इसके लिए क्या करना होगा? मैं यह नहीं कह रहा कि काम आसान है, लेकिन इसे पूरा किया जा सकता है. इसके लिए नीचे दिए गए कदम उठाने होंगे –
अगर दोनों देश आने वाले वर्षों में व्यापार मामलों को लेकर आपसी भरोसा बना पाते हैं तो 21वीं सदी के लिए वह निर्णायक साबित हो सकता है. इस सफर में ऐसा भी वक्त आएगा, जब मुक्त व्यापार समझौता के पक्ष में अधिक और विपक्ष में कम लोग खड़े होंगे.
- भविष्य की तरफ देखिए — भारत-अमेरिका एफटीए: अभी दोनों देशों के बीच एफटीए का आइडिया दूर की कौड़ी लग रही है, लेकिन इसका वक्त जल्द ही आ सकता है. यह आर्थिक एकीकरण का लगभग आखिरी पड़ाव है. अगर दोनों देश आने वाले वर्षों में व्यापार मामलों को लेकर आपसी भरोसा बना पाते हैं तो 21वीं सदी के लिए वह निर्णायक साबित हो सकता है. इस सफर में ऐसा भी वक्त आएगा, जब मुक्त व्यापार समझौता के पक्ष में अधिक और विपक्ष में कम लोग खड़े होंगे. एफटीए की बातचीत आसान नहीं होती और इसमें कई जोखिम होते हैं. इसके बावजूद भारत और अमेरिका को इस रिश्ते को सातवें आसमान पर ले जाने का ख्वाब देखना चाहिए.
इस विषय पर और जानकारी के लिए देखें ज्वाइंट अटलांटिक काउंसिल-यूएस-इंडिया स्ट्रेटिजिक पार्टनरशिप फोरम रिपोर्ट ➝ ट्रेड ऐट ए क्रॉसरोड्सः ए विजन फॉर यूएस-इंडिया ट्रेड रिलेशनशिप.
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