Published on Mar 02, 2022 Updated 0 Hours ago

शून्य उत्सर्जन (नेट ज़ीरो एमिशन) हासिल करने की अपनी प्रतिबद्धता दिखाने के लिए भारत ने ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन को प्रोत्साहन दिया है. 

भारत की ग्रीन हाइड्रोजन नीति: की अनिश्चित शुरुआत

ईंधन, वाहक और ऊर्जा के भंडार के रूप में कार्बन मुक्त हाइड्रोजन वैश्विक हरित एजेंडे के शीर्ष पर है. ये आज के कम कार्बन वाले ईंधन- प्राकृतिक गैस- की जगह ले सकती है. इसकी वजह ये है कि   प्राकृतिक गैस कोयला, डीज़ल या हेवी फ्यूल ऑयल के मुक़ाबले स्वच्छ तो है लेकिन वो कार्बन की मात्रा में बहुत ज़्यादा कमी नहीं कर सकती है जबकि ग्लोबल वॉर्मिंग को औद्योगिक क्रांति से पहले के स्तर से 1.5 से 2 डिग्री से ज़्यादा के बीच सीमित रखने के लिए कार्बन की मात्रा में ज़्यादा कमी होना ज़रूरी है.

भारत को कार्बन शून्य बनने के लिए थोड़ा ज़्यादा समय मिला है (विकसित देशों के लिए 2050 और चीन के लिए 2060 के मुक़ाबले 2070 तक). हमारी प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन दर कम है. इस तरह हमारे पास ज़्यादातर विकसित अर्थव्यवस्थाओं के मुक़ाबले बदलाव के लिए सोच-विचार का ज़्यादा वक़्त है. लेकिन ऊपर से कई तरह की सख़्त हरित शर्तों का सामना करना पड़ रहा है जैसे यूरोपीय संघ (ईयू) में प्रवेश करने वाले सामानों पर हरित कर और अंतर्राष्ट्रीय वित्त के प्रवाह और लागत को हरित व्यापर से जुड़ी साख से जोड़ना. ऐसे में ग्रीन हाइड्रोजन (जीएच) को जल्द अपनाने से वैश्विक स्थिरता को लेकर प्रतिबद्धता का पता चलता है.

हमारी प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन दर कम है. इस तरह हमारे पास ज़्यादातर विकसित अर्थव्यवस्थाओं के मुक़ाबले बदलाव के लिए सोच-विचार का ज़्यादा वक़्त है. लेकिन ऊपर से कई तरह की सख़्त हरित शर्तों का सामना करना पड़ रहा है.

प्राकृतिक गैस का एक घरेलू विकल्प

ग्रीन हाइड्रोजन न सिर्फ़ प्राकृतिक गैस (जिसका बड़ा हिस्सा हम आयात करते हैं) का एक स्वच्छ विकल्प है बल्कि ये ऊर्जा के भंडार के उद्देश्य से भी ठीक है. इस तरह ग्रीन हाइड्रोजन सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा से रुक-रुक कर आने वाली बिजली की आपूर्ति को संतुलित करने में उपयोगी है. वर्तमान में प्राकृतिक गैस, हमारे सीमित जल विद्युत संसाधन और कोयले से पैदा होने वाली बिजली से ज़रूरत को पूरा किया जाता है. ग्रीन हाइड्रोजन इस्पात और उर्वरक उत्पादन में भी कोयले की जगह ले सकती है. ग्रीन हाइड्रोजन जहाज़ों और सड़क पर माल ढोने वाले भारी वाहनों के लिए भी उपयुक्त ईंधन है क्योंकि इसका ऊर्जा घनत्व डीज़ल का तीन गुना और हेवी फ्यूल ऑयल का 3.5 गुना होता है.

भारत की तेल कंपनियां 2007 से स्लेटी हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए पायलट प्रोजेक्ट चला रही हैं लेकिन इसमें ज़ोर जैव ईंधन और मिथेन को हाइड्रोजन में बदलने पर था.

ग्रीन हाइड्रोजन के लिए मॉड्यूलर नीति की परिस्थिति

15 अगस्त 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने “भारत को ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन और निर्यात में एक वैश्विक केंद्र बनाने के लिए राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन”, “ऊर्जा में आत्मनिर्भरता” बढ़ाने और “हरित विकास” और “हरित कार्य” के ज़रिए “पूरे विश्व में स्वच्छ ऊर्जा की तरफ़ बदलाव” को “प्रेरित” करने का ऐलान किया.

नवंबर 2021 में ग्लासगो में जलवायु परिवर्तन पर आयोजित कॉप 26 शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने पांच प्रतिबद्धताएं व्यक्त की- 2070 तक शून्य उत्सर्जन, 2030 तक कुल ग़ैर-जीवाश्म ईंधन उत्पादन क्षमता को बढ़ाकर 500 गीगावॉट तक ले जाना, ऊर्जा ज़रूरत का 50 प्रतिशत नवीकरणीय ऊर्जा से पूरा करना, अर्थव्यवस्था की ऊर्जा तीव्रता (सकल घरेलू उत्पाद और ऊर्जा खपत का अनुपात) को 45 प्रतिशत कम करना और कार्बन उत्सर्जन 1अरब टन कम करना. “रिपोर्ट कार्ड” को लेकर सचेत मोदी सरकार ने वित्तीय वर्ष 2022 (जिसे 1 फरवरी 2022 को पेश किया गया) के लिए बजट में दोहराया कि ग्रीन हाइड्रोजन पर और ज़्यादा काम किया जाएगा. हालांकि इस काम के लिए किसी भी तरह के वित्तीय संसाधन का वादा नहीं किया गया.

वित्तीय वर्ष ख़त्म होने से एक महीने पहले ऊर्जा मंत्रालय ने 17 फरवरी को नीति के “पहले चरण” की घोषणा की जिसमें उन क़दमों का ज़िक्र है जो ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन में मदद के लिए प्रस्तावित हैं. “ग्रीन हाइड्रोजन” नवीकरणीय ऊर्जा या जैव ईंधन से उत्पादित हाइड्रोजन या अमोनिया के इस्तेमाल से पानी के इलेक्ट्रोलाइसिस (विद्युत अपघटन) के ज़रिए बनाई जाती है. इसमें बिजली के इस्तेमाल के ज़रिए पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विभाजित किया जाता है.

ग्लासगो में जलवायु परिवर्तन पर आयोजित कॉप 26 शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने पांच प्रतिबद्धताएं व्यक्त की- 2070 तक शून्य उत्सर्जन, 2030 तक कुल ग़ैर-जीवाश्म ईंधन उत्पादन क्षमता को बढ़ाकर 500 गीगावॉट तक ले जाना, ऊर्जा ज़रूरत का 50 प्रतिशत नवीकरणीय ऊर्जा से पूरा करना, अर्थव्यवस्था की ऊर्जा तीव्रता को 45 प्रतिशत कम करना और कार्बन उत्सर्जन 1अरब टन कम करना.

हाइड्रोजन उत्पादकों को शुल्क से राहत

“ग्रीन हाइड्रोजन” के उत्पादकों को 30 जून 2025 तक शुरू होने वाले प्रोजेक्ट के द्वारा ख़रीदी जाने वाली नवीकरणीय ऊर्जा पर 25 साल तक अंतर-राज्यीय ट्रांसमिशन शुल्क (आईएसटीसी) से छूट मिली हुई है. ये पूरी तरह से नया वित्तीय प्रोत्साहन नहीं है. डिस्कॉम (बिजली वितरण कंपनियां) को पहले से ही नवीकरणीय ऊर्जा (जिसमें जल विद्युत शामिल नहीं है) और बैटरी से बिजली ख़रीदने पर पावरग्रिड (राष्ट्रीय ग्रिड ऑपरेटर) को आईएसटीसी का भुगतान करने से छूट मिली हुई है. नई बात ये है कि थोक उपभोक्ताओं (जैसे कि ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादक) को भी अब 2045 तक आईएसटीसी का भुगतान करने से छूट मिलेगी.

इस दीर्घकालीन प्रोत्साहन के पीछे दोहरा उद्देश्य है. पहला उद्देश्य ये है कि चूंकि बिजली की लागत ग्रीन हाइड्रोजन की लागत के 45 से 60 प्रतिशत के बीच है, ऐसे में आईएसटीसी में छूट से थोक नवीकरणीय ऊर्जा की आपूर्ति को पहुंचाने की लागत में 25 प्रतिशत की कमी- ये मानकर कि नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन की लागत 2 रुपये प्रति किलोवॉट आवर (kWh) है और आईएसटीसी 0.66 रुपया प्रति किलोवॉट आवर है- होती है. इस तरह हिस्सेदारी की गुंजाइश व्यापक होती है और बड़े कारोबारी घरानों (अंबानी, अडानी और वेदांता) के आगे भी संभावित प्रतिस्पर्धा खड़ी होती है जिन्होंने पहले ही ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन और आपूर्ति- जिसमें एकीकृत नवीकरणीय ऊर्जा और ग्रीन हाइड्रोजन गीगावॉट कॉम्प्लेक्स की स्थापना शामिल है- में अपनी दिलचस्पी जताई है.

नवीकरणीय ऊर्जा के लिए बड़ा घरेलू बाज़ार बनाना आवश्यक है, तभी ग्लासगो में भारत की तरफ़ से तय किए गए अति महत्वाकांक्षी लक्ष्य को पूरा किया जा सकता है. भारत ने ग्लासगो में प्रतिबद्धता जताई थी कि 2030 तक खपत की जाने वाली बिजली का 50 प्रतिशत हिस्सा नवीकरणीय ऊर्जा का होगा.

दीर्घकालीन प्रोत्साहन के पीछे दूसरा उद्देश्य ये है कि आईएसटीसी में छूट देने से नवीकरणीय ऊर्जा की बिक्री के लिए बड़े घरेलू बाज़ार को विकसित करने का अल्पकालीन लक्ष्य भी पूरा होता है. वर्तमान में अनिवार्य रूप से नवीकरणीय ऊर्जा की ख़रीद से जुड़ी बाध्यता के बावजूद डिस्कॉम पूर्व-अनुबंधित “लेना या भुगतान करना” की व्यवस्था के तहत जीवाश्म ईंधन ऊर्जा से पीछे हटने के लिए तैयार नहीं हैं. चूंकि ज़्यादातर डिस्कॉम सरकारी स्वामित्व वाली हैं, इसलिए वो अपने राज्य से बाहर के ऊर्जा उत्पादकों के मुक़ाबले राज्य के भीतर के उत्पादकों से बिजली ख़रीदने को प्राथमिकता देती हैं. नवीकरणीय ऊर्जा के लिए बड़ा घरेलू बाज़ार बनाना आवश्यक है, तभी ग्लासगो में भारत की तरफ़ से तय किए गए अति महत्वाकांक्षी लक्ष्य को पूरा किया जा सकता है. भारत ने ग्लासगो में प्रतिबद्धता जताई थी कि 2030 तक खपत की जाने वाली बिजली का 50 प्रतिशत हिस्सा नवीकरणीय ऊर्जा का होगा. ये 2021 में सिर्फ़ 11 प्रतिशत नवीकरणीय ऊर्जा की वास्तविक खपत से क़रीब पांच गुना ज़्यादा है.

ग़ैर-जीवाश्म उत्पादन क्षमता (नवीकरणीय के अलावा जल विद्युत भी लेकिन परमाणु ऊर्जा नहीं) में अगले आठ वर्षों के दौरान विस्तार करके जनवरी 2022 के 152 गीगावॉट की मौजूदा क्षमता के मुक़ाबले 2030 तक इसके दोगुना से भी ज़्यादा जोड़ने का लक्ष्य है. इसे देखते हुए हाइड्रोजन उत्पादकों से नवीकरणीय ऊर्जा के लिए तेज़ी से मांग बढ़ाना एक समय के अनुसार विकल्प है. साथ ही अल्पकालीन ग्रिड संतुलन के लिए गीगावॉट के स्तर पर बैटरी भंडारण की दिशा में निरंतर रिसर्च एवं विकास और आख़िर में दीर्घकालीन ग्रिड संतुलन के लिए हाइड्रोजन आधारित संग्रहित ऊर्जा भी विकल्प हैं.

प्रोत्साहन के तौर पर नवीकरणीय ऊर्जा तक खुली पहुंच

तीसरा, ऊर्जा मंत्रालय की नीति ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादकों को राष्ट्रीय ग्रिड में किसी भी नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादक तक खुली पहुंच का भरोसा देती है. लेकिन इसमें समस्या ये है कि जिस राज्य का ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादक है, क्या उस राज्य का बिजली नियामक (एसईआरसी) आसान शर्तों पर नवीकरणीय ऊर्जा तक खुली पहुंच को स्वीकृति देने के लिए तैयार होगा. राज्य के बिजली नियामक अपने-अपने राज्यों के डिस्कॉम की आमदनी की रक्षा करते हैं. डिस्कॉम लाभदायक औद्योगिक क्षेत्र में बिजली की आपूर्ति पर काफ़ी निर्भर रहते हैं क्योंकि इससे होने वाले फ़ायदे से रिहायशी और कृषि क्षेत्र में आपूर्ति से होने वाले नुक़सान को पूरा किया जा सकता है. राज्य सरकार से मिलने वाली सब्सिडी आंशिक नुक़सान की ही भरपाई करती है.

चुनिंदा उपभोक्ता समूहों के हाथों में सब्सिडी के सीधे हस्तांतरण की ज़्यादा तर्कसंगत प्रणाली को अपनाना लागत आधारित बिजली बिल के भुगतान की नियम संबंधी मर्यादा को सुरक्षित रखने का सबसे अच्छा विकल्प है. आंतरिक उपाय के रूप में काम-काज के दौरान केंद्र और राज्यों के बीच अच्छा संबंध अलग-अलग राज्यों में बिजली नियामकों के सामने नवीकरणीय ऊर्जा तक खुली पहुंच के प्रावधानों को आसान बना सकती है. उदाहरण के रूप में, बिना किसी भेदभाव के खुली पहुंच को स्वीकृति देना, चाहे उस राज्य के नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादक से ख़रीदा जाए या किसी अन्य नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादक से ख़रीद हो. इसके बदले में डिस्कॉम सिर्फ़ एक छोटा सा शुल्क लगाए और क्षेत्रीय एवं राज्य के लोड डिस्पैच सेंटर के काम-काज को चलाने के लिए फीस वसूल करे. इस बात की संभावना है कि ज़्यादातर हाइड्रोजन उत्पादक पश्चिमी और पूर्वी समुद्री तट में स्थित राज्यों में हों क्योंकि ग्रीन हाइड्रोजन का इस्तेमाल जहाज़ के अलावा निर्यात में भी होता है. बिजली मंत्रालय की नीति ग्रीन हाइड्रोजन या अमोनिया बंकर के लिए ज़मीन उपलब्ध कराने का ज़िम्मा बंदरगाह चलाने वाले प्राधिकरण को देती है. ज़्यादातर नवीकरणीय ऊर्जा का स्रोत भी सौर ऊर्जा होने की उम्मीद है. इसका ये मतलब है कि खुली पहुंच तक आम राय की गुंजाइश राष्ट्रव्यापी होने की उम्मीद नहीं है. इससे कुछ प्रमुख हिस्सेदारों (स्टेकहोल्डर) के बीच व्यावहारिक रूप से खुली पहुंच की नीतियों के सामूहिक रूप से स्वीकार्य होने का काम आसान हो जाता है.

बिजली मंत्रालय की नीति ग्रीन हाइड्रोजन या अमोनिया बंकर के लिए ज़मीन उपलब्ध कराने का ज़िम्मा बंदरगाह चलाने वाले प्राधिकरण को देती है. ज़्यादातर नवीकरणीय ऊर्जा का स्रोत भी सौर ऊर्जा होने की उम्मीद है. इसका ये मतलब है कि खुली पहुंच तक आम राय की गुंजाइश राष्ट्रव्यापी होने की उम्मीद नहीं है.

बिजली मंत्रालय की नीति कहती है कि किसी ग्रीन हाइड्रोजन निर्माता के द्वारा उपभोग की गई नवीकरणीय ऊर्जा, नवीकरणीय ऊर्जा ख़रीदने की बाध्यता से ज़्यादा, स्थानीय डिस्कॉम के क्रेडिट में जमा होगा. लेकिन जो ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन करने वाली कंपनियां सिर्फ नवीकरणीय ऊर्जा का उपभोग करती हैं, उनके लिए नवीकरणीय ऊर्जा ख़रीदने की बाध्यता नहीं है. इस तरह नवीकरणीय ऊर्जा सर्टिफिकेट (आरईसी) का भी अस्तित्व नहीं होगा. इसे स्पष्ट करने की ज़रूरत है और ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादकों को नवीकरणीय ऊर्जा की निगरानी ब्लॉकचेन तकनीक के ज़रिए करने की ज़रूरत है ताकि प्रमाणीकरण को सुनिश्चित किया जा सके.

ऊर्जा मंत्रालय ने ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन को प्रोत्साहन देने के लिए वो सब किया जो वो कर सकता था. नीति बनाने के इस विशिष्ट, मॉड्यूलर तरीक़े में दूसरे मंत्रालयों की तरफ़ से प्रोत्साहन दिया जाना बाक़ी है.

मुख्य उद्देश्यों की फिर से चर्चा

हमें अपने उद्देश्यों की और बारीक व्याख्या करने की ज़रूरत है. क्या हम कम-से-कम 2030 तक ग्रीन हाइड्रोजन का घरेलू उत्पादन अतिरिक्त घरेलू नवीकरणीय ऊर्जा की क्षमता के साथ करना चाहते हैं जिसमें सबसे सस्ते, इस काम के लिए उपयुक्त इलेक्ट्रोलाइज़र आयात का इस्तेमाल हो? या फिर हम शुरुआत से ही घरेलू स्तर पर इलेक्ट्रोलाइज़र सिस्टम के उत्पादन (मॉड्यूल, स्टैक और इससे जुड़े उपकरण जो हाइड्रोजन की उत्पादन लागत का 40 प्रतिशत होते हैं) के लिए वैश्विक तकनीकी स्पर्धा का हिस्सा बनना चाहते हैं?

राजकोषीय समझदारी कहती है कि सरकार ख़ुद को प्राकृतिक गैस के साथ मिश्रण और इस्पात, तेल शोधन एवं उर्वरक उत्पादन के लिए ग्रीन हाइड्रोजन की मांग को आवश्यक बनाने तक सीमित रखे.

राजकोषीय समझदारी कहती है कि सरकार ख़ुद को प्राकृतिक गैस के साथ मिश्रण और इस्पात, तेल शोधन एवं उर्वरक उत्पादन के लिए ग्रीन हाइड्रोजन की मांग को आवश्यक बनाने तक सीमित रखे. जो प्राइवेट कंपनियां हाइड्रोजन उत्पादक बनना चाहती हैं, वो इलेक्ट्रोलाइज़र तकनीक चुनने के लिए स्वतंत्र हों, इलेक्ट्रोलाइज़र तकनीक के आयात पर न्यूनतम आयात शुल्क की दर लगे और ग्रीन हाइड्रोजन के निर्यात को बढ़ावा दिया जाना चाहिए. ग्रीन हाइड्रोजन की तरफ़ बढ़ने पर इलेक्ट्रोलाइज़र की लागत में 80 प्रतिशत कमी होने की उम्मीद है जो 1 अमेरिकी डॉलर प्रति किलोग्राम है. इसमें बेहतर दक्षता के ज़रिए 20 प्रतिशत, लोड आवर में 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी और  जीवनकाल का दोगुना होना शामिल है.

ख़राब निवेश की वजह से तकनीकी जोख़िम महत्वपूर्ण है. मॉड्यूल और स्टैक के आकार को बढ़ाने, इलेक्ट्रोलाइट के विकल्प, और सिस्टम कन्फिगरेशन से जुड़े रणनीतिक, कार्यक्षमता और लागत में कमी की दुविधा है जिनको हाइड्रोजन के बदलते कारोबारी मामले के अनुसार अनुकूल बनाने की आवश्यकता है. घरेलू इलेक्ट्रोलाइज़र के उत्पादन को प्रोत्साहन- जो कि एक पूंजी प्रधान, बेहद स्वचालित प्रक्रिया है जिसमें सर्वोच्च कार्यक्षमता का स्तर चाहिए जो उच्च क्षमता और ज़्यादा मात्रा में उत्पादन करे- दूसरे दर्जे की प्राथमिकता होनी चाहिए.

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