Author : Suvojit Bagchi

Published on Aug 08, 2020 Updated 0 Hours ago

समाचार पत्र और यहां तक कि टेलीविज़न चैनलों को भी अस्तित्व बचाने के लिए गूगल व फे़सबुक को मात देना होगा. सवाल यह है- वे ऐसा कैसे करेंगे?

भारत में किस तरह से बदल रही है प्रिंट अख़बारों की इकोलॉजी

भारत में समाचार पत्रों द्वारा परोसी जाने वाली परंपरागत पत्रकारिता ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं. वो चाहे अंग्रेज़ी भाषा का पहला समाचार पत्र- जेम्स हिकी द्वारा 1779 में प्रकाशित बंगाल गजट हो या 19वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में भारतीय भाषाओं में छपना शुरू हुए समाचार पत्र हों. सरकारी पाबंदी, आर्थिक मंदी और टेलीविज़न के विस्तार ने समाचार पत्र उद्योग को पहले भी झकझोरा था, लेकिन इससे पहले कभी यह सवाल नहीं पूछा गया कि भारत में प्रिंट मीडिया जिंदा रहेगा या नहीं. लॉकडाउन शुरू होने के बाद पिछले चार महीनों से, भारतीय समाचार पत्र उद्योग- जो सुस्त रफ़्तार से चल रहा था- चरमरा उठा. इसका तात्कालिक असर उन बहुत से कर्मचारियों पर पड़ा, जिन्हें नौकरी छोड़ने के लिए कह दिया गया था. वजह राजस्व का जबरदस्त नुकसान है.

लगभग एक हजार प्रकाशकों की नुमाइंदगी करने वाली इंडियन न्यूज़-पेपर सोसाइटी का आकलन है कि साल के अंत तक उद्योग को लगभग 2 अरब अमेरिकी डॉलर का नुकसान हो सकता है. यह 2019 के राजस्व का लगभग आधा है. एक बार अर्थव्यवस्था के सुधर जाने पर प्रिंट उद्योग का राजस्व एक हद तक वापस आ सकता है, लेकिन संकुचित होती अर्थव्यवस्था में सुधार के आकार का अनुमान लगाना मुश्किल है. कंपनियां स्वाभाविक रूप से पब्लिसिटी बजट में कटौती करेंगी, जिससे प्रिंट उद्योग को और नुकसान होगा. यह चिंताजनक स्थिति है क्योंकि अपने स्वरूप के कारण, जो “नियत (फिक्स)” है, समाचार पत्र अभी भी भरोसेमंद हैं. जैसा कि द गार्डियन की संपादक, कैथरीन विनर बताती हैं. “एक अखबार पूर्ण है. यह अंतिम रूप से तैयार है, अपने आप में पक्का है, निश्चित है. इसके उलट  डिजिटल समाचार को लगातार अपडेट किया जाता है, सुधारा जाता है, बदला जाता है.”  कैथरीन कहती हैं. यह “पूर्णता” अखबारों की ताकत है. एक बार कुछ छप जाने के बाद, इसे टेलीविज़न या डिजिटल प्लेटफॉर्म की तरह बदला नहीं जा सकता है. लेकिन इस नियत प्रारूप के लिए चुनौतियां बढ़ रही हैं.

लगभग एक हजार प्रकाशकों की नुमाइंदगी करने वाली इंडियन न्यूज़-पेपर सोसाइटी का आकलन है कि साल के अंत तक उद्योग को लगभग 2 अरब अमेरिकी डॉलर का नुकसान हो सकता है. यह 2019 के राजस्व का लगभग आधा है.

सबसे महत्वपूर्ण कारक है न्यूज़ कैरियर की बढ़ोत्तरी- गूगल, फे़सबुक और बाकी दूसरे. एक तरफ वे किसी अन्य द्वारा उत्पादित समाचार ले लेते हैं और दूसरी तरफ वे समाचार पत्रों की आजीविका-राजस्व – को हड़प लेते हैं. समाचार पत्र और यहां तक कि टेलीविज़न चैनलों को भी अस्तित्व बचाने के लिए गूगल व फे़सबुक को मात देना होगा. सवाल यह है- वे ऐसा कैसे करेंगे? कई लोगों को लगता है कि डिजिटल प्लेटफॉर्म पर गुणवत्तापूर्ण सामग्री पेश कर पाठकों का सब्सक्रिप्शन हासिल करना आगे का रास्ता है.

सबसे बड़ी बदलाव की कहानियों में से एक है द न्यूयॉर्क टाइम्स (एनवाईटी), जो करीब एक दशक पहले कर्मचारियों की छंटनी कर रहा था, और अब 2017-18 में अच्छा लाभ अर्जित कर रहा है. एनवाईटी उस चीज को वापस लाने में कामयाब रहा जो उसकी थी- राजस्व. यह एक माहिर तकनीकी टीम की मदद से मुफ़्त से गैर-मुफ़्त कंटेंट तक की सुगम प्रक्रिया द्वारा किया गया. भारतीय समाचार पत्र इसका अनुसरण कर सकते हैं, लेकिन वे मॉडल के बारे में बंटे हुए हैं और यह बेवजह नहीं है. एक बड़ी दुविधा यह है कि क्या भारतीय पाठक गुणवत्तापूर्ण सामग्री के लिए भुगतान करने में रुचि रखते हैं, जबकि मुफ्त सामग्री हर जगह उपलब्ध है? इस सवाल का जवाब आसान नहीं है.

समाचार पत्र की सबसे बड़ी पूंजी इसका बुनियादी ढांचा है, जो इसकी समस्या भी है. यह बहुत बड़ा है, क्योंकि उद्योग बड़ी संपादकीय टीम, प्रिंटिंग प्रेस, सर्कुलेशन और मार्केटिंग नेटवर्क के कारण बड़ी संख्या में मानव श्रम पर निर्भर है. अधिकांश समाचार पत्र उत्पादन की लागत पर अपने राजस्व से सब्सिडी देते हैं. कोविड-19 के दुनिया पर असर डालने से पहले से ही वह स्रोत सूख रहा था, जबकि डिजिटल का बढ़ रहा था.

सबसे महत्वपूर्ण कारक है न्यूज़ कैरियर की बढ़ोत्तरी- गूगल, फे़सबुक और बाकी दूसरे. एक तरफ वे किसी अन्य द्वारा उत्पादित समाचार ले लेते हैं और दूसरी तरफ वे समाचार पत्रों की आजीविका-राजस्व – को हड़प लेते हैं. समाचार पत्र और यहां तक कि टेलीविज़न चैनलों को भी अस्तित्व बचाने के लिए गूगल व फे़सबुक को मात देना होगा.

“जनवरी 2020 में पेश एक रिपोर्ट में बताया गया है कि 2019 में डिजिटल विज्ञापन 2018 की तुलना में 26% की वृद्धि के साथ 13,683 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है, जबकि समग्र विज्ञापन में 9.4% की वृद्धि हुई थी.” इसकी तुलना में 2019 में प्रिंट में 4.5% की वृद्धि हुई है. यह दर्शाता है कि प्रिंट और डिजिटल के बीच अंतर घटता जा रहा है, जबकि डिजिटल अपेक्षाकृत छोटा उद्यम है. उपभोक्ताओं को ऑडियो, टेक्स्ट और वीडियो कंटेंट पेश करने के वास्ते प्लेटफ़ॉर्म शुरू करने और संचालित करने के लिए डिजिटल की एक छोटी केंद्रीकृत इकाई की ज़रूरत होती है. ये कॉन्ट्रीब्यूटर्स को शुल्क देकर कंटेंट हासिल करते हैं और इनके दूसरे खर्चे भी काफी कम होते हैं.

समाचार पत्रों की एक और ‘समस्या’ है पक्षपात, एक समाचार पत्र परंपरा स्थापित करता है कि वह किसी का पक्ष नहीं लेता; वह वस्तुनिष्ठ और निष्पक्ष है. दूसरी ओर, पाठक अक्सर पक्षपाती खबरें पढ़ना पसंद करते हैं, वे उम्मीदवारों के पक्ष में या उनके खिलाफ अभियान पसंद करते हैं. डिजिटल के बड़े हिस्से को लोगों को उत्तेजित करने और ध्रुवीकरण करने के लिए डिज़ाइन किया गया है, जो अखबारों के अभ्यास के लिए एकदम उलट है.

पक्षपाती सूचना के लिए जनता की मांग ने कैंब्रिज एनालिटिका (सीए) जैसे संगठनों को जन्म दिया, जो राजनीतिक दलों के लिए यूज़र्स के व्यवहार का अध्ययन और उसमें बदलाव करता है. सीए जो अब बंद हो गई है, और इसी तरह के संगठन खबरें बनाने के लिए साइकोग्राफिक्स का इस्तेमाल करते हैं, अक्सर चुनावों को प्रभावित करने के लिए.

“ये खबरें और भड़काऊ पोस्ट फेसबुक, इसकी सहायक कंपनी इंस्टाग्राम और ट्विटर सहित दूसरी सोशल नेटवर्क साइट्स के बीच घूमती रहती हैं. वे अक्सर वास्तविक लोगों और मीडिया कंपनियों के कंटेंट से बेहतर प्रदर्शन करती हैं. द इकोनॉमिस्ट ने 2017 में बताया कि अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव अभियान [2016] में ट्विटर पर पोस्ट किए गए हर पांच राजनीतिक संदेशों में से एक को बॉट्स द्वारा पैदा किया गया था.”

सोशल मीडिया पर लक्षित या निजी अभियान के लिए अक्सर सोशल मीडिया टूल्स की मदद से टेक्स्ट, वीडियो, डाक्यूमेंट्स का इस्तेमाल कर खबर जैसी दिखने वाली सामग्री तैयार की जाती है- इस प्रक्रिया को ‘डॉक्सिंग’ कहते हैं. एक समानांतर समाचार उद्योग बन चुका ‘डॉक्सिंग’ समाचार उद्योग के लिए एक बड़ा खतरा है.

इस संदर्भ में, कुछ बहुत उच्च-गुणवत्तापूर्ण पत्रकारिता विकसित हो रही है, जो पश्चिम में पहले ही आकार ले चुकी है. उदाहरण के लिए, जैसा कि द इकोनॉमिस्ट की संपादक ज़ेनी मिंटन बेड्डोस ने बताया कि सिर्फ पत्रकारों या लेखकों ने ही नहीं बल्कि मेडिकल पेशेवरों की एक टीम ने उनके समाचार पत्र के लिए नियमित रूप से कोविड-19 की कवरेज की है. गंभीर समाचार उद्योग उच्च गुणवत्तापूर्ण सामग्री पेश करके अभी भी जीवित रह सकता है, क्योंकि इसमें अभी भी पुराने दौर के ठोस संपादकों की निगरानी में एक दमदार रिपोर्टिंग टीम है, जो तकनीक की विरोधी नहीं है और तेज़तर्रार नई पीढ़ी के साथ काम करने को तैयार है.

समाचार पत्रों की एक और ‘समस्या’ है पक्षपात, एक समाचार पत्र परंपरा स्थापित करता है कि वह किसी का पक्ष नहीं लेता; वह वस्तुनिष्ठ और निष्पक्ष है. दूसरी ओर, पाठक अक्सर पक्षपाती खबरें पढ़ना पसंद करते हैं, वे उम्मीदवारों के पक्ष में या उनके खिलाफ अभियान पसंद करते हैं.

भारत में, लाइव लॉ जैसे विशेषज्ञ समाचार पोर्टल रफ्तार पकड़ रहे हैं. आंशिक रूप से वित्त पोषित और आंशिक रूप से सब्सक्रिप्शन-आधारित मॉडल वाले लाइव लॉ लगभग दो दर्जन कर्मचारियों, फ्रीलांसरों और कुछ कॉन्ट्रीब्यूटर्स के साथ अदालतों की कवरेज करता है. इसके  सभी लेखकों की कानूनी पृष्ठभूमि है और यह विशेषज्ञ कानूनी समाचार मंच लगातार तरक्की कर रहा है. समाचार पत्रों को लाइव लॉ जैसे विशेषज्ञ प्लेटफार्मों से बढ़ती चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.

अंत में, व्यक्तिगत रूप से संचालित वीडियो ब्लॉग, सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म, मैसेजिंग ग्रुप और एप्लिकेशन भी बड़ा आकर्षण रखते हैं, साथ ही अखबारों के पोर्टल से ट्रैफ़िक को दूर ले जा रहे हैं क्योंकि उपभोक्ता समझ रहे हैं कि सोशल मीडिया पर उनके संदेश तेजी से असर कर सकते हैं. इस तरह स्वाभाविक रूप से उपभोक्ता दुनिया भर में परंपरागत मीडिया से दूर जा रहे हैं.

गंभीर समाचार उद्योग उच्च गुणवत्तापूर्ण सामग्री पेश करके अभी भी जीवित रह सकता है, क्योंकि इसमें अभी भी पुराने दौर के ठोस संपादकों की निगरानी में एक दमदार रिपोर्टिंग टीम है, जो तकनीक की विरोधी नहीं है और तेज़तर्रार नई पीढ़ी के साथ काम करने को तैयार है.

समाचार पत्र या गंभीर समाचार उद्योग अब सिर्फ एक काम समाचार-संग्रह- करता नहीं रह सकता है- उसे डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र की बेहतर समझ के साथ तकनीक को अपनाने से लेकर छोटे-छोटे संस्थानों और व्यक्तियों के संग काम करना, कई फ़ॉर्मेट में स्टोरी को पेश करने से लेकर नए तरीके की मार्केटिंग रणनीति का पता लगाना होगा. उम्मीद है, समाचार पत्र इन हकीकतों पर ध्यान केंद्रित करेंगे, इससे पहले कि बहुत देर हो जाए.

ये लेखक के निजी विचार हैं.

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