Published on Jan 02, 2021 Updated 0 Hours ago

कोविड-19 के दौरान पैदा हुए ‘रिमोट-वर्किंग’ के तौर तरीके, आने वाले दिनों में काम करने के लचीले परिवेश को बढ़ावा देंगे ख़ासतौर पर, क्योंकि कई नियोक्ता और कंपनियां अब रणनीति स्वरूप, रिमोट-वर्किंग को एक दूरगामी कार्य प्रणाली के रूप में देखती हैं. 

वर्क फ्रॉम होम से वर्क फ्रॉम एनिव्हेयर तक: ‘को-वर्किंग’ का भविष्य

जब हम साल 2020 की ओर देखते हैं, तो इस साल को 24 मार्च से पहले के जीवन और उसके बाद के जीवन में बांटा जा सकता है क्योंकि इन दोनों धड़ों में एक स्पष्ट अंतर दिखाई देता है, यानी वह दिन जब भारत में ढाई महीने के राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की शुरुआत हुई. इसे किसी भी तरह से भारत में कोविड-19 की महामारी की शुरुआत के रूप में नहीं माना जाना चाहिए, लेकिन यह तारीख़ अधिकांश लोगों के सामान्य जीवन और काम करने के तरीकों में आए आमूलचूल बदलाव का प्रतीक बन गई है. यह वो दिन है जब हमारे घर और दफ़्तर एक हो गए.

पिछला साल यानी 2019 अब एक सुदूर अतीत की तरह महसूस होता है. एक ऐसी दुनिया जिसमें, लचीले कार्यक्षेत्र (flexible workspaces) रियल एस्टेट क्षेत्र में नई किंतु तेज़ी से शामिल हो रही अवधारणा थे.[1] यह छोटा किंतु महत्वपूर्ण क्षेत्र, रियल एस्टेट में वृद्धि का उत्प्रेरक था. दुनियाभर में लचीले कार्यक्षेत्र, यानी ऐसी जगहें जहां कई उद्यमी एक साथ मिलकर काम कर सकें, या जो सामान्य दफ़्तरों की परिपाटी से दूर हों, अब व्यवसायों के लिए केवल एक ऐसा विकल्प नहीं थे, जो लागत-प्रभावी, कुशल, गतिशील और कर्मचारियों के लिए अत्याधुनिक वातावरण लेकर आएं. यह कार्यक्षेत्र काम करने के एक नए तरीके के सूचक थे. घर के करीब, लचीले या फ्लैक्सिबल कार्यक्षेत्रों की मांग- जिसमें को-वर्किंग स्पेस यानी सह-कार्यशीलता को बढ़ावा देने वाले कार्यालय और नई से नई सुविधाओं से लैस, कार्यक्षेत्र शामिल हैं- एशिया प्रशांत क्षेत्र में, किसी भी और भूगोल की अपेक्षा बेहद तेज़ी से बढ़ी.[2] इस मायने में भारत लचीले कार्यक्षेत्रों के दूसरे सबसे बड़े बाज़ार के रूप में उभरा है.[3]

साल 2020 इस बढ़ोत्तरी और विकास का साल होने वाला था, यहां तक कि संशयवादी विश्लेषक भी मानते थे, कि इस क्षेत्र में खासी वृद्धि होगी.

लेकिन हम सब जानते हैं कि हुआ क्या.

दुनिया भर में, उद्योग और कंपनियां एकाएक ठहर गईं और किसी को इस बात का पता नहीं था कि सामान्य जीवन की शुरुआत यानी महामारी का अंत कब होगा. काम करने में आने वाली रुकावटों और हमारे कामकाजी जीवन में पड़े व्यवधानों ने लचीले कार्यक्षेत्रों से जुड़े उद्योग पर नकारात्मक प्रभाव डाला. ये जगहें जो जीवन, ऊर्जा और नए विचारों का पर्याय बन चुकी थीं, अचानक वीरान हो गईं. घर से काम करने को लेकर मीडिया में कुछ नकारात्मक सुर्खियाँ भी आईं, लेकिन जैसे-जैसे दिन, हफ़्तों में और हफ़्ते महीनों में बदले, लॉकडाउन से प्रेरित उदासी और सब कुछ खत्म होने की भावना ने सख़्त व्यावहारिकता के लिए रास्ता बनाया है. अब यह संकेत मिल रहे हैं, कि यह क्षेत्र महामारी के बाद की दुनिया में अधिक लचीलेपन के साथ लौटेगा और इससे संबंधित विकास के अवसरों में उछाल संभावित है.[4] महामारी के बाद की इस दुनिया में उम्मीद और आशावाद का कारण यह तथ्य है कि, कोविड-19 के चलते बड़े पैमाने पर हुए व्यवधानों ने, नए किस्म के व्यावसायिक समाधानों की आवश्यकता पैदा की है, जो लागत प्रभावी, चुस्त और टिकाऊ हों. 

कोविड-19: फ्लेक्सिबिल वर्किंग क्षेत्र पर प्रभाव

मार्च और अप्रैल के अंत तक, देश में लगे लॉकडाउन के चलते, महामारी का तत्काल प्रभाव था, व्यापारिक गतिविधियों का पूरी तरह बंद होना. इस बीच कंपनियां व्यावसायिक निरंतरता नियोजन (business continuity planning) में जुट गईं, कार्यबल की छंटनी की गई, और कार्यक्षेत्र व घर के बीच की रेखाएं धुंधली हो गईं. कई प्रभावशाली कंपनियों ने लॉकडाउन के दौरान अपनी ऑनसाइट संबंधी व्यावसायिक गतिविधियों पर पूरी तरह से रोक लगा दी और साथ ही उन नीतियों का शुभारंभ किया, जिनसे कर्मचारियों को घर बैठे काम करने (work from home) की छूट मिले. इसके साथ ही ऐसी नीतियां अमल में लाई गईं, जिनके माध्यम से उत्पादन की अधिकता सुनिश्चित की जा सके.

लॉकडाउन के बाद के महीनों में, ‘फ्लेक्स ऑपरेटरों’ यानी लचीले कार्यक्षेत्रों के मालिकों ने अपने ग्राहकों में 50 प्रतिशत की गिरावट देखी.[5] लेकिन इस संकट के बीच, उद्योग का अंतर्निहित लचीलापन भी स्पष्ट हुआ है, और धीरे-धीरे, इस उद्योग ने वापस पटरी पर आने के संकेत दिखाए हैं. निश्चित रूप से, इसके ऐतिहासिक संदर्भ भी है. ब्रेक्सिट (Brexit) यानी ब्रिटेन द्वारा यूरोपीय संघ से अलग होने की कार्रवाई के दौरान, यूके में जिन कंपनियों के लिए स्थानांतरित होना ज़रूरी था उनके लिए लचीले कार्यक्षेत्र एक प्राकृतिक विकल्प साबित हुए थे. इसके चलते, बर्लिन और पेरिस में स्थित लचीले कार्यक्षेत्र मुख्य तौर पर लाभार्थी रहे[6]. इसके अलावा, आर्थिक मंदी के दौरान भी, ऑस्ट्रेलिया में लचीले कार्यक्षेत्रों के प्रति रुझान में 30 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई थी.[7]

ब्रेक्सिट (Brexit) यानी ब्रिटेन द्वारा यूरोपीय संघ से अलग होने की कार्रवाई के दौरान, यूके में जिन कंपनियों के लिए स्थानांतरित होना ज़रूरी था उनके लिए लचीले कार्यक्षेत्र एक प्राकृतिक विकल्प साबित हुए थे.

इस सबके बीच हमारे सामूहिक शब्दकोष में एक नया शब्द जुड़ा है- सोशल डिस्टेंसिंग यानी सामाजिक दूरी जिसे शारीरिक दूरी बनाए रखने के तौर पर समझा जाता है. संक्रमण और वायरस से बचाव के लिए छह फुट की दूरी बनाए रखने का नियम सभी भौतिक स्थानों के लिए पत्थर की लकीर बन गई है, और इससे कंपनियों को बैठने, कार्यस्थलों के नक़्शे बनाने और संचालन पर पुनर्विचार करने के लिए मज़बूर होना पड़ा है.[8] इसके अलावा, कई कंपनियों ने नई कार्य योजनाएं अपनाईं हैं और बारी बारी से कर्मचारियों को दफ़्तर बुलाने (rostered working days) की अवधारणा को साकार किया है. बड़े पैमाने पर लचीलेपन के इस विस्तार और कार्यनीति के रूप में इसे अपनाए जाने ने, नए बिज़नेस मॉडल के रूप में वीवर्क (We Work) जैसी कंपनियों में नए सिरे से विश्वास पैदा किया है. इसके अलावा, महामारी से आई मंदी के चलते जब कंपनियां अपने आर्थिक संसाधनों पर लगाम कस रह थीं, और खर्च संबंधी लागत को बचाने के लिए, अपने निश्चित परिसंपत्ति निवेशों (fixed asset investment) पर पुनर्विचार कर रही थीं, तब ‘फ्लेक्स स्पेस’ यानी लचीले कार्यक्षेत्र, लागतों को तर्कसंगत बनाए रखने और वित्तीय चपलता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की रणनीति बना रहे थे.

महामारी एक उत्प्रेरक के रूप में कार्य करेगी, जिसमें ‘वर्क फ्रॉम होम’ मॉडल एक ऐसी दुनिया में तब्दील होने का नेतृत्व करेगा, जहां ‘रिमोट वर्किंग’ एक सामान्य प्रणाली हो. यहां ‘घर से काम करने’ का मूल मंत्र ‘कहीं से भी काम करने के’ के रूप में बदल जाएगा.

लेकिन सवाल यह है कि उन व्यक्तिगत उपभोक्ताओं का क्या जो अपने घरों की सुरक्षा से काम कर रहे हैं? यहां, भी महामारी एक उत्प्रेरक के रूप में कार्य करेगी, जिसमें ‘वर्क फ्रॉम होम’ मॉडल एक ऐसी दुनिया में तब्दील होने का नेतृत्व करेगा, जहां ‘रिमोट वर्किंग’ एक सामान्य प्रणाली हो. यहां ‘घर से काम करने’ का मूल मंत्र ‘कहीं से भी काम करने के’ के रूप में बदल जाएगा. इसके अलावा महामारी ने जिस अन्य परिपाटी को महत्वपूर्ण साबित किया है, वह है कार्यालयों का प्रशिक्षण, परामर्श और सहयोग के लिए महत्वपूर्ण स्थान बना रहना. यह एक ऐसी ज़रूरत है जिसके बारे में कर्मचारियों ने खुलकर अपनी राय ज़ाहिर की है, और यह स्पष्ट है कि वह ‘वर्क फ्रॉम होम’ की परिपाटी में कार्यालयों की इस भूमिका की कमी महसूस करते हैं. इस संबंध में गूगल के सुंदर पिचई और एक्सेंचर (Accenture) से संबंधित जूली स्वीट जैसे उद्योग जगत के नेताओं ने, व्यावसायिक विकास के लिए, मानवीय संबंधों यानी इन-पर्सन इंटरैक्शन के महत्व पर ज़ोर दिया है.[9] साल 2020 में मैकिन्से की रिपोर्ट में यह भी पाया गया था कि एक ही स्थान पर काम करने वाली टीमों को विश्वास बनाने में आसानी होती है.[10] इस रिपोर्ट में वर्क फ्रॉम होम करने वाले कर्मचारियों के सामने आने वाली चुनौतियों पर भी ज़ोर दिया गया था, जिनमें पर्याप्त संचार और समन्वय की कमी शामिल है.[11] इन निष्कर्षों को ब्रूक्स संस्थान की रिपोर्ट में प्रतिध्वनित किया गया है, जिसमें दोहराया गया था कि लोग जटिल सूचनाओं के आदान-प्रदान और चर्चाओं के लिए डिजिटल संवाद के बजाय, आमने-सामने संवाद करना पसंद करते हैं.[12] इन समस्याओं के कारण, अध्ययनों से पता चला है कि 90 प्रतिशत से अधिक लोग, सप्ताह में कम से कम एक दिन कार्यालय लौटना चाहते हैं. इस तरह के आंकड़े भौतिक कार्यक्षेत्रों के महत्व और लोगों के लिए उनकी ज़रूरत को रेखांकित करते हैं.

इस संबंध में एक अन्य महत्वपूर्ण सवाल यह भी है कि भौतिक कार्यालय, जो फिलहाल खाली पड़े हैं, और जो कोविड-19 के पहले वाली स्थिति के अनुरूप शायद ही कभी पहुंच पाएं, उनका क्या होगा? एक बार फिर इस दिशा में ‘फ्लेक्स-स्पेस’ (लचीले कार्यक्षेत्र) समस्या के समाधान के रूप में उबर सकते हैं, क्योंकि लचीले कार्यक्षेत्रों के चुनाव के ज़रिए स्थाई कार्यक्षेत्रों के संचालक, स्थायी कर्मचारियों को बनाए रखने से जुड़ी प्रतिबद्धताओं से काफ़ी हद तक मुक्त हो सकते हैं, साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जा सकता है कि, परिसर के भीतर सामाजिक दूरी, स्वच्छता और नियमों का कड़ाई से पालन किया जा रहा है.

जैसा कि वीवर्क इंडिया (WeWork India) के सीईओ करण विरवानी ने कहा है कि, “कोरोनोवायरस महामारी ने लचीले कार्यक्षेत्रों की ओर रुझान को बढ़ावा दिया है. इस तरह की कंपनियां, व्यवसायों और शैक्षिक संस्थानों सोशल डिस्टेंसिंग संबंधी नियमों का पालन करने और अपने कार्य स्थलों पर भीड़ को कम करने के लिहाज़ से इस्तेमाल कर सकते हैं. कॉर्पोरेट ग्राहक हमारे कुल व्यापार का लगभग 65-70 फ़ीसदी हिस्सा हैं, और हमें उम्मीद है कि यह आगे भी बना रहेगा.” [13] यह देखते हुए कि भारत में वर्क फ्रॉम होम की व्यवहार्यता, कई प्रतिबंधों के कारण सीमित है, जैसे- व्यापक इंटरनेट कनेक्टिविटी की कमी और अन्य चुनौतियां,[14] ऐसे में लचीले कार्यक्षेत्र, कर्मचारियों को अधिक लचीलापन व व्यवसायों के लिए लागत प्रभावी समाधान, दोनों प्रदान करते हैं, जो ख़ासतौर पर कोविड-19 के बाद की दुनिया में बेहद प्रासंगिक होगा. ये मॉडल पहले से ही छोटे और मध्यम उद्यमों के लिए नए तरह के समाधान लेकर आए थे, जिसके चलते यह अनुमान लगाया गया था कि गैर-महामारी के संदर्भ में भी साल 2020 तक 13 मिलियन से अधिक लोग, लचीले कार्यक्षेत्रों से काम करेंगे.[15] इसके अलावा, लचीले कार्यक्षेत्र, भारत की ‘गिग अर्थव्यवस्था’ (gig economy) यानी कई तरह के छोटे व अस्थाई कामों के ज़रिए जीविकोपार्जन करने वाली अर्थव्यवस्था के उतार-चढ़ाव के पूरक भी होंगे, जिसमें 17 प्रतिशत की सालाना दर से वृद्धि हो रही है, और जिसका दायरा अब नाटकीय रूप से बढ़ेगा. यह केवल ब्लू-कॉलर नौकरियों के लिए ही नहीं होगा, बल्कि अलग-अलग तरह की व्हाइट-कॉलर नौकरियां भी इसमें शामिल होंगी. [16

कोविड-19: फ्लेक्स स्पेस करेंगे समस्याओं का समाधान?

भारत में वर्क फ्रॉम होम मॉडल के शुरुआती दिनों में उत्पादकता में वृद्धि के साथ-साथ कर्मचारियों द्वारा ‘काम और जीवन का बेहतर संतुलन’ (work life balance) महसूस करने संबंधी कई रिपोर्ट सामने आईं. [17] हालांकि, जैसे-जैसे महीने बीतते गए, कई तरह की चुनौतियां भी सामने आई हैं, जिनमें मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दे भी शामिल हैं. कोच्चि स्थित एक गैर सरकारी संगठन के हालिया सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है, कि ज़्यादातर लोगों के लिए कार्यालय से काम करने की तुलना में वर्क फ्रॉम होम अधिक तनावपूर्ण और सुस्त साबित हो रहा है. लगभग 87 प्रतिशत उत्तरदाताओं को लगा कि कंपनियों को कर्मचारियों की भलाई पर केंद्रित स्पष्ट नीतियों को विकसित करना होगा, ताकि कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर किया जा सके [18] स्क्रीन पर देखते रहने (screen time) के समय में वृद्धि, बैठने की अजीब स्थितियां और सामाजिक संपर्क की कमी के कारण, कर्मचारियों को शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे गतिहीन कार्य पैटर्न (sedentary work life) को दीर्घकालिक रूप से विपरीत स्वास्थ्य प्रभावों के लिए जाना जाता है, जिसमें तनाव के स्तर में बढ़ोत्तरी शामिल है. वर्ल्ड इकोनॉमिक फ़ोरम (World Economic Forum) की महामारी से पहले आई एक रिपोर्ट के अनुसार,[19] ब्रिटेन जैसे देशों में लोगों के मानसिक स्वास्थ्य और शारीरिक स्वास्थ्य में गिरावट को लेकर चिंता बढ़ रही है. इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कार्यस्थलों पर तनाव, अवसाद और चिंता के कारण व्यवसायों को हर साल 100 मिलियन पाउंड तक का नुक़सान हो सकता है.

इसकी तुलना में लचीले कार्यक्षेत्रों के अध्ययन, विपरीत यानी सकारात्मक नतीजे प्रस्तुत करते हैं. समर्पित सामुदायिक प्रबंधकों (community managers) को नियुक्त करने और अपने परिसरों में विभिन्न तरह के ईवेंट आदि आयोजित कर, फ्लेक्स ऑपरेटरों ने एक ऐसी संस्कृति को बढ़ावा देने की कोशिश की है, जो काम के साथ मनोरंजन के संतुलन पर आधारित है. इस तरह के कार्यक्षेत्र स्वाभाविक रूप से कर्मचारियों और सदस्यों को अलग-अलग उद्योगों में काम करने वालों से घिरे रहने की अनुमति भी देते हैं, क्योंकि इन कार्यक्षेत्रों में कई कंपनियों के दफ़्तर एक साथ खुले होते हैं. इसके चलते अलग-अलग उद्योगों से संबंधित जानकारियां व इनोवेशन कंपनियों की अपनी कार्य-नीतियों को प्रभावित करती हैं, और एक सहयोगी कामकाजी वातावरण बनाने की दिशा में काम करती हैं. इसके अलावा लचीले कार्यक्षेत्र नेटवर्किंग और ज्ञान-साझाकरण की दिशा में भी सुविधाजनक साबित होते हैं. कई बार, इन जगहों पर बेहद मूल्यवान किस्म की व्यावसायिक सलाह और संभावित व्यावसायिक अवसरों का आदान-प्रदान होता है, जो सदस्यों के परस्पर विकास को सुनिश्चित करता है. हाल ही में वीवर्क और ओआरएफ (WeWork-ORF) की ओर से किए एक संयुक्त अध्ययन में यह बात सामने आई है कि सह-कार्यकर्ता यानी साथ मिलकर काम करने वाले कर्मचारी, अपनी नौकरी और कार्यभार के साथ, अपेक्षाकृत उच्च स्तर की संतुष्टि व्यक्त करते हैं. वह काम और व्यक्तिगत जीवन के बीच सकारात्मक कार्य-संतुलन का अनुभव करते हैं, और भविष्य में मिलने वाले नौकरियों के अवसरों को लेकर आशावादी रहते हैं.[20]

इसके अलावा लचीले कार्यक्षेत्र, विविधता और समावेशिता (inclusion) की संस्कृति को बढ़ावा देते हैं. वीवर्क-ओआरएफ के इस अध्ययन के अनुसार, युवा-वर्ग में श्रम शक्ति की औसत आयु घटी है, और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि युवा-वर्ग में श्रम शक्ति का आकलन कहता है, कि इसमें महिला श्रमिकों की संख्या अधिक है (~ 39 प्रतिशत) जो अन्य सभी वर्गों (~ 26 प्रतिशत) की तुलना में बेहतर है. भारत में कामकाजी महिलाओं के लिए लचीले कार्यस्थल क्या लाभ उपलब्ध कराते हैं, इस व्यवहार्यता का आकलन करना भी ज़रूरी है, ताकि इन जगहों को व्यापक रूप से अपनाने की दिशा में सभी अवयवों को ध्यान में रखते हुए सम्मिलित रूप से काम किया जा सके. महिला कर्मचारी फिलहाल घरेलू और पेशेवर दोनों ज़िम्मेदारियों से लदी हैं, क्योंकि वर्क फ्रॉम होम की विस्तारित अवधि ने भारतीय सामाजिक ढांचे के भीतर, उन पर पारिवारिक ज़िम्मेदारियां और बढ़ा दी हैं. लचीले कार्यक्षेत्र, महिलाओं को घरेलू और कामकाजी दोनों पक्षों के बीच संतुलन बहाल करने की अनुमति दे सकते हैं.

महिला कर्मचारी फिलहाल घरेलू और पेशेवर दोनों ज़िम्मेदारियों से लदी हैं, क्योंकि वर्क फ्रॉम होम की विस्तारित अवधि ने भारतीय सामाजिक ढांचे के भीतर, उन पर पारिवारिक ज़िम्मेदारियां और बढ़ा दी हैं. लचीले कार्यक्षेत्र, महिलाओं को घरेलू और कामकाजी दोनों पक्षों के बीच संतुलन बहाल करने की अनुमति दे सकते हैं.

कार्यालयों के लिए नियत की गई जगहों की सीमाओं से आगे बढ़ते हुए, संगठन लचीले कार्यक्षेत्रों की आसान पहुंच का लाभ भी उठा सकते हैं- क्योंकि अधिकतकर लचीले कार्यक्षेत्र, शहरों की सीमाओं के भीतर मौजूद हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आवागमन का समय कम हो. यह आसान पहुंच, मेट्रो शहरों में और भी अधिक लाभ रखती है, क्योंकि दुनिया के अधिकांश देशों की तुलना में भारतीय लोग अपनी रोज़मर्रा ज़िंदगी में और दफ़्तर आने जाने में कहीं अधिक समय सड़कों पर और आवाजाही में व्यतीत करते हैं. आंकड़ों के मुताबिक भारत में यह समय हर दिन लगभग दो घंटे से अधिक है.[21] मूवइनसिन ( MoveInSyn) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय अपने दिन का सात प्रतिशत समय ऑफ़िस आने जाने में ख़र्च करते हैं, जो औसतन तीन मिनट प्रति किलोमीटर से भी कम है [22]अलग-अलग शहरों में कार्यालय वितरित किए जाने से, यह मॉडल नियोक्ताओं को निकटता संबंधी मुद्दों को ध्यान में रखे बग़ैर, उम्मीदवारों के चयन की छूट देगा. अंतत: रिमोट वर्किंग कर्मचारियों को मेट्रो शहरों के बजाय किफ़ायती छोटे शहरों में स्थानांतरित होने की छूट देगी, जहां रहन-सहन की लागत कम है, बजाय मुंबई, बेंगलुरु और दिल्ली जैसे शहरों के, जहां औसत घरेलू किराया बेहद महंगा है.

लचीले कार्यक्षेत्रों की ओर रुख करने का एक और बड़ा लाभ, शहरी बुनियादी ढांचे के विकास और उस पर बोझ से संबंधित है. शहरों में रहने वाले लोगों की तेज़ी से बढ़ती संख्या के साथ, बड़े शहरों और विशेष रूप से व्यापार केंद्रों को संतुलित करने के बारे में सोचने की तत्काल आवश्यकता है. लचीले कार्यक्षेत्र, यात्रा की आसानी, नवीनतम तकनीक तक पहुंच और बीमारी संबंधी प्रोटोकॉल को लेकर विश्वसनीयता, इन सभी ज़रूरतों को एक छत के नीचे पूरा कर, ‘स्मार्ट सिटी’ के मॉडल को साकार करते हैं [23] स्थानीय इलाकों में लचीले कार्यक्षेत्रों के लिए सुविधाएं प्रदान करने से, शहरों में बढ़ती भीड़ और यातायात संबंधित प्रदूषण जैसी समस्याएं भी हल होंगी. आंकड़े बताते हैं कि कार मालिकों की संख्या 2015 के मुक़ाबले 2017 में 27 प्रतिशत बढ़ गई और दिल्ली में 11.2 मिलियन से अधिक पंजीकृत कारें थीं.[24] इसी अवधि में, मुंबई में [25] कार मालिकों की संख्या में 21.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि पंजीकृत कारों की संख्या 3.2 मिलियन रही.[26] बेंगलुरु में इस क्षेत्र में 10 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज़ की गई और पंजीकृत कारों की संख्या 6.8 मिलियन थी.[27] इसका मतलब केवल यह नहीं है कि भारत में महानगरों में अकल्पनीय रूप से भीड़ बढ़ रही है, बल्कि यह भी है कि प्रदूषण- ध्वनि और वायु दोनों स्तरों पर, इन शहरों में विकराल रूप ले रहा है. लचीले कार्यक्षेत्रों से, भारतीय शहरों को संतुलित करने यानी भीड़ कम करने में मदद मिल सकती है, और यह बदलाव, यातायात में बीतने वाले समय को भी कम करने में मदद करेगा. यह एक ऐसी समस्या है जिससे अधिकांश मेट्रोवासी प्रभावित हैं, और इससे संबंधित कोई भी सुधार उन्हें आकर्षित करेगा. इन बातों को परिप्रेक्ष्य में रखने के लिए, कई रिपोर्ट यह दिखाती हैं कि बेंगलुरु में रहने वाला व्यक्ति हर साल औसतन 243 घंटे यातायात में बिताता है.[28]

लचीले कार्यक्षेत्रों से, भारतीय शहरों को संतुलित करने यानी भीड़ कम करने में मदद मिल सकती है, और यह बदलाव, यातायात में बीतने वाले समय को भी कम करने में मदद करेगा.

समय की कीमत यदि पैसा है, तो यह समय का बेहतर उपयोग नहीं है. रोज़गार के नज़रिए से भी, लचीले कार्यक्षेत्र भारत के बढ़ते ‘गिग’ कार्यबल के लिए बहुत मायने रखते हैं. इससे जुड़े अधिक से अधिक पेशेवर, विशेष रूप से कम उम्र मिलेनियल कार्यबल, फ्रीलांस काम और छोटे अनुबंधों को प्राथमिकता देता है. भारतीय फ्रीलांस श्रमिक आज वैश्विक ऑनलाइन गिग अर्थव्यवस्था [29] का 24 प्रतिशत हिस्सा बन चुके हैं, और लचीले कार्यस्थल इन श्रमिकों की ज़रूरतों को पूरा करने की दिशा में बेहतर साबित हो सकते हैं. रुझान यह भी दिखाते हैं कि पूर्णकालिक (fulltime) नौकरियां कम हो रही हैं, और असाइनमेंट-आधारित यानी काम के अलग-अलग हिस्सों पर आधारित नौकरियां धीरे-धीरे अपनी जगह बना रही हैं. लचीले कार्यक्षेत्र व्यवसायों को ज़रूरत अनुसार अपने कार्यबल का आकार बदलने की छूट देंगे. इस प्रकार, नए कर्मचारियों को नियुक्त करना या पुराने कर्मचारियों के अनुबंधों की समाप्ति, संगठन के लिए बोझ बन कर नहीं आएगी और इसके बजाय यह फ्लेक्स ऑपरेटरों द्वारा आसानी से प्रबंधित किया जा सकेगा.

कोविड-19: सरकार कैसे कर सकती है हस्तक्षेप व सहयोग

महामारी के बाद कार्यक्षेत्र में हुए बदलाव को लेकर आई कई तरह की रिपोर्टों के अलावा, गार्टनर इंक[30] द्वारा जून 2020 में जारी एक सर्वेक्षण से यह संकेत मिलता है कि पर्याप्त संख्या में नियोक्ता अपने कर्मचारियों को महामारी के बाद भी दूर-दराज़ इलाकों से काम करने की सुविधा और अनुमति देने का इरादा रखते हैं. इस तरह के पूर्वानुमान सरकार द्वारा नीतिगत उपायों की मांग करते हैं, और लचीले कार्यक्षेत्रों को सुविधाजनक बनाने के लिए उद्योग व सरकारी तंत्र के बीच सहयोग बढ़ाने की ओर इशारा करते हैं. यह क़दम बेहद ज़रूरी है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वह महामारी से जनित नुक़सान से उबर सकें.

  • शुरूआत के लिए, लचीले कार्यक्षेत्रों से जुड़े उद्योग को सरकार की ओर से उद्योग के रूप में औपचारिक ‘मान्यता’ दिए जाने की आवश्यकता है. यह लचीले कार्यक्षेत्रों के बारे में जागरूकता को बढ़ाएगा और इस क्षेत्र के विकास में सहयोग प्रदान करेगा. बदले में, ‘काम का भविष्य’ चपलता, लचीलेपन और आसान पहुंच के त्रिकोणीय गठजोड़ के रूप में परिभाषित होगा, जिससे सरकार, उद्योगों और काम करने वालों, सभी का भला होगा. इसके अलावा इसे उद्योग के रूप में मान्यता देने से, बुनियादी ढांचे के विकास को लेकर चर्चा बढ़ेगी और उन शहरों में दफ़्तरों के विकास का मार्ग प्रशस्त होगा, जो बड़े महानगरों से इतर हैं, क्योंकि फिलहाल कामकाज संबंधी तंत्र पूरी तरह से महानगरों पर केंद्रित है.
  • दूसरे, स्तर पर लचीले कार्यक्षेत्रों से जुड़े उद्योग को मिली सरकारी सहायता , अन्य व्यवसायों के लिए भी उत्प्रेरक के रूप में काम करेगी, यानी ऐसे व्यवसाय जो इन कार्यक्षेत्रों पर निर्भर हैं, और जिनकी संख्या कोविड-19 के बाद आने वाले दिनों में निश्चित रूप से बढ़ेगी. लचीले कार्यक्षेत्रों के सबसे प्रमुख उपभोक्ताएओं में स्टार्टअप शामिल हैं, जो बड़ी संख्या में, महामारी के कारण, अस्तित्वगत संकट से जूझ रहे हैं[31] तो ऐसे में लचीले कार्यक्षेत्र, छोटे व मध्यम उद्यमों व स्टार्टअप्स के लिए, शासन व संचालन संबंधी सहायता कैसे प्रदान कर सकते हैं? इसका एक उदाहरण है, सरकार द्वारा मौजूदा स्वास्थ्य संकट के दौरान एप्लीकेशन डेवलपर्स को काम देने के लिए कई तरह के राहत पैकेज और योजनाएं शुरू किया जाना. इलेक्ट्रानिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय और नीति आयोग ने हाल ही में ‘अटल इनोवेशन मिशन’ की शुरुआत की, ताकि नए इनोवेटर्स को प्रोत्साहित करने के लिए पर्याप्त नकद पुरस्कारों के साथ भारतीय मूल के ‘ऐप इकोसिस्टम’ का भी निर्माण किया जा सके. इस तरह की पहल सरकार द्वारा स्टार्टअप्स का समर्थन करने के निरंतर प्रयासों को दर्शाती है.[32] लचीले कार्यक्षेत्र न केवल ऑफ़िस स्पेस के रूप में नए व छोटे स्टार्टअप के लिए पहली प्राथमिकता के तौर पर उभर रहे हैं, बल्कि उनके विकास को सुविधाजनक बनाने के लिए ‘इनक्यूबेटर’ यानी शुरुआती मदद देने वाले माध्यमों के रूप में भी उन्हें अवसर प्रदान करते हैं. वीवर्क लैब्स (WeWork Labs)[33] और नाइनटी-वन सप्रिंगबोर्ड इनक्यूबेटर (91Springboard)[34] जैसी पहल, जो मार्ग दर्शन और निवेश के अवसरों के ज़रिए, उद्यमियों की सहायता करती हैं, भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम में लचीले कार्यक्षेत्रों की बढ़ती और सकारात्मक भूमिका की ओर इशारा करती हैं. ऐसे में सरकारी कोशिशों और उद्योग जगत से जुड़े खिलाड़ियों के बीच साझेदारी से इस तरह के सहयोग-तंत्र को लाभ मिलेगा और देश में इनोवेशन को गति मिलेगी.
  • तीसरे स्तर पर, लचीले कार्यक्षेत्रों का समर्थन करने के लिए सरकारी हस्तक्षेप भी महत्वपूर्ण हो जाता है, ख़ासतौर पर तब जब हमें पता चलता है कि वर्तमान में भारतीय कार्य संस्कृति (work culture) ‘गिग अर्थव्यवस्था’ की ओर रुख कर रही है. मिलेनियल कर्मचारी, जो साल 2025 तक वैश्विक कार्यबल का 75 प्रतिशत से अधिक हिस्सा होंगे, [35] लचीली कार्य संस्कृतियों को प्राथमिकता देते हैं जो उन्हें उस काम को करने व ऐसी परियोजनाओं के साथ जुड़ने का विकल्प प्रदान करती हैं, जो उन्हें सबसे बेहतर लगते हों. लचीले कार्यक्षेत्रों के विकास का समर्थन व सहयोग करके, सरकार सीधे तौर पर उभरते हुए और बड़ी संख्या में अर्थव्यवस्था का हिस्सा बन रहे, गिग कर्मचारियों के साथ संलग्न होगी, जिनमें से अधिकांश जनसांख्यिकीय तौर पर ‘युवा वर्ग’ में आते हैं. यह जनसंख्या न केवल महामारी के बाद की दुनिया में हालात को सामान्य बनाने की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि आने वाले सालों में विकास को बढ़ावा देने, और नए अवसर पैदा करने के नज़रिए से भी ज़रूरी वर्ग है.
  • चौथा यह कि, जैसे-जैसे कर्मचारी भौतिक कार्यालयों से वर्क फ्रॉम होम में स्थानांतरित हो रहे हैं, सरकार को ऑनसाइट काम पर सुरक्षित वापसी के लिए, प्रभावी मानक संचालन प्रक्रियाएं (standard operating procedures) प्रदान करने होंगे. उद्योग जगत से जुड़ी इकाईयों को भी यह सुनिश्चित करना होगा, कि कर्मचारियों की सुरक्षा और भलाई सुनिश्चित करने के लिए इन प्रक्रियाओं को प्रभावी ढंग से लागू किया जाए. लॉकडाउन के अलग-अलग चरण के दौरान और ‘बैक टू वर्क ट्रांजिशन’ में, फ्लेक्स कार्यक्षेत्रों ने ऑन-साइट स्वास्थ्य और सुरक्षा प्रोटोकॉल को लेकर नए मारक तय किए हैं [36] और काम करने के इन तरीकों को सरकार द्वारा अन्य उद्योगों के लिए, बेंचमार्क के रूप में चिन्हित और लागू किया जा सकता है.
  • अंतिम रूप में, सरकारी निकायों और लचीले कार्यक्षेत्रों के बीच सहयोग भी विवेकपूर्ण दिखाई देता है, ख़ासतौर पर जब हम शहरी विकास मॉडल को इन दोनों के बीच साझा होता देखते हैं. सरकार अपने स्मार्ट सिटी मिशन के माध्यम से भारतीय शहरों को ‘स्मार्ट’ बनाने के लिए कई प्रावधान लेकर आई है. ‘नेशनल इन्फ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन’ के लिए लगभग 111 ट्रिलियन भारतीय रुपयों की राशि[37] अलग कर, आधिकारिक प्राथमिकता सुनिश्चित की गई है, और यह स्पष्ट है कि शहर, आम लोगों के लिए, विकास और उच्च जीवन स्तर का माध्यम बनें ऐसी मंशा है. लचीले कार्यक्षेत्रों के पास भी ऐसा ही मिशन है, जो भारतीय मेगा शहरों को ‘स्मार्ट’ बनाने पर केंद्रित है, ताकि पेशेवरों के लिए विश्वसनीय तकनीकी पहुंच सुनिश्चित की जा सके, और शहरों से भीड़ कम कर, टिकाऊ शहरी विकास को बढ़ावा दिया जा सके.

निष्कर्ष: महामारी के बाद का जीवन

महामारी ने सभी क्षेत्रों से जुड़े उद्योगों को काम करने के नए तरीकों को खोजने और नए कार्य समाधानों के बारे में सोचने के लिए मज़बूर किया है. कोविड-19 भले ही अकल्पनीय स्तर की वैश्विक आपदा हो, लेकिन इसने सही रूप से हमें मौजूदा कार्य प्रणालियों सवाल उठाने के लिए मज़बूर किया है. साथ ही यह ज़रूरी है कि हम काम करने के मौजूदा तरीकों पर भी सोचें. अब सारा दारोमदार इस बात पर है कि हम भविष्य को आशावाद के साथ और इस विश्वास के साथ देखें कि देश की अर्थव्यवस्था वापस उछाल दिखाएगी. दुनिया भर में मौजूद कर्मचारियों ने, वर्क फ्रॉम होम के ज़रिए अपने काम को रातों रात घरों से संचालित करने में सफलता पाई, क्योंकि आबादी के एक बड़े हिस्से के पास डिजिटल माध्यमों का तंत्र मौजूद था. हालाँकि, जैसा कि तर्क दिया गया है, वर्क फ्रॉम होम एक स्थायी कार्य-मॉडल नहीं है, और उद्योग इसके बजाय ‘कहीं से भी काम करने वाले’ मॉडल की ओर अग्रसर हो रहे हैं. उम्मीद यह है कि सरकार, कंपनियां और कर्मचारी रिमोट वर्किंग के विचार को लेकर सोचेगें और इसके ज़रिए कुछ नए समाधान निकालेंगे.

चीन में फैले सार्स (SARs) के प्रकोप ने लाखों चीनी उपभोक्ताओं को अलीबाबा नाम की ई-कॉमर्स वेबसाइट को अपनाने के लिए रज़ामंद किया, जबकि वाई2के (Y2K) बग ने भारतीय आईटी उद्योग के लिए आउटसोर्सिंग का दरवाज़ा खोला और देश में सूचना-प्रौद्योगिकी को एक अलग स्तर पर ले जाने का काम किया.

कोविड- 19 के दौरान तेज़ी से विस्तारित हुई, दूरस्थ कार्य संस्कृति (remote working culture), लचीले कार्यक्षेत्रों के विकास को आगे बढ़ाने में और बड़ी भूमिका निभाएगी, ख़ासकर तब जब बड़ी संख्या में नियोक्ता, दीर्घकालिक रूप से वर्क फ्रॉम होम को एक कार्य प्रणाली के रूप में स्वीकार करने का मन बना रहे हैं. सरकार और लचीले कार्यक्षेत्रों के बीच सहजीवी और निरंतर सहयोग, इस विकास को आगे बढ़ाने और यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है कि अर्थव्यवस्था, कार्यस्थलों से जुड़े नए समाधानों से लाभान्वित हो. आने वाले सालों में, 24 मार्च 2020 को उस दिन की तरह देखा जाएगा, जिस दिन ने समूचे भारत को ठहरने पर मज़बूर किया. लेकिन अगर कोई एक बात है, जो इतिहास हमें सिखाता है, तो वह यह कि संकट के क्षण, अवसरों में बदल सकते हैं. जैसे कि चीन में फैले सार्स (SARs) के प्रकोप ने लाखों चीनी उपभोक्ताओं को अलीबाबा नाम की ई-कॉमर्स वेबसाइट को अपनाने के लिए रज़ामंद किया, जबकि वाई2के (Y2K) बग ने भारतीय आईटी उद्योग के लिए आउटसोर्सिंग का दरवाज़ा खोला और देश में सूचना-प्रौद्योगिकी को एक अलग स्तर पर ले जाने का काम किया.

कौन कहता है, कि साल 2020 रिमोट वर्किंग के लिहाज़ से वही काम नहीं कर सकता, जो सार्स और वाई2के ने किया?


[1]  “Coworking’s Unstoppable Market Growth”, Coworking Market Growth.

[2] Kailash Babar, “Over 13 Million People Estimated to Operate out of Co-working Spaces in India by 2020: Report – ET RealEstate”, com, May 30, 2018

[3]  Pranay Gupta and Karan Virwani, “Co-working Has Cradled India’s Start-up Boom; the Support It Now Seeks Is Well-deserved”, Times of India Blog, May 12, 2020.

[4] Gupta and Virwani, Co-working Has Cradled India’s Start-up Boom; the Support It Now Seeks Is Well-deserved.

[5] Sanghamitra Kar, “Covid-19 Effect: Coworking Spaces See Empty Aisles”, The Economic Times, March 18, 2020.

[6] Instant Offices, Flex Market Snapshot: French Flexible Workspace Market Grows by 20%2020.

[7] Pranay Gupta and Karan Virwani, “Co-working Has Cradled India’s Start-up Boom; the Support It Now Seeks Is Well-deserved”, Times of India Blog, May 12, 2020.

[8] Anirudh Singh Chauhan, “COVID-19: Is the Co-working Space Industry Looking at an Uncertain Future?” 99acres, June 24, 2020, Accessed September 28, 2020.

[9] WeWork, “Reimagining work in the era of COVID-19,” WeWork, June 16, 2020.

[10] McKinsey, “The path to the next normal Leading with resolve through the coronavirus pandemic”, McKinsey & Company, May 2020.

[11] Santiago Comella-Dorda et al., “Revisiting Agile Teams after an Abrupt Shift to Remote.” McKinsey & Company, May 07, 2020.

[12] Julie Wagner and Dan Watch, “Innovation Spaces: The New Design of Work”, Brookings, April 2017.

[13] WeWork India Expects 25% Growth in Revenue for 2020 despite COVID-19”, Mint, September 04, 2020, Accessed September 28, 2020.

[14][14] Ananya Bhattacharya, “India’s Internet Penetration Is Actually Way Lower than You’d Think”, Quartz India, June 21, 2018.

[15]  “Over 13 Mn People Will Operate Out Of Co-working Spaces By 2020”, JLL India, May 31, 2018.

[16][16]  Deepak Sood, “As Coronavirus Makes Freelancing Popular, Govt Must Make Wage Policies, Safeguards for Gig workers”, The Financial Express, June 12, 2020, Accessed September 28, 2020.

[17] Rohini Swamy et al., “High Productivity, Less Gossip, but No Work-life Balance – WFH Tales of Bengaluru Techies”, ThePrint, July 04, 2020, Accessed October 06, 2020.

[18] Work from Home Stressful for Most, Finds Survey”, Top News Wood, June 01, 2020.

[19] Stephanie Russel, “Remote Working Could Harm Your Mental Health, Study Says”, World Economic Forum.

[20][20] Sabrina Korreck, “New Space for the Future of Work: Co-working in India,” ORF Occasional Paper No. 255, June 2020, Observer Research Foundation. Pp 43

[21] ET Bureau, “Indians Spend 7% of Their Day Getting to Their Office”, The Economic Times, September 03, 2019.

[22] ET Bureau, Indians Spend 7% of Their Day Getting to Their Office

[23] Karan Virwani, “Flexible Workspaces: A Smart Solution to Build Smart Cities”, Times of India Blog, August 04, 2020.

[24] Vaibhav Asher, “India – Total Number of Registered Vehicles in Delhi 2016”, Statista, November 22, 2019.

[25] Somit Sen, “From 20.3 Lakh to 32 Lakh, Mumbai’s Vehicle Count up 56% in Just 5 Years: Mumbai News – Times of India”, The Times of India.

[26] Vaibhav Asher, “India – Total Number of Registered Vehicles in Mumbai 2016”, Statista, November 22, 2019.

[27] Vaibhav Asher, “India – Registered Vehicles in Bengaluru 2017”, Statista, April 30, 2020.

[28] Bengaluru Is the ‘Most Traffic Congested City’ in the World: Report”, Bangalore Mirror, January 29, 2020.

[29] Karan Virwani, “Flexible Workspaces: A Smart Solution to Build Smart Cities”, Times of India Blog, August 04, 2020.

[30] Mary Baker, “Gartner Survey Reveals 82% of Company Leaders Plan to Allow Employees to Work Remotely Some of the Time”, Gartner.

[31] Aman Rawat, “Coworking Spaces Seek Relief From Rent, Bills As Startups Exit”, Inc42 Media, April 15, 2020.

[32] Trisha Jalan, “Govt Looks to Push Indian Apps with Atmanirbhar Innovation Challenge”, MediaNama, July 06, 2020.

[33] WeWork Labs Sees 11 of Its Incubated Startups Collectively Raise $5.5M – ETtec”, ETtech, March 13, 2019.

[34] Rashi Varshney, “New Incubator in Town 91SpringBoard to Invest in 10-15 Startups a Year”, Techcircle, March 19, 2013.

[35] The Associated Chambers of Commerce and Industry of India, “Gig Economy: The Way Forward”, January 24, 2020.

[36] Kannalmozhi Kabilan, “Coworking with Social Distancing”, The New Indian Express, June 27, 2020.

[37] Karan Virwani, “Flexible Workspaces: A Smart Solution to Build Smart Cities”, Times of India Blog, August 04, 2020.

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