हाल ही में महाराष्ट्र के मुख्य निर्वाचन अधिकारी द्वारा पेश की गई एक रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में 18-19 साल के महज़ 7,90,000 युवा मतदाता के रूप में पंजीकृत हैं जबकि राज्य में इस आयु वर्ग के युवाओं की संख्या 42,09,000 है. राज्य की कुल जनसंख्या में 18-19 साल के युवाओं की संख्या 4.5 प्रतिशत है, लेकिन इस आयु वर्ग में पंजीकृत मतदाताओं की संख्या राज्य की आबादी का महज़ 0.6 प्रतिशत है. राज्य भर के विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में नियमित रूप से मतदाता पंजीकरण अभियान चलाए जाने के बावजूद, 18-19 आयु वर्ग में पंजीकृत मतदाताओं की संख्या में मामूली सुधार हुआ है, जहां नवंबर 2022 में ऐसे मतदाताओं की संख्या कुल आबादी का 0.3 प्रतिशत थी, वहीं अप्रैल 2023 के लिए यह आंकड़ा 0.6 प्रतिशत था.
चूंकि, मतदाता पंजीकरण एक जीवंत, समावेशी और मज़बूत सहभागिता वाली लोकतांत्रिक व्यवस्था की पहली सीढ़ी है, ऐसे में मतदान के प्रति युवाओं की उदासीनता के कारणों को दूर करना ज़रूरी है.
इन आंकड़ों से देश भर में शहरी मतदाताओं की उदासीनता का पता चलता है, जहां राष्ट्र और राज्य स्तर के चुनावों की तुलना में स्थानीय चुनावों में बेहद कम मतदान होता है. आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि देश के कई शहरी युवा अपने मताधिकार के प्रयोग से दूर रहे हैं, और इस बात को लेकर राष्ट्रीय युवा नीति, 2014 में भी चिंता जताई गई है. नीति में राजनीति में युवाओं की भागीदारी बढ़ाने पर ज़ोर देने के अलावा यह भी कहा गया है कि ‘राजनीति और प्रशासन में युवाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए बेहद कम समन्वित प्रयास किए गए हैं.’
महाराष्ट्र भारत के सबसे ज्यादा शहरीकृत राज्यों में से एक है. इसलिए, महाराष्ट्र जैसे एक बड़े और शहरीकृत राज्य में अगर मतदाता पंजीकरण कम है तो इस पर पर्याप्त नीतिगत ध्यान देने की ज़रूरत है ताकि भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में युवाओं की सकारात्मक भागीदारी को बढ़ावा दिया जा सके. चूंकि, मतदाता पंजीकरण एक जीवंत, समावेशी और मज़बूत सहभागिता वाली लोकतांत्रिक व्यवस्था की पहली सीढ़ी है, ऐसे में मतदान के प्रति युवाओं की उदासीनता के कारणों को दूर करना ज़रूरी है. यह देखते हुए कि आने वाले दशकों में भारत की शहरी जनसंख्या में भारी वृद्धि होगी, ऐसे में शहरी युवाओं की लोकतांत्रिक भागीदारी पर विशेष रुप से ध्यान देने की आवश्यकता है. वैश्विक स्तर पर भारत जनसांख्यिकीय लाभांश की स्थिति में है, इसलिए भी यह मुद्दा देश के लिए कई कारणों से बेहद महत्त्वपूर्ण है.
वैश्विक जनसांख्यिकीय रुझान: भारत के लिए एक बड़ा मौका
अनुमान के मुताबिक भारत 2010-2056 के बीच जनसांख्यिकीय दृष्टिकोण से लाभ की स्थिति में होगा, जिस दौरान भारत की 51 से 56 प्रतिशत आबादी कामकाजी होगी. इसके विपरीत, कई देशों में जनसंख्या में गिरावट दर्ज की जा रही है, और जन्म दर के घटने और मृत्यु दर के स्थिर रहने के कारण इन देशों में कामकाजी आबादी तेज़ी से कम होती जा रही है. बड़े पैमाने पर कुशल कर्मचारियों के देश से बाहर जाने के कारण कुछ पूर्वी यूरोपीय देशों को जनसंख्या में गिरावट का सामना करना पड़ रहा है. वहीं दूसरी ओर, चीन में पिछले 35 सालों से एक संतान नीति को कड़ाई से लागू किए जाने के कारण उसकी जनसंख्या में कमी आई है, जिससे वैश्विक आर्थिक विकास प्रभावित हो सकता है. रिपोर्टों में यह भी कहा गया है कि रूस के हालिया (दुस्साहस भरे) सैन्य अभियानों के पीछे उसकी घटती युवा आबादी (विशेष रूप से पुरुषों के मामले में) है. पूर्व एशिया के दक्षिण कोरिया और जापान जैसे उन्नत देशों में जन्म-दर में रिकॉर्ड गिरावट देखी गई है, जो सामाजिक सुरक्षा का भारी बोझ उठा रहे हैं. जर्मनी यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, जिसकी शासन व्यवस्था उदारवादी लोकतांत्रिक मूल्यों द्वारा संचालित होती है. जर्मनी ने श्रमिकों की कमी की समस्या को दूर करने के लिए अप्रवास कानून में सुधार, कौशल विकास एवं प्रशिक्षण कार्यक्रमों का सहारा लिया है, जहां देश में हर साल 60,000 नौकरियां यूरोपीय संघ के बाहर के लोगों को दी जा रही हैं. हालांकि, रूस और चीन सहित ज्यादातर देश कई तरह की सामाजिक-राजनीतिक बाधाओं के चलते जर्मनी के नक्श-ए-कदम पर नहीं चल सकते.
भारत की राजनीति को “युवा देश, बूढ़े नेता” के रूप में परिभाषित किया जाता है. भारतीय राजनीति में अपनी धाक जमाने वाले ज्य़ादातर युवा नेता बड़े राजनीतिक परिवारों से ताल्लुक रखते हैं, जो सामाजिक-राजनीतिक रूप से बेहद प्रभावशाली हैं.
चूंकि भारत दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाला देश है, जहां आबादी में युवाओं की संख्या दुनिया में सर्वाधिक है. ऐसे में, भारत को इस स्थिति का फ़ायदा उठाना चाहिए और देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को मज़बूत बनाने के लिए उसे अपनी युवा शक्ति का भरपूर इस्तेमाल करना चाहिए और राजनीति और लोकतंत्र में युवाओं की भागीदारी को बढ़ावा देना चाहिए. तेज़ी से बदलती दुनिया में युवाओं की आकांक्षाओं को ध्यान में रखते हुए भारत के नीति-निर्माताओं को देश की राजनीतिक और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में युवाओं की भागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए.
भारतीय राजनीति में युवाओं की भूमिका
भारत की राजनीति को “युवा देश, बूढ़े नेता” के रूप में परिभाषित किया जाता है. भारतीय राजनीति में अपनी धाक जमाने वाले ज्य़ादातर युवा नेता बड़े राजनीतिक परिवारों से ताल्लुक रखते हैं, जो सामाजिक-राजनीतिक रूप से बेहद प्रभावशाली हैं. हालांकि मुख्यधारा की लगभग हर राजनीतिक पार्टी का अपना एक स्टूडेंट विंग है, और ये सभी पार्टियां कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में छात्र संघ के चुनावों में ज़ोर शोर से भाग लेती हैं, लेकिन ऐसा कोई व्यवस्थित तंत्र मौजूद नहीं है जो छात्र नेताओं को विधायी राजनीति में आगे बढ़ने में मदद कर सके और उन्हें मार्गदर्शन प्रदान कर सके. उदाहरण के लिए, 17वीं लोकसभा (2019-2024) में 40 वर्ष के कम उम्र सांसदों की संख्या महज़ 12 प्रतिशत है, वहीं स्वतंत्र भारत की पहली लोकसभा में 26 प्रतिशत सांसदों की उम्र 40 वर्ष से कम थी.
ख़ासकर, (हर बड़े) चुनाव से पहले राजनीतिक पार्टियां अपने घोषणापत्रों में युवाओं के लिए महत्वाकांक्षी कार्यक्रमों शुरू करने की बात करती हैं, जिनका अखबारों और सोशल मीडिया के ज़रिए भारी प्रचार किया जाता है. राजनीतिक संपर्क अभियानों में बड़े पैमाने पर युवाओं को शामिल किया जाता है, और राजनीतिक पार्टियां शक्ति प्रदर्शन के लिए चुनावी रैलियों में युवाओं की भागीदारी को प्रचारित करती हैं. हालांकि, चुनाव के बाद युवाओं के मुद्दे (शिक्षा और रोज़गार) को तरजीह नहीं दी जाती, जो चुनावी राजनीति में युवाओं की कमज़ोर स्थिति को बताता है क्योंकि उनमें अपनी मांगों को मज़बूती से रखने की क्षमता नहीं है. यहां तक कि छात्र नेता जब विधायी चुनावों में शामिल होते हैं, तो उनके पास राजनीतिक सौदेबाज़ी की ताकत बेहद सीमित होती है. इस तरह से देखें तो यही लगता है कि युवाओं की मतदाता भागीदारी अगर कम है तो यह एक विचित्र घटना न होकर एक अपेक्षित परिणाम मात्र है.
युवाओं की सहभागिता बढ़ाने के लिए क्या किया जा सकता है
भारत की राजनीतिक पार्टियों और नीति निर्माताओं को ऐसे रास्ते तलाशने होंगे जिनके ज़रिए युवाओं तक पहुंच बनाई जा सके और उन्हें देश की विकास यात्रा में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके. प्रतिनिधित्व के सवाल के अलावा, युवाओं की भागीदारी बढ़ने से से उनसे जुड़े मुद्दों को भी ज्यादा अहमियत मिलेगी. शिक्षा और रोज़गार से जुड़ी पारंपरिक चुनौतियों के अलावा, शासन तंत्र को युवाओं को प्रभावित करने वाले दूसरे अन्य मुद्दों का भी समाधान करना चाहिए. उदाहरण के लिए, जापान और चीन जैसे विकसित देशों में बच्चे न पैदा करने के पीछे वित्तीय दबाव एवं पारंपरिक लैंगिक भूमिकाएं ज़िम्मेदार हैं, ऐसे रुझान भारत में भी देखे जा रहे हैं, जहां ऐसी महिलाओं की संख्या बढ़ती जा रही है जो बच्चे न पैदा करने का विकल्प चुन रही हैं और बहुत कम युवा शादी का विकल्प चुन रहे हैं. यहां मुद्दा यह नहीं है कि नतीजे क्या हैं, बल्कि उन्हें प्रभावित करने वाले कारक और उनके प्रबंधन के तौर-तरीके समस्या के मुख्य जड़ हैं. जबकि संबंधित सरकारी रिपोर्टें सामाजिक मानसिकता में बदलाव का अध्ययन करती हैं, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि भारत युवाओं से जुड़ी नई समस्याओं का सामना कैसे कर रहा है, जिसके लिए शहरी दृष्टिकोण की आवश्यकता होगी.
चुनावों में युवा मतदाताओं की भागीदारी किस तरह से मीडिया जगत, लैंगिक प्रथाओं एवं वयस्कों और युवाओं के बीच साझेदारी से प्रभावित होती है, इस मुद्दे पर टफ्ट्स यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर इंफॉर्मेशन एंड रिसर्च ऑन सिविक लर्निंग एंड एंगेजमेंट के तहत विशेष अध्ययन किया गया है.
ऐसी चुनौतियों से पार पाने के लिए दोहरे स्तर पर प्रयास की ज़रूरत होगी: सबसे पहले तो युवा मतदाताओं को ये भरोसा दिलाना होगा कि उनके मुद्दे ज़रूरी हैं और समाधान प्रक्रिया में उन्हें शामिल करके सरकार और नीति निर्माण एजेंसियां उन्हें ये संदेश दे सकती हैं कि वे उनके प्रति गंभीर हैं. दूसरी ओर, चुनावी सुधारों के माध्यम से चुनावों और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में युवाओं की भागीदारी को बढ़ावा दिया जा सकता है. संदर्भ के लिए ऐसे देशों के उदाहरण लिए जा सकते हैं, जहां लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं सफ़ल रही हैं. चुनावों में युवा मतदाताओं की भागीदारी किस तरह से मीडिया जगत, लैंगिक प्रथाओं एवं वयस्कों और युवाओं के बीच साझेदारी से प्रभावित होती है, इस मुद्दे पर टफ्ट्स यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर इंफॉर्मेशन एंड रिसर्च ऑन सिविक लर्निंग एंड एंगेजमेंट के तहत विशेष अध्ययन किया गया है. इस अध्ययन के आधार पर अमेरिका की नीतियों में परिवर्तन लाया गया है ताकि चुनावों में मतदाताओं की भागीदारी में इज़ाफ़ा हो. ड्यूक यूनिवर्सिटी द्वारा किए गए एक अध्ययन में स्कूली छात्रों के बीच एक सर्वेक्षण किया गया, जिसमें स्कूल में छात्रों की भागीदारी, गैर-संज्ञानात्मक कौशल और नागरिक दृष्टिकोण जैसे मुद्दे शामिल थे. इस अध्ययन का उद्देश्य अमेरिका में नीतिगत सुधारों के ज़रिए युवा मतदाताओं की भागीदारी को बढ़ावा देना था. भारत में भी ऐसे अध्ययन कराए जा सकते हैं, जिसमें टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी जैसे संस्थानों के विशेषज्ञों को शामिल किया जा सकता है. #ORFSPARK ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन द्वारा संचालित एक छात्र सहभागिता कार्यक्रम है, जो छात्रों को समसामयिक नीतिगत मुद्दों के साथ जोड़ता है. ऐसे कार्यक्रमों को आसानी से विस्तारित करके उन्हें ऐसे डिजाइन किया जा सकता है, जिससे छात्रों को लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके. ऑनलाइन प्रक्रियाओं को बढ़ावा देकर मतदाता पंजीकरण प्रक्रिया को आसान बनाया जा सकता है ताकि बार-बार सरकारी दफ्तरों में जाने की ज़रूरत में कमी लाई जा सके. चुनावों में शहरी युवाओं की कम भागीदारी को देखते हुए ऐसी पहलों को लागू किए जाने की ज़रूरत है, जहां समस्या के अनुरूप रणनीतियां तैयार की जाएं.
शिक्षा, रोज़गार, विवाह और काम के लिए भारतीयों युवाओं को देश के भीतर एक जगह से दूसरी जगह जाना पड़ता है यानी इन कारणों के चलते युवाओं के आंतरिक प्रवासन को बढ़ावा मिला है. भारत के चुनाव आयोग को ऐसे रास्ते ढूंढ़ने होंगे जिससे गांवों और शहरी क्षेत्रों में रहने वाले इन प्रवासी युवाओं को घर वापिस लौटे बग़ैर अपने मूल निवास स्थान से मतदान करने का मौका मिले. सरकार को इस उद्देश्य के लिए अपने डिजिटल इंडिया कार्यक्रम की सफलताओं का लाभ उठाना चाहिए. सिर्फ़ युवाओं तक सीमित न रहते हुए इसके ज़रिये स्थानीय राजनीति में प्रवासियों के मुद्दों पर भी ध्यान दिया जा सकता है. डिजिटल हस्तक्षेपों के अलावा, ऐसे मामलों में विभिन्न विभागों के आपसी समन्वय से एक संयुक्त कार्यक्रम चलाए जाने की आवश्यकता होती है, जिससे सभी हितधारक जुड़े हों.
भारत अपनी युवा आबादी को समान अवसर मुहैया कराकर और देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में उनकी भागीदारी को सुनिश्चित करके अपने जनसांख्यिकीय लाभांश का अधिकतम लाभ उठा सकता है. एक सक्रिय, जीवंत, प्रतिनिधिमूलक और समधर्मी लोकतांत्रिक समाज के रूप में भारत की स्थिति न केवल उसकी घरेलू राजनीति के लिए मायने रखती है, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में भी भारत की लोकतांत्रिक छवि महत्त्वपूर्ण है, ख़ासकर तब जब दुनिया भर में अधिनायकवाद का प्रसार बढ़ता जा रहा है. भारत के शहरी क्षेत्रों में युवा मतदाताओं की भागीदारी को बढ़ावा देना इस दिशा में पहला कदम होना चाहिए.
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