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क्या युद्ध से लगभग बर्बाद हो चुके अफ़ग़ानिस्तान के लिए कोई नया रास्ता निकलेगा?
अमरीका अफ़ग़ानिस्तान में सत्रह साल गुज़ार चुका है। इस नज़रिए से अमरीका के लिए यह सबसे लम्बा युद्ध बन चुका है जिस पर एक ट्रिल्यन डॉलर से ज़्यादा पैसा ख़र्च हो चुका है। क्या युद्ध से लगभग बर्बाद हो चुके अफ़ग़ानिस्तान के लिए कोई नया रास्ता निकलेगा? जिओपॉलिटिक्स, जिओ-इकनॉमिक्स और क्षेत्रीय सुरक्षा, सभी ने मिलकर अफगानिस्तान के भविष्य तय करने की कोशिश की है। इसे पाकिस्तान और ईरान जैसे पड़ोसियों से खतरा भी है। घरेलू हालात भी उतने ही अनिश्चत हैं। देश के अंदर गुटों की लड़ाई और खराब राजनीति का बोझ है। इसके विकास और तरक्की में भ्रष्टाचार और आर्थिक सुस्ती को लेकर चिंताएं भी बाधा बन रही हैं। ऐसे में अमरीका में नयी ट्रम्प सरकार से कुछ उमीद जग रही है। राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प ने पाकिस्तान पर दबाव डालना शुरू कर दिया है की वो अपने देश के अंदर चल रहे आतंकवादी अड्डों ख़ास कर हक्कानी नेट्वर्क को बंद करवाए जहाँ से अफ़ग़ानिस्तान के ख़िलाफ़ आतंकवाद को बढ़ावा दिया जाता है।
जिओपॉलिटिक्स, जिओ-इकनॉमिक्स और क्षेत्रीय सुरक्षा, सभी ने मिलकर अफगानिस्तान के भविष्य तय करने की कोशिश की है।
अमरीका की नीति में बदलाव अफ़ग़ानिस्तान के लिए अच्छी ख़बर है ऐसा मानना है वहाँ के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजाई का। उनके अनुसार कई साल बाद आख़िरकार अमरीका ने हक़ीक़त को माना है और अगर पाकिस्तान पर सही दबाव पड़ा तो अफ़ग़ानिस्तान में शांति आ सकती है।
कुछ ऐसा ही भारत का भी मानना है। विदेश राज्य मंत्री जेनेरल वी के सिंह ने कहा की अमरीका की ट्रम्प सरकार की नयी नीति से उम्मीद बँधती है। जहाँ तक भारत का सवाल है वो हमेशा से अफ़ग़ानिस्तान का दोस्त रहा है और मुश्किल की घड़ी में भी वो अफ़ग़ानिस्तान के साथ खड़ा रहा और पूरी मदद करता रहा। हालाँकि पाकिस्तान पर अमरीकी वित्तीय दबाव कुछ समय के लिए काम कर सकता है लेकिन कहीं ऐसा ना हो की पाकिस्तान का दूसरा मित्र चीन उसे वित्तीय परेशानी से बचाने के लिए मदद करने लगे। इस पर हामिद करजाई ने कहा की यह चीन के भी पक्ष में है की आतंकवाद के ख़िलाफ़ सभी मिल कर लड़ायी लड़ें। आतंकवाद कहीं भी पनपे वो अंत में सब को लील लेता है। कुछ ऐसा ही अब पाकिस्तान के साथ भी हो रहा है।
रूस के डिप्टी विदेश मंत्री इगोर मोगुलोव से उनके देश के तालीबान के साथ सम्बन्धों पर सवाल पूछे गए तो उन्होंने कहा की वो अफ़ग़ानिस्तान में ऐसे हालात पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं जिस से बातचीत का रास्ता खुल सके और देश में शांति आ सके। उन्होंने कहा की इस बात के विडीओ सबूत हैं की बग़ैर किसी मार्क वाले हेलिकोपटेरों में इस्सिस ISIS के आतंकवादी भारी मात्रा में अफ़ग़ानिस्तान के अंदर लाए जा रहे हैं। इस बात की पुष्टि करते हुए हामिद करजाई ने भी माना की अफ़ग़ानिस्तान के कई हिस्सों में अब दाएश यानी ISIS भारी तादाद में भर चुका है। लेकिन अफ़ग़ानिस्तान में अब सैनिक बल से बात नहीं बनेगी। तालिबान पूरी तरह से जनता के बीच घुलमिल चुका है। अगर तालिबान पर क़ाबू पाना है तो पहले पाकिस्तान पर ख़ास कर के ISI और पाकिस्तानी सेना पर अंकुश लगाना होगा तभी कुछ बात बनेगी।
रूस के डिप्टी विदेश मंत्री इगोर मोगुलोव से उनके देश के तालीबान के साथ सम्बन्धों पर सवाल पूछे गए तो उन्होंने कहा की वो अफ़ग़ानिस्तान में ऐसे हालात पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं जिस से बातचीत का रास्ता खुल सके और देश में शांति आ सके।
जेनेरल सिंह ने कहा की एक तरफ़ तो आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ायी होती रहनी चाहिए दूसरी तरफ़ पुरज़ोर कोशिश होनी चाहिए की अफ़ग़ानिस्तान को जल्द से जल्द उसके पैरों पर खड़ा किया जाए, ख़ास कर आर्थिक क्षेत्र में। व्यापार को बढ़ावा दिया जाना चाहिए और व्यापार करने वाले रास्ते खोले जाने चाहिए। इस सम्बंध में रूस ने कहा की वो भी कोशिश कर रहा है की अफ़ग़ान सेना मज़बूत बन सके। वो उन्हें ट्रेनिंग दे रहा है और बिना पैसे लिए हथियार मुहैय्या कर रहा है। इसी तरह रूस पाकिस्तान को भी आतंकवाद से लड़ने के लिए मदद दे रहा है।
यह सब देश मान रहे हैं कि अफ़ग़ानिस्तान में जल्दी शांति आनी चाहिए लेकिन यह अफ़ग़ानिस्तान का दुर्भाग्य है की वो क्षेत्रीय तौर पर अभी भी बड़ी पावर पॉलिटिक्स में फंसा हुआ है। उसे ना सिर्फ़ अपनी सुरक्षा की घरेलू चुनौतियां से निपटना होगा बल्कि उसे अपनी रणनीतिक पॉजिशन का फायदा उठाकर क्षेत्रीय सहयोग और कनेक्टिविटी के मामले में अहम प्लेयर बनने की कोशिश करनी होगी जो नामुमकिन तो नहीं पर बहुत ही मुश्किल है।
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