Published on Oct 06, 2020 Updated 0 Hours ago

शहरों को विकास का केंद्र बनाने में प्रवासी मज़दूरों की मुख्य भूमिका के बावजूद ये दुखद सवाल बना हुआ है कि प्रवासी कहां रहेंगे. जिन राज्यों में प्रवासी मज़दूर आते हैं, उन राज्यों में इस योजना को समर्थन मिल सकता है.

शहरी प्रवासी मज़दूरों को सम्मानजनक हाउसिंग मुहैया करना एक ज़रूरी महत्वकांक्षा

जुलाई 2020 में भारत सरकार ने अफोर्डेबल रेंटल हाउसिंग कॉम्प्लेक्स (ARHC) योजना लॉन्च की जिसका मक़सद उद्योगों और स्वास्थ्य संस्थानों के कामगारों, फुटपाथ दुकानदारों, छात्रों इत्यादि समेत शहरों में रहने वाले प्रवासियों को कम किराये पर दो अलग-अलग मॉडल के तहत गरिमापूर्ण घर की सुविधा देना है. पहले मॉडल के तहत JnNURM और राजीव आवास योजना के तहत बने 1.08 लाख घरों को किराये के घर में तब्दील करना है. दूसरे मॉडल में सार्वजनिक और प्राइवेट संस्थानों को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा कि वो अपनी खाली ज़मीन पर किराये का घर तैयार करें. इस योजना के तहत शहरी प्रवासी जो आर्थिक रूप से कमज़ोर/कम आमदनी वाले हैं, उन्हें ये सुविधा दी जाएगी. तमिलनाडु सरकार के साथ-साथ कुछ प्राइवेट उद्योगों ने पहले ही इस योजना को अपनाने की इच्छा जताई है. हालांकि कई लोगों ने समय पर उठाया गया क़दम बताकर इस योजना का स्वागत किया है लेकिन आवासीय योजना का इतिहास बताता है कि सतर्क दृष्टिकोण रखना चाहिए.

राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की शुरुआत से एक दिन पहले भारत सरकार ने लोकसभा में जानकारी दी कि देश में क़रीब 10 करोड़ अंतर्राज्यीय प्रवासी मज़दूर हैं. बेहतर रोज़गार के अवसर की तलाश में क़रीब 50 लाख से 90 लाख मज़दूर हर साल एक राज्य से दूसरे राज्य जाते हैं, आम तौर पर कम समृद्ध राज्यों से अमीर राज्यों तक. कुल प्रवासी मज़दूरों में से आधे से ज़्यादा, क़रीब पांच करोड़ मज़दूर उत्तर प्रदेश और बिहार से हैं. झारखंड और मध्य प्रदेश मज़दूर भेजने वाले ऊपर के चार राज्यों में शामिल हैं जबकि दिल्ली, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक आदि राज्यों में सबसे ज़्यादा प्रवासी मज़दूर आते हैं. जिन राज्यों में सबसे ज़्यादा मज़दूर आते हैं वहां के सबसे ज़्यादा आबादी वाले शहरों जैसे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली, मुंबई महानगरीय क्षेत्र (MMR), चेन्नई, बेंगलुरु आदि में राज्य के भीतर के प्रवासियों को मिलाकर क़रीब आधी आबादी प्रवासियों की है. 70 लाख प्रवासियों के साथ दिल्ली और 99 लाख प्रवासियों के साथ मुंबई सबसे ज़्यादा प्रवासी वाले शहर हैं लेकिन पिछले दशक के दौरान प्रवासी आबादी बढ़ने की दर दक्षिण के शहरों में सबसे ज़्यादा रही है. शहरों को विकास का केंद्र बनाने में प्रवासी मज़दूरों की मुख्य भूमिका के बावजूद ये दुखद सवाल बना हुआ है कि प्रवासी कहां रहेंगे. जिन राज्यों में प्रवासी मज़दूर आते हैं, उन राज्यों में इस योजना को समर्थन मिल सकता है.

राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की शुरुआत से एक दिन पहले भारत सरकार ने लोकसभा में जानकारी दी कि देश में क़रीब 10 करोड़ अंतर्राज्यीय प्रवासी मज़दूर हैं. बेहतर रोज़गार के अवसर की तलाश में क़रीब 50 लाख से 90 लाख मज़दूर हर साल एक राज्य से दूसरे राज्य जाते हैं, आम तौर पर कम समृद्ध राज्यों से अमीर राज्यों तक.

भारत में शहरी प्रवासियों के लिए घर की योजना में बेहद कम तरक़्क़ी दर्ज की गई है. कई अलग-अलग वजहों- स्थायी घर में निवेश के बदले अस्थायी रहने के ठिकाने को प्रवासियों की प्राथमिकता, सामाजिक दायरे के फ़ायदे जैसे अनौपचारिक कर्ज़ और बीमा, कामकाज की जगह से नज़दीकी आदि के अलावा घर के दूसरे विकल्पों की कमी-से अलग-अलग सरकारों की दशकों तक की गई कोशिश के बावजूद झुग्गियां और दूसरी अनधिकृत बस्तियां पनपी हैं. तंग कमरे और एक शौचालय का कई लोगों द्वारा इस्तेमाल, पानी, बिजली आदि जैसी सुविधाओं का अभाव, ख़राब साफ़-सफ़ाई और कभी भी खाली करने की असुरक्षा इन जगहों की विशेषताएं हैं. अक्सर प्रवासी कामकाज की जगह में भी रहते हैं यानी कंस्ट्रक्शन साइट या कारखानों के भीतर. जिन प्रवासियों को रहने की जगह नहीं मिलती वो खुली जगहों जैसे फ्लाईओवर के नीचे या फुटपाथ पर रहने के लिए मज़बूर होते हैं.

किराये के कॉम्प्लेक्स के निर्माण के लिए ARHC योजना अलग नियामक रूपरेखा मुहैया कराती है. हर कॉम्प्लेक्स में एक या दो कमरे वाले कम-से-कम 40 घर और डॉर्मिटरी होने चाहिए जिनका आकार योजना में बताया गया है. योजना के तहत ज़मीन के इस्तेमाल के लिए विशेष प्रावधान, मुहैया कराए गए प्लॉट पर बिना प्रीमियम भुगतान के 50 प्रतिशत अतिरिक्त फ्लोर स्पेस की इजाज़त, मौजूदा किराया नियंत्रण क़ानून से छूट और सिंगल विंडो क्लीयरेंस का इंतज़ाम किया गया है. इसके अलावा सड़क, बिजली आदि जैसी बुनियादी सुविधाओं की व्यवस्था करने की ज़िम्मेदारी स्थानीय विभागों की होगी. इन किराये के कॉम्प्लेक्स का संचालन एक समझौते के तहत होगा जो 25 साल के लिए वैध रहेगा और किराया तय करने का अधिकार स्थानीय अधिकारियों को होगा. हर दो साल पर किराये में 8 प्रतिशत बढ़ोतरी हो सकती है लेकिन पांच साल में 20 प्रतिशत से ज़्यादा किराया नहीं बढ़ेगा. इसके अलावा आयकर और GST में छूट, कर्ज़ में प्राथमिकता और विदेशी प्रत्यक्ष निवेश को मंज़ूरी देने की योजना जैसे प्रोत्साहन भी दिए गए हैं. इस योजना की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि पहले की आवासीय योजना जिन समस्याओं में फंसी थी, उनसे परहेज़ करने में ये सक्षम होती है कि नहीं.

किराये के कॉम्प्लेक्स के निर्माण के लिए ARHC योजना अलग नियामक रूपरेखा मुहैया कराती है. हर कॉम्प्लेक्स में एक या दो कमरे वाले कम-से-कम 40 घर और डॉर्मिटरी होने चाहिए जिनका आकार योजना में बताया गया है.

स्वतंत्रता से लेकर अब तक आवासीय योजना का मुख्य मक़सद घर के मालिकाना हक़ पर रहा है. यहां तक कि राजीव आवास योजना और बाद में पीएम आवास योजना (PMAY) में भी घर का मालिकाना हक़ दिलाने के लिए निश्चित आमदनी वाले लाभार्थियों को कर्ज़ और सब्सिडी जैसी सुविधा मुहैया कराई जाती है. 2011 में जहां 1.4 करोड़ झुग्गियां मौजूद थीं वहीं आवासीय और शहरी ग़रीबी उन्मूलन मंत्रालय के अनुमानों के मुताबिक़ 2012 में 1.9 करोड़ घरों की ज़रूरत थी. दूसरी तरफ़ 2015 में शुरू PMAY के तहत मार्च 2020 तक 1.3 करोड़ घरों को मंज़ूरी दी गई है लेकिन सिर्फ़ 32 लाख घर लाभार्थियों को मुहैया कराए गए हैं. योजना की धीमी रफ़्तार की वजह से लाखों परिवार झुग्गियों में रहने के लिए मजबूर हैं. वर्तमान में ARHC योजना का लक्ष्य तीन लाख लाभार्थियों को मदद पहुंचाना है जो कि बहुत कम है. इसकी वजह से किराये के घर की ज़रूरत वाले लाखों प्रवासी योजना के दायरे से बाहर रह जाएंगे. इसलिए योजना का विस्तार प्रवासी मज़दूरों की मांग के मुताबिक़ होना चाहिए.

2015 में केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय शहरी किराया आवासीय नीति का मसौदा जारी किया था जिसमें बाज़ार आधारित, ज़रूरत आधारित (BPL, EWS और LIG के लिए) और सामाजिक किराया आवास (प्रवासी मज़दूरों, कामकाजी लोगों और छात्रों के लिए) के बीच अंतर रखा गया था. ARHC योजना के तहत प्राइवेट और सार्वजनिक संस्थानों से उम्मीद की जाती है कि वो अपनी ज़मीन पर निर्माण करेंगे. इसके लिए उन्हें टैक्स में छूट, ज़मीन के इस्तेमाल के नियम और किराया क़ानून से राहत के रूप में प्रोत्साहन मिलेगा. महानगरों और दूसरे शहरों में 1.1 करोड़ खाली घरों को देखते हुए प्राइवेट बिल्डर्स लंबे समय से किराया क़ानून में सुधार की मांग कर रहे हैं. ख़रीदारों को किराये पर देने के लिए दूसरे घर में निवेश का बिल्डर की तरफ़ से प्रोत्साहन सरकार की सामाजिक किराया आवास की प्रेरणा से मेल नहीं खाता है. इसे मुंबई में पांच साल के भीतर 2014 में किराया आवासीय योजना को बंद करने में देखा जा सकता है जहां एक बार फिर घर का मालिकाना हक़ केंद्र बिंदु में रहा. मुंबई विकास योजना 2034 के तहत अब 10 लाख अफोर्डेबल घरों का लक्ष्य अगले दो दशक में रखा गया है.

महानगरों और दूसरे शहरों में 1.1 करोड़ खाली घरों को देखते हुए प्राइवेट बिल्डर्स लंबे समय से किराया क़ानून में सुधार की मांग कर रहे हैं. ख़रीदारों को किराये पर देने के लिए दूसरे घर में निवेश का बिल्डर की तरफ़ से प्रोत्साहन सरकार की सामाजिक किराया आवास की प्रेरणा से मेल नहीं खाता है.

एक और मुद्दा सरकार की तरफ़ से बनाए गए घरों का खाली रहना है जिसकी वजह कंस्ट्रक्शन की ख़राब क्वालिटी, आजीविका और सामाजिक नेटवर्क खोने का डर, बुनियादी सुविधाओं की कमी और नगरपालिका सेवाओं को पहुंचाने में लापरवाही आदि हैं. जहां पर घर कारोबार के इलाक़े से काफ़ी दूर बने हैं वहां परिवहन के किफ़ायती विकल्प की ग़ैर-मौजूदगी अहम भूमिका निभाते हैं. ये समस्याएं नई नहीं हैं और इसकी वजह से राज्य और केंद्र सरकार की तरफ़ से बनाए गए घर खाली पड़े हुए हैं. समस्याओं की उचित निगरानी और उन्हें दुरुस्त करने के अभाव में सरकार की तरफ़ से बनाए गए 1.08 लाख घरों की दिक़्क़त बढ़ सकती है. इसी तरह ज़मीन की ज़्यादा लागत और शहरों में व्यावसायिक इलाक़ों के नज़दीक ज़्यादा ज़मीन की अनुपलब्धता ARHC की मांग पर असर डालेंगे और इससे योजना की सफलता पर असर पड़ेगा.

अतीत की सरकारी योजनाओं जैसे राजीव आवास योजना को देखते हुए इस उद्योग से जुड़े लोगों ने दलील दी कि हर प्रोजेक्ट में साइज़ और घरों की संख्या के अनिवार्य प्रावधानों ने अफोर्डेबेल हाउसिंग के क्षेत्र में आने से प्राइवेट कंपनियों को हतोत्साहित किया. ARHC योजना में भी कम-से-कम 40 सिंगल/डबल बेडरूम या डॉर्मिटरी बनाने का अनिवार्य प्रावधान है. ऐसे में किराये पर घर लेने की इच्छा रखने वाले प्रवासियों और बिल्डर के बीच मांग और आपूर्ति को लेकर ज़्यादा नियम इस योजना को आकर्षक नहीं रहने देंगे. कोविड-19 के बाद की दुनिया में शहरी प्रवासियों को सम्मानजनक और सुविधाओं से युक्त घर मुहैया कराना एक उपयुक्त महत्वाकांक्षा है. सामाजिक आवास के क्षेत्र में हमारी अतीत की कोशिशें के मौजूदा नुस्खे को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है.

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