Published on Aug 17, 2020 Updated 0 Hours ago

मौजूदा समय को देखते हुए भारत सरकार को ड्रोन उद्योग से संबंधित नियमों को ‘व्यापार में सुगमता’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ से जुड़ी नीतियों के तहत पुन: परिभाषित और समेकित करना चाहिए.

संभावनाओं की उड़ान: कोविड-19 और भारत का ड्रोन उद्योग

ड्रोन जैसी उभरती तकनीकों ने कोविड-19 की महामारी के दौरान कानूनों को लागू करने, सामान और स्वास्थ्य सेवाओं की डिलीवरी और ई-कॉमर्स माध्यमों के नए वितरण तंत्र के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. महामारी के इस दौर में परंपरागत तरीकों के बजाय, भोजन,  दवाओं और ज़रूरी सामान की डिलीवरी के लिए एक बेहतर और संपर्क रहित वितरण प्रणाली की मांग बढ़ रही है. ऐसे में ड्रोन को नियंत्रित करने वाले नियामक ढांचे को, तकनीक के विकास और समय के साथ बदलने की ज़रूरत है.

भारत जैसे देश में जहां ड्रोन आयात किए जाते हैं, एनपीएनटी एक बाधा है, क्योंकि इन आयातित ड्रोन को भारतीय नियमों के अनुसार संशोधित करना होगा.

ड्रोन तकनीक का वैश्विक बाज़ार जो फिलहाल 21.47 बिलियन डॉलर है, उसकी तुलना में 2021 तक भारतीय ड्रोन बाज़ार 900 मिलियन डॉलर तक पहुंचने की संभावना है. ये आंकड़े भले ही कोविड से पहले के हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर कोविड-19 पर नियंत्रण लिए ड्रोन तकनीक के व्यापक इस्तेमाल ने इस उद्योग के विकास और मांग को बढ़ाने की दिशा में काम किया है. अध्ययन बताते हैं कि ड्रोन तकनीक, महामारी संबंधी दिशा-निर्देशों के पालन की लागत को कम करने की क्षमता रखती है. इससे न केवल विश्वसनीय डेटा मिल सकता है बल्कि परिवहन और गतिशीलता बनाए रखने के लिए यह एक विकल्प साबित हो सकती है.

ड्रोन तकनीक को अपनाने की राह में अड़चनें

अन्य देशों के उदाहरण ये बताते हैं कि निरीक्षण और रखरखाव, सिनेमैटोग्राफी, सूक्ष्म स्तर पर लागू किए जाने वाली कृषि परियोजनाएं, सर्विलांस तथा निगरानी और गैस व रिफाइनिंग जैसे क्षेत्रों में ड्रोन के व्यावसायिक उपयोग की बढ़ती संभावनाएं हैं, जिन्हें भारतीय परिवेश में समझना और अपनाना बाकि है. बड़े पैमाने पर ड्रोन का व्यावसायिक उत्पादन और इस तकनीक को अमल में लाने संबंधी अड़चनें, भारत में ड्रोन तकनीक को अपनाए जाने और उसे लागू करने की दिशा में रुकावट पैदा करती हैं. ड्रोन तकनीक बेहद गतिशील है और इसके कई अनजाने-अनचाहे आयाम हैं. यही वजह है कि इसे समझना और नियंत्रित करना नीति निर्माताओं के लिए एक जटिल चुनौती है.

इस सबके बीच साल 2014 में नागरिक उपयोग के क्षेत्र में ड्रोन के इस्तेमाल पर अचानक लगे प्रतिबंध ने उभरते हुए ड्रोन उद्योग को कई वर्ष पीछे धकेल दिया. इसके बाद ड्रोन उद्योग को दिशा-निर्देशित करने के लिए लागू की गई नियामक नीतियां चार साल बाद जारी की गईं. इन दिशा-निर्देशों के मुताबिक ड्रोन उड़ाना निश्चित रूप से उतना सरल नहीं था जितना कि इसे खरीदना. सरकारी नियमों और अनुपालनों को ध्यान में रखे बग़ैर कोई व्यक्ति ड्रोन नहीं उड़ा सकता. इस नीति में परिभाषित, ‘डिजिटल स्काई प्लेटफ़ॉर्म’, के अंतर्गत ‘नो परमिशन-नो टेकऑफ़’ (NPNT) पर विशेष ज़ोर दिया गया है. इसके तहत व्यवस्थित रुप से ली गई अनुमति और फ़र्मवेयर व हार्डवेयर पर आधारित तंत्र स्थापित किए बग़ैर कोई ड्रोन नहीं उड़ा सकता.

वर्तमान में, ऑनलाइन और ऑफलाइन बाज़ार एनपीएनटी (NPNT) प्रावधानों के बिना बनाए गए ड्रोनों से लदे हैं. निर्माताओं और उपयोगकर्ताओं के बीच ‘डिजिटल स्काई प्लेटफॉर्म’ को लेकर जागरूकता का अभाव भी है. भारत जैसे देश में जहां ड्रोन आयात किए जाते हैं, एनपीएनटी एक बाधा है, क्योंकि इन आयातित ड्रोन को भारतीय नियमों के अनुसार संशोधित करना होगा.

भारत में भले ही महामारी के दौरान विभिन्न राज्यों द्वारा व्यावसायिक स्थलों पर ड्रोन के इस्तेमाल में बढ़ोत्तरी देखी गई है, लेकिन यह ज़रूरी है कि कोविड-19 के बाद मैक्रो-स्तर पर इस प्रभाव को महसूस किया जाए और नीतियों में फेरबदल और उचित सहयोग के ज़रिए कोविड के बाद के परिदृश्य में ड्रोन तकनीक को समझा जाए. 

भारतीय हवाई क्षेत्र ने विभिन्न क्षेत्रों में व्यावसायिक रूप से ड्रोन का कम इस्तेमाल देखा है. उदाहरण के लिए, भारत सरकार की एक स्वायत्त एजेंसी द्वारा रायबरेली-इलाहाबाद राजमार्ग की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) और थ्री-डी मैपिंग के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया गया था. इसके अलावा, हिंदुस्तान पेट्रोलियम, इंडियन ऑयल और गेल के साथ मिलकर डीटेक्ट (DeTect) टेक्नोलॉजी नामक कंपनी ने एक ऐसा पोजिशनिंग सिस्टम यानी स्थान-निर्धारण प्रणाली विकसित की है, जो किसी संयंत्र के भीतर भट्टी या दूसरी संरचनाओं की स्वतंत्र रूप से निगरानी करने की सुविधा देती है. साल 2018 में भारतीय वन विभाग ने नागपुर शहर में 13 करोड़ की संख्या में किए गए वृक्षारोपण की निगरानी के लिए ड्रोन तैनात किए थे. टाटा स्टील जैसी कंपनियां भी निगरानी के लिए ड्रोन तैनात करने की दिशा में काम कर रही हैं. भारत में अर्बन एयर मोबिलिटी यानी ड्रोन के माध्यम से माल की आवाजाही और डिलीवरी के तरीकों को जोमाटो जैसी कंपनियां आज़मा रही हैं. वहीं वैश्विक स्तर पर, अल्फाबेट के साथ-साथ अमेज़न जैसी कंपनियां ड्रोन के माध्यम से पैकेजों के वितरण का प्रयास करने में सफल रही हैं. साथ ही अफ्रीका के उभरते हुए देश यूनिसेफ सरीखे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ साझेदारी में, दूरस्थ इलाकों में हैजा, मलेरिया जैसी बीमारियों से लड़ने और स्वास्थ्य सेवाओं के वितरण की दिशा में नई तकनीक अपना रहे हैं. इसके अलावा ह्यूंदै जैसी निजी कंपनियों के साथ मिलकर, अर्बन एयर मोबिलिटी यानी शहरों में हवाई मार्ग से आवाजाही बढ़ाने को लेकर निति-निर्माताओं और शहरी-योजनाकारों के बीच चर्चाएं आकार ले रही हैं. फिर भी, नीतियों और नियमों की प्रभावात्मकता ने ड्रोन उद्योग के विस्तार में रुकावटें पैदा की हैं.

भारत में भले ही महामारी के दौरान विभिन्न राज्यों द्वारा व्यावसायिक स्थलों पर ड्रोन के इस्तेमाल में बढ़ोत्तरी देखी गई है, लेकिन यह ज़रूरी है कि कोविड-19 के बाद मैक्रो-स्तर पर इस प्रभाव को महसूस किया जाए और नीतियों में फेरबदल और उचित सहयोग के ज़रिए कोविड के बाद के परिदृश्य में ड्रोन तकनीक को समझा जाए.

मांग पर आधारित परिवेश गढ़ना

कोविड-19 की महामारी बड़े पैमाने पर और व्यावसायिक स्तर पर ड्रोन तकनीक को अपनाने की उत्प्रेरक हो सकती है. ड्रोन तकनीक का सबसे महत्वपूर्ण विस्तार और विकास स्वास्थ्य, कृषि, नगर नियोजन व प्रशासनिक कामकाज, ग्राम मानचित्रण, आपातकालीन सुविधाओं व बचाव, नुकसान के मूल्यांकन, बाढ़ की निगरानी, इन्वेंट्री के प्रबंधन, खुदरा व्यापार, और माल व खाद्य सामान के वितरण से जुड़े क्षेत्रों में हो सकता है.

ड्रोन तकनीक का इस्तेमाल लॉकडाउन को लागू करने के लिए किया गया और कुछ राज्यों ने कीटाणुनाशकों के छिड़काव के लिए भी इनका उपयोग किया. दूसरे देशों को देखें तो महामारी के दौर में वर्जीनिया के ग्रामीण इलाकों में किराने का सामान और दवाइयां पहुंचाने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया गया. चीन के कुछ इलाकों में, स्पीकर से लैस ड्रोन का इस्तेमाल जागरुकता फैलाने और संचार माध्यम के तौर पर किया गया और चांगशियान समुदाय के बीच तापमान मापने के लिए ड्रोन का उपयोग देखा गया. ड्रोन डिलीवरी के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनी ज़िपलाइन, रवांडा के ग्रामीण क्षेत्रों में ड्रोन के ज़रिए दवाओं, टेस्ट-किट और नमूनों की आवाजाही सुनिश्चित कर महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है. हालांकि, भारत में इस तरह के कामों के लिए ड्रोन का उपयोग सीमित रहा है फिर भी इसकी शुरुआत हो चुकी है और भविष्य में इसे विश्वसनीय रुप में देखा जाएगा. उदाहरण के लिए, भारत सरकार ने हाल ही में, ड्रोन का इस्तेमाल कर, देश के सभी गांवों के नक्शों का डिजिटल लेखाजोखा तैयार करने की नींव रखी.

ड्रोन तकनीक का इस्तेमाल लॉकडाउन को लागू करने के लिए किया गया और कुछ राज्यों ने कीटाणुनाशकों के छिड़काव के लिए भी इनका उपयोग किया. दूसरे देशों को देखें तो महामारी के दौर में वर्जीनिया के ग्रामीण इलाकों में किराने का सामान और दवाइयां पहुंचाने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया गया.

हालांकि, यह उम्मीद की जाती है कि सरकारी एजेंसियां ड्रोन तकनीक की सबसे बड़ी उपयोगकर्ताओं में से होंगी, फिर भी इस उद्योग के लिए सही परिवेश को गढ़ने का काम सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) के ज़रिए करना होगा. डीजीसीए द्वारा रिक्वायर्मेंट फॉर ऑपरेशन ऑफ सिविल रिमोटली पाइलेटेड एयरक्राफ्ट सिस्टम यानी आरपीएस (RPAS) को लेकर जारी किए गए सर्कुलर में इस बात का उल्लेख किया गया है कि निजी खिलाड़ियों के लिए ड्रोन उड़ाने संबंधी प्रावधानों और परीक्षणों को आसान बनाना होगा. राज्य स्तर पर ड्रोन संबंधी तकनीकों और प्रयासों को जानने और बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकारों को केंद्रीय ड्रोन खोजपूर्ण प्रयासों की शुरुआत करनी होगी. उदाहरण के लिए प्रत्येक ज़िला कलेक्टर को अलग-अलग काम के संचालन के लिए ड्रोन से लैस किया जा सकता है. इसके अलावा, इन प्रयासों का केंद्रीय रूप से अध्ययन कर उन्हें गहराई से समझा जा सकता है.

ड्रोन तकनीक संबंधी कौशल और प्रशिक्षण एक अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्र है, जिसके ज़रिए भारत में खासतौर पर निजी क्षेत्र में ड्रोन के सुचारू और सुरक्षित इस्तेमाल को सुनिश्चित किया जा सकता है. इस संबंध में, भारत सरकार द्वारा संचालित भारतीय ड्रोन संस्थान (IID) युवा पेशेवरों को ड्रोन तकनीक, मानव रहित विमान (UAV) चलाने और संबंधित अभियानों को सुरक्षा और हिफ़ाज़त के साथ आगे बढ़ाने संबंधी प्रशिक्षण देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है.

ड्रोन तकनीक का इस्तेमाल लॉकडाउन को लागू करने के लिए किया गया और कुछ राज्यों ने कीटाणुनाशकों के छिड़काव के लिए भी इनका उपयोग किया. दूसरे देशों को देखें तो महामारी के दौर में वर्जीनिया के ग्रामीण इलाकों में किराने का सामान और दवाइयां पहुंचाने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया गया.

भारत सरकार और निजी खिलाड़ियों को इस तकनीक के ज़रिए न केवल शहरों और सड़कों को हल्का करने बल्कि इससे जुड़े निर्माण के अवसरों को अपनाने की रणनीति भी बनानी चाहिए. इसके लिए, मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत के अंतर्गत शुरु की गई निर्माण-इकाईयां न केवल घरेलू मांग को पूरा करने में सहायक होंगी बल्कि वैश्विक स्तर पर ड्रोन के बढ़ते उपयोग और बढ़ती मांग को पूरा करने में कारगर रहेंगी.

कुल मिलाकर, सरकार को चाहिए कि विभिन्न हितधारकों और कोविड के दौरान व उसके बाद की स्थितियों को ध्यान में रखते हुए, नीतिगत ढांचे में सुधार कर इस उद्योग के लिए एक समग्र नीति बनाए. इससे आवश्यक बुनियादी ढांचे और ज़रूरी प्रावधानों संबंधी मांग भी बढ़ेगी. भारत सरकार को व्यापार में सुगमता और आत्मनिर्भर भारत जैसी नीतियों के परिप्रेक्ष्य में ड्रोन उद्योग को देखते हुए इस उद्योग के घरेलू विकास पर भी ध्यान देना चाहिए. कोविड-19 की वर्तमान परिस्थिति में ड्रोन तकनीक के विकास और प्रसार के बीच, जहां एक तरफ यह उद्योग परिपक्व हो रहा है, वहीं इससे संबंधित डेटा संरक्षण और गोपनीयता जैसे मुद्दों को भी नीति-निर्धारकों को ध्यान में रखना होगा.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.