Author : Sushant Sareen

Published on Sep 03, 2020 Updated 0 Hours ago

पाकिस्तान स्टॉक एक्सचेंज पर हमला उस वक़्त हुआ है जब इमरान ख़ान सरकार गंभीर संकट में है. सरकार में शामिल गठबंधन के साझेदार बेहत बेचैन हैं और एक साझेदार तो पहले ही गठबंधन से अलग हो चुका है. पेट्रोलियम की क़ीमत में भारी बढ़ोतरी की वजह से हंगामा मचा हुआ है.

पाकिस्तान स्टॉक एक्सचेंज पर हमला: पाकिस्तान की चाल या कमज़ोर होते आंदोलन का हमला?

29 जून को असॉल्ट राइफल और ग्रेनेड के साथ चार बूदंक़धारियों द्वारा कराची में पाकिस्तान स्टॉक एक्सचेंज पर हमला किसी बड़े नुक़सान से पहले ही नाकाम हो गया. जब तक वो स्टॉक एक्सचेंज की इमारत के भीतर धावा बोल पाते उससे पहले ही चारों हमलावरों को मार डाला गया. एक पाकिस्तानी अधिकारी ने दावा किया कि पूरा ऑपरेशन 8-10 मिनट में ख़त्म हो गया. पाकिस्तानियों ने हमले को लेकर आनन-फानन में भारत की तरफ़ उंगली उठा दी. इसमें इतनी जल्दबाज़ी की गई कि हमले के कुछ मिनट के भीतर और यहां तक कि हमलावरों की पहचान होने या उनके संगठन का पता लगने से पहले ही पाकिस्तानियों- जासूस, सेना, पत्रकार और राजनेता- को इसका पता लग गया. साफ़ तौर पर पाकिस्तान में जहां इशारे नई जांच बन गए हैं, फ़ैसला हमले के एक घंटे के भीतर सुना दिया गया.

बिना किसी सबूत के सरासर दुर्भावनापूर्ण आरोपों को लेकर भारत का नाराज़ होना स्वाभाविक था. लेकिन भारत के लिए और ज़्यादा चिढ़ाने वाला तथ्य ये था कि पाकिस्तान के आरोप भारतीय सुरक्षा एजेंसियों की काबिलियत की बेइज़्ज़ती की तरह देखे गए. हमलावरों की पूरी तरह अक्षमता, उनकी ट्रेनिंग में कमी और उनकी गैर-पेशवर रणनीति इस बात का सबसे बड़ा सबूत है कि भारत का इस हमले से कोई लेना-देना नहीं था.

आरोप लगाने वालों में सबसे आगे थे पाकिस्तान रेंजर के कराची प्रमुख. पाकिस्तान के शर्लक होम्स ने एलान किया कि भारतीय खुफ़िया एजेंसी रॉ के शामिल होने से इनकार नहीं किया जा सकता क्योंकि “इस तरह के हमले ‘अकेले दम पर होने वाली घटनाएं’ नहीं हैं और बिना ‘बाहरी खुफ़िया एजेंसी’ की मदद के नहीं हो सकते हैं.” पाकिस्तानी सेना की तरफ़ से इशारा मिलते ही पूरा पाकिस्तान भारत को हमले का मास्टरमाइंड बताने लगा. सुरक्षा और सामरिक नीति पर इमरान ख़ान के ख़ास सहयोगी जिन्होंने ट्वीट करके आरोप लगाए थे, से शुरू होकर ये विदेश मंत्री तक पहुंच गया जिन्होंने हमले के पीछे भारत के शामिल होने का इशारा किया. इसके बाद प्रधानमंत्री ने ख़ुद नेशनल असेंबली में बताया कि उन्हें “कोई शक” नहीं है कि हमले के पीछे भारत है.

भारत के विदेश मंत्रालय ने फ़ौरन जवाब देते हुए पाकिस्तान के विदेश मंत्री, जो पाकिस्तान की घरेलू समस्याओं के लिए भारत पर आरोप लगाने की कोशिश कर रहे थे, की “अनर्गल टिप्पणी” को खारिज कर दिया. बिना किसी सबूत के सरासर दुर्भावनापूर्ण आरोपों को लेकर भारत का नाराज़ होना स्वाभाविक था. लेकिन भारत के लिए और ज़्यादा चिढ़ाने वाला तथ्य ये था कि पाकिस्तान के आरोप भारतीय सुरक्षा एजेंसियों की काबिलियत की बेइज़्ज़ती की तरह देखे गए. हमलावरों की पूरी तरह अक्षमता, उनकी ट्रेनिंग में कमी और उनकी गैर-पेशवर रणनीति इस बात का सबसे बड़ा सबूत है कि भारत का इस हमले से कोई लेना-देना नहीं था. निश्चित रूप से अगर हमलावरों को भारतीय एजेंसियों ने ट्रेनिंग दी होती, जैसे कि 26/11 के हमलावरों को पाकिस्तान की सेना ने ट्रेनिंग दी थी, तो नतीजे पूरी तरह अलग होते.

हमले की CCTV फुटेज इस बात की सबूत है कि हमलावर बिना तैयारी, बिना ट्रेनिंग और हमला करने की बुनियादी जानकारी से भी परिचित हुए बिना हमला करने गए थे. कोई भी पेशेवर हमलावर पहले लक्ष्य की मुकम्मल जांच-पड़ताल करता, उस जगह की ड्रिल और सुरक्षा की जानकारी लेता, हमले की पूरी योजना तैयार करता, और निश्चित रूप से ये पता करता कि ज़्यादा-से-ज़्यादा नुक़सान करके कैसे सुर्खियां बटोरी जाए. इनमें से कोई भी बात हमलावरों के हमला करने के तरीक़े में दिखी नहीं. ऐसा लगा कि हमलावर तैयार नहीं थे, हिचक रहे थे और इस बात को लेकर अनिश्चित थे कि उन्हें क्या करना है. ऐसा लग रहा था कि कुछ लोगों को बस मारने के लिए भेज दिया गया. और ये बातें हमले के मक़सद और मास्टरमाइंड को लेकर कुछ सवाल खड़ा करती हैं. ये उस संगठन- बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) -जिसके बारे में कहा जाता है कि उसने हमले की ज़िम्मेदारी ली है, को लेकर भी सवाल खड़ा करते हैं (नोट: हमले के बाद BLA के ट्विटर हैंडल को सस्पेंड कर दिया गया है लेकिन उसका टेलीग्राम चैनल अभी भी एक्टिव है).

वास्तव में बलोच स्वतंत्रता अभियान इलाक़े के सत्ता संघर्ष का शिकार रहा है क्योंकि BLA को पहली बड़ी चोट अफ़गानिस्तान में अमेरिका के नेतृत्व वाली NATO सेना ने दी थी.

मान लीजिए कि वाकई इस हमले के पीछे BLA था तो ये उस संगठन की ख़राब हालत के बारे में बताता है जो कुछ समय पहले तक 1970 से बलूचिस्तान में चल रही बग़ावत की लड़ाई में सबसे आगे रहा है. बलूचिस्तान में बग़ावत की पांचवीं लड़ाई जो 2001 के इर्द-गिर्द शुरू हुई थी, वो 2006 में पाकिस्तान सेना के द्वारा नवाब अकबर बुगती की हत्या के बाद तेज़ हुई. इस लड़ाई का नेतृत्व BLA, बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट (BLF) और कुछ दूसरे गुट कर रहे हैं. लेकिन वक़्त बीतने के साथ कई बातों ने इन संगठनों की ताक़त को कमज़ोर कर दिया है. इनमें पाकिस्तानी सेना का इनके ख़िलाफ़ बर्बर अभियान तो शामिल है ही, साथ ही बाहरी समर्थन नहीं मिलने की वजह से पैसे की कमी के कारण इन संगठनों में शामिल आज़ादी के लड़ाकों को अच्छे हथियार नहीं मिल पाए हैं. इसके अलावा ट्रेनिंग की कमी और 2019 में BLA को अमेरिका की तरफ़ से आतंकी संगठन घोषित करने से भी इन संगठनों को चोट लगी है. वास्तव में बलोच स्वतंत्रता अभियान इलाक़े के सत्ता संघर्ष का शिकार रहा है क्योंकि BLA को पहली बड़ी चोट अफ़गानिस्तान में अमेरिका के नेतृत्व वाली NATO सेना ने दी थी. माना जाता है कि 2007 में अफ़ग़ानिस्तान के भीतर NATO के हवाई हमले में BLA के करिश्माई प्रमुख नवाबज़ादा बलाच मारी की मौत हो गई थी. माना जाता है कि तालिबान के मुद्दे पर पाकिस्तान का साथ हासिल करने के लिए तोहफ़े के तौर पर बलाच को ख़त्म किया गया था.

BLA की कमान मारी जनजाति के हाथ में थी. ऐसे में लगा कि बलाच की मौत के बाद उनके भाई मेहरान और हीरबयार संगठन का नेतृत्व संभालेंगे. लेकिन दोनों भाई लड़ाके से ज़्यादा राजनेता और राजनयिक थे. पाकिस्तान की हुक़ूमत के ख़िलाफ़ ज़मीन पर लड़ने वाले बलाच से हटकर उनके भाइयों ने BLA का नेतृत्व जेनेवा और लंदन में अपने ठिकाने से किया. 2014 में मशहूर नवाज़ ख़ैर बख़्श मारी की मौत से BLA को एक और बड़ा झटका लगा क्योंकि नवाब की मौत के बाद उनकी विरासत को लेकर ख़ानदान में भीतरी लड़ाई शुरू हो गई. पाकिस्तान ने स्विस, UAE और ब्रिटिश सरकारों पर जो दबाव डाला उसकी वजह से मारी भाइयों पर दबाव पड़ा. वो चिंतित हो गए कि कहीं उन्हें निर्वासित/प्रत्यर्पित करके पाकिस्तान न भेज दिया जाए.

इन हालात में BLA की कमान ज़मीन पर लड़ने वाले लड़ाकों के हाथ में चली गई. हर लिहाज़ से लगता है कि जनजाति के अमीर लोग अब BLA का नेतृत्व नहीं कर रहे. कुछ हद तक उनका आदर होता है, यहां तक कि कुछ हद तक उनका असर भी है लेकिन अब वो लड़ाकों का नेतृत्व नहीं करते. नेतृत्व में इस बदलाव की अच्छी बात ये है कि बलोच आंदोलन एक जनजाति या एक ख़ानदान का हथियारबंद आंदोलन नहीं रह गया है बल्कि ये ज़मीन पर काम करने वालों, मध्य वर्ग और अपने मक़सद को लेकर कट्टर लोगों का आंदोलन बन गया है. इसका ख़राब पहलू ये है कि आंदोलन के लिए संसाधनों की कमी है, संगठन का अभाव है, अच्छा नेतृत्व नहीं है और इसने कई ऐसी ग़लतियां की हैं जो लोगों की सोच और यहां तक कि समर्थन के मामले में काफ़ी महंगी साबित हुई हैं.

हाल के दिनों में बलोच आंदोलन में शामिल एक गुट जो उभरा है, वो है मजीद ब्रिगेड जिसके बारे में माना जाता है कि वो पिछले चार बड़े हमलों के लिए ज़िम्मेदार है. लेकिन चारों हमले बड़ी सुर्खियां बटोरने में नाकाम रहे. इस गुट का नेतृत्व असलम बलोच उर्फ़ अच्छू के हाथ में था जो 2018 में कंधार में एक आत्मघाती हमले में मारा गया. कंधार हमला कराची में चीन के वाणिज्य दूतावास पर बंदूक़धारियों के हमले के कुछ हफ़्ते के बाद ही हुआ था. इसके पहले इसी गुट ने ग्वादर के एक आलीशान होटल पर हमले की ज़िम्मेदारी ली और इसके बाद बलूचिस्तान के डालबैंडिन इलाक़े में चीन के इंजीनियर से भरी बस पर बम से हमले की कोशिश की थी. हमले के लक्ष्यों को देखते हुए ये दलील दी जा सकती है कि BLA का ये गुट चीन के ठिकानों पर हमले को लेकर केंद्रित रहा है. यहां तक कि पाकिस्तान स्टॉक एक्सचेंज में भी चीन का भारी-भरकम निवेश है और एक्सचेंज का मैनेजमेंट भी चीन के नियंत्रण में है. लेकिन हैरान करने वाली बात ये है कि बार-बार हमलों के बावजूद BLA का ये गुट बड़ा नुक़सान करने में नाकाम रहा है. ये जहां BLA की क्षमता पर गंभीर सवाल उठाता है वहीं इस बात का भी इशारा करता है कि उसे किसी तरह की पेशेवर मदद नहीं मिल रही है या ये भी कह सकते हैं कि इस गुट को कोई बाहरी मदद नहीं मिल रही है. सबसे महत्वपूर्ण बात है कि इस बात की गंभीर संभावना है कि जिन हमलों का ज़िम्मेदार BLA को बताया जा रहा है या जिन हमलों को लेकर BLA दावा कर रहा है, वो वास्तव में पाकिस्तान अपने राजनीतिक, सुरक्षा, राजनयिक मक़सदों को लेकर ख़ुद तो नहीं करवा रहा ?

हमलों का समय और जिस तत्परता से पाकिस्तान ने बिना किसी सबूत के हमलों को लेकर भारत पर आरोप लगाए उससे सवाल तो खड़े होते हैं. पाकिस्तान स्टॉक एक्सचेंज पर हमला उस वक़्त हुआ है जब इमरान ख़ान सरकार गंभीर संकट में है. सरकार में शामिल गठबंधन के साझेदार बेहत बेचैन हैं और एक साझेदार तो पहले ही गठबंधन से अलग हो चुका है. पेट्रोलियम की क़ीमत में भारी बढ़ोतरी की वजह से हंगामा मचा हुआ है. यहां तक कि सरकार के प्रवक्ता की तरह काम करने वाले पत्रकार भी अपनी मायूसी ज़ाहिर करने लगे हैं. अर्थव्यवस्था में बेहतरी का कोई संकेत नहीं है और वो लगातार नीचे गिर रही है. PIA की उड़ानों पर लगभग हर महत्वपूर्ण देश की तरफ़ से लगाई गई पाबंदी ने भी अर्थव्यवस्था को बड़ी चोट पहुंचाई है. हुक़ूमत की पूरी तरह अक्षमता और हालात में लगातार गिरावट इस कदर है कि ‘चयनकर्ता’ – पाकिस्तान सेना- के बारे में भी इस तरह की ख़बरें आ रही हैं कि वो भी अपने चयन को लेकर हो रही कड़ी आलोचना से वाकई चिंतित हो रहे हैं. इस बीच पाकिस्तान चीन के साथ खड़ा होने, CPEC परियोजना को फिर से चालू करने और यहां तक कि भारत के ख़िलाफ़ चीन के साथ साझा मोर्चा बनाने की कोशिश कर रहा है.

कि जिस वक़्त अमेरिका एक बार फिर से पाकिस्तान का नाम आतंकियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह के तौर पर ले रहा है, उस वक़्त उसे ख़ुद को आतंकवाद के ‘पीड़ित’ के तौर पर दिखाने का मौक़ा मिल गया.

ऐसी हालत में एक बड़ा आतंकी हमला जिसमें बेहद कम नुक़सान हो पाकिस्तान के कई मक़सदों को पूरा करता है. सबसे पहला मक़सद ये कि हमले की वजह से संकट में घिरी सरकार से ध्यान हटता है. ये अलग बात है कि पाकिस्तान में इमरान ख़ान की हुक़ूमत इतने मोर्चों पर घिरी हुई है कि ध्यान बंटाने वाली ये रणनीति ज़्यादा दिनों तक काम नहीं आएगी. हमले से पूरा होने वाला दूसरा मक़सद ये है कि इससे इमरान ख़ान हुक़ूमत को भारत के ख़िलाफ़ माहौल बनाकर सेना के सामने अपनी विश्वसनीयता को चमकाने का मौक़ा मिल गया. तीसरा मक़सद ये है कि जिस वक़्त अमेरिका एक बार फिर से पाकिस्तान का नाम आतंकियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह के तौर पर ले रहा है, उस वक़्त उसे ख़ुद को आतंकवाद के ‘पीड़ित’ के तौर पर दिखाने का मौक़ा मिल गया. चौथा मक़सद ये है कि उसे चीन के सामने ये साबित करने का मौक़ा मिल गया कि कैसे भारत दोनों ‘आयरन ब्रदर्स’ पर निशाना साध रहा है और क्यों भारत को नीचा दिखाने के लिए उन्हें साथ आना चाहिए. पांचवां मक़सद है कि अगर पाकिस्तान चीन के साथ मिलकर भारत के ख़िलाफ़ कोई आक्रामक कार्रवाई करना चाहता है तो उसे हमले से इसका मौक़ा मिल गया है.

साफ़ तौर पर पाकिस्तानी हुक़ूमत इस तरह के हमले करवाने को लेकर बेहद धूर्त, रास्ते से भटकी हुई और बेहद हताश है. अगर वाकई ऐसा ही मामला है तो ये समझने में दिमाग़ लगाने की ज़रूरत नहीं है कि सच्चाई कभी सामने नहीं आएगी और सभी ‘सबूत’ BLA की तरफ़ इशारा करेंगे और इसका विस्तार भारत की तरफ़ होगा. दूसरी तरफ़ अगर वाकई हमले में BLA शामिल है तो ये पूरी तरह साफ़ है कि इस संगठन के पास आतंकी हमले करने का हुनर या संसाधन नहीं है. बलोच अपनी आज़ादी को लेकर कितने भी दीवाने हों या लड़ने के लिए कितने भी तैयार हों लेकिन बिना बाहरी मदद, अंदरुनी समर्थन और समझदार नेतृत्व के बिना आज़ादी का आंदोलन कामयाब नहीं होगा.

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