हाल में इस लेखक को अंतरराष्ट्रीय समुद्री सुरक्षा सम्मेलन (सागर डायलॉग) में भाग लेने का मौका मिला। इसे फोरम फॉर इंटेगरेटेड नेशनल सेक्यूरिटी (एफआईएनएस) ने आयोजित किया था। इसमें हिंद महासागर इलाके में ‘सभी के लिए सुरक्षा’ पर चर्चा की गई। विषय के मुताबिक ही यह सम्मेलन भारत के तटीय शहर गोवा में आयोजित किया गया। दक्षिण, पूर्व और पश्चिम की विभिन्न सभ्यताओं के साथ समुद्री कारोबार और वाणिज्यिक आदान-प्रदान का इस शहर का लंबा इतिहास है। यह लेखक अफगानिस्तान से आता है जो चारों ओर से जमीन से घिरा है। ऐसे में यह इस लेखक के लिए सीखने का एक अनूठा मौका था। नीले समुद्र को ले कर चुनौतियों और संभावनाओं पर यहां एक के बाद एक बहुत से विशेषज्ञों को सुनने का मौका मिला।
चूंकि समुद्री सुरक्षा को ले कर आने वाली बहुत सी समस्याएं जमीन से जुड़ी हैं। इसलिए इन समस्याओं को दूर करन के लिए समुद्री इलाकों वाले और चारों ओर जमीन से घेरे देशों के बीच साझेदारी और सहयोग को बढ़ावा देना जरूरी है। यह कहने की जरूरत नहीं है कि समुद्री सुरक्षा उन देशों में होने वाली विभिन्न घटनाओं से भी जुड़ी है जो चारों ओर से जमीन से घिरे हैं। अफगानिस्तान इसका ज्वलंत उदाहरण है। पिछले 40 साल के दौरान, भू-राजनीतिक तनाव ने इस देश के सामने बहुत से विध्वंसकारी संघर्ष खड़े किए हैं। जबकि यह तेजी से बढ़ते एशिया के प्राकृतिक रूप से सबसे समृद्ध देशों में शामिल है।
तटीय और गैर-तटीय देशों के बीच अपनी साझा समस्याओं को दूर करने के लिए साझेदारी और सहयोग को बढ़ावा देने वाले रवैये का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
गरीबी से व्याप्त अफगानिस्तान में शांति के अभाव में सतत विकास को सुनिश्चित नहीं किया जा सकता। इस शांति पर ही इसकी युवा आबादी का भविष्य निर्भर है। यहां की परिस्थितियां आतंकवाद, नशीली दवाओं की तस्करी, हथियारों की तस्करी और मानव तस्करी जैसी समुद्री सुरक्षा की चुनौतियों के लिए बिल्कुल अनुकूल माहौल उपलब्ध करवाती हैं।
पिछले 16 साल से अफगानिस्तान राज्य-प्रायोजित आतंकवाद का सामना कर रहा है। एक तटीय राज्य के क्षद्म दूत के तौर पर तालिबान हर रोज बेकसूर अफगानियों की हत्या कर रहे हैं और उन्हें अपंग बना रहे हैं। साथ ही इसकी ढांचागत सुविधाओं को तबाह कर रहे हैं। अफगानिस्तान के लिए अपने चारों ओर फैले इलाकों के साथ संबंध कायम करने के लिए ये ढांचागत संसाधन बहुत जरूरी हैं। उत्तर और दक्षिण के इन इलाकों के साथ अपने यहां निवेश, व्यापार और कारोबार को बढ़ावा देने के लिए जरूरी है कि यह इनसे संपर्क कर सके।
राज्य प्रायोजित आतंकवाद ने लगभग 20 और आतंकवादी संगठनों को अफगानिस्तान में अपने काम के संचालन में मदद की है। इन संगठनों में से कुछ का अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय नेटवर्क मौजूद है। साथ ही इस वजह से पैदा हुई असुरक्षा की भावना की वजह से अफगानिस्तान में ड्रग्स के व्यापक उत्पादन का अनुकूल माहौल बन गया है। अब ड्रग्स की वैश्विक मांग का 90% से ज्यादा यही मुहैया करवाता है। ड्रग के कारोबार से आने वाला धन आतंकवाद को बढ़ावा देने के काम में लिया जाता है और व्यवस्था में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है। इससे सरकार और कानून का शासन कमजोर होता है। इन वजहों से ना सिर्फ ड्रग उत्पादन करने वाले बल्कि उसके कारोबार में शामिल सभी देश कमजोर होते हैं।
असुरक्षा के माहौल ने अफगानिस्तान में नशीली दवाओं को बड़े स्तर पर उपजाने और उसके उत्पादन के लिए अनुकूल माहौल पैदा कर दिया है। इसकी वजह से वैश्विक मांग का 90% से अधिक यहीं से पूरा किया जा रहा है।
सुरक्षा के सामने खड़ी होने वाली इन चुनौतियों के आपस में एक-दूसरे से जुड़े होने की वजह से अफगानिस्तान में एक जटिल मानवीय गतिरोध खड़ा हो गया है। ऐसे में यह देश शरणार्थियों और शरन मांगने वालों का एक बड़ा स्रोत बन गया है। मानव तस्करी में शामिल लोग इन्हें अक्सर यूरोप, आस्ट्रेलिया और दूसरी जगहों तक पहुंचा देते हैं। जैसा कि हम देख रहे हैं अफगानिस्तान जैसे देशों पर जो थोपा गया है और जो यहां हो रहा है, वह समुद्री सुरक्षा को सीधे-सीधे प्रभावित करता है।
इस खतरनाक स्थिति की वजह से यह जरूरी हो जाता है कि तटीय और गैर-तटीय देश अलग-अलग नहीं रहें और साथ हाथ मिला कर अपने संसाधनों को साझा करें, अपने खुफिया तंत्र की सूचना का आदान-प्रदान करे। इससे साझा आतंकवाद रोधी रणनीति बनाई जा सकेगी क्योंकि आतंकवादी संगठनों के लिए इन देशों के बीच कोई फर्क नहीं है। इसके साथ ही इन देशों को अपने यहां से गरीबी दूर करने के लिए भी मिल कर काम करना चाहिए। अगर लोगों को सामाजिक सुरक्षा नहीं होगी तो आतंकवादियों, कट्टरपंथियों और राज्य से प्रायोजित आतंकी संगठनों को बरोजगार और मजबूर युवाओं को कट्टरता का पाठ पढ़ा कर, उनके दिमाग को अपने वश में कर के अपने मुताबिक काम में लगाने में मदद मिलेगी।
संभवतः आतंकवाद की चारागाह बनने वाली गरीबी से लड़ने के सबसे अच्छे तरीकों में एक यह भी है कि क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग के जरिए राजनीतिक और सुरक्षा संबंधी विश्वास कायम किया जाए। सुरक्षा संबंधी विश्वास कायम हो सके तो यह बेहतर संपर्क को बढ़ावा देने के साथ ही प्रतिद्वंद्विता और उत्पादकता को बढ़ावा देगा और लेन-देने की लागत कम होगी जिससे क्षेत्रीय बाजार को बढ़ावा मिलेगा। यह कैसे किया जा सकता है? अफगानिस्तान ने अपने तटीय और जमीन से घिरे पड़ोसियों की ओर से अपनाए जाने और लागू किए जाने के लिए एक रणनीतिक समाधान पेश भी किया है। यह है हर्ट ऑफ एशिया- इंस्ताबुल प्रोसेस (एचओए-आईपी) और रिजनल इकनोमिक कॉपरेशन कांफ्रेंस ऑन अफगानिस्तान (आरईसीसीए)।
अफगानिस्तान के नेतृत्व में शुरू की गई इन प्रक्रियाओं को शुरू किए जाने का उद्देश्य देश के स्थायित्व और सतत विकास के लिए क्षेत्रीय सहयोग को सुनिश्चित करना था। यह हो जाए तो इससे आस-पास के क्षेत्र में भी स्थायित्व और समृद्धि पैदा होगी। हालांकि अब तक इन दोनों ही प्रयासों का पूरा फायदा नहीं उठाया जा सका है। तटीय और गैर-तटीय दोनों ही तरह के देशों के लिए यह अल्पकालिक और दीर्घकालिक हित में है कि वे इन दोनों ही प्रयासों में दुगने और तिगुने उत्साह से शामिल हों और इनके साझा उद्देश्यों को पूरा करने में जुट जाएं। निश्चित रूप से इन प्रक्रियाओं को पूरा करने के लिए उठाया गया हर कदम उस देश के साथ ही दूसरे देशों की सुरक्षा को सुनिश्चित करेगा और आतंकवादी-अतिवादी तत्वों और उनके राज्य प्रायोजित आकाओं के सामाजिक-आर्थिक खतरों को कम करेगा। इसलिए यह समय बिल्कुल सही है कि सभी संबंधित देश इन दोनों प्रक्रियाओं के तहत प्रस्तावित कार्यक्रमों और परियोजनाओं को लागू करने के लिए अपने पहले से घोषित वादों को फिर से दुहराएं।
अफगानिस्तान के नेतृत्व में चल रहे इन दोनों प्रयासों को देश के स्थायित्व और सतत विकास को सुनिश्चित करने के लिए चलाया गया था। इससे आस-पास के इलाके में भी स्थायित्व और समृद्धि सुनिश्चित होगी।
इस महीने की 14-15 तारीख को आरईसीसीए की सातवीं बैठक अशगाबत-तुर्कमेनिस्तान में आयोजित होगी। यह बैठक “आपसी संपर्क को बेहतर करने और बेहतर समायोजन व निवेश ढांचे के जरिए व्यापार को बढ़ावा देने” के विषय पर केंद्रित होगी। अफगानिस्तान के तटीय और गैर तटीय पड़ोसियों के लिए यह बिल्कुल उपयुक्त मौका होगा कि वे आरईसीसीए की काबुल में हुई छठी बैठक के मुद्दों पर हुई प्रगति का जायजा लें। इस बैठक के दौरान होने वाले विभिन्न अन्य कार्यक्रम इसमें भाग लेने वाले देशों को बहुत अच्छा अवसर मुहैया करवाएंगे जब वे वित्तीय और निवेश जरूरतों की राह में आने वाली बाधाओं और चुनौतियों पर चर्चा कर सकें। खास कर ऊर्जा, परिवहन तंत्र, व्यापाकर और ट्रांजिट सुविधा, संचार और कारोबार से कारोबार व श्रम सहयोग जैसे प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में आपसी सहयोग तलाशा जा सकेगा।
इसी तरह दिसंबर की शुरुआत में एचओए-आईपी का सातवां मंत्री स्तरीय सम्मेलन बाकू, अजरबैजान में होगा, जिसमें राजनीतिक सुरक्षा और आर्थिक सहयोग के लिए जरूरी भरोसा पैदा करने वाले उपाय (सीबीएम) पर चर्चा होगी। अफगानिस्तान का लक्ष्य है कि वह सहयोग को समृद्ध करने और साझेदारी को मजबूत करने वाली आरईसीसीए और एचओए-आईपी परियोजनाओं को आगे बढ़ाते हुए ना सिर्फ अफगानिस्तान बल्कि पूरे आस-पास के इलाके के सतत विकास के लिए इनका उपयोग किया जाए। इससे विभिन्न देशों के इसमें शामिल होने को बढ़ावा मिलना चाहिए ताकि वे अपने साझा सुरक्षा और विकास जरूरतों का आकलन कर सकें उसके अनुकूल ही अफगानिस्तान के साथ अपने मेल-जोल को बढ़ा सकें। प्रस्तावित परियोजना को लागू करने से सभी को लाभ होगा।
क्षेत्रीय सुरक्षा और विकास साझेदारी की इस महत्वपूर्ण संभावना को ध्यान में रखते हुए अफगानिस्तान अमेरिका की नई दक्षिण एशिया नीति का स्वागत करता है। अमेरिका की यह नई नीति उस राज्य संचालित आतंकवाद से निपटने में मददगार है जिसे अफगानिस्तान झेल रहा है। इसमें पाकिस्तान में स्थित तालिबान के सुरक्षित अभयारण्यों को पूरी तरह बंद करना शामिल है। इन्हीं जगहों से तालिबान के विचारों की नीव पड़ती है, उन्हें प्रशिक्षित किया जाता है, हथियार मुहैया करवाए जाते हैं और अफगानिस्तान में आतंकवाद फैलाने व पूरे हिंद महासागर को अस्थिर करने के काम पर लगाया जाता है। अफगानिस्तान सरकार का गंभीरता से मानना है कि अमेरिका की इस नई रणनीति को पूरी तरह से अमल में लाए जाने से ना सिर्फ उसके बल्कि पूरे क्षेत्र के सतत विकास के लिए जरूरी सुरक्षा के माहौल को कायम करने में मदद मिलेगी। इसे लागू करने में अफगानिस्तान के साथ इसकी सुरक्षा और विकास संबंधी चिंताओं को साझा करने वाले तटीय और गैर तटीय देशों की साझेदारी जरूरी है।
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.