Author : Ayjaz Wani

Published on Apr 27, 2018 Updated 0 Hours ago

'मानव ढाल' प्रकरण से संबंधित टी-शर्ट बेचने को लेकर क्या भाजपा ने कश्मीर में भारतीय हितों को नुकसान पहुंचाया?

‘मानव ढाल’ टीशर्ट: कश्मीर में सेना की प्रतिष्ठा को ठेस

टी⎯शर्ट भैया पर ऑनलाइन बिक्री के लिए उपलब्ध हैं मानव ढाल वाले टी⎯शर्ट।

ऐसा लगता है कि भाजपा कश्मीर में धीरे धीरे पाकिस्तान द्वारा बिछाये जाल में फंसती जा रही है। भाजपा और इसके कट्टर सहयोगी जो कदम उठा रहे हैं वे कश्मीर के युवाओं में कट्टरपंथ को बढ़ावा देने और अलगाववादियों के इरादों को और विश्वसनीय बनाने की दिशा में पाकिस्तान के सरकार समर्थित और गैर सरकारी ताकतों के हाथ के हथियार बन रहे हैं। सभी कश्मीरी युवाओं को आतंकवादी साबित करने, जिन्हें सबक सिखाने की जरूरत है, एैसे सस्ते राष्ट्रवाद की भावना जगाने वाले प्रयासों से भारत के राष्ट्रीय हितों को नुकसान पहुंचना तय है और इससे स्थानीय आबादी का देश के अन्य हिस्सों से अलगाव और बढ़ेगा।

इस संदर्भ में हाल में दिल्ली के भाजपा नेता और दिल्ली के उग्र दक्षिणपंथी संगठन भगत सिंह क्रांति सेना के स्वयंभू प्रमुख द्वारा विवादित टीशर्ट, के ऑनलाइन सेल का मामला विचारणीय है। इसमें पिछले साल अप्रैल के “मानव ढाल” वाले विवादास्पद प्रकरण को कार्टून के रूप में चित्रित किया गया है। छद्म राष्ट्रवाद के भड़काऊ संदेशों वाले ये टीशर्ट निस्संदेह सेना की छवि को चोट पहुंचायेंगे जो 1998 के बाद से ऑपरेशन सद्भावना जैसे कई प्रयासों के जरिये स्थानीय आबादी का विश्वास जीतने की कोशिश कर रही है। ज्यादा बुरी बात ये है कि इन टीशर्ट के जरिये सेना की वैसी भयावह छवि प्रदर्शित करने की कोशिश की जा रही है जिसकी चाहत आईएसआई को हमेशा से रही है।

शॉल बुनकर फारुख डार, के साथ हुए अनुचित व्यवहार को दिखाते ये टीशर्ट ग्राहकों को राष्ट्रवाद को सीने से लगाने को प्रेरित करते दिखते हैं। ध्यान रहे सेना के काफिले को पथराव से बचाने के लिए डार को मानव ढाल के रूप में सेना की जीप की बोनट से बांध दिया गया था। देश भर में छद्म राष्ट्रवादियों की भावनाओं को दर्शाता टीशर्ट का नारा “इंडियन आर्मी: सेविंग योर ऐस वेदर यू लाइक इट ऑर नॉट” स्पष्ट तौर पर ये प्रदर्शित करता है कि टीशर्ट में किनके बारे में बात हो रही है और किनको निशाना बनाया जा रहा है।

9 अप्रैल 2017 को वोट डाल कर लौट रहे डार को सेना द्वारा “मानव ढाल” के रूप में इस्तेमाल करने के पीछे चाहे जो भी तर्क रहे हों लेकिन यह प्रकरण अंतरराष्ट्रीय समाचार बन गया। ज्योंही इस प्रकरण का वीडियो वायरल हुआ, मामले की जांच के लिए आर्मी कोर्ट ऑफ इन्क्वॉयरी (सीओआई) का गठन कर दिया गया। सेना के जिस अधिकारी ने इस कार्रवाई का आदेश दिया था उसके खिलाफ जम्मू कश्मीर पुलिस ने एफआईआर भी दर्ज कर ली, लेकिन सीओआई जब तक अपनी जांच पूरी करती इसके पहले ही सेना ने उस अधिकारी को “उग्रवाद विरोधी अभियानों के दौरान निरंतर प्रयासों” के लिए प्रशस्ति पदक प्रदान कर दिया। सेना प्रमुख जनरल विपिन रावत और तत्कालीन रक्षा मंत्री अरूण जेटली ने भी इस अधिकारी की तारीफ की।


अब करीब एक साल बाद भाजपा के दिल्ली के प्रवक्ता द्वारा विवादास्पद टीशर्ट की बिक्री की बदौलत वह प्रकरण एक बार फिर से अंतरराष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियों में है।


जैसी कि आशंका थी, सबसे पहले पाकिस्तान के अखबारों ने इसका गलत इस्तेमाल करके भारत विरोधी प्रचार को हवा देनी शुरू की। दी एक्सप्रेस ट्रिब्यून में “इंडियन क्लॉथिंग ब्रैंड लांचेज़ एपेरल मॉकिंग आईओके रेजीडेन्ट्स” शीर्षक से एक लेख छपा। यह लेख साफ दिखाता है कि कैसे इस भजपा नेता ने कश्मीरी युवकों के बारे में देश के शेष हिस्से में फैली गलत धारणा का व्यावसायिक फायदा लेने के चक्कर में ऐसा कदम उठाया है। इससे राष्ट्रविरोधी ताकतों को इस मसले का बेजा इस्तेमाल करने का मौका मिल गया है, जबकि इन्हीं राष्ट्रविरोधी ताकतों पर काबू पाने की कोशिश केन्द्र सरकार और सेना कर रही है।

रिपोर्ट में अंत में कहा गया है — “ये (टीशर्ट) दिखाती है कि भारतीय कश्मीरियों से किस कदर नफरत करते हैं कि उस बेगुनाह को भी नहीं बख्शते जिसे पहले तो सेना ने मानव ढाल के रूप में इस्तेमाल करके बेइज्जत किया और अब एक साल गुजरने के बाद उसी व्यक्ति की तस्वीर टीशर्ट में लगा दी ताकि उसे पूरी दुनिया में बदनाम किया जा सके।” अल जजीरा में एक अन्य रिपोर्ट में दावा किया गया है कि ये टीर्शट ना सिर्फ घाटी में तनाव को बढ़ावा देंगी बल्कि इससे कश्मीरियों का आक्रोश भी बढ़ेगा जिन्होंने इसे ‘दर्द का व्यवसाय’ करार दिया है।

इस समय जब अपने दृढ़ तेवर के बावजूद भारतीय सेना कश्मीर की जनता के साथ मानवीय रवैया अपनाने के लिए प्रतिबद्ध है, ऐसा भारत विरोधी प्रचार अभियान न सिर्फ प्रतिकूल माहौल बनायेगा बल्कि ऑपरेशन सद्भावना जैसे बदलाव की कोशिशों को भी आघात पहुंचायेगा।

1998 में सेना ने कश्मीर की जनता के बीच अपनी छवि सुधारने और “जवान और अवाम” के बीच अंतर को पाटने के लिए “जवान और अवाम, अमन है मुकाम” के नारे के साथ ऑपरेशन सद्भावना शुरू किया था। अपनी छवि बेहतर बनाने के लिए सेना की ओर से यह बड़ा प्रयास था। इस योजना का उद्देश्य जम्मू कश्मीर की जनता तक पहुंच बनाना है जो पाक प्रायोजित आतंकवाद के दबाव में कराह रही है।

ऑपरेशन सद्भावना के तहत घाटी की सामाजिक स्थिति में सुधार लाने, यहां के युवाओं का परिचय देश के अन्य भागों से कराने और स्कूल, पुल आदि बनाकर बुनियादी सुविधायें बढ़ाने जैसे कई व्यापक प्रयास अभी भी चल रहे हैं। कश्मीर के युवाओं को खासकर स्कूल और कॉलेज के विद्यार्थियों को राष्ट्रीय एकता टूर जैसे कार्यक्रमों के तहत देश के अन्य भागों में भेजा जाता है ताकि उनके अंदर भारतीयता की भावना पैदा हो सके और उन्हें भारत के व्यापक सामाजिक — सांस्कृतिक संदर्भों से जोड़ा जा सके।


ऑपरेशन सद्भावना के तहत सेना कश्मीर में कई कौशल विकास कार्यक्रम संचालित करती है और अपने प्रयासों से घाटी के ग्रामीण इलाकों में नि:शुल्क मेडिकल कैंप लगाकार बुनियादी स्वास्थ्य सुविधायें मुहैया कराती हैं।


सेना के अपने संसाधनों की सहायता से चल रहे ऑपरेशन सद्भावना ने अलग अलग क्षेत्रों में 500 से ज्यादा जनोपयोगी परियोजनाओं को पूरा किया है। यह कश्मीर की स्थिति से निबटने में सेना के नरम रवैये को भी प्रदर्शित करता है। सेना का मकसद उस समय भी बहुत हद तक पूरा होता दिखा था जब लश्कर ए तैयबा में शामिल फुटबाल खिलाड़ी माजिद खान ने आतंकवाद का रास्ता छोड़ने का फैसला लेने के बाद घाटी में कार्यरत अन्य सुरक्षा एजेंसियों की बजाय भारतीय सेना के समक्ष समर्पण करना तय किया।

सहयोगी बल (फ्रेंडली फोर्स) के रूप में सेना की बेहतर होती छवि इस लेखक को पिछले साल नवंबर में उस समय नजर आई थी जब उसने कश्मीर घाटी के सभी जिलों का व्यापक सर्वेक्षण किया था। बड़ी तादाद में दक्षिण कश्मीर और श्रीनगर के युवाओं सहित करीब 2,500 लोगों के बीच किये गये सर्वेक्षण से ये संकेत मिला कि वहां के लोगों में जम्मू कश्मीर पुलिस सहित अन्य सुरक्षा एजेंसियों की तुलना में सेना की भूमिका को लेकर ज्यादा सकारात्मक भाव है।

90 फीसदी से ज्यादा लोगों की राय थी कि सेना दूसरी सुरक्षा एजेंसियों की तुलना में ज्यादा गंभीर तरीके से नियम⎯कायदों का पालन करती है। हांलाकि उस समय सेना की भूमिका को लेकर कुछ संदेह पैदा हुआ था जब संयुक्त अभियानों के दौरान सेना को दूसरी सुरक्षा एजेंसियों के साथ मिलकर काम करना पड़ा था। सर्वेक्षण में शामिल सभी लोगों ने मानव ढाल विवाद में सेना की भूमिका पर सवाल उठाये।


इन संकेतों के मद्देनजर, ऐसा लगता है कि देश की जनता के समक्ष सस्ते राष्ट्रवाद का इस्तेमाल करके सेना के नाम पर टीशर्ट बेचने के प्रयास से संवेदनशील घाटी की जटिल समस्यायें और गंभीर होंगी। यह मामूली आर्थिक फायदों के लिए सेना की छवि के शर्मनाक इस्तेमाल के समान है, जो देश में सर्वाधिक गैर राजनीतिक और धर्मनिरपेक्ष संस्था मानी जाती है।


केन्द्र सरकार ने कश्मीर में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की सख्त रणनीति से संतुलन बिठाने की कोशिश के तहत पिछले दो वर्षों में विश्वास बहाली के कई उपाय किये हैं । इसी क्रम में कश्मीरी समाज के सभी पक्षों के साथ संवाद प्रक्रिया फिर से शुरू करने के लिए अक्टूबर 2017 में वार्ताकार की नियुक्ति की गयी। यह कश्मीर की जनता का भरोसा फिर से हासिल करने की कोशिश है जिससे कि विवाद के मूल कारणों का दीर्घकालिक और स्वीकार्य समाधान तलाशने में मदद मिल सके।

राजनीतिक लाभ के लिए टीशर्ट का व्यवसाय करने से न सिर्फ केन्द्र सरकार के नये प्रयास बाधित होंगे बल्कि ये सेना के ऑपरेशन सद्भावना को भी अप्रासंगिक बना देंगे। यह केन्द्र और कश्मीरियों और उसी तरह सेना और नागरिकों के बीच के वैर को भी और बढ़ायेगा,जो सीमा पार की ताकतों का असली मकसद है।

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