Published on Oct 12, 2023 Updated 0 Hours ago
हथियार एवं सैन्य साज़ो-सामान के लिए रूस की निगाहें अब उत्तर कोरिया पर!

रूस की ओर से एक बार फिर उत्तर कोरिया यानी डेमोक्रेटिक पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ कोरिया (DPRK) से सैन्य सहयोग हासिल करने की कोशिश की गई हैमॉस्को की तरफ से इस बार उत्तर कोरिया से मदद का प्रयास हथियार और गोलाबारूद के लिए किया गया हैउल्लेखनीय है कि हाल ही में उत्तर कोरिया के सर्वोच्च नेता किम जोंगउन ने अपनी चर्चित बेहद सुरक्षित बख़्तरबंद ट्रेन में रूस की यात्रा की थीबताया गया है कि इस यात्रा का उद्देश्य रूस को हथियार और सैन्य साज़ोसामान की आपूर्ति के लिए मास्को एवं प्योंगयांग के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर करना थाहालांकिपूर्व के सोवियत यूनियन के ज़माने से ही रूसी संघ के पास हथियारों एवं गोलाबारूद का ज़खीरा रहा करता थालेकिन ताज़ा परिस्थितियों में रूस में सैन्य साज़ोसामान की कमी हो गई हैहालांकिइसमें कोई हैरानी वाली बात भी नहीं हैक्योंकि लंबे समय से जारी रूसयूक्रेन युद्ध में बड़ी मात्रा में रूस का हथियार और गोलाबारूद यूक्रेन के विरुद्ध इस्तेमाल हो चुका हैआयुध भंडार में आई इस कमी ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को चीन और बेलारूस के अलावा अपने एकमात्र निकटतम सहयोगी उत्तर कोरिया से युद्ध सामग्री की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए विवश कर दिया हैरूस और उत्तर कोरिया के बीच अपनी अलगअलग ज़रूरतों को लेकर प्रगाढ़ पारस्परिक साझेदारी हैप्योंगयांग रूस में निर्मित सैटेलाइट एवं खाद्य सहायता के एवज में यूक्रेन के ख़िलाफ़ युद्ध में रूस की मदद करने के लिए तोपों एवं गोलाबारूद की आपूर्ति करने पर सहमत हुआ है.

ऐसा माना जाता है कि उत्तर कोरिया के पास दुनिया के किसी भी देश की तुलना में आर्टिलरी यानी तोपों एवं सैन्य हथियारों का सबसे बड़ा भंडार है. यहां तक कहा जाता है कि परमाणु हथियारों का इस्तेमाल किए बिना ही उत्तर कोरिया अपनी तोपों और मिसाइलों के दम पर दक्षिण कोरियाई की राजधानी सियोल को नेस्तनाबूद कर सकता है.

उत्तर कोरिया की और रुख़

ऐसा माना जाता है कि उत्तर कोरिया के पास दुनिया के किसी भी देश की तुलना में आर्टिलरी यानी तोपों एवं सैन्य हथियारों का सबसे बड़ा भंडार हैयहां तक कहा जाता है कि परमाणु हथियारों का इस्तेमाल किए बिना ही उत्तर कोरिया अपनी तोपों और मिसाइलों के दम पर दक्षिण कोरियाई की राजधानी सियोल को नेस्तनाबूद कर सकता है. सच्चाई यह है कि उत्तर कोरिया के पास 6,000 आर्टिलरी सिस्टम्स हैं और अगर युद्ध की स्थिति में इनका उपयोग उसके पड़ोसी दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल के ख़िलाफ़ किया जाता हैतो एक घंटे के भीतर ही वहां के 10,000 लोगों को मौत के घाट उतारा जा सकता हैज़ाहिर है कि प्योंगयांग के पास आर्टिलरी ऑर्डिनेंस का बहुत बड़ा ज़खीरा मौज़ूद हैऐसे में उसे हथियारों की कमी से जूझ रहे मॉस्को की मदद करनी चाहिएहाल ही में रूस और उत्तर कोरिया के बीच हथियारों एवं गोलाबारूद को लेकर जो डील हुई हैउससे मॉस्को को लंबे समय तक अपने सैन्य अभियानों को संचालित करने में मदद मिलेगी.

यूक्रेन के ख़िलाफ़ लड़ाई में रूसी सेना द्वारा जिस प्रकार अंधाधुंध तरीक़े से तोपों एवं दूसरे सैन्य हथियारों का इस्तेमाल किया गया हैउसी का नतीज़ा है कि मॉस्को के समक्ष व्यापक स्तर पर हथियारों की कमी हो गई हैयूक्रेन के ख़िलाफ़ युद्ध में जितनी तादात में रूसी सेना ने हथियार और गोला बारूद का इस्तेमाल किया हैउसकी तुलना में वहां ज़रूरी हथियारों का उत्पादन नहीं हो सकता हैवर्तमान समय की बात करेंतो रूसी आर्टिलरी वीपन्स का वार्षिक उत्पादन मिलियन हैरूसी सेना द्वारा तोपों के निर्माण से जुड़ी गतिविधियों में जितना ख़र्च किया जाताउसकी तुलना में तोपों का उत्पादन बहुत कम हैज़ाहिर है कि वर्ष 2022 में रूस में 11 मिलियन गोलाबारूद का उत्पादन किया गया थाजबकि इस वर्ष (2023) यह आंकड़ा 7 मिलियन तक ही पहुंचने की संभावना हैमॉस्को और प्योंगयांग के बीच वर्तमान में जो डील हुई हैइससे पहले भी रूस द्वारा गुपचुप तरीक़े से उत्तर कोरिया से हथियार हासिल किए जा रहे थे.

देखा जाए तो रूस-उत्तर कोरिया हथियार डील भारत जैसे देशों के लिए गंभीर चिंता का मुद्दा है, क्योंकि सैन्य सामग्री को लेकर भारत की रूस पर बहुत अधिक निर्भरता है.

जिस प्रकार से मॉस्को की उत्तर कोरिया और ईरान पर सैन्य आपूर्ति के लिए निर्भरता बढ़ती जा रही हैउसने अन्य देशों को भी ख़ासा प्रभावित किया हैरूस की दूसरे मुल्क़ों पर निर्भरता ने विशेष रूप से उन देशों की चिंता बढ़ा दी हैजो तोपों और गोलाबारूद की आपूर्ति के लिए रूस पर अत्यधिक निर्भर हैंऐसे देशों की भी सैन्य हथियारों को लेकर रूस और नॉर्थ कोरिया के बीच हुई डील पर पैनी नज़र हैज़ाहिर सी बात है कि अगर रूस वर्तमान युद्ध में कीव के विरुद्ध अपने सेना की हथियार एवं गोलाबारूद की आपूर्ति से संबंधित ज़रूरतों को पूरा करने में सक्षम नहीं हैतो वह अपने रक्षा साझीदार देशों की आवश्यकताओं की पूर्ति कैसे कर पाएगाउदाहरण के तौर परभारत रूस के आर्टिलरी सिस्टम की एक पूरी श्रृंखला को ऑपरेट करता है और कहा जा सकता है कि उस पर अत्यधिक निर्भर भी हैइस आर्टिलरी सिस्टम में स्मर्च मल्टीबैरल रॉकेट लॉन्च सिस्टम्स (MBRLs) से लेकर Grad-21 रॉकेट लॉन्चर तक शामिल हैंहालांकिकिसी विपरीत स्थित में भारत के पास रूसी आर्टिलरी सिस्टम्स की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए घरेलू स्तर विकल्प मौज़ूद हैंलेकिन ऐसी परिस्थियों मेंजब भारत और चीन या फिर भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की नौबत  जाएया फिर बीजिंग और रावलपिंडी दोनों तरफ से हमला हो जाएतो भारत को गंभीर चुनौतियों से रूबरू होना पड़ेगाऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड (OFB) द्वारा पहले से ही स्मर्च MBRLs में इस्तेमाल किए जाने वाले विभिन्न प्रकार के गोलाबारूद का उत्पादन किया जाता हैहालांकि मौज़ूदा हालात में जिस प्रकार से यूक्रेन पर हमले के लिए रूस हथियारों की कमी से जूझ रहा हैउस स्थिति में भारत को अपने हथियारों के उत्पाद में ज़बरदस्त तरीक़े से बढ़ोतरी करने की ज़रूरत होगीजो परिस्थितियां बन रही हैंउनसे यह साफ प्रतीत हो रहा है कि रूस और यूक्रेन का युद्ध लंबे समय तक खिंचने की संभावना है और ऐसे में आने वाले दिनों में मॉस्को को आर्टिलरी वीपन्स की बहुत अधिक ज़रूरत पड़ेगी.

इसके साथ ही यह भी जानना होगा कि अगर मॉस्को इसके लिए तैयार है, तो भारत को बदले में रूस को कितना पैसा देना होगा. भारत को कम से कम मॉस्को के साथ इस मुद्दे पर बातचीत शुरू करनी होगी कि वो मौज़ूदा मामूली स्तर की तुलना में रूसी मूल की हथियार प्रणालियों को व्यापक पैमाने पर कैसे विकसित कर सकता है.

इसलिएदेखा जाए तो रूसउत्तर कोरिया हथियार डील भारत जैसे देशों के लिए गंभीर चिंता का मुद्दा हैक्योंकि सैन्य सामग्री को लेकर भारत की रूस पर बहुत अधिक निर्भरता है. हालांकिलंबे समय में रूसी हथियारों पर निर्भरता को कम किए जाने की ज़रूरत है और ऐसे में गैररूसी सैन्य उपकरणों की ख़रीद और उनका उपयोग किया जाना अब आवश्यक हो गया हैऐसा ज़रूरी नहीं है कि रूस से हथियारों की आपूर्ति में होने वाली कमी को पूरा करने के लिए गैररूसी हथियार एवं गोलाबारूद आपूर्तिकर्ता देशों से आयात को बढ़ाया जाएज़ाहिर है कि ऐसा करने के बजाए नई दिल्ली को स्वदेश में विकसित आर्टिलरी सिस्टम्स में निवेश के लिए भी समानांतर कोशिशें करनी चाहिएइतना ही नहीं रूस को भी भारत को स्वदेश में रूसी मूल के आर्टिलरी वीपन्स का निर्माण करने की इज़ाजत देनी चाहिएऑटोमोबाइल और ट्रक निर्माता अशोक लीलैंड पहले से ही स्वदेशी रूप से निर्मित 10×10 उच्च मोबिलिटी वाले वाहन बना रहा हैजिनमें स्मर्च बैटरी लगी हुई हैइसके साथ ही भारत में अपने छह लांचरों के साथ स्मर्च बैटरियों का भी उत्पादन किए जाने की ज़रूरत होगी.

आगे की राह 

इसी तरह से ग्रैड रॉकेट लॉन्चरों का उत्पादन भी भारत में किए जाने की आवश्यकता होगीइंडियनरशियन इंटरगवर्नमेंटल कमीशन ऑन मिलिट्री एंड मिलिट्रीटेक्नीकल कोऑपरेशन (IRICMMC) के ज़रिए नई दिल्ली को इस बारे में मॉस्को के साथ बातचीत करनी होगीसाथ ही यह भी सुनिश्चित करना होगा कि क्या मॉस्को इन रॉकेट बैटरियों के लिए अपनी टेक्नोलॉजी साझा करने के लिए राज़ी हैइसके साथ ही यह भी जानना होगा कि अगर मॉस्को इसके लिए तैयार हैतो भारत को बदले में रूस को कितना पैसा देना होगाभारत को कम से कम मॉस्को के साथ इस मुद्दे पर बातचीत शुरू करनी होगी कि वो मौज़ूदा मामूली स्तर की तुलना में रूसी मूल की हथियार प्रणालियों को व्यापक पैमाने पर कैसे विकसित कर सकता है. ज़ाहिर है कि अगर भारत द्वारा मॉस्को के साथ इस तरह की कोई बातचीत नहीं की जाती हैतो ग्रैड और स्मर्च रॉकेट लॉन्च सिस्टम्स को ऑपरेट करने वाली भारतीय सेना (IA) और सैन्य ख़रीदफरोख़्त की निगरानी करने वाले रक्षा मंत्रालय (MoD) को रूस को छोड़कर अलगअलग देशों के साथ सैन्य साज़ोसामन एवं आयुध ख़रीदने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगीऔर भारत की इस संभावित दिक़्क़त के पीछे एक बड़ी वजह होगामॉस्को एवं प्योंगयांग के बीच हुआ हालिया हथियार समझौता.


कार्तिक बोम्माकांति ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडी प्रोग्राम में सीनियर फेलो हैं.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.

Author

Kartik Bommakanti

Kartik Bommakanti

Kartik Bommakanti is a Senior Fellow with the Strategic Studies Programme. Kartik specialises in space military issues and his research is primarily centred on the ...

Read More +