Author : Manoj Joshi

Published on Sep 27, 2023 Updated 0 Hours ago

कैंप डेविड में अमेरिका-जापान-दक्षिण कोरिया शिखर सम्मेलन पूर्वी एशिया में बदलते सुरक्षा समीकरण पर ज़ोर देता है.

अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया के बीच कैंप डेविड बैठक: अहमियत और चुनौतियां

अमेरिका, दक्षिण कोरिया और जापान के बीच पिछले दिनों आयोजित शिखर सम्मेलन ने उतना ध्यान नहीं खींचा जितना खींचना चाहिए था. दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक योल, जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा और मेज़बान देश अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन के बीच कैंप डेविड में आयोजित इस बैठक ने साफ तौर पर पूर्वी एशिया के दो पड़ोसियों और अमेरिका के सहयोगियों के बीच तनाव कम किया है. तीनों देश सैन्य एवं आर्थिक सहयोग को बढ़ाने के लिए सहमत हुए और दक्षिण चीन सागर में चीन के द्वारा “ख़तरनाक और आक्रामक बर्ताव” को लेकर उन्होंने सबसे मज़बूत साझा बयान जारी किया. 

भले ही तीनों देशों ने एक-दूसरे के लिए जो राजनीतिक प्रतिबद्धताएं जताई वो एक औपचारिक गठबंधन के स्तर की नहीं थी लेकिन ये अपने आप में पूर्वी एशिया में अमेरिका की रक्षा संरचना का आख़िरी हिस्सा है. अमेरिका की इस रक्षा संरचना ने ऑकस (AUKUS) का विकास, जापान-ऑस्ट्रेलिया सैन्य संबंध में अपग्रेडेशन और अमेरिका-फिलीपींस रक्षा संबंधों की बहाली देखी है. 

जापान-कोरिया के बीच मेल-मिलाप एक ज़्यादा कठिन काम था क्योंकि इसके लिए द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान कोरियाई प्रायद्वीप में जापान के बर्ताव की लंबी यादों को भुलाना शामिल था.

पूर्वी एशिया में नई सुरक्षा संरचना में सबसे महत्वपूर्ण तत्व रहा है जापान के द्वारा “आत्म-संयम” की अपनी रक्षा नीति को ख़त्म करने का एलान और अपने दम पर संपूर्ण सैन्य ताकत के तौर पर उभरने की शुरुआत. 

जापान अब अपने रक्षा बजट को व्यवस्थात्मक तरीके से GDP के 2 प्रतिशत तक पहुंचाने के लिए तैयार है. ये ऐसा कदम है जो उसे अमेरिका और चीन के बाद दुनिया में रक्षा पर खर्च करने वाला तीसरा सबसे बड़ा देश बना देगा. अभी तक जापान ने ख़ुद ही ये सीमा तय कर रखी है कि वो रक्षा के लिए अपनी GDP का 1 प्रतिशत से ज़्यादा खर्च नहीं करेगा. जापान की सेना, जिसे सेल्फ डिफेंस फोर्सेज़ (SDF) के नाम से जाना जाता है, में लगभग 2,31,000 सैनिक हैं. वहीं जापान के विरोधी देश- चीन, उत्तर कोरिया और रूस- परमाणु हथियार से संपन्न हैं जिनके पास 10 लाख से ज़्यादा सैनिक हैं. 2012 में शिंज़ो आबे के सत्ता में लौटने के बाद से जापान धीरे-धीरे अपना रक्षा बजट बढ़ा रहा है लेकिन अब जो हो रहा है वो बड़ा बदलाव है. 

जापान-कोरिया के बीच मेल-मिलाप एक ज़्यादा कठिन काम था क्योंकि इसके लिए द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान कोरियाई प्रायद्वीप में जापान के बर्ताव की लंबी यादों को भुलाना शामिल था. विवादों के मुद्दों में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान की ज़्यादतियों के लिए मुआवज़ा शामिल था.  

विडंबना ये है कि 2022 के मध्य में शिंज़ो आबे के निधन से दक्षिण कोरिया और जापान के बीच तनावों को कम करने में मदद मिली. उन्हें दक्षिण कोरिया में “जापान के राजनीतिक दक्षिणपंथ के एक सबसे बड़े प्रतीक” के रूप में देखा जाता था. दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक योल के नज़दीकी लोग मानते हैं कि आबे ने जापान के कई राजनेताओं को इस बात के लिए राजी किया कि वो दक्षिण कोरिया के साथ समझौता न करने वाला रवैया अपनाएं. 

रिश्ते उस वक्त और खराब हो गए जब दिसंबर 2018 में जापान के सागर में दक्षिण कोरिया के एक युद्ध पोत ने फायर कंट्रोल रडार से एक जापानी पेट्रोल प्लेन को अपने निशाने पर लेने के लिए लॉक किया. दक्षिण कोरिया की तरफ से गलती मानने से इनकार करने के बाद SDF और दक्षिण कोरियाई सेना के बीच संबंधों में खटास आ गई. इस मुद्दे ने 2019 में उस वक्त गंभीर रुख अख्तियार कर लिया जब दोनों देशों ने एक-दूसरे को तरजीह देने वाले व्यवहार के लिए योग्यता रखने वाले  भरोसेमंद व्यापारिक साझेदारों की व्हाइट लिस्ट से हटा दिया. उसी समय दक्षिण कोरिया ने जापान को जानकारी दी कि वो 2016 के खुफिया जानकारी साझा करने के समझौते, जनरल सिक्युरिटी ऑफ मिलिट्री इन्फॉर्मेशन एग्रीमेंट (GSOMIA), को ख़त्म करने की योजना बना रहा है. दोनों देशों के औपचारिक सैन्य सहयोगी अमेरिका ने दखल देने की कोशिश की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.

सितंबर की शुरुआत में जापान ने 2024-25 के लिए रक्षा बजट की घोषणा की. 53 अरब अमेरिकी डॉलर के साथ मौजूदा वित्तीय वर्ष के 46 अरब अमेरिकी डॉलर की तुलना में ये 13 प्रतिशत ज़्यादा है.

मार्च 2023 में उस समय रिश्तों में जमी बर्फ पिघली जब राष्ट्रपति यून सुक योल टोक्यो के दौरे पर गए. उनकी ये यात्रा कोरियाई प्रायद्वीप पर जापान के कब्ज़े के दौरान ज़बरन मज़दूरी कराने के लिए मुआवज़े को लेकर विवाद ख़त्म करने की योजना के एलान के बाद हुई. दक्षिण कोरिया ने जापान के व्हाइट लिस्ट के दर्जे को बहाल कर दिया और बाद में एलान किया कि वो GSOMIA पर सहयोग शुरू करेगा. 

दक्षिण कोरिया और जापान के बीच क्या बदला है? 

बदलाव को बढ़ावा देने वाले तीन फैक्टर रहे हैं- 1. जापान के ऊपर उत्तर कोरिया के द्वारा मिसाइल दागना जिसने दक्षिण कोरिया पर ख़तरे के बारे में आगाह किया, 2. चीन की बढ़ती दादागीरी जिसकी वजह से एशिया के दूसरे हिस्सों की तरह दक्षिण कोरिया में भी तनाव बढ़ा, 3. सबसे प्रमुख कारण रहा यूक्रेन पर रूस का हमला जिसने ये संकेत दिया कि शीत युद्ध के बाद की विश्व व्यवस्था कितनी आसानी से संघर्ष की ओर ले जा सकती है. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जापान और रूस ने अभी तक एक औपचारिक शांति समझौता नहीं किया है. 

इन घटनाओं के परिणामस्वरूप सबसे ज्यादा असर जापान में रहा है जहां सरकार ने विश्य युद्ध के बाद की “आत्म रक्षा” की भाषा को त्याग दिया है और जपान की रक्षा के लिए अधिक सक्रिय उपायों की शुरुआत की है. 

सितंबर की शुरुआत में जापान ने 2024-25 के लिए रक्षा बजट की घोषणा की. 53 अरब अमेरिकी डॉलर के साथ मौजूदा वित्तीय वर्ष के 46 अरब अमेरिकी डॉलर की तुलना में ये 13 प्रतिशत ज़्यादा है. उम्मीद की जा रही है कि दो एजिस से लैस डिस्ट्रॉयर के निर्माण, अमेरिका के साथ मिलकर हाइपरसोनिक मिसाइल इंटरसेप्टर के साझा विकास, प्रिसिज़न-गाइडेड मिसाइल की ख़रीदारी, युद्ध पोत की एक नई श्रेणी के निर्माण, F-35A एवं 35B लाइटनिंग II ज्वाइंट स्ट्राइक फाइटर्स की ख़रीदारी, तेल टैंकर के एक बेड़े का निर्माण और जापान के दक्षिण-पश्चिम द्वीपों में सेना की टुकड़ियों एवं साजो-सामान को भेजने के उद्देश्य से जहाज़ की ख़रीदारी के लिए इस बजट से फंड मिलेगा. 

एजिस जहाज़ों के 2027 और 2028 में मिलने की उम्मीद है और ये सतह से सतह पर मार करने वाली जापानी टाइप 12 मिसाइल का बेहतर वर्ज़न होंगे. भविष्य में इनमें हाइपरसोनिक मिसाइल इंटरसेप्टर जैसी क्षमताओं को शामिल किया जा सकता है. जापान F-35B फाइटर जेट का संचालन करने वाले दो आइज़ुमो क्लास करियर के अपग्रेडेशन के आधार पर दो पुराने एजिस जहाज़ों को एक एयरक्राफ्ट करियर ग्रुप को एस्कॉर्ट करने के लिए छोड़ेगा.   

बजट की योजना के तहत उत्तर कोरिया के द्वारा मिसाइल लॉन्च का मुकाबला करने के लिए मिसाइल डिफेंस की क्षमताओं को अपग्रेड करने पर होने वाला खर्च शामिल है. खर्च की सूची में जवाबी हमला करने वाले हथियार जैसे कि अमेरिका से टॉमहॉक क्रूज़ मिसाइल ख़रीदना शामिल है जिसकी क्षमता चीन तक हमला करने की है. रक्षा मंत्रालय UK और जापान के साथ सिक्स्थ जेनरेशन फाइटर जेट प्रोग्राम के लिए 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर अलग से रखने की भी उम्मीद कर रहा है. लेकिन बजट का सबसे बड़ा हिस्सा SDF के द्वारा अपने गोला-बारूद के भंडार, फ्यूल टैंक और दूसरी सुविधाओं को तैयार करने के मामले में “स्थिरता और लचीलेपन” को मज़बूत करने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा. साल के अंत तक SDF अपने साइबर सुरक्षा कर्मियों की संख्या तिगुनी करके 2,410 भी करेगा. जापान अपनी कमांड संरचना का भी पुनर्गठन करेगा और एक एकीकृत हवाई, समुद्री और ज़मीनी कमांड बनाएगा. इसके अलावा जापान और अमेरिका एक साझा मुख्यालय भी बनाएंगे ताकि गठबंधन के कमांड को ज़्यादा असरदार बनाया जा सके. 

कई फैसले जापान की नई राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति (NSS) के तहत लिए गए हैं जिसे 2022 के आख़िर में जारी किया गया था. इसमें कहा गया है कि जापान “द्वितीय विश्व युद्ध ख़त्म होने के बाद सबसे गंभीर और मुश्किल सुरक्षा माहौल का सामना कर रहा है”.

इनमें से कई फैसले जापान की नई राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति (NSS) के तहत लिए गए हैं जिसे 2022 के आख़िर में जारी किया गया था. इसमें कहा गया है कि जापान “द्वितीय विश्व युद्ध ख़त्म होने के बाद सबसे गंभीर और मुश्किल सुरक्षा माहौल का सामना कर रहा है”. चीन और ताइवान का परोक्ष हवाला देते हुए इसमें ये भी कहा गया है कि “जो ताकत के दम पर एकतरफा यथास्थिति को बदलना चाहते हैं” उनका दबाव बढ़ रहा था. NSS ने अभी तक चीन को “ख़तरे” के तौर पर स्वीकार नहीं किया है लेकिन उसने चीन को “जापान के सामने अभी तक की सबसे बड़ी सामरिक चुनौती” माना है. 

NSS में कहा गया है कि “चीन ने ताइवान के इर्द-गिर्द बलपूर्वक गतिविधियां तेज़ कर दी है और ताइवान स्ट्रेट में शांति एवं स्थिरता को लेकर चिंताएं तेज़ी से बढ़ रही है.” अगस्त में ताइवान को मजबूर करने की कोशिश के तहत चीन की पांच बैलिस्टिक मिसाइल जापान के विशेष आर्थिक क्षेत्र में घुस गई. शायद सबसे नाटकीय बदलाव जापान के द्वारा लंबी दूरी की मिसाइल के आधार पर जवाबी हमले की क्षमता तैयार करने का फैसला था जो दुश्मन के अड्डों और कमांड एंड कंट्रोल नोड्स को निशाना बना सकती है. अभी तक जापान का रुख पूरी तरह रक्षात्मक था, वो जापान के सैन्य ठिकानों पर निशाना साधने वाली मिसाइल को मार गिराने के लिए एंटी-बैलिस्टिक मिसाइल क्षमता पर निर्भर था. 

इन चुनौतियों और घटनाओं को देखते हुए कैंप डेविड में हुई बैठक ने पूर्वी एशिया में सामरिक समीकरण में बदलाव को जन्म दिया है.


मनोज जोशी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में डिस्टिंग्विश्ड फेलो हैं.

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