अवैध आप्रवासन के खिलाफ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की प्रतिक्रिया के रूप में अवैध अप्रवासी भारतीयों का पहला जत्था भारत आ गया है. यह कार्रवाई ट्रंप के उस चुनावी वादे के संदर्भ में की गई है, जिसमें उन्होंने अमेरिका में एक करोड़ से अधिक अवैध अप्रवासियों के रहने के दावे किए थे. चूंकि चुनाव में उन्हें इसका फायदा मिला था, इसलिए वह अपने आधार वोट-बैंक को संतुष्ट करने के लिए अवैध अप्रवासियों की वतन-वापसी करा रहे हैं. आकलन है कि करीब 18 हजार भारतीयों को वापस भेजा जाएगा, जो गैर-कानूनी रूप से वहां गए हैं. हालांकि, अनुमान यह भी है कि अमेरिका में लगभग 7.25 लाख भारतीय अवैध तरीके से रहते हैं, लेकिन इसकी अभी तक पुष्टि नहीं हुई है.
अवैध आप्रवासन बना गंभीर मसला
पिछले साल भी करीब 1,100 भारतीय को वापस भेजा गया था, लेकिन इस साल आंकड़ा काफी बड़ा है. मगर भारत का रुख स्पष्ट है. अगर ये लोग गलत तरीके से अमेरिका गए हैं और उनको वापस भेजा जाता है, तो उन्हें खुले दिल से स्वीकार किया जाएगा. नई दिल्ली का यह रवैया इसलिए भी है, क्योंकि अवैध आप्रवासन भारत में भी एक गंभीर मसला है और हमारा मानना है कि इससे संगठित अपराध को मदद मिलती है. यही कारण है कि साल 2023 में जब अवैध आप्रवासन का मसला राज्यसभा में उठा, तब यह जरूर कहा गया कि कई देश अपने यहां मौजूद अवैध अप्रवासी भारतीयों की संख्या तब तक नहीं बताते, जब तक कि उनको निर्वासित नहीं किया जाता, लेकिन इसकी जानकारी भी दी गई कि देश में 30 अक्तूबर, 2023 तक 2,925 ऐसे एजेंटों की पहचान कर ली गई थी, जो गलत तरीके से भारतीयों को विदेश भेजते हैं.
पिछले साल भी करीब 1,100 भारतीय को वापस भेजा गया था, लेकिन इस साल आंकड़ा काफी बड़ा है. मगर भारत का रुख स्पष्ट है. अगर ये लोग गलत तरीके से अमेरिका गए हैं और उनको वापस भेजा जाता है, तो उन्हें खुले दिल से स्वीकार किया जाएगा.
अवैध आप्रवासन का शायद ही कोई समर्थन करता है. भारत ने भी अमेरिका को आश्वस्त किया है कि वह इस मामले में उसका पूरा साथ देगा. बीते दिनों जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की फोन पर बातचीत हुई थी, तब उसमें भी यह मसला उठा था. हालांकि, अमेरिका में मौजूद अवैध अप्रवासियों में भारत की हिस्सेदारी बमुश्किल तीन प्रतिशत है और इसकी तुलना में अमेरिका के पड़ोसी देश, मेक्सिको या लातीन अमेरिका से बड़ी संख्या में लोग गैर-कानूनी रूप से अमेरिका जाते हैं. मगर भारतीय नागरिकों पर इसलिए कार्रवाई की गई है, क्योंकि बीते कुछ वर्षों में हमने यह आंकड़ा बढ़ते देखा है, जो चिंता की वजह है.
संरक्षणवाद की हवा
इस पूरे प्रकरण के दो पहलू स्पष्ट हैं. एक, अमेरिकी राष्ट्रपति घरेलू राजनीति के दबाव में ऐसा कर रहे है और अपने नागरिकों को यह एहसास दिलाना चाहते है कि उन्होंने चुनाव में जो कहा था, उसे पूरा करने की ताकत रखते हैं. पद संभालते ही जिस तरह से उन्होंने ताबड़तोड़ फैसले किए, उसका संदेश भी कमोबेश यही था. हां, यह अलग बात है कि उनके कुछ फैसले अब अदालती पेच में फंस गए हैं और मुमकिन है कि उन्हें अपने कदम पीछे भी खींचने पड़ जाएं. मगर इसका दूसरा पहलू कहीं ज्यादा चिंतनीय है. अवैध अप्रवासियों के खिलाफ इस कदर कार्रवाई बताती है कि आप्रवासन के खिलाफ अमेरिका, यूरोप सहित कई देशों में नकारात्मक माहौल बनने लगा है. बेशक, कार्रवाई गैर-कानूनी रूप से रहने वाले विदेशी नागरिकों पर हो रही है, लेकिन इसका असर कानूनी तरीके से रहने वाले लोगों पर भी पड़ सकता है. ऐसी घटनाओं का इस्तेमाल आप्रवासन के खिलाफ माहौल बनाने में किया जा सकता है. वैसे भी, संरक्षणवाद की हवा पूरी दुनिया में बहने लगी है और सभी देश अपने संसाधनों पर अपने नागरिकों का ही हक चाहने लगे हैं.
संरक्षणवाद की हवा पूरी दुनिया में बहने लगी है और सभी देश अपने संसाधनों पर अपने नागरिकों का ही हक चाहने लगे हैं.
भारत से लोग कहां-कहां गैर-कानूनी रूप से जाते हैं, यह कहना मुश्किल है, लेकिन माना यही जाता है कि वे अमेरिका, यूरोप, कनाडा और मध्य-पूर्व (पश्चिम एशिया) जाना ज्यादा पसंद करते हैं. पिछले साल ही मार्च में यह खबर आई थी कि वर्ष 2023 में 1,000 से अधिक भारतीयों ने गैर-कानूनी रूप से ब्रिटेन की सीमा में घुसने के लिए जीवन तक को दांव पर लगा दिया था और छोटी-छोटी नौकाओं के सहारे इंग्लिश चैनल पार करने की कोशिश की थी. ऐसा उन्होंने नौकरी पाने और बेहतर जीवन की तलाश में की थी. आंकड़े बताते हैं कि साल 2023 में ब्रिटेन में शरण मांगने वाले भारतीयों की संख्या 5000 से ज्यादा हो चुकी थी. ये संकेत हैं कि विदेश जाने के लिए भारतीय हर मुश्किल झेलने को तैयार जान पड़ते हैं, क्योंकि उनको लगता है कि बेहतर जीवन वहीं मिल सकता है.
हालांकि, गैर-कानूनी रूप से विदेश जाने वालों का शोषण भी खूब होता है. पिछले दिनों ही यह खबर आई थी कि किस तरह काम की तलाश में रूस पहुंचे भारतीयों को यूक्रेन के खिलाफ जंग में झोंक दिया गया था. मानव तस्करी, अंग व्यापार, नशे के कारोबार जैसे गैर-कानूनी कामों में भी अवैध अप्रवासियों का काफी इस्तेमाल किया जाता है. चूंकि अपने देश में ऐसा कोई व्यवस्थित ढांचा नहीं है, जो इस तरह की आवाजाही को प्रभावी तरीके से रोक सके, इसलिए चूक खूब हो रही है. सरकार भले ही बार-बार आग्रह करती रहती है कि गैर-कानूनी एजेंटों के झांसे में लोग न फंसे, लेकिन कबूतरबाजी और डंकी रास्ते अपने देश की हकीकत बने हुए हैं.
आंकड़े बताते हैं कि साल 2023 में ब्रिटेन में शरण मांगने वाले भारतीयों की संख्या 5000 से ज्यादा हो चुकी थी. ये संकेत हैं कि विदेश जाने के लिए भारतीय हर मुश्किल झेलने को तैयार जान पड़ते हैं, क्योंकि उनको लगता है कि बेहतर जीवन वहीं मिल सकता है.
ताजा प्रकरण से भारत सरकार पर भी यह दबाव बनेगा कि वह देश में रह रहे अवैध नागरिकों को वापस भेजने की पहल करे. आज कोई भी सियासी दल शायद ही अवैध आप्रवसान के खिलाफ कार्रवाई का विरोध करेगा. असम में भाजपा की जीत का एक बड़ा कारण वहां अवैध आप्रवासन के कारण जनसांख्यिकीय में आया बदलाव ही था. बावजूद इसके सीएए या एनआरसी जैसी पहलों को हम वास्तविक रूप से जमीन पर नहीं उतार पा रहे, जबकि अवैध अप्रवासियों से संसाधनों पर काफी ज्यादा बोझ पड़ता है.
बहरहाल, माना यह भी जा रहा है कि इस मामले में अमेरिका का साथ देकर भारत ने अन्य मुद्दों पर बातचीत के रास्ते खोल लिए हैं, विशेषकर टैरिफ के मामले में. मगर अब सवाल यह है कि इन लोगों को यहां कैसे समायोजित किया जाएगा? इनके लिए शायद ही कोई विशेष नीति बने, क्योंकि ये तो गए थे गैर-कानूनी रूप से ही. मगर हां, अवैध अप्रवासियों का दबाव हमारे तंत्र पर न पड़े, इसके लिए यह चिंतन होना ही चाहिए कि भारतीय अब क्यों बड़ी संख्या में विदेश जाने लगे हैं, फिर चाहे इसके लिए उन्हें गलत रास्ता ही क्यों न चुनना पड़े?
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