20 जनवरी को डोनाल्ड ट्रंप के शपथ लेने से दो हफ़्ते पहले अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन अपनी इस हैसियत से आख़िरी बार भारत के दौरे पर आए. सुलिवन ने भारत में अपने समकक्ष अजित डोभाल के अलावा, अन्य नेताओं से भी मुलाक़ात की. अमेरिकी NSA का ये भारत दौरा, बाइडेन प्रशासन द्वारा भारत और अमेरिका के विकसित होते रिश्तों में तकनीक को धुरी बनाने की अंतिम मुहर सरीखा था.
चूंकि बाइडेन प्रशासन का कार्यकाल समाप्त होने से पहले, सुलिवन का भारत दौरा, दोनों देशों के बीच आख़िरी उच्च स्तरीय संवाद की नुमाइंदगी करता है. ऐसे में इस दौरे का मक़सद दोनों देशों के संरचनात्मक रिश्तों में निरंतरता बनाए रखना था, जो पिछले कुछ वर्षों के दौरान काफ़ी विकसित हुए हैं. जेक सुलिवन का भारत दौरा एक अहम मुकाम पर हुआ. क्योंकि आज भारत और अमेरिका दोनों ही वैश्विक अनिश्चितताओं से निपटने का प्रयास कर रहे हैं, जिसमें सबसे उल्लेखनीय तो चल रहे युद्ध, बड़ी ताक़तों के बीच बढ़ती होड़ और और दुनिया के तकनीकी और सामरिक केंद्र के तौर पर भारत का उभार है.
बाइडेन प्रशासन का कार्यकाल समाप्त होने से पहले, सुलिवन का भारत दौरा, दोनों देशों के बीच आख़िरी उच्च स्तरीय संवाद की नुमाइंदगी करता है.
जो बाइडेन प्रशासन की भारत नीति के सबसे अहम पहलुओं में एक, तकनीकी सहयोग के आधार पर रिश्तों को आगे बढ़ाना रहा. पहले के उलट, हमने देखा कि बाइडेन के नेतृत्व में अमेरिका दुनिया की ज़्यादातर बड़ी शक्तियों के साथ तकनीकी रिश्तों के मामले पर काफ़ी ज़ोर दिया. जहां तक अमेरिका और चीन के संबंध की बात है, तो उनके बीच तकनीक के मोर्चे पर होड़ बढ़ रही है. वहीं, तकनीकी मोर्चे पर भारत के साथ अमेरिका के रिश्तों में अधिक व्यापकता आई और दोनों देशों ने उन्नत एवं उभरती हुई तकनीकों के क्षेत्र में सहयोग का दायरा काफ़ी बढ़ाया है.
तकनीक पर फोकस
दुनिया के बड़ी तेज़ी से बदल रहे तकनीकी मंज़र के बीच भारत और अमेरिका के संबंधों के समीकरण भी बदल रहे हैं. आज दोनों देश तकनीक, रक्षा, अंतरिक्ष, जैव प्रौद्योगिकी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में सहयोग बढ़ा रहे हैं. बाइडेन प्रशासन के दौर में, दोनों देशों के बीच तकनीकी सहयोग का सबसे बड़ा आधार, इनिशिएटिव ऑन क्रिटिकल ऐंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी (iCET) बना है. इस समझौते का मक़सद दोनों देशों के बीच सेमीकंडक्टर, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस, क्वांटम कंप्यूटिंग, अंतरिक्ष तकनीक और रक्षा आविष्कार के क्षेत्र में सहयोग को बढ़ाना है.
इस साझेदारी के तकनीकी पहलू का आधार साझा लोकतांत्रिक मूल्य, डिजिटल प्रशासन के असंतुलन को लेकर साझा चिंताओं और चीन के बढ़ते तकनीकी दबदबे का मुक़ाबला करने की सामरिक आवश्यकता पर आधारित है. जेक सुलिवन का दौरान इस मौजूदा सहयोग को बढ़ाने के लिहाज़ से काफ़ी महत्वपूर्ण रहा.
दोनों देशों के बीच रक्षा औद्योगिक साझेदारी का एक अहम पड़ाव AI से संचालित बहुक्षेत्रीय सिचुएशनल अवेयरनेस उत्पाद है. इसका विकास जनरल एटॉमिक्स और 114ai ने मिलकर किया है. इस प्रोडक्ट का मक़सद, सभी क्षेत्रों में कमांड और कंट्रोल की क्षमताओं को बढ़ाना है.
भारत और अमेरिका ने तकनीकी सेक्टर और विशेष रूप से रक्षा, स्वच्छ ईंधन और एडवांस्ड कंप्यूटिंग के क्षेत्र में अपने सहयोग का दायरा काफ़ी बढ़ा लिया है. दोनों देशों के बीच रक्षा औद्योगिक साझेदारी का एक अहम पड़ाव AI से संचालित बहुक्षेत्रीय सिचुएशनल अवेयरनेस उत्पाद है. इसका विकास जनरल एटॉमिक्स और 114ai ने मिलकर किया है. इस प्रोडक्ट का मक़सद, सभी क्षेत्रों में कमांड और कंट्रोल की क्षमताओं को बढ़ाना है.
स्वच्छ ईंधन और अहम खनिजों के मामले में अमेरिका ने भारत की प्रतिबंधित संस्थाओं पर से पाबंदी हटाने के क़दम उठाए हैं. जिससे दोनों देशों के बीच असैन्य परमाणु सहयोग को मज़बूती मिलेगी और स्वच्छ ईंधन की आपूर्ति श्रृंखलाएं मज़बूत होंगी. क्रिटिकल मिनरल्स को लेकर सहमति पत्र (MoU) पर दस्तख़त के बाद से दोनों देशों की साझेदारी ने लिथियम, टाइटेनियम और वैनेडियम के प्रसंस्करण की तकनीकों का मिलकर विकास करने के अलावा ग्रेफाइट, गैलियम और जर्मेनियम जैसे अहम तत्वों की आपूर्ति श्रृंखलाओं में सहयोग की संभावनाएं तलाशनी शुरू की हैं. आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस, क्वांटम कंप्यूटिंग और एडवांस्ड कंप्यूटिंग की शिनाख़्त भी अहम सेक्टर्स के रूप में की गई है.
आगे की राह
कोशिशें की जा रही हैं कि दोनों देशों की सरकारों के बीच सहयोग (G2G) की एक रूप-रेखा तैयार की जाए, जिससे AI के क्षेत्र में संवेदनशील प्रगतियों का बेलगाम विस्तार होने से स्थायी तौर पर रोका जा सके और आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की तकनीकों के क्षेत्र में दोनों तरफ़ से निवेश हो सके. ये क़दम, अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा की व्यापक प्राथमिकताओं के दायरे में आते हैं. ख़ास तौर से AI पर राष्ट्रीय सुरक्षा के सहमति पत्र के बाद से, जिसका मक़सद आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के हार्डवेयर और अहम तकनीकों तक चीन की पहुंच पर लगाम लगाई जा सके, और इस तरह अति उन्नत आविष्कारों का साफ़, सुरक्षित और विश्वसनीय तरीक़े से विकास किया जा सके.
वैसे तो बाइडेन प्रशासन का ज़ोर भारत के साथ संस्थागत और व्यापक क्षेत्रीय संबंध बनाने पर रहा है. लेकिन, ट्रंप की सत्ता में वापसी से अमेरिका और भारत के रिश्तों में कुछ बदलाव देखने को मिल सकते हैं. कूटनीति को लेकर ट्रंप का लेन-देन भरा रवैया और द्विपक्षीय व्यापार के असंतुलन पर उनके ज़ोर से इस साझेदारी की प्राथमिकताओं में कुछ परिवर्तन देखने को मिल सकते हैं. मिसाल के तौर पर बाज़ार तक पहुंच, टैरिफ और बौद्धिक संपदा के अधिकारों जैसे मसलों को ट्रंप प्रशासन के दौर में प्राथमिकता दी जा सकती है.
ये लेख मूल रूप से MSN में प्रकाशित हुआ था.
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