Occasional PapersPublished on Apr 30, 2024
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भारत और स्थिर इंडो-पैसेफिक क्षेत्र: बंगाल की खाड़ी में सुरक्षा से जुड़ी चुनौतियों से कैसे सामना करें?

  • Sohini Bose
  • Anasua Basu Ray Chaudhury

    बंगाल की खाड़ी में सबसे लंबी तटरेखा भारत की ही है. ऐसे में भारत के लिए ये ज़रूरी है कि वो इस क्षेत्र की समुद्री सुरक्षा की चुनौतियों का सामना करे. चूंकि ज्य़ादातर समुद्री ख़तरें ऐसे हैं, जिनसे निपटने के लिए एक से ज्य़ादा देशों की मदद की ज़रूरत होती है. ऐसे में भारत को तटीय देशों और प्रमुख वैश्विक शक्तियों के साथ सहयोग बनाकर चलना होगा. इंडो-पैसेफिक क्षेत्र की भू-सामरिक सरंचना के लिए बंगाल की खाड़ी काफी महत्वपूर्ण है. एक स्थिर इंडो-पैसेफिक के लिए बंगाल की खाड़ी की सुरक्षा बहुत ज़रूरी है. भारत भी अपने समुद्री हितों की रक्षा करते हुए इंडो-पैसेफिक क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखने में अहम भूमिका निभा सकता है. इससे इस क्षेत्र में भारत का कद तो बढ़ेगा ही, साथ ही पड़ोसी देशों पर उसका प्रभुत्व भी बढ़ेगा. इस पेपर में हम इसी बात पर चर्चा करेंगे कि भारत बंगाल की खाड़ी में सुरक्षा के ख़तरों से कैसे निपटे और इंडो-पैसेफिक क्षेत्र में अपना असर कैसे बढ़ाए  [Excerpt]

Attribution:

सोहिनी बोस और अनसुआ बसु राय चौधरी, भारत और स्थिर इंडो-पैसेफिक क्षेत्र: बंगाल की खाड़ी में सुरक्षा से जुड़ी चुनौतियों से कैसे सामना करें?” ओआरएफ़ समसामयिक पेपर नंबर 432, मार्च 2024, ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन

प्रस्तावना

अमेरिकी नौसेना अफसर और इतिहासकार अलफ्रेड थायर माहन, जिन्हें ‘समुद्री शक्ति का जनक’[a] भी कहा जाता है, ने कहा था कि किसी देश के ‘राष्ट्रीय चरित्र’ से ही ये बात तय होती है कि उसकी समुद्री शक्ति कैसी होगी. यहां राष्ट्रीय चरित्र का तात्पर्य ये है कि किसी देश की खुद की पहचान कैसी है. उदाहरण के लिए समुद्री मामलों में इसका अर्थ ये हुआ कि क्या वो देश खुद को एक समुद्री देश मानता है. सिर्फ मज़बूत नौसेना होने का ये मतलब नहीं है कि उसे समुद्री देश माना जाए. समुद्री देश की पहचान तब बनती है, जब वो देश काफी हद तक समुद्र पर निर्भर हो और उसे अहमियत देता हो.[1]  हाल के वर्षों में भारत ने ‘समुद्री मानसिकता’ विकसित की है. अपने राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित रखने के लिए भारत अब समुद्र के आसपास के अपने पड़ोसी देशों की सुरक्षा को प्राथमिकता देने लगा है. भारत की ‘समुद्री पहचान’ का सबूत अलफ्रेड थायर के काम के संदर्भ से स्पष्ट है. 2015 में प्रकाशित भारतीय नौसेना की ग्रंथसूची “समुद्री सुरक्षा सुनिश्चित करना: भारतीय समुद्री सुरक्षा की रणनीति” में इस बात का उल्लेख भी किया गया है.[2] भारत की विकसित होती समुद्री विदेश नीति का मूल आधार ये है कि व्यापार, सुरक्षा और हमारी विदेश नीति की आकांक्षाओं में हिंद महासागर की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका हो गई है. खासकर जिस तरह इंडो-पैसेफिक क्षेत्र की अहमियत बढ़ रही है.

इंडो-पैसेफिक क्षेत्र की अवधारणा हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के विस्तार और संगम का प्रतीक है. ये “अफ्रीका के पूर्वी तट से लेकर अमेरिका के पश्चिमी तट तक फैला है”. [3] बंगाल की खाड़ी और इससे लगा अंडमान सागर इस भू-राजनीतिक क्षेत्र का केंद्र हैं जो प्रशांत महासागर में विलय हो जाने पर हिंद महासागर का उत्तरपूर्वी शाखा बनाते हैं. इंडो-पैसेफिक क्षेत्र के समग्र विकास के लिए ये ज़रूरी है कि इससे लगे छोटे क्षेत्रों जैसे कि बंगाल की खाड़ी के क्षेत्र [b] का भी विकास हो. भोगौलिक रूप से देखा जाए तो बंगाल की खाड़ी दक्षिण और दक्षिणपूर्व एशिया के बीच पुल का काम करती है. ऐसे में ये ज़रूरी हो जाता है कि इस क्षेत्र के अलग-अलग गुटों के सभी देशों के बीच क्षेत्रीय विकास के लिए बहुआयामी समुद्री सहयोग हो.

बंगाल की खाड़ी और अंडमान सागर [c] मज़बूत आर्थिक क्षमताओं वाला क्षेत्र है. भारत, बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका और थाईलैंड जैसे इस क्षेत्र के देशों में पिछले एक दशक में तेज़ी से आर्थिक विकास हुआ है. दक्षिण एशियाई देशों ने पिछले दशक में सालाना 7.3 प्रतिशत की औसत विकास दर हासिल की, जो दुनिया में सबसे ज्य़ादा है. [d] ,[4] कुछ समुद्री रास्ते बंगाल की खाड़ी से होकर गुज़रते हैं. पश्चिमी एशिया के देशों से दक्षिण और दक्षिणपूर्वी एशियाई देशों के लिए पेट्रोलियम उत्पाद लेकर जाते हैं. अगर हम पूर्वी-पश्चिमी समुद्री रास्ते को देखें तो जैसे ही ये रूट मलक्का जलसंधि [e] में प्रवेश करता है, वैसे ही बंगाल की खाड़ी सामारिक रूप से इस रास्ते के ठीक बीच में पड़ती है. ये उत्तरी अमेरिका और पश्चिमी यूरोप को एशिया के साथ जोड़ता है.[5] इस क्षेत्र में दुनिया के करीब 40 प्रतिशत हाइड्रोकार्बन का भंडार भी है.[6] इसमें 324 बिलियन टन कोयला, 664 मिलियन टन तेल, 99 ट्रिलियन क्यूबिक फीट प्राकृतिक गैस, 11 बिलियन टन बायोमास शामिल है. इसके अलावा यहां 328 गीगावॉट हाइड्रोपावर और 1000 गीगावॉट रिन्युएबल एनर्जी के उत्पादन की संभावित क्षमता भी है.[7] इस हाइड्रोकार्बन में भारत की भी अच्छी-खासी हिस्सेदारी है. इसकी सबसे नई खोज जनवरी 2024 में ही हुई. महानदी के बेसिन में प्राकृतिक गैस के दो महत्वपूर्ण भंडार पाए गए हैं. भारत पिछले काफी वक्त से कोयले पर निर्भरता कम करके प्राकृतिक गैस की तरफ जाने की कोशिश कर रहा है, फिर भले ही इसके लिए ज़्यादा ज़ोखिम वाले गहरे पानी में उत्खनन ही क्यों ना करना पड़े.[8]

इस खाड़ी में समुद्री जीवों की तादाद भी बहुत ज़्यादा है. हर साल यहां से 6 मिलियन टन मछलियां पकड़ी जाती है. दुनियाभर में मछली पकड़ने में इस क्षेत्र की हिस्सेदारी 4 प्रतिशत की है. मत्स्य उद्योग इस क्षेत्र में भोजन और रोज़गार का बड़ा ज़रिया है. करीब 400 मिलियन लोगों को इससे भोजन मिलता है. इस काम में 460,000 मछली पकड़ने वाली नावों का इस्तेमाल हो रहा है. करीब 45 लाख लोगों को इससे रोज़गार मिला है.[9] ऐसे में ये कहा जा सकता है कि बंगाल की खाड़ी इसके आसपास बसे देशों की “ब्लू इकॉनोमी” (महासागर और समुद्र से जुड़ी आर्थिक गतिविधियां) का अहम हिस्सा है. लेकिन बुनियादी ढांचे और इन देशों के बीच आपसी सहयोग की कमी से अभी इसकी क्षमता का पूरा इस्तेमाल नहीं हो सका है.

करीब 2,500 किमी लंबा प्रायद्वीपीय भारत बंगाल की खाड़ी के तटीय इलाकों में सबसे घनी आबादी वाला क्षेत्र है.[10]  तटीय क्षेत्र में रहने वाली अधिकतर आबादी अपनी खाद्य सुरक्षा और आजीविका के लिए समुद्र पर निर्भर है. मात्रा के हिसाब से भारत का 95 प्रतिशत और लागत के हिसाब से भारत का 77 प्रतिशत अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार समुद्र के रास्ते होता है.[11]  भारत के कुछ बड़े व्यापारिक साझेदारों तक पहुंचने का रास्ता बंगाल की खाड़ी से होकर ही गुजरता है. [f],[12] दक्षिणपूर्व एशिया के देशों से जुड़ने के लिए भी ये खाड़ी एक महत्वपूर्ण कड़ी है. भारत जिस स्वतंत्र और समावेशी इंडो-पैसेफिक क्षेत्र का सपना देख रहा है, उसके लिए ये देश महत्वपूर्ण हैं. अगर भोगौलिक रूप से भी देखा जाए तो बंगाल की खाड़ी उस इंडो-पैसेफिक समुद्री क्षेत्र तक पहुंचने का रास्ता है, जिस क्षेत्र में भारत अहम भूमिका निभाना चाहता है. हालांकि बंगाल की खाड़ी में मौज़ूदा सुरक्षा चिंताएं इस समुद्री सीमा का खुलकर उपयोग करने और यहां बड़ी भूमिका निभाने की भारत की इच्छा की राह में बाधा पैदा कर सकती हैं. इस क्षेत्र में दो तरह की सुरक्षा चिंताएं हैं. पहली तो परंपरागत यानी इस क्षेत्र के देशों के बीच. दूसरी, गैर परंपरागत यानी पर्यावरण और मानवजनित ख़तरों से जुड़ी है. [g] चूंकि इनमें से ज्य़ादातर चुनौतियां अन्तर्राष्ट्रीय हैं, इसलिए इन ख़तरों से निपटने के लिए भारत को तटीय देशों के साथ सुरक्षा सहयोग पर बात करनी होगी. इसका फायदा ये होगा कि भारत के इन देशों के साथ सुरक्षा संबंध तो मज़बूत होंगे ही, साथ ही इंडो-पैसेफिक क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनाए रखने में भी मदद मिलेगी. इस पेपर में हम बंगाल की खाड़ी में मौजूदा चिंताओं पर बात करते हुए इस बात का विश्लेष्ण करेंगे कि एक स्थिर इंडो-पैसेफिक क्षेत्र में भारत की क्या भूमिका होनी चाहिए. इसके तीन मुख्य उद्देशय हैं: पहला, ये समझना कि इंडो-पैसेफिक को लेकर भारत का जो नज़रिया है, उसमें बंगाल की खाड़ी कहां फिट बैठती है. दूसरा, बंगाल की खाड़ी में परंपरागत और गैर परंपरागत ख़तरों की पहचान करना. तीसरा, ये समझना कि इन चुनौतियों से भारत को कैसे निपटना चाहिए.

 

इंडो-पैसेफिक के लिए भारत के दृष्टिकोण में बंगाल की खाड़ी की क्या भूमिका?

भारत ने इंडो-पैसेफिक क्षेत्र के लिए अभी अपना नज़रिया स्पष्ट नहीं किया है लेकिन अलग-अलग सरकारों के नीतिगत दस्तावेज़ों और नेताओं के भाषणों से इसे समझा जा सकता है. इस पेपर में हमने कुछ खास दस्तावेज़ों और भाषणों [h] को संकलित किया है. इसके ज़रिए हम मोटे तौर पर भारत के इंडो-पैसेफिक विज़न को समझ सकते हैं. इसके साथ ही बंगाल की खाड़ी और समुद्री सुरक्षा सहयोग की अहमियत को भी निम्नलिखित बिंदुओं से समझा जा सकता है.

. एक प्राकृतिक क्षेत्र

भोगौलिक तौर पर देखें तो भारत के लिए इंडो-पैसेफिक क्षेत्र हमेशा से वैश्विक अवसर और चुनौतियों वाला एक मुक्त, समावेशी और ‘प्राकृतिक क्षेत्र’ रहा है. इसमें वो सभी देश शामिल हैं, जो इस क्षेत्र में हैं या जिसके इस क्षेत्र में हित हैं. दुनिया की 64 प्रतिशत आबादी इस क्षेत्र में रहती है. दुनिया की जीडीपी में इस क्षेत्र का योगदान 60 फीसदी का है.[13] वैश्विक स्तर पर जितना व्यापार होता है, उसका आधा इसी समुद्री रास्ते से गुज़रता है. पूरे पैसेफिक क्षेत्र, दक्षिणपूर्व एशिया, दक्षिण एशिया के कुछ हिस्से, खाड़ी देश, अफ्रीका के पूर्वी और दक्षिण तट पर स्थित देशों में मज़बूत और स्थायी आर्थिक विकास दिखाई दे रहा है. इंडो-पैसेफिक क्षेत्र के लिए भारत का जो दृष्टिकोण है, उसमें दक्षिणपूर्व एशियाई देशों का संघ (ASEAN) केंद्र में है. इस संगठन के ज़रिए भारत इस क्षेत्र के दस देशों के साथ सीधे जुड़ सकता है. ये सभी देश हिंद महासागर और प्रशांत महासागर से जुड़े हैं.[14]  भारत और आसियान के बीच साझा समुद्री क्षेत्र होने की वजह से बंगाल की खाड़ी की सामारिक उपयोगिता बढ़ी है. ऐसे में ये कहा जा सकता है कि बंगाल की खाड़ी का महत्व इसलिए भी बढ़ गया है क्योंकि ये आसियान आधारित भारत के इंडो-पैसेफिक दृष्टिकोण के केंद्र में है.[15]

. पूर्व दिशा पर ज़ोर    

इंडो-पैसेफिक विज़न के तहत आसियान देशों पर ध्यान देने की वजह से ही भारत ने ‘एक्ट ईस्ट’ नीति अपनाई. भारत जलमार्ग और थलमार्ग के द्वारा पूर्वी और दक्षिणपूर्वी एशिया के देशों के साथ जुड़ना चाहता है. ऐसे में दक्षिणपूर्वी एशिया और पूर्वी एशिया के बहुपक्षीय संगठनों, जैसे कि बंगाल की खाड़ी बहुपक्षीय और आर्थिक सहयोग पहल (BIMSTEC), आसियान और ईस्ट एशिया समिट से जुड़ने में बंगाल की खाड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. इंडो-पैसेफिक क्षेत्र में मौजूद अवसरों और चुनौतियों का सामना करने के लिए हाल के वर्षों में भारत QUAD जैसे संगठनों से भी जुड़ा है. [i] क्वॉड के कार्यक्षेत्र में बंगाल की बंगाल की खाड़ी काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि ये इस क्वॉड समूह की कई साझा चिंताओं जैसे कि प्राकृतिक आपदाएं और अवैध असूचित और अनियमित (IUU) रूप से मछली पकड़ने को दिखाती हैं. ये एक ऐसी सामरिक जगह भी है, जहां क्वॉड देश अपने हितों का संरक्षण करने के इच्छुक हैं.

. इस क्षेत्र में सभी देशों के लिए सुरक्षा और विकास

भारत इंडो-पैसेफिक क्षेत्र को किसी सामरिक या फिर सीमित सदस्यों के समूह वाले क्षेत्र के तौर पर नहीं देखता. ना ही भारत किसी एक खास देश को निशाना बनाकर इस क्षेत्र में अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहता है. भारत चाहता है कि अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों के हिसाब से इस क्षेत्र की समुद्री और वायु सीमा तक हर देश की पहुंच हो, जिससे कोई भी इस समुद्री रास्ते में आ सके. व्यापार कर सके. विवाद होने की सूरत में अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों के हिसाब से उसका निपटारा हो.[16] भारत ने ‘सिक्योरिटी एंड ग्रोथ फॉर ऑल इन द रीजन’ (SAGAR) के ज़रिए अपने इस दृष्टिकोण को आगे भी बढ़ाया है. इंडो-पैसेफिक क्षेत्र के लिए भारत की बुनियादी अवधारणा ये है कि इस क्षेत्र की सुरक्षा सामूहिक तौर पर साझा हित और नैतिकता के आधार पर होनी चाहिए. जो सभी सभ्य देशों की वैध सामरिक चिंताओं का सम्मान करते हों.[17] ऐसे में भारत इस क्षेत्र में साझा मूल्यों वाली साझेदारी के साथ सुरक्षा की ऐसी व्यवस्था बनाना चाहता है, जिससे समुद्र में होने वाली अपराध रुकें. समुद्र की पारिस्थितिकी का संरक्षण हो. प्राकृतिक आपदाओं से बचाव हो. समुद्री रास्ते “समृद्धि और शांति का गलियारा बनें”.[18]  आसियान देशों के साथ साझा समुद्री जगह होने की वजह से बंगाल की खाड़ी रक्षा क्षेत्र में सहयोग दिखाने का प्राकृतिक मंच है.

बंगाल की खाड़ी में सुरक्षा चुनौतियां

बंगाल की खाड़ी परंपरागत और गैर परंपरागत दोनों तरह के सुरक्षा ख़तरों का सामना करती है. हालांकि, सभी चुनौतियां ऐसी नहीं हैं, जिसका असर पूरी खाड़ी पर होता है. मुख्य ख़तरे निम्नलिखित हैं

सुरक्षा की परंपरागत चुनौतियां

1990 के दशक से भारत ने ‘लुक ईस्ट’ की जो नीति शुरू की, उसकी मुख्य वजह पश्चिमी सीमाओं की तुलना में बंगाल की खाड़ी के पास के पूर्वी पड़ोसी देशों में राजनीतिक अस्थिरता रही. [j] हालांकि बंगाल की खाड़ी के कुछ क्षेत्र अभी भी राजनीतिक अस्थिरता, अलगाववादी विद्रोह, दूसरे देशों पर भी असर डाल सकने वाले धार्मिक और साम्प्रदायिक संघर्ष का सामना कर रहे हैं.[19]  लेकिन इनमें से ज्य़ादातर समस्याओं का सामुद्रिक मामलों से कोई लेना-देना नहीं है. इस क्षेत्र में परंपरागत सामुद्रिक चुनौती बंगाल की खाड़ी में अपने प्रभुत्व बढ़ाने को लेकर चल रही भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा है. कई बड़े शक्तिशाली देशों के इसमें शामिल होने की वजह से ये बंगाल की खाड़ी के तटीय देशों की सुरक्षा के लिए ख़तरा पैदा कर सकती हैं.


.  बंगाल की खाड़ी में बसे देशों के बीच आपसी प्रतिस्पर्धा

बंगाल की खाड़ी की सामरिक अहमियत और शानदार आर्थिक संभावनाओं ने इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए चीन, भारत, जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे बड़े देशों के बीच एक होड़ पैदा कर दी है.[20] चीन, भारत, जापान और अमेरिका दुनिया की पांच सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हैं.[21]  चीन अपनी विशाल अर्थव्यवस्था और आबादी की ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए इस क्षेत्र में रुचि रखता है. चीन ‘मलक्का दुविधा’ का सामना कर रहा है. मलक्का दुविधा शब्द का सबसे पहले इस्तेमाल चीन के राष्ट्रपति हू जिंताओं ने 2013 में किया था. मलक्का दुविधा का अर्थ ये है कि चीन को इस बात का डर है कि अगर मलक्का जलसंधि की नाकेबंदी कर दी गई तो फिर इससे उसकी तेल की आपूर्ति पर असर पड़ेगा. इसलिए चीन चाहता है कि बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में उसका प्रभाव बढ़े जिससे उसके तेल की बेरोकटोक आपूर्ति जारी रहे.[22]  बंगाल की खाड़ी में चीन अपनी मौजूदगी इसलिए भी बनाए रखना चाहता है कि इससे म्यांमार के क्योकफ्यू बंदरगाह से चीन के कुनमिंग इलाके तक जाने वाली तेल और गैस की पाइपलाइन पर कोई ख़तरा ना पैदा हो. इस पाइपलाइन की वजह से अफ्रीका या पश्चिमी एशिया से चीन को होने वाली तेल की आपूर्ति में लगने वाले समय में 700 मील (30 प्रतिशत) की कमी आई है.[23]  इतना ही नहीं अगर चीन बंगाल की खाड़ी के तटीय देशों में निवेश करता है, उन्हें आर्थिक तौर पर अपने ऊपर निर्भर बनाता है तो इन देशों में पाए जाने वाले हाइड्रोकार्बन के भंडार का फायदा चीन को भी मिल सकता है.[24]


अमेरिका भी ऊर्जा ज़रूरतों के लिए बंगाल की खाड़ी की तरफ आकर्षित हुआ है.[25] अमेरिका की एक चिंता इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते असर को लेकर भी है. ऐसे में अमेरिका भी यहां अपनी सक्रिय मौजूदगी बनाए रखना चाहता है. जापान के लिए भी बंगाल की खाड़ी महत्वपूर्ण है क्योंकि पश्चिमी एशिया से जापान जो तेल आयात करता है, उसका 80 प्रतिशत हिस्सा इसी समुद्री रास्ते से होकर गुज़रता है.[26] इतना ही नहीं जापान इस क्षेत्र के देशों की तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था तक अपनी पहुंच बढ़ाना चाहता है. इसीलिए वो इन देशों से समुद्री संपर्क बढ़ाने के बुनियादी ढांचे पर निवेश कर रहा है. ऑस्ट्रेलिया के लिए बंगाल की खाड़ी, प्रशांत महासागर और हिंद महासागर के बीच की एक अहम कड़ी है. बांग्लादेश और श्रीलंका में ऑस्ट्रेलिया के आर्थिक हित भी हैं.[27]  ऐसे में बंगाल की खाड़ी और हिंद महासागर के उत्तरपूर्वी क्षेत्रों में स्थिरता होने उसके भी राष्ट्रीय हित में है.[28]

बंगाल की खाड़ी अब इन देशों के लिए सह अस्तित्व और कई बार प्रतिस्पर्धा का एक अहम माध्यम बन गई है. [k],[29] एक ज़माने में भारत इस क्षेत्र के देशों का सबसे प्रमुख रणनीतिक सहयोगी और उन्हें विकास में मदद करने वाला देश था. लेकिन अब इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते असर ने भारत के प्रभुत्व को कम किया है, साथ ही सुरक्षा को लेकर चिंताएं भी पैदा की हैं. [l],[30]  इस क्षेत्र को लेकर भारत की सुरक्षा चिंताओं से अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया भी सहमत हैं. अपने आर्थिक और भू-राजनीतिक स्थितियों हितों को देखते हुए ये देश इस क्षेत्र में यथास्थिति बनाए रखना चाहते हैं. यही वजह है कि इन देशों ने बंगाल की खाड़ी के देशों के साथ सहयोग बढ़ाने के लिए कई द्विपक्षीय और बहुपक्षीय पहल की हैं. भारत की SAGAR पहल भी उनमें से एक है. लेकिन बंगाल की खाड़ी के तटीय देश और भारत समेत ज्य़ादातर महाशक्तियां व्यापार के लिए चीन पर निर्भर हैं. ऐसे में चीन के ख़िलाफ कोई सैन्य सुरक्षा सहयोग करना अपने आप में बड़ी चुनौती पैदा कर सकती है. खास बात ये है कि बंगाली की खाड़ी में प्रतिस्पर्धा सिर्फ चीन और लोकतांत्रिक देशों के बीच ही नहीं है. भारत और अमेरिका जैसे समान सोच वाले देशों में भी नौसंचालन की स्वतंत्रता के मुद्दे पर हल्के मतभेद हैं.

. नौपरिवहन की स्वतंत्रता से जुड़ा मुद्दा?

अप्रैल 2021 में अमेरिका नेवी के गाइडेड मिसाइल डिस्ट्रॉयर, यूएसएस जॉन पॉल जोन्स ने अरब सागर में लक्षद्वीप के पास एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक ज़ोन (EEZ) में बिना भारत की मंजूरी के फ्रीडम ऑफ नेविगेशन ऑपरेशन (FONOP) को अंजाम दिया.[31]  अमेरिका ने इस ऑपरेशन को ये कहते हुए जायज़ ठहराया कि उसने इस समुद्री क्षेत्र को लेकर भारत की तरफ से किए जा रहे अत्यधिक दावों को चुनौती देने के लिए ऐसा किया. इस पर भारत सरकार ने कहा कि अन्तर्राष्ट्रीय समुद्री कानूनों के हिसाब से दूसरे देशों को तटीय देश की मंजूरी के बिना एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक ज़ोन में इस तरह के सैन्य अभ्यास करने की इजाज़त नहीं है. खासकर तब जबकि इसमें हथियार और विस्फोटकों का इस्तेमाल किया जा रहा हो.[32]  इस घटना ने ये दिखाया कि समुद्र के कानूनों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCLOS )[33] पर दस्तख़त करने वाले देश और हस्ताक्षर नहीं करने वाले देशों (अमेरिका) के बीच किस तरह के पैदा मतभेद हो सकते हैं. [m] इस घटना ने ये भी दिखाया कि सहयोगी देश होने के बावज़ूद वो किस तरह कानून की अपने हिसाब से व्याख्या कर सकते हैं, जिससे पारंपरिक सुरक्षा ख़तरे खड़े हो सकते हैं.

1990 के बाद से अमेरिका ने भारत के समुद्री दावों के ख़िलाफ इस तरह के 6 ऑपरेशन (FONOPs) किए हैं. यानी भारत और अमेरिका के बीच परिपक्व होती रणनीतिक साझेदारी के बीच समुद्री कानूनों (UNCLOS) को लेकर दोनों देशों की राय अलग है.[34]  हालांकि दोनों देशों के बीच की मज़बूत साझेदारी की वजह से इस तरह के विवाद बड़ा मुद्दा नही बन पाते. लेकिन चीन के साथ ऐसा नहीं होगा. चीन एक आक्रामक नीति वाला देश है. चीन से दक्षिण चीन सागर में अपने दावे के लिए कई बार अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन किया है. अपनी स्थिति को मज़बूत करने के लिए चीन कई बार “कानूनी वैधता का मुखौटा ओढ़ने की कोशिश” भी करता है.[35]  हालांकि चीन का बंगाल की खाड़ी में इस तरह का कोई दावा नहीं है. लेकिन व्यक्तिपरक व्याख्या की वजह से समुद्र के कानूनों (UNCLOS) का उल्लंघन हो सकता है. अगर ऐसा हुआ तो भारत और अमेरिका के साथ चीन के टकराव की नौबत आ सकती है.

 

गैर परंपरागत ख़तरे

बंगाल की खाड़ी क्षेत्र कई अवैध गतिविधियों और पर्यावरण की चुनौतियों की वजह से कई गैर परंपरागत ख़तरों का भी सामना कर रहा है. भारत से जुड़े कुछ मुख्य मुद्दे निम्नलिखित हैं.

. अवैध और बिना दस्तावेज़ी प्रक्रिया वाला प्रवासन

बांग्लादेश और म्यांमार के बीच रोहिंग्या मुसलमानों का मुद्दा लंबे वक्त से इस क्षेत्र के लिए बड़ी समस्या बना हुआ है. म्यांमार की सेना ने म्यांमार के तटीय रखाइन इलाके में रहने वाले इन रोहिंग्याओं की नागरिकता छीन ली. इन्हें मूलभूत अधिकारों से वंचित कर दिया. ऐसे में ये लोग बंगाल की खाड़ी के रास्ते म्यांमार से भागकर बांग्लादेश के कॉक्स बाज़ार इलाके के शरणार्थी कैम्पों में आ जाते हैं.[36] जर्जर नावों और तस्करों के उत्पीड़न का शिकार होने की वजह से कई रोहिंग्या शरणार्थी महीनों तक समुद्र में ही फंसे रहते हैं. खाने और पानी की वजह से बीमार हो जाते हैं. भीषण गर्मी और तूफानी लहरों की वजह से समुद्र में मुसीबतें झेलते हैं.[37]  बंगाल की खाड़ी के रास्ते होने वाले इस अवैध अप्रवासन ने बांग्लादेश और म्यांमार के द्विपक्षीय रिश्ते खराब किए हैं.[38] इसका असर भारत पर भी पड़ा है क्योंकि कई रोहिंग्या ज़मीनी और बंगाल डेल्टा के नदी-समुद्री मार्गों से भारत में आ रहे हैं.[39]

. मानव तस्करी

वैश्विक स्तर पर जितनी मानव तस्करी होती है, उसमें एक बड़ा हिस्सा दक्षिण एशिया का भी है. मुख्य तौर पर बांग्लादेश और भारत से कई लोगों को बंगाल की खाड़ी के रास्ते दक्षिणपूर्वी एशियाई देशों में ले जाया जाता है.[40]  पश्चिम बंगाल का सुंदरबन जिला इस तरह से की जाने वाली मानव तस्करी का बड़ा केंद्र है क्योंकि इस इलाके में अक्सर आने वाले चक्रवाती तूफानों की वजह से यहां के लोगों के सामने आजीविका का संकट खड़ा होता रहता है. इसकी वजह से वो मानव तस्करी के आसान शिकार हो जाते हैं.[41]  इसी तरह बांग्लादेश के चिटगॉन्ग के लोगों को मलेशिया में बेहतर रोज़गार का लालच दिया जाता है. श्रीलंका के लोगों को ऑस्ट्रेलिया में नौकरी और बेहतर जीवन स्तर का सपना दिखाकर मानव तस्करी का शिकार बनाया जाता है. इन सबको यहां से ले जाने में बंगाल की खाड़ी अहम कड़ी है.[42]

. ड्रग तस्करी

कोरोना महामारी के बाद से ज्य़ादातर देशों ने सीमा पर नियंत्रण और सख्त़ कर दिया है. इसका नतीजा ये हुआ कि ड्रग तस्करी के लिए अब स्मगलर समुद्री रास्तों खासकर दक्षिणी थाईलैंड के तटीय मार्गों का इस्तेमाल करने लगे हैं.[43] समुद्री नशीली चीजों की तस्करी अंडमान सागर और मलक्का जलसंधि के साथ म्यामांर से शुरू होती है. यहां से मेथामफेटामाइन को दक्षिणपूर्वी एशियाई देशों, ऑस्ट्रेलिया और जापान तक ले जाया जाता है.[44]  अब बंगाल की खाड़ी के रास्ते पश्चिमी एशिया से तस्करी का एक नया रूट भी सामने आ रहा है.[45]  साल 2020 में भारत और म्यांमार ने इस बात को स्वीकार किया था कि बंगाल की खाड़ी के ज़रिए तस्करी एक नई चुनौती बनकर उभरी है. म्यांमार की सीमा से लगे पूर्वोत्तर राज्यों में ड्रग्स का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होना भारत की चिंता का एक बड़ा कारण बना है.[46]

. तटीय इलाकों में हथियारबंद डकैती

हालांकि तटीय इलाकों में सशस्त्र डकैती और फिरौती के लिए मछुआरों के अपहरण की घटनाओं में पिछले कुछ समय से कमी आई है लेकिन अब भी कुछ क्षेत्रों में ये समस्या बनी हुई है. खासकर बांग्लादेश के चिटगांव और भारत के सुंदरबन इलाके में. लेकिन ये काम अक्सर छोटे अपराधी करते हैं, कोई संगठित गिरोह नहीं. गरीबी, घनी आबादी और आजीविका के अवसरों की कमी को इन अपराधों के लिए ज़िम्मेदार बताया जाता है.[47]

2007 से 2019 के बीच भारत के समुद्री इलाके में सशस्त्र डकैती की सबसे ज्य़ादा 15 घटनाएं विशाखापट्टनम में हुईं. विशाखापट्टन में एक बंदरगाह है और यहां सामान से भरे कंटेनर खड़े रहते हैं. डकैती के 14 मामले हल्दिया में सामने आए. यहां एक डॉक कॉम्प्लेक्स है और गहरे सागर का बंदरगाह भी बन रहा है. लेकिन 2020 के बाद बड़े बंदरगाहों में इस तरह के अपराधों में कमी आई है. यहां अपराध के एक भी नए मामले सामने नहीं आए.[48] कोरोना महामारी के दौरान सीमा पर जिस तरह सख्त नियंत्रण रखा गया, वो भी इन अपराधों में कमी की एक वजह हो सकती है.

. समुद्री आतंकवाद

बंगाल की खाड़ी के कई तटीय देश या तो आतंकवादी हमलों के शिकार हैं या फिर यहां आतंकवादी पैदा होते हैं.[49]  मनी लॉन्ड्रिंग और ड्रग्स के अवैध कारोबार से कमाए पैसों से गोला-बारूद, हथियार खरीदे जाते हैं. आतंकवादी नेटवर्क को वित्तीय मदद दी जाती है.[50] कुछ तटीय देश 2024 के ग्लोबल टेररिस्ट इंडेक्स में भी शामिल हैं. इस इंडेक्स के सहारे आतंकवाद के दुनियाभर पर पड़ने वाले असर को मापा जाता है. अगर आतंकवाद के असर को घटते क्रम में देखें तो म्यांमार 9वें, भारत 14वें, थाईलैंड 28वें, बांग्लादेश 32वें और श्रीलंका 33वें नंबर पर है.[51] भारत के पूर्वी, मध्य और दक्षिणी राज्यों में माओवादी सक्रिय हैं. जम्मू-कश्मीर इस्लामिक आतंकवाद का सामना कर रहा है. इसी तरह यूनाइडेट लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम जैसे हिंसक आतंकी समूह उत्तर पूर्वी राज्यों में सक्रिय हैं. बांग्लादेश में जमात-उल-मुजाहिदीन और अंसारूल इस्लाम प्रमुख आतंकवादी संगठन हैं. म्यांमार की मिलिट्री जुंटा सरकार ने कुछ जातीय संगठनों को आतंकी समूहों के तौर पर चिन्हित किया है. थाईलैंड भी अल क़ायदा, जेमाह इस्लामिया और हिज़बुल्लाह जैसे आतंकी संगठनों का ट्रांजिट प्वाइंट है.[52]

. अवैध, असूचित और अनियमित मछली पकड़ना

अवैध और अनियमित तरीके से मछली पकड़ने की समस्या भारत और बांग्लादेश के बीच बनी हुई है क्योंकि इन देशों की समुद्री सीमा में मछली पकड़ने पर कुछ बेतुकी पाबंदियां लगाई गई हैं. चूंकि इन देशों के मछुआओं की भाषा और संस्कृति एक जैसी है, इसलिए भी ये समस्या कायम है. अवैध तरीके से मछली पकड़ने की वजह से इन पर भारी ज़ुर्माना लगता है. उन्हें लंबे वक्त तक जेल में रहना पड़ता है. यानी पकड़े जाने की सूरत में इनके जीवन और रोज़गार पर गहरा नकारात्मक असर पड़ता है. इससे देशों के द्विपक्षीय रिश्तों पर भी असर पड़ता है, जैसा कि श्रीलंका के मामले में देखा गया है.[53]  भारत और श्रीलंका के बीच मतभेद के तीन पहलू हैं. पहला, कच्चातीवू द्वीप के पास मछली पकड़ने का अधिकार. दूसरा, भारतीय मछुआरों द्वारा श्रीलंका की समुद्री सीमा में जाकर मछली पकड़ना. तीसरा, भारतीय मछुआरों द्वारा भारी ट्रॉलर्स का इस्तेमाल, जिसकी वजह से श्रीलंका के मछुआरों को मछली पकड़ने में परेशानी होती है. श्रीलंका में गृहयुद्ध के दौरान लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) के सदस्य श्रीलंका की नौसेना पर हमला करने के लिए खुद को भारतीय मछुआरों के तौर पर पेश करते थे. जिसके बाद श्रीलंका की नौसेना ने “पहले गोली मारो, बाद में सवाल करो” की नीति अपनाई. जिसकी वजह से कई भारतीय मछुआरों को अपनी जान गंवानी पड़ी.[54]  मछलियों की बढ़ती मांग की वजह से भारतीय मछुआरे श्रीलंका की समुद्री सीमा का अतिक्रमण करते रहते हैं. फिर भले ही उन्हें इसकी कीमत श्रीलंका की जेल में उम्रकैद में रहकर ही क्यों ना चुकानी पड़े. कई बार श्रीलंका के मछुआरे भी अंडमान-निकोबार में एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक ज़ोन में आते हैं.[55]

इसके अलावा भारत और बांग्लादेश के बीच भी 200 नॉटिकल मील का एक समुद्री क्षेत्र है, जहां के समुद्री अधिकारों को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है. इसलिए दोनों देश इस समुद्री क्षेत्र पर साझे अधिकार का दावा करते हैं. म्यांमार भी एक हिस्से पर अपना दावा करता है.[56] महाद्वीपीय पट्टी क्षेत्र में बांग्लादेश का अधिकार है, जबकि म्यांमार और भारत का एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक ज़ोन के जल क्षेत्र पर अधिकार है. लेकिन इन क्षेत्रों की पहचान कर यहां अपने अधिकारों का कार्यन्वयन करना काफी मुश्किल काम है क्योंकि भोगौलिक रूप से इस इलाके में साझा क्षेत्र हैं. इससे भविष्य में विवाद होने की संभावना बनी रहती है.

. प्राकृतिक आपदाएं

बंगाल की खाड़ी ‘वर्ल्ड हेज़ार्ड बेल्ट’[n],[57] में स्थिति है. अपने त्रिकोणीय आकार, कम समतय तटीय क्षेत्र, कम गहराई और पूर्वी लहरों की वजह से यहां अक्सर दिक्कतें पैदा होती रहती हैं.[58]  यहां के पानी से उत्पन्न होने वाले चक्रवाती तूफान के अलावा खाड़ी और प्रशांत महासागर के मिलने के स्थान पर किसी बड़े ज़मीनी क्षेत्र की गैरमौजूदगी की वजह से प्रशांत महासागर से आने वाली चक्रवर्ती हवाएं भी बंगाल की खाड़ी की तरफ आती हैं. इस क्षेत्र में अक्सर सुनामी आती है क्योंकि बंगाल की खाड़ी और अंडमान सागर का संगम स्थल अंडमान-सुमात्रा सबडक्शन ज़ोन में है. यूरोपीयन और इंडो-ऑस्ट्रेलियन टेक्टॉनिक प्लेटों में लगने वाले झटकों की वजह से तेज़ भूकंप की गतिविधियां भी जारी रहती हैं. बंगाल की खाड़ी के तटीय देशों में रहने वाली 1.4 अरब की आबादी को अक्सर तूफान और सुनामी का सामना करना पड़ता है. भारत के पूर्वी तट, जो बंगाल की खाड़ी के पश्चिमी तट हैं, वो सालाना औसतन तीन चक्रवाती तूफानों का सामना करते हैं. पूर्वी तट के उत्तरी और दक्षिणी हिस्से में सुनामी का ख़तरा बना रहता है. अंडमान-निकोबार द्वीप तूफान और सुनामी की दृष्टि से काफी संवेदनशील है क्योंकि सबडक्शन ज़ोन के समांतर स्थित है.[59]  समुद्र के जलस्तर का बढ़ना भी चिंता का कारण बना हुआ है. खासकर बंगाल की खाड़ी के उस डेल्टा क्षेत्र में, जिसे भारत और बांग्लादेश साझा करते हैं. पहले से ही नदी के कटाव की मार झेल रहे कई द्वीप अब समुद्र का जलस्तर बढ़ने की वजह से विलुप्त हो रहे हैं. इससे यहां रहने वाले लोगों को अपना घर और आजीविका गंवानी पड़ रही है. मजबूर होकर उन्हें यहां से दूसरी जगह पलायन करना पड़ रहा है.[60] बढ़ता जलस्तर और कम होते तटीय इलाके की वजह से तूफान से और ज्य़ादा नुकसान होता है. इससे कई तटीय देशों में ज़मीन कम होती जा रही है.[61]

. समुद्र में प्लास्टिक प्रदूषण

वैश्विक स्तर पर नदियों से महासागर में आने वाला 90 प्रतिशत प्लास्टिक 10 नदियों के ज़रिए आता है. इन 10 में से 8 नदियां एशिया में हैं.[62]  ये नदियां प्लास्टिक का कूड़ा (माइक्रोप्लास्टिक भी) ज़मीन से समुद्र तक लेकर जाती हैं.[63]  इन देशों में कई ऐसी नदियां है, जो दूसरे देशों से होकर भी गुज़रती हैं. भारत, बांग्लादेश और म्यांमार ऐसे विकासशील देश हैं, जहां जनसंख्या तो बहुत ज्य़ादा है लेकिन यहां कूड़े के निस्तारण की प्रक्रिया और कूड़े के रिसाइक्लिंग की व्यवस्था बहुत कम है. चूंकि इस क्षेत्र के कई देश तेज़ी से आर्थिक विकास कर रहे हैं तो भविष्य में भी कूड़े की तादाद बढ़ना निश्चित है.[64] दक्षिण एशिया के देशों से रोज़ाना औसतन 15,343 टन कूड़ा समुद्र में फेंका जाता है और इसकी उतपत्ति 60 भारतीय शहरों से होती है.[65]  इसकी वजह से समुद्र की समृद्ध जैविक विविधता नष्ट हो रही है. हालांकि खाड़ी के तटीय देशों ने कूड़े की समस्या के प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कुछ कार्ययोजनाएं कार्यान्वित की हैं लेकिन इसे लेकर अभी तक कोई क्षेत्रीय पहल नहीं हुई है. समुद्र तटों और समुद्रों के आसपास रुका पानी जिस तरह प्लास्टिक कचड़े से अटा पड़ा है, उसकी वजह से बंगाल की खाड़ी प्लास्टिक के कूड़े का ‘हॉटस्पॉट’ बनती जा रही है. ये हिंद महासागर के चक्रगति से भी ज्य़ादा प्रदूषित है. इसकी वजह से बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में मछली पकड़ने और पर्यटन की क्षमता पर ग्रहण लग रहा है. तटीय देशों की अर्थव्यवस्था पर भी इसका असर पड़ रहा है.[66] लेकिन दुख की बात ये है कि समुद्री प्रदूषण की समस्या को उतनी गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है. यही वजह है कि इस समस्या के समाधान के लिए कोई साझा रणनीति नहीं बनाई जा रही है. कूड़े की समस्या और इसके निस्तारण के तरीकों का विश्लेष्ण नहीं किया गया है.[67] इस समस्या के समाधान के लिए कोई बहुपक्षीय पहल नहीं की गई है.

खाड़ी क्षेत्र में स्थिरता सुनिश्चित करना: कोशिशें और चुनौतियां

बंगाल की खाड़ी को अब विदेश नीति में प्राथमिकता मिलने लगी है. ऐसे में भारत ने इस क्षेत्र में अपनी रक्षा क्षमता बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए हैं, जिससे ये सुनिश्चित किया जा सके बंगाल की खाड़ी में नौपरिवहन की स्वतंत्रता और समुद्री लाइनों में संचार की व्यवस्था सही बनी रहे.

. अंडमान-निकोबार द्वीप की सामरिक क्षमता का दोहन

अंडमान-निकोबार द्वीप बंगाल की खाड़ी और अंडमान सागर को अलग करता है. पूर्वी और पश्चिमी समुद्री रास्ते से इसकी नजदीकी और मलक्का जलसंधि के बाद पहला भूभाग होने की वजह से अंडमान और निकोबार को सामरिक तौर पर दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण द्वीप श्रृंखला माना जाता है. इसी द्वीप पर भारत की सुदूर पूर्वी कमांड और तीनों सेनाओं की इकलौती एकीकृत कमांड स्थित है. अंडमान और निकोबार कमांड (ANC) के पास ही इस शिपिंग रूट और मलक्का जलसंधि तक निगरानी की ज़िम्मेदारी है. हाल के वर्षों में भारत ने इस द्वीप की पूरी क्षमता का दोहन करते हुए बंगाल की खाड़ी में अपने हितों को साधने और उनके संरक्षण की कोशिश की है. 2019 में भारत ने अंडमान-निकोबार में नेवी और एयरफोर्स के बुनियादी ढांचे के विकास के लिए 682 मिलियन डॉलर आवंटित किए.[68] मई 2020 में लद्दाख को लेकर चीन के साथ टकराव की जो स्थिति बनी, उसके बाद भारत ने इस द्वीप में अतिरिक्त सैनिक, युद्धपोत, विमान और मिसाइल बैटरी तैनात की.[69] चीन जिस तरह इंडो-पैसेफिक क्षेत्र में अपनी मौजूदगी बढ़ाने की कोशिश कर रहा है, उसे देखते हुए भारत भी अंडमान-निकोबार में अपने मिलिट्री बेस को और आधुनिक बना रहा है.[70]  इसका मकसद चीन के साथ टकराव बढ़ाना नहीं बल्कि प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाकर किसी संभावित संघर्ष की स्थिति को रोकना है.

हालांकि कुछ पर्यवेक्षकों का ये मानना है कि अंडमान-निकोबार द्वीप पर भारी संख्या में सैनिकों की तैनाती से इस क्षेत्र के कुछ देश नाराज़ हो सकते हैं [o],[71] यही वजह है कि भारत अपने कुछ पूर्वी पड़ोसी देशों और बड़ी शक्तियों को इस द्वीप के विकास में शामिल करना चाहता है. उदाहरण के लिए भारत और इंडोनेशिया इस बात का आंकलन कर रहे हैं कि पोर्ट ब्लेयर एयरपोर्ट और इंडोनेशिया के सबांग एयरपोर्ट के बीच कनेक्टिविटी कैसे बढ़ाई जाए.[72] मार्च 2002 में जापान इंटरनेशनल कॉरपोरेशन एजेंसी के साथ समझौता किया, जिसके तहत ये एजेंसी इस द्वीप में बिजली आपूर्ति परियोजना के लिए 133 मिलियन डॉलर की मदद देगी.[73]

. पूर्वी नौसेना को मज़बूत करना

इस क्षेत्र में अपनी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए भारत पानी के अंदर निगरानी को बढ़ा रहा है. इसके लिए और ज्य़ादा पनडुब्बियों और पनडुब्बी रोधी युद्धक जहाजों की तैनाती की जा रही है.[74] साल 2025 तक भारतीय नौसेना के बाद 175 जहाज हो जाएंगे.[75]  2047 तक नौसेना को पूरी तरह आत्मनिर्भर बनाने की योजना है.[76] इस वक्त 43 में से 41 जहाजों का निर्माण भारत के शिपयार्डों में हो रहा है. 49 जहाज और पनडुब्बियों के निर्माण को भी मंजूरी मिल चुकी है.[77] इस वक्त भारत का ध्यान आधुनिक क्षमता वाले निर्माण और अपनी समुद्री सीमा में आने वाली सुरक्षा की जटिल चुनौतियों से निपटने पर केंद्रित है. हालांकि, जहाज़ के निर्माण की रफ्त़ार भारत की सुरक्षा ज़रूरतों के हिसाब से धीमी है. भारत की तीनों सेनाओं में सबसे कम बजट नौसेना को ही आवंटित किया जाता है, जबकि भारत की भू-राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं में नेवी की भूमिका अहम हो गई है. भारत में युद्धपोत बनाने की रफ्तार चीन की तुलना में धीमी है. अगर समुद्र के नीचे काम आने वाले उपकरणों के हिसाब से देखें तो भारत और चीन के बीच का ये अंतर और स्पष्ट दिखता है.[78] फिर भी ये कोशिश की जा रही है कि युद्धपोत के निर्माण में तकनीक़ी विकास को अपनाने की प्रक्रिया जारी है.[79]

. समुद्री सीमा को लेकर जागरूकता बढ़ाना

सैन्यीकरण के साथ-साथ बंगाल की खाड़ी की रक्षा की प्रभावी रणनीति बनाने के लिए समुद्री सीमा या समुद्री अधिकार क्षेत्र (MDA) को लेकर जागरूकता भी ज़रूरी है. एमडीए से तात्पर्य समुद्री वातावरण से जुड़ी ऐसी किसी भी गतिविधि से है, जिसका असर रक्षा, सुरक्षा, आर्थिक या फिर पर्यावरण के क्षेत्र में दिख सकता है.[80] एमडीए सूचना-फैसला लेने और कार्रवाई करने की एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके ज़रिए कोई देश इस बात का मूल्यांकन करता है कि उसके समुद्री क्षेत्र पर कोई ख़तरा तो नहीं है. भारत भी एमडीए को विकसित करने की कोशिश कर रहा है. नवंबर 2008 में मुंबई में हुए आतंकी हमले के बाद राष्ट्रीय समुद्री सीमा जागरूकता अभियान जैसी पहल के ज़रिये भारत समुद्री गतिविधियों से जुड़ी सभी एजेंसियों, तटीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश को एक नेटवर्क के नीचे ला रहा है. भारत के एमडीए को कोस्टल सर्विलांस नेटवर्क (कोस्ट गार्ड के तहत कोस्टल रडार से निगरानी) और नेशनल ऑटोमेटिक आइडेंटिफिकेशन सिस्टम से बड़ी मदद मिल रही है.[81]

दिसंबर 2018 में भारतीय नौसेना द्वारा स्थापित इंफोर्मेशन फ्यूज़न सेंटर- इंडियन ओशिन रीजन (IFC-IOR) शिपिंग ट्रैफिक और दूसरी गतिविधियों के बारे में अहम सूचना मुहैया करा रहा है. इसमें 5 सहयोगी देश हैं, जिसमें से 12 ने इंटरनेशनल लाइज़न अफसर (ILOs) तैनात किए हैं. इसके अलावा इसमें 40 संगठन भी हैं.[p],[82] बंगाल की खाड़ी के तटीय देशों में बांग्लादेश, श्रीलंका और म्यांमार भी इसमें साझेदार हैं. इन्होंने ILOs को भी तैनात किया है.[83] एमडीए को और मज़बूत बनाने के लिए भारत ने बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका और थाईलैंड के साथ व्हाइट शिपिंग एग्रीमेंट भी किया है. इसके ज़रिए भारत इन देशों के साथ व्यापारिक जहाजों के बारे में सूचनाओं का आदान-प्रदान करता है. भारत ने एडवांस नेविगेशन सिस्टम स्थापित करने में थाईलैंड की और निगरानी की क्षमता बढ़ाने के लिए म्यांमार में रडार और सोनार उपकरण लगाने में मदद करने का भी फैसला किया है.[84] भारत बिम्सटेक साझा सूचना केंद्र योजना के कार्यान्वयन में भी तेज़ी ला रहा है.[85] ये क्षेत्रीय स्तर पर एमडीए स्थापित करने की दिशा में पहला कदम है, लेकिन गैप फ्री इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस सुनिश्चित करना अब भी चुनौती बना हुआ है.[86]  वैसे सबसे अहम बात ये है कि इस क्षेत्र में सुरक्षा की चुनौतियों की पहचान करने, अवैध गतिविधियों और पर्यावरण के ख़तरों का सामना करने के लिए एमडीए ज़रूरी है.

. तटीय रेखा की रक्षा करना

नवंबर 2008 में मुंबई पर हुआ आतंकी हमले के बाद भारत ने तटीय सुरक्षा पर ज्य़ादा ज़ोर देना शुरू किया. अंतर्राष्ट्रीय सामुद्रिक संगठन और क्षेत्रीय सहयोग समझौते में एशिया के जहाजों में समुद्री डकैती और सशस्त्र डकैती रोकने के लिए जिन सिद्धांतों की बात की गई, भारत ने उसी हिसाब से काम करना शुरू किया. [q],[87] समुद्री डकैती और हथियारबंद डकैती रोकने के लिए अलग-अलग एजेंसियों के बीच समन्वय, सूचना साझा करने की आसान प्रक्रिया, एकीकृत रणनीति, सीमित संसाधनों का अधिकतम इस्तेमाल, त्वरित कार्रवाई, निगरानी और गश्त में बढ़ोत्तरी और अपराधियों की तुरंत गिरफ्तारी और केस चलाकर सज़ा दिलाने पर ज़ोर दिया गया.[88] भारतीय नौसेना और पूरे समुद्री क्षेत्र (तटीय इलाकों की सुरक्षा भी) की ज़िम्मेदारी दी गई जबकि कोस्ट गार्ड के पास तटीय क्षेत्र और स्टेट मरीन पुलिस (SMP) की ज़िम्मेदारी है.[r],[89] भारत के बड़े सार्वजनिक और निजी बंदरगाहों की सुरक्षा भी इंटरनेशनल शिप और पोर्ट फैसिलिटी सिक्योरिटी कोड [s] के हिसाब से मज़बूत की जा रही है. छोटे बंदरगाहों की सुरक्षा के लिए भी गृह मंत्रालय ने गाइडलाइंस जारी की है. [t] सभी बड़े बंदरगाहों, चुने हुए दूसरे बंदरगाहों और भारतीय कस्टम पोर्ट की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) को दी गई है.[90] सशस्त्र डकैती होने की सूरत में कोस्ट गार्ड, SMP, कस्टम और बंदरगाह से जुड़े प्राधिकरण आपसी समन्वय बनाकर प्रतिक्रिया देते हैं. चूंकि अब भारत बंदरगाह और बंदरगाहों से जुड़ी गतिविधियों के ज़रिए विकास की योजना बना रहा है तो ऐसे में तटीय क्षेत्रों की सुरक्षा और भी ज्य़ादा महत्वपूर्ण हो जाती है.

. राष्ट्रीय विधेयक और अन्तर्राष्ट्रीय बातचीत

2019 में भारतीय संसद ने समुद्री डकैती के ख़िलाफ एक विधेयक पास किया था. हालांकि इसे अब तक राष्ट्रपति की सहमति का इंतज़ार है. इस विधेयक में समुद्री डकैती को अपराध माना गया है. इसके साथ ही ये एजेंसियों को अन्तर्राष्ट्रीय परिवहन और घरेलू संचालन को सुनिश्चित करने का अधिकार देता है. इसका मकसद अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग और क्षेत्रीय साझेदारी को मज़बूत करते हुए समुद्री डकैती को रोकना है.[91] समुद्री मत्स्य पालन (विनियमन और प्रबंधन) विधेयक विदेशी जहाजों को भारत के एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक ज़ोन में मछली पकड़ने से प्रतिबंधित करता है.[92] हालांकि इस विधेयक को अभी पारित किया जाना बाकी है. भारत ने 2015 में ब्लू इकोनॉमी को लेकर बांग्लादेश के साथ एक समझौता ज्ञापन पर भी हस्ताक्षर किए थे. इसके अनुसार दोनों देश अपनी-अपनी समुद्री सीमा में होने वाली अवैध गतिविधियों को रोकेंगे, साथ ही एक-दूसरे की समुद्री सीमा में मछली पकड़ने का काम भी नहीं करेंगे. अगर गलती से मछुआरे एक-दूसरे देश की समुद्री सीमा में चले जाते हैं तो उस समस्या का समाधान करने की बात भी इस समझौते में है. हालांकि अभी तक इस समझौते के दस्तावेज़ औपचारिक तौर पर पूरे नहीं हो सके हैं. इस देरी की एक वजह ये भी हो सकती है कि दोनों देशों के मछुआरों द्वारा एक-दूसरे देश की समुद्री सीमाओं के अतिक्रमण की घटनाएं बहुत कम हुई हैं.[93]

. संयुक्त नौसैनिक अभ्यास

सिक्योरिटी एंड ग्रोथ फॉर ऑल इन द रीजन (SAGAR) पहल के तहत भारतीय नौसेना बंगाल की खाड़ी के तटीय देशों और प्रमुख शक्तियों के साथ संयुक्त नौसैनिक अभ्यास और गश्त कर रही है. इसमें जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के साथ मालाबार एक्सरसाइज, भारत-थाईलैंड- सिंगापुर और भारत-जापान संयुक्त युद्धाभ्यास शामिल हैं. इसके अलावा बांग्लादेश, म्यांमार, इंडोनेशिया और थाईलैंड के साथ साझा गश्त भी की गई. इन युद्धाभ्यासों का मकसद नौसेनाओं के बीच समन्वय बढ़ाना तो है ही, साथ ही इसके साथ अवैध गतिविधियों जैसे की समुद्री आतंकवाद, अवैध रूप से मछली पकड़ना, ड्रग तस्करी, मानव तस्करी और सशस्त्र


. बहुपक्षीय मंचों का इस्तेमाल

BIMSTEC’s संगठन का प्रमुख सदस्य होने के नाते बंगाल की खाड़ी की सुरक्षा भारत की प्राथमिकता है. [u] भारत ने इस समूह से खाड़ी की सुरक्षा चिंताओं को दूर करने का आह्वान किया है, जिसके बाद उसने इस काम के लिए कुछ कानूनी दस्तावेज़ बनाए. अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद, अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराध और अवैध नशीली चीजों [v] का मुकाबला करने के लिए हुए बिम्सटेक सम्मेलन में इसे लेकर कुछ सहमतियां बनी हैं. कानूनी मामलों में सहायता के लिए भी बिम्सटेक ने व्यवस्था बना रखी है.[94] इसके अलावा मानव तस्करी पर बिम्सटेक सम्मेलन, दोषी अपराधियों के ट्रांसफर पर बिम्सटेक सम्मलेन और प्रत्यर्पण पर बिम्सटेक सम्मलेन में बातचीत चल रही है.[95]  2005 में बिम्सटेक ने आतंकवाद निरोधी और अन्तर्राष्ट्रीय अपराधों के खिलाफ एक संयुक्त कार्यकारी समूह भी बनाया था.[96]


. पर्यावरण संबंधी चिंताओं पर काम करना

2004 में हिंद महासागर में आई सुनामी के बाद भारत ने अपनी आपदा प्रबंधन क्षमता पर काम करना शुरू किया. 2005 में आपदा प्रबंधन एक्ट पास किया गया. इसके अलावा 2009 में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन नीति, 2016 में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना बनाई गई. इसमें 2019 में कुछ संशोधन किए गए. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) का भी गठन किया गया. इसका काम देशभर में आपदा प्रबंधन के काम की निगरानी करना और राज्य और जिला स्तरीय आपदा प्रबंधन की एजेंसियों के साथ समन्वय करना होता है.

शांतिकाल में भारतीय नौसेना कई मानवीय सहायता और आपदा राहत (HADR) के काम में मदद पहुंचाने का काम करती है. उदाहरण के लिए 2004 में आई सुनामी में भारत ने मदद के काम के लिए श्रीलंका, मॉलदीव और इंडोनेशिया में नौसेना की तैनाती की. दूसरे देश भी भारत की मदद को इसलिए पसंद करते हैं क्योंकि भारत किसी के आतंरिक मामले में दख़ल नहीं देता. सरकार के स्तर पर बातचीत होती है. भारत इस सिद्धांत पर चलता है कि ‘रक्षा का अधिकार’ मानवीय दख़ल का बहाना नहीं होना चाहिए.[97] इसी वजह ने भारत ने HADR को पड़ोसियों के साथ रिश्ते मज़बूत करने की दिशा में एक उपकरण के तौर पर इस्तेमाल किया है. हालांकि कई बार भारत की मदद को अस्वीकार भी किया गया. 2007 में बांग्लादेश में आए सिद्र तूफान के दौरान जब भारत ने वहां मदद भेजी तो बांग्लादेश ने भारत से कहा कि उसकी मदद सिर्फ चिटगांव बंदरगाह और ढाका एयरपोर्ट तक ही सीमित रहेगी. भारतीय हेलीकॉप्टर्स को बांग्लादेश के अंदरूनी इलाकों में राहत के काम में इस्तेमाल नहीं किया गया.[98]

हालांकि, बिम्सटेक क्षेत्र में भारत के अंतर्गत ‘आपदा प्रबंधन’ 2004 में आई सुनामी के बाद कई साल तक सक्रिय रहा लेकिन 2016 तक आते-आते ये एक तरह से निष्क्रिय हो गया. तब जाकर इसे आपदा कूटनीति के एक ‘प्राकृतिक मंच’ के रूप में फिर से मज़बूत करने की कोशिश शुरू हुई.[99] बिम्सटेक ने अब HADR अभ्या करने शुरू कर दिए हैं. इस तरह का आखिरी अभ्यास 2021 में हुआ था.[100] समुद्री सुरक्षा पर सहयोग के लिए बिम्सटेक के विशेषज्ञों के समूह की एक बैठक 2022 में हुई. इस मीटिंग में समुद्री सहयोग पर संकल्पना पत्र को अंतिम रूप दिया गया. इसके साथ ही बंगाल की खाड़ी में सहयोग के पांच मुख्य बिंदु भी चिन्हित किए गए. इन पांच बिंदुओं में समुद्री सीमा को लेकर जागरूकता, मानवीय सहायता और आपदा में राहत, तेल से प्रदूषण पर प्रतिक्रिया, ब्लू इकोनॉमी और समुद्री सुरक्षा के क्षेत्र में सहयोग शामिल है.[101] अक्टूबर 2023 में मानवीय सहायता और आपदा राहत पर बिम्सटेक के दिशानिर्देशों में कुछ सुधार किए गए. इसके साथ बंगाल की खाड़ी में HADR संचालन के लिए एक रूपरेखा बनाई गई.[102] ये सारे कदम क्षेत्रीय आपदा से निपटने के लिए की जा रही भारत की तैयारियों को ज़ाहिर करते हैं. ये उस सेंडाई फ्रेमवर्क का भी हिस्सा है, जिसमें कहा गया है कि 2015 से 2030 के बीच आपदा के ज़ोखिम को कम से कम किया जाए. इस पर बंगाल की खाड़ी के सभी तटीय देशों ने दस्तख़त कर रखे हैं. हालांकि बिम्सटेक अभी भी बज़ट की कमी और कुछ संस्थागत कमज़ोरियों का सामना कर रहा है. अगर क्षेत्रीय आपदा प्रबंधन की दिशा में ठोस काम करना है तो बिम्सटेक की इन कमज़ोरियों को दूर करना होगा.[103]

निष्कर्ष

अगर बंगाल की खाड़ी सुरक्षित और स्थिर रहेगी तो इसमें इंडो-पैसोफिक क्षेत्र में भी स्थिरता बनाए रखने की क्षमता है. तटीय देशों के समग्र विकास के लिए बंगाल की खाड़ी का सुरक्षित रहना बहुत ज़रूरी है. इससे इंडो-पैसेफिक क्षेत्र में भी समृद्धि बढ़ेगी. बंगाल की खाड़ी क्षेत्र का प्रमुख देश होने के नाते भारत के पास मौका भी है और ये उसकी नैतिक ज़िम्मेदारी भी है कि वो दूसरे तटीय देशों और दुनिया की प्रमुख शक्तियों के साथ सहयोग कर इंडो-पैसेफिक क्षेत्र को सुरक्षित और स्थिर रखने की दिशा में काम करे.

 हालांकि चीन जैसे आक्रामक देशों की वजह से इस क्षेत्र में सुरक्षा चिंताओं और उनका सामना करने के लिए सहयोग की दिशा में आगे बढ़ना उतना आसान नहीं है. इसका कारण ये है कि ज्य़ादातर तटीय देश और कई बड़ी शक्तियां भी व्यापार के लिए चीन पर निर्भर हैं. उदाहरण के लिए क्वॉड को अपने उद्देशयों में विविधता लानी थी. चीन मानता है कि क्वॉड का गठन सिर्फ उसे काबू में करने के लिए किया गया, जबकि क्वॉड को अवैध रूप से मछली पकड़ने, मानवीय सहायता और आपदा राहत और आपदा राहत पर भी काम करना था.[104] इससे इस बात के संकेत मिलते हैं कि भारत को बंगाल की खाड़ी में सुरक्षा सहयोग को लेकर किस दिशा में बढ़ना चाहिए.

 अपनी पूर्वी कमांड को मज़बूत करने और अंडमान-निकोबार द्वीप की सामरिक क्षमता का दोहन करने के लिए भारत के लिए ये भी ज़रूरी है कि बंगाल की खाड़ी की सुरक्षा के लिए वो तटीय देशों और प्रमुख शक्तियों को भी इसमें शामिल करे. अपराध की चुनौतियों से निपटने और पर्यावरण संबंधी चिंताओं पर काम करके इसे हासिल किया जा सकता है. चूंकि ये मानवजनित चुनौतियां है, इस पर काम करने से किसी दूसरे देश को निशाना बनाना ज़रूरी नहीं है, इसलिए चीन की नाराज़गी की चिंता किए बिना कई तटीय देश इस काम में भारत का सहयोग कर सकते हैं. इससे खाड़ी क्षेत्र के सभी हितधारक देशों के बीच सुरक्षा में सहयोग के लिए एक समावेशी वातावरण तैयार होगा. सभी समान सोच वाले देश इस समुद्री सीमा की रक्षा के लिए एक साथ आएंगे

भारत को बंगाल की खाड़ी में सहयोग बढ़ाने के लिए कुछ खास क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना होगा. एक स्पष्ट कानून राज स्थापति करने के लिए खाड़ी क्षेत्र में शामिल सभी सदस्यों को संयुक्त राष्ट्र के समुद्री कानूनों की (UNCLOS) एक जैसी व्याख्या करनी होगी. भारत को राजनयिक संवेदनशीलता और सभी संबद्ध समुदायों की भावनाओं की चिंता करते हुए श्रीलंका के साथ अवैध मछली पकड़ने की समस्या का समाधान खोजना चाहिए. बांग्लादेश के साथ भी इसी तरह की जो समस्या है, उसका भी हल तलाशना होगा. भारत को आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने पर भी ज़ोर देना होगा. भारत को खाड़ी क्षेत्र में आपदा ज़ोखिम से निपटने की अपनी तैयारियों को दुरूस्त करने पर ध्यान देना चाहिए. एक और ज़रूरी काम ये है कि भारत बंगाल की खाड़ी के तटीय देशों को समुद्र में प्लास्टिक प्रदूषण के ख़तरों के प्रति जागरूक करे और इन सभी देशों से इस समस्या के समाधान के लिए मिलकर कार्रवाई करने की अपील करे.

Footnotes

  1. अलफ्रेड थायर माहन को उनकी मौलिक रचना“The Influence of Sea Power Upon History” के लिए जाना जाता है. इस किताब में ये राष्ट्रों की एतिहासिक सर्वोच्चता में नौसेना की शक्ति की अहमियत के बारे में बताया गया है. उनके विचार उन देशों के लिए अब भी प्रसांगिक बने हुए हैं, जो अपनी नीतियों में समुद्र को महत्व देते हैं. जो ये चाहते हैं कि समुद्र से मिलने वाले प्राकृतिक लाभों का वो किस तरह अपने राष्ट्रीय हित में उपयोग कर सकते हैं और उसी हिसाब से अपना भू-राजनीतिक दृष्टिकोण तैयार करते हैं.
  2. इस पेपर के लिए बंगाल की खाड़ी क्षेत्र का मतलब बंगाल की खाड़ी और अंडमान सागर माना जाएगा. जब तक कि किसी खास क्षेत्र का अलग से जिक्र ना किया जाए. इसके तटीय देशों में भारत, बांग्लादेश, श्रीलंका, म्यांमार और थाईलैंड को शामिल माना जाएगा. हालांकि इंडोनेशिया का सुमात्रा क्षेत्र भी अंडमान-निकोबार सागर में खुलता है लेकिन वास्तव में ये मलेशिया और सिंगापुर की तरह मलक्का जलसंधि का तटीय क्षेत्र में आता है.
  3. बंगाल की खाड़ी का सतही क्षेत्र2.172 मिलियन स्क्वॉयर किमी और अंडमान सागर का सतही क्षेत्र797,700 स्क्वॉयर किमी है
  4. बंगाल की खाड़ी क्षेत्र के दक्षिण एशियाई देशों में भारत, बांग्लादेश और श्रीलंका शामिल हैं.
  5. मलक्का जलडमरू मध्य 500 मील लंबा और एक संकरा चोकप्वाइंट है, जो एशिया और यूरोप को जोड़ने वाला एक मुख्य व्यापारिक मार्ग है. दुनिया का करीब 40 प्रतिशत सालाना व्यापार यहीं से होकर गुज़रता है. अमेरिका, चीन, दक्षिण कोरिया, इंडोनेशिया और सिंगापुर मलक्का जलडमरू मध्य, बंगाल की खाड़ी या फिर सीधे खाड़ी के रास्ते भारत के साथ व्यापार करते हैं.
  6. अमेरिका, चीन, दक्षिण कोरिया, इंडोनेशिया और सिंगापुर मलक्का जलडमरू मध्य, बंगाल की खाड़ी या फिर सीधे खाड़ी के रास्ते भारत के साथ व्यापार करते हैं.
  7. सुरक्षा की परंपरागत चुनौतियां सीधे किसी देश की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के लिए ख़तरा पैदा करते हैं, जबकि गैर परंपरागत ख़तरे पर्यावरण से जुड़े या फिर मानवजनित होते हैं. ये देशों के साथ-साथ इंसान के लिए भी ख़तरा पैदा करते हैं. परंपरागत ख़तरे आम तौर पर देश की सीमाओं तक सीमित होते हैं जबकि गैर परंपरागत ख़तरे देश की सीमाओं से पार जाते हैं.
  8. इसमें 2018 के शंग्रीला डायलॉग में दिया गया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कीनोट्स संबोधन भी शामिल है. इसके अलावा अगस्त 2022 में थाईलैंड की चुलालॉन्गकोर्न यूनिवर्सिटी में विदेश मंत्री एस जयशंकर का‘इंडियाज विज़न ऑफ द इंडो-पैसेफिक’ संबोधन और नवंबर 2022 में इंडो-पैसेफिक रीजनल डायलॉग में दिया गया रक्षा मंत्री राजनाथ का संबोधन भी शामिल किया गया है.
  9. भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के राजनयिकों का ये समूह एक मुक्त, खुले, समृद्ध और समावेशी इंडो-पैसेफिक क्षेत्र की दिशा में काम कर रहा है.
  10. भारत ने जब‘लुक ईस्ट’ की नीति अपनाई, तब भी उसे बंगाल की खाड़ी में बांग्लादेश के साथ अनसुलझी समुद्री सीमा की समस्या का सामना करना पड़ा था. लेकिन दोनों देशों की सरकारों ने इस बात को लेकर सावधानी बरती कि इस विवाद की छाया द्विपक्षीय रिश्तों पर ना पड़े. 2014 में इस समस्या को सुलझा लिया गया. अन्तर्राष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायालय के फैसले के मुताबिक समुद्री सीमा का सीमांकन किया गया.
  11. जैसे कि भारत की‘एक्ट ईस्ट’ और‘पड़ोसी प्रथम’ की नीति. चीन की ‘बेल्ट और रोड इनीशिएटिव’ और ‘नई समुद्री सिल्क रूट पहल’. अमेरिका की ‘एशियै का ओर धुरी’ नीति, जापान की ‘मुक्त और खुले इंडो-पैसेफिक क्षेत्र’ और ऑस्ट्रेलिया की ‘लुक वेस्ट’ नीति.
  12. म्यांमार के कोको द्वीप पर चीन नियंत्रण और निगरानी की सुविधाओं का निर्माण कर रहा है. चीन का मकसद यहां से भारत के बालासोर मिसाइल टेस्ट रेंज क्षेत्र पर निगरानी रखना है. चीन ये भी चाहता है कि कोको द्वीप से वो भारत के रामबिली नेवल बेस पर उसकी पहली परमाणु पनडुब्बी की भी चौकसी करे. कोको द्वीप भारत के अंडमान-निकोबार द्वीप में स्थित सुदूर पूर्व नौसैनिक अड्डे से सिर्फ 55 किमी दूर है. इतना ही नहीं चीन ने एक पनडुब्बी अड्डा बनाने में बांग्लादेश की भी मदद की. बीएनएस शेख हसीना नाम का ये सबमरीन बेस बांग्लादेश केकॉक्स बाज़ार इलाके में है.इस बेस का इस्तेमाल खाड़ी से गुजरने वाले जहाजों द्वारा किया जाएगा, जिसमें चीन के जहाज भी शामिल हैं. इस अड्डे ने चीन को अब भारत की पूर्वी नौसैनिक कमांड पर होने वाली घटनाओं पर नज़र रखने का मौका दे दिया है. अब वो चीन-बांग्लादेश-म्यांमार के बीच एक कॉरिडोर बनाने पर भी काम कर रहा है, जिससे बंगाल की खाड़ी और हिंद महासागर क्षेत्र में उसका प्रभुत्व बढ़ सके.
  13. समुद्र पर संयुक्त राष्ट्र के कानूनों (UNCLOS) के मुताबिक एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक ज़ोन में हर देश के कुछ विशेष अधिकार होते हैं.(क्षेत्रीय समुद्र पर पूर्व अधिकार के साथ तट से 12 नॉटिकल मील दूरी तक भी). बेसलाइन को आम तौर पर तट के साथ कम रेखा वाले पानी से नापा जाता है. जैसा कि तटीय देश द्वारा स्वीकृत चार्ट में दिखाया गया है. ईईज़ेड क्षेत्रीय समुद्र के करीब और उससे आगे तक जाता है. इसे बेसलाइन से 200 नॉटिकल मील तक विस्तारित किया जा सकता है. ये तभी तक स्वीकार्य है जब तक वोUNCLOS के अनुकूल हो. देशों को उन तटीय राज्यों के नियम-कानूनों का सम्मान करना चाहिए, जहां वो ईईज़ेड स्थित हैं. अमेरिका के नौसैनिक अभ्यास (FONOP’s) ने भारत के समुद्री सीमा पर UNCLOS के कानून की अनदेखी की. अमेरिका ने ये समझा कि ईईज़ेड अंतर्राष्ट्रीय जल क्षेत्र का हिस्सा है, जहां उसे अपने नेविगेशन की स्वतंत्रता की जांच करने का अधिकार है.

 

  1. हिंद महासागर को कोई बार‘दुनिया का ख़तरनाक बेल्ट’ कहा जाता है. क्योंकि यहां आपदा आने की आशंकाएं बहुत ज्य़ादा हैं. ये प्राकृतिक आपदाएं भी हो सकती हैं और मानव निर्मित भी.

o.1980 में जब भारत ने अंडमान और निकोबार कमांड को विकसित करना शुरू किया, तब इंडोनेशिया और मलेशिया ने ये समझा कि भारत अपनी सामरिक ताकत को मलक्का जलडमरू मध्य से आगे भी विस्तार देना चाहता है. हालांकि इन दोनों देशों के साथ अब भारत के रिश्ते बेहतर हैं लेकिन ऐसी परिस्थिति दोबारा आ सकती है.

  1. IFC-IOR में भारत समेत 25 साझेदार देश हैं. इनमें 12 इंटरनेशनल लाइज़न अफसर (ILOs) हैं. ये देश हैं ऑस्ट्रेलिया(ILO), ब्राज़ील और बांग्लादेश(ILO), कोमोरोस, फ्रांस (ILO), इटली (ILO), जापान (ILO), केन्या, मेडागास्कर, मलेशिया और मॉलदीव (ILO), मॉरीशस (ILO), म्यांमार (ILO), न्यूज़ीलैंड, नाइज़ीरिया, ओमान, फिलीपींस, सेशेल्स (ILO), सिंगापुर (ILO), स्पेन, अमेरिका (ILO), तंज़ानिया, श्रीलंका (ILO), और दक्षिण अफ्रीका. तेरहवां ILO ब्रिटेन से है, हालांकि वो साझेदार देश नहीं है. IFC-IOR का इंटरेशनल मैरीटाइम ऑर्गनाइजेशन, इंडिया ओशिन रिम एसोसिएशन और यूनाइटेड नेशंस ऑफिस ऑन ड्रग्स एंड क्राइम के साथ सहयोगात्मक गठबंधन है.

 

  1. एशिया में जहाजों पर समुद्री डकैती और सशस्त्र डकैती के ख़िलाफ क्षेत्रीय सहयोग समझौते को 11 नवंबर 2004 को औपचारिक रूप दिया गया. ये इस तरह का पहला और इकलौता समझौता है, जहां सरकारों के बीच समुद्री डकैती रोकने को लेकर ऐसी सहमति बनी है. ये समझौता 4 सितंबर 2006 से लागू हुआ. इसी समझौते के आधार पर 29 नवंबर 2006 को सिंगापुर में सूचना साझा करने के केंद्र की स्थापना की गई. फिलहाल 21 देश, 14 एशियाई और 7 गैर एशियाई देश इससे अनुबंधित हैं. इससे समझौते का उद्देशय क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाकर व्यापार और चालक दल से जुड़े लोगों को समुद्री डकैती से बचाना है. ऐसा करने के लिए तीन कदम उठाए जा रहे हैं. सूचनाओं को साझा करना, अपनी क्षमता का निर्माण करना और सहयोगात्मक समझौते. ऐसा करने से इस समझौते में शामिल सभी पक्ष, शिपिंग उद्योग और अंतर्राष्ट्रीय साझेदारों को करीब लाने में भी मदद मिलती है.
  2. 1957 में अंडमान और निकोबाल पुलिस की मदद के लिए पुलिस कोस्ट गार्ड का निर्माण किया गया. 1968 में इस यूनिट का पुनर्गठन किया गया और इसे पुलिस मरीन फोर्स नाम दिया गया. 2001 में मंत्रियों के समूह द्वारा मरीन पुलिस के अंडमान मॉडल को मंजूरी दी गई. इसका मकसद समुद्र की सीमा और इस द्वीप की सुरक्षा को मज़बूत करना था. इसके बाद 2000 के दशक में सभी तटीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के पुलिस बल में समुद्री सीमाओं पर नज़र रखने वालों की नियुक्ति हुई. 2005 में जब गृह मंत्रालय ने तटीय सुरक्षा योजना शुरू की और 2008 में मुंबई पर हुए आतंकी हमले के बाद इस तटीय सुरक्षा बल की अहमियत और बढ़ी. फिलहाल स्टेट मरीन पुलिस को त्रिस्तरीय सुरक्षा चक्र का सबसे अंदरूनी स्तर माना जाता है. नौसेना और कोस्ट गार्ड इसके बाकी दो स्तर हैं.

    s. सितंबर 2001 में अमेरिका में हुआ आतंकी हमले के बाद इस कोड को विकसित किया गया. इसका मकसद जहाज और बंदरगाहों पर सुरक्षा ख़तरों का आंकलन करना और फिर सुरक्षा के उपाय सुझाना है.
  3. 2016 में भारत के गृह मंत्रालय ने उन बंदरगाहों के लिए“दिशानिर्देशों का एक पूरा संग्रह” जारी किया, जो बड़े या प्रमुख बंदरगाह नहीं हैं. ये दिशानिर्देश 2014 में गृह मंत्रालय की संसद की स्थायी समिति की उन सिफारिशों पर आधारित हैं, जिसमें ये कहा गया था कि समुद्री यातायात प्रबंधन को सुचारू रूप से चलाने के लिए गैर प्रमुख बंदरगाहों की तटीय और बंदरगाहों की सुरक्षा मज़बूत करने की आवश्यकता है.
  4. इस क्षेत्र को तीन उप-क्षेत्रों में विभाजित किया गया है. आतंकवाद निरोधी, अंतर्राष्ट्रीय अपराध, आपदा प्रबंधन और ऊर्जा.
  5. ये मार्च 2021 में लागू हुई. इसका मकसद कानून लागू करने वाली एजेंसियों के बीच सहयोग बढ़ाकर अवैध गतिविधियों को रोकना था. हालांकि इस समझौते में‘अनुरोध को अस्वीकार’ करने का अधिकार भी शामिल है. यानी ये किसी भी देश को ये अधिकार देता है कि वो सूचना देने के आवेदन को वापस ले सकता है क्योंकि इससे सार्वजनिक होने से उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा को ख़तरा पैदा हो सकता है.

 

Endnotes

[1] Ranendra Sawan, “India’s Maritime Identity,” National Maritime Foundation, January 18, 2023, https://maritimeindia.org/indias-maritime-identity/.

[2] Ministry of Defence, Government of India, Ensuring Secure Seas: Indian Maritime Security Strategy, New Delhi, Indian Navy, Integrated Headquarters, October 2015, https://www.indiannavy.nic.in/sites/default/files/Indian_Maritime_Security_Strategy_Document_25Jan16.pdf.,

[3] S. Jaishankar, “India’s Vision of the Indo-Pacific,” (speech, Thailand, Chulalongkorn University, August 18, 2022), https://mea.gov.in/Speeches-Statements.htm?dtl/35641/.

[4] Anu Anwar, “The Bay of Bengal Could be the Key to Free and Open Indo-Pacific,” War on the Rocks, June 17, 2022, https://warontherocks.com/2022/06/the-bay-of-bengal-could-be-the-key-to-a-free-and-open-indo-pacific/.

[5] Bohdan Borsh, “5 Major International Shipping Lanes & Route,” Sea Rates.

[6] Sajeeb Wazed, “Investment in Bay of Bengal Will Unlock Potential for Billions,” The Diplomat, July 5, 2017, https://thediplomat.com/2017/07/investment-in-bay-of-bengal-will-unlock-potential-for-billions/.

[7] Pankaj Batra et. al., Prospects of Regional Energy Cooperation and Cross Border Energy Trade in the BIMSTEC Region, Integrated Research and Action for Development and South Asia Regional Initiative for Energy Integration, February 2020, https://irade.org/BIMSTEC%20Background%20Paper_February%202020.pdf.

[8] “Why Natural Gas is a Strategic Fuel in India’s Energy Transition,” Energy World, December 13, 2022, https://energy.economictimes.indiatimes.com/news/oil-and-gas/why-natural-gas-is-a-strategic-fuel-in-indias-energy-transition/96196767.

[9] Vijay Sakhuja, “Fisheries and the Plastic Threat in the Bay of Bengal,” National Maritime Foundation, August 22, 2016, https://maritimeindia.org/fisheries-and-the-plastic-threat-in-bay-of-bengal/.

[10] Aaron O’Neill, “Twenty Countries with the Largest Population in Mid-2023,” Statista, January 22, 2024.

[11] Government of India, “Negotiating Group on Maritime Transport Services – Communication from India – Response to Questionnaire on Maritime Transport Services,” Ministry of Commerce and Industry, October 30, 1995.

[12] Government of India, “Total Trade: Top Countries,” Export Import Data Bank, Department of Commerce, Ministry of Commerce and Industry, 2022-2023, https://tradestat.commerce.gov.in/eidb/iecnttopn.asp.

[13] Government of India, “Text of Vice-President’s Address at the 2023 Edition of the “Indo-Pacific Regional Dialogue,” Vice President’s Secretariat, November 15, 2023.

[14]  Government of India, “PM’s Keynote Address at Shangri La Dialogue,” PMIndia, June 1, 2018, https://www.pmindia.gov.in/en/news_updates/pms-keynote-address-at-shangri-la-dialogue/.

[15] Government of India, “PM’s Keynote Address at Shangri La Dialogue”

[16] Government of India, “PM’s Keynote Address at Shangri La Dialogue”

[17] Ministry of Defence, Government of India, November 25, 2022, https://pib.gov.in/PressReleaseIframePage.aspx?PRID=1878750.

[18] Government of India, “Prime Minister’s Keynote Address at Shangri La Dialogue”

[19] David Brewster, “The Bay of Bengal: The Indo-Pacific’s New Zone of Competition,” The Strategist, December 2, 2014, https://www.aspistrategist.org.au/the-bay-of-bengal-the-indo-pacifics-new-zone-of-competition/.

[20] Brewster, “The Bay of Bengal: The Indo-Pacific’s New Zone of Competition”

[21] “The Top 10 Largest Economies in the World in 2024,” Forbes India, February 7, 2024, https://www.forbesindia.com/article/explainers/top-10-largest-economies-in-the-world/86159/1.

[22] Navya Mudunuri, “The Malacca Dilemma and Chinese Ambitions: Two Sides of a Coin,” Diplomatist, July 7, 2020, https://diplomatist.com/2020/07/07/the-malacca-dilemma-and-chinese-ambitions-two-sides-of-a-coin/.

[23] Darshana M. Baruah, “Maritime Security in the Bay of Bengal,” Seminar, March 1, 2018, https://www.india-seminar.com/semframe.html.

[24] Sohini Bose, “Continuity and Change in Bangladesh’s Indo-Pacific Outlook: Deliberating Post-Election Scenarios,” ORF Occasional Paper No. 424, January 2024, Observer Research Foundation, https://www.orfonline.org/research/continuity-and-change-in-bangladesh-s-indo-pacific-outlook-deliberating-post-election-scenarios.

[25]  Bose, “Continuity and Change in Bangladesh’s Indo-Pacific Outlook: Deliberating Post-Election Scenarios”

[26] Michael van Ginkel, “Japan’s Contributions to Maritime Stability in the Bay of Bengal,” East Asia Forum, May 23, 2020, https://www.eastasiaforum.org/2020/05/23/japans-contributions-to-maritime-stability-in-the-bay-of-bengal/.

[27] Anasua Basu Ray Chaudhury et al., India’s Maritime Connectivity: Importance of the Bay of Bengal (New Delhi: Observer Research Foundation, March 2018), https://www.orfonline.org/wp-content/uploads/2018/03/ORF_Maritime_Connectivity.pdf.

[28] David Brewster, “Australia’s Support for Bangladesh Will Bolster Regional Stability,” The Interpreter, September 25, 2023, https://www.lowyinstitute.org/the-interpreter/australia-s-support-bangladesh-will-bolster-regional-stability.

[29] Anasua Basu Ray Chaudhury, Pratnashree Basu, and Sohini Bose, Exploring India’s Maritime Connectivity in the Extended Bay of Bengal (Kolkata: Observer Research Foundation, November 2019), https://www.orfonline.org/research/exploring-indias-maritime-connectivity-in-the-extended-bay-of-bengal-58190/.

[30] Shishir Gupta, “India Raises Chinese Surveillance Facilities at Coco Islands with Myanmar,” Hindustan Times, June 18, 2023.; “China’s NEW ‘Look South Policy’ Isolates India in its Own Backyard as PLA Looks to Dominate ‘World’s Largest’ Bay,” The Eurasian Times, May 7, 2023.

[31] “US conducts Freedom of Navigation Operation Inside India’s EEZ: FAQs,” Times of India, April 9, 2021, https://timesofindia.indiatimes.com/india/us-conducts-freedom-of-navigation-operation-inside-indias-eez-faq/articleshow/81989124.cms.

[32]  “US Conducts Freedom of Navigation Operation Inside India’s EEZ: FAQs”

[33] United Nations, United Nations Convention on the Laws of the Sea, 1982, https://www.un.org/depts/los/convention_agreements/texts/unclos/unclos_e.pdf.

[34] Jeff M. Smith, “America and India Need a Little Flexibility at Sea,” Foreign Policy, April 15, 2021, https://foreignpolicy.com/2021/04/15/us-india-fonop-maritime-law/.

[35] Oriana Skylar Mastro, “How China is Bending the Rules in the South China Sea,” The Interpreter, February 17, 2021, https://www.lowyinstitute.org/the-interpreter/how-china-bending-rules-south-china-sea.

[36] Sreeparna Banerjee, “The Rohingya Crisis and its Impact on Bangladesh-Myanmar Relations,” ORF Issue Brief No. 396, August 26, 2020, Observer Research Foundation, https://www.orfonline.org/wp-content/uploads/2020/08/ORF_IssueBrief_396_Bangladesh-Myanmar.pdf.

[37]  “Deadly Journeys Through the Bay of Bengal and the Andaman Sea Threaten ‘Tragic and Fatal Consequences’,” UN News, August 19, 2021, https://news.un.org/en/story/2021/08/1098122.

[38] Banerjee, “The Rohingya Crisis and its Impact on Bangladesh-Myanmar Relations”

[39]How the Indian Government is Keeping Rohingya Out,” The Economic Times, October 15, 2017.

[40] Anasua Basu Ray Chaudhury, “Strengthening Anti-Human Trafficking Mechanisms in the Bay of Bengal Region,” ORF Issue Brief No. 421, November 9, 2020, Observer Research Foundation.

[41] Hannah Ellis Peterson and Ahmer Khan, “‘I Trusted Him’: Human Trafficking Surges in Cyclone-Hit East India,” The Guardian, June 13, 2023.

[42] Anasua Basu Ray Chaudhury, Sohini Bose, and Ambar Kumar Ghosh, A Draft Report on Maritime Threat Perceptions: Bangladesh, Sri Lanka and Maldives, Kolkata, Observer Research Foundation, March 2023.

[43] Basu Ray Chaudhury, Bose, and Ghosh, “A Draft Report on Maritime Threat Perceptions: Bangladesh, Sri Lanka and Maldives”

[44] Basu Ray Chaudhury, Bose, and Ghosh, “A Draft Report on Maritime Threat Perceptions: Bangladesh, Sri Lanka and Maldives”

[45] Collin Koh Swee Lean, “Promoting Maritime Security in the Bay of Bengal and Andaman Sea,” in Connectivity and Cooperation in the Bay of Bengal Region, Constantino Xavier and Amitendu Palit (eds.), CSEP, February 14, 2023, https://csep.org/reports/promoting-maritime-security-in-the-bay-of-bengal-and-andaman-sea/.

[46] “Narco Trafficking Through Bay of Bengal Maritime Route a New Challenge: NCB DG,” Deccan Herald, December 11, 2020, https://www.deccanherald.com/india/narco-trafficking-through-bay-of-bengal-maritime-route-a-new-challenge-ncb-dg-926229.html.

[47] Jay Benson, “Stable Seas: Bay of Bengal,” Stable Seas, One Earth Future, January 2020, 32, https://www.stableseas.org/post/stable-seas-bay-of-bengal.

[48] Himadri Das, “Armed Robbery at Sea in India: Trends and Imperatives,” National Maritime Foundation, February 26, 2021, https://maritimeindia.org/armed-robbery-at-sea-in-india-trends-and-imperatives/.

[49] Sohini Bose, Anasua Basu Ray Chaudhury, and Harsh V. Pant, “BIMSTEC on the Cusp: Regional Security in Focus,” ORF Issue Brief No. 563, July 18, 2022, Observer Research Foundation, https://www.orfonline.org/wp-content/uploads/2022/07/ORF_IssueBrief_563_BIMSTEC-Security.pdf.

[50] Harsh V. Pant and Baisali Mohanty, “Building a BIMSTEC Agenda for Counterterrorism,” ORF Issue Brief No. 212, November 28, 2017, Observer Research Foundation, https://www.orfonline.org/wp-content/uploads/2017/11/ORF_Issue_Brief_212_BIMSTEC-Counter_terrorism.pdf.

[51] Institute for Economics and Peace, Global Terrorism Index 2024: Measuring the Impact of Terrorism, February 2024, https://www.visionofhumanity.org/maps/global-terrorism-index/#/.

[52] Vijay Sakhuja and Somen Banerjee, Sea of Collective Destiny: Bay of Bengal and BIMSTEC (New Delhi: Vivekananda International Foundation, 2020).

[53]  Sohini Bose, “Finding Solutions to Fishermen Transgressions in the India-Bangladesh Maritime Space,” ORF Occasional Paper No. 331, September 2021, Observer Research Foundation, https://www.orfonline.org/wp-content/uploads/2021/09/ORF_OccasionalPaper_331_FishingTransgressions.pdf.

[54] N. Manoharan and Madhumita Deshpande, “Fishing in the Troubled Waters: Fishermen Issue in India–Sri Lanka Relations,” India Quarterly 74, no. 1, https://doi.org/10.1177/09749284177496.

[55] Sohini Bose, “Finding Solutions to Fishermen Transgressions in the India-Bangladesh Maritime Space”

[56] Arpita Goswami, “The Award and its Implications: Bay of Bengal Delimitation,” Economic and Political Weekly 49, no. 29 (July 19, 2014), https://www.epw.in/journal/2014/29/web-exclusives/award-and-its-implications.html.

[57] Government of India, “Membership of International Forums,” Disaster Management Division, Ministry of Home Affairs, https://ndmindia.mha.gov.in/membership-of-international-forums.

[58] Sohini Bose, “BIMSTEC and Disaster Management: Future Prospects for Regional Cooperation,” ORF Issue Brief No. 383, July 20, 2020, Observer Research Foundation, https://www.orfonline.org/research/bimstec-and-disaster-management/

[59] Bose, “BIMSTEC and Disaster Management: Future Prospects for Regional Cooperation”

[60] John Vidal, “Sea Change: the Bay of Bengal’s Vanishing Islands,” The Guardian, January 29, 2013, https://www.theguardian.com/global-development/2013/jan/29/sea-change-bay-bengal-vanishing-islands.

[61] Anamitra Anurag Danda, “Climate Change and Sea-Level Rise in the BIMSTEC Region: Towards a Suitable Response,” ORF Issue Brief No. 408, October 2020, Observer Research Foundation, http://20.244.136.131/research/climate-change-and-sea-level-rise-in-the-bimstec-region-towards-a-suitable-response#:~:text=Higher%20sea%20levels%20and%20receding,10%20and%2032%20mm%2Fyear.

[62] Sohini Bose, Sayanangshu Modak, and Anasua Basu Ray Chaudhury, “Threats to the Environment in the Indo-Pacific: Strategic Implications,” ORF Special Report No. 186, March 11, 2022, Observer Research Foundation,  https://www.orfonline.org/research/threats-to-the-environment-in-the-indo-pacific/.

[63] Sahana Ghosh, “Unpacking the Presence of Microplastics in the Bay of Bengal,” Mongabay, August 25, 2022, https://india.mongabay.com/2022/08/unpacking-the-presence-of-microplastics-in-the-bay-of-bengal/.

[64] Bose, Modak, and Basu Ray Chaudhury, “Threats to the Environment in the Indo-Pacific: Strategic Implications”

[65] Ashish Kumar Chauhan, “Plastic Waste Woes: A Primer on India’s Marine Litter Problem,” Down To Earth, January 11, 2023.

[66] Sakhuja, “Fisheries and the Plastic Threat in the Bay of Bengal”

[67] David Brewster et al., Australia‑India Indo‑Pacific Oceans Initiative: Regional Collaborative Arrangements in Marine Ecology in the Indo‑Pacific Baseline Study, Canberra, Australian Strategic Policy Institute, June 2022, https://hdl.handle.net/10356/169638.

[68] Rajat Pandit, “Eye on China, Government Finalises Rs 5,000-Crore Defence Plan for Andamans,” The Times of India, January 27, 2019.

[69] Abhijit Singh, “Militarising Andamans: The Costs and the Benefits,” Hindustan Times, July 29, 2020, https://www.hindustantimes.com/analysis/militarising-andamans-the-costs-and-the-benefits/story-J3mGWFQS3NgLUiPYwIVb2N.html.

[70] Shishir Gupta, “India Pushes Military Infra-Upgrade in Andamans, Monitors Coco Islands,” Hindustan Times, April 5, 2023, https://www.hindustantimes.com/india-news/india-pushes-military-infra-upgrade-in-andamans-monitors-coco-islands-101680664728490.html.

[71] Sohini Bose and Anasua Basu Ray Chaudhury, “The Andaman and Nicobar Islands: Indian Territory, Regional Potential,” ORF Issue Brief No. 495, September 27, 2021, Observer Research Foundation, https://www.orfonline.org/research/the-andaman-and-nicobar-islands-indian-territory-regional-potential/.

[72] Rezaul H. Laskar, “India, Indonesia Review Challenges in Forging Connectivity between Andaman, Aceh,” Hindustan Times, December 20, 2022, https://www.hindustantimes.com/india-news/india-indonesia-review-challenges-in-forging-connectivity-between-andaman-aceh-101671512449108.html.

[73] Sohini Bose, “India-Japan Collaborations: Andaman and Nicobar Islands in Focus,” Observer Research Foundation, April 14, 2022, https://www.orfonline.org/expert-speak/india-japan-collaborations/.

[74] KMP Patnaik, “Navy Focusing on Underwater Capabilities: ENC Chief,” Deccan Chronicle, December 3, 2022, https://www.deccanchronicle.com/nation/current-affairs/031222/navy-focusing-on-underwater-capabilities-enc-chief.html.

[75]Indian Navy Expects to have 170-175 Ships by 2035,” Indian Military Review, February 17, 2023.

[76]  Newton Sequeira, “Committed to Self-Reliance by 2047, says Naval Chief,” The Times of India, March 7, 2023, https://timesofindia.indiatimes.com/city/goa/committed-to-self-reliance-by-2047-says-naval-chief/articleshow/98463159.cms?from=mdr.

[77] Abhijit Singh, “India’s Maritime Power is Growing, but Challenges Loom,” Observer Research Foundation, August 15, 2023, https://www.orfonline.org/expert-speak/indias-maritime-power-is-growing-but-challenges-loom/.

[78] Singh, “India’s Maritime Power is Growing, but Challenges Loom”

[79] “Garden Reach Shipbuilders and Engineers Launches Gains 2023 to Leverage India’s Start-Up Ecosystem for Ship-Design,” India Shipping News, May 23, 2023, https://indiashippingnews.com/garden-reach-shipbuilders-and-engineers-launches-gains-2023-to-leverage-indias-start-up-ecosystem-for-ship-design/.

[80] International Maritime Organisation, Circular No. 1415, May 25, 2012, https://www.mardep.gov.hk/en/msnote/pdf/msin1242anx1.pdf.

[81] Himadri Das, “Ten Years After ‘26/11’: A Paradigm Shift in Maritime Security Governance in India?” National Maritime Foundation, November 28, 2018, https://maritimeindia.org/26-11-a-paradigm-shift-in-maritime-security/.

[82] Government of India, Information Fusion Centre-Indian Ocean Region, Indian Navy, https://www.indiannavy.nic.in/ifc-ior/.

[83] Government of India, Information Fusion Centre-Indian Ocean Region

[84] Anasua Basu Ray Chaudhury and Sohini Bose, “The Core of Security Cooperation in BIMSTEC: Maritime Domain Awareness,” Observer Research Foundation, June 29, 2022, https://www.orfonline.org/expert-speak/the-core-of-security-cooperation-in-bimstec/.

[85] BIMSTEC, “Security,” https://bimstec.org/security-2/.

[86] Das, “Ten Years After ‘26/11’: A Paradigm Shift in Maritime Security Governance in India?”

[87] ReCAAP Information Sharing Centre, https://www.recaap.org/about_ReCAAP-ISC.

[88] Das, “Armed Robbery at Sea in India: Trends and Imperatives”

[89] Himadri Das, “Marine Policing and Maritime Security in India: Evolving Dimensions,” National Maritime Foundation, November 25, 2021, https://maritimeindia.org/marine-policing-and-maritime-security-in-india-evolving-dimensions/.

[90] Das, “Armed Robbery at Sea in India: Trends and Imperatives”

[91]Maritime Anti-Piracy Bill Passed by Indian Parliament,” International Chamber of Shipping, February 2, 2023.

[92] Government of India, “The Indian Marine Fisheries Bill,” 2021, https://dof.gov.in/sites/default/files/2021-10/Draft_Indian_Marine_Fisheries_Bill_2021.pdf.

[93] Bose, “Finding Solutions to Fishermen Transgressions in the India-Bangladesh Maritime Space”

[94] Bose, Basu Ray Chaudhury, and Pant, “BIMSTEC on the Cusp: Regional Security in Focus”

[95] BIMSTEC, “Security”

[96]  BIMSTEC, “Security”

[97] Anasua Basu Ray Chaudhury and Sohini Bose, “Disasters without Borders: Strengthening BIMSTEC Cooperation in Humanitarian Assistance,” ORF Issue Brief No. 207, November 8, 2017, Observer Research Foundation, https://www.orfonline.org/research/disasters-without-borders-strengthening-bimstec-cooperation-in-humanitarian-assistance/.

[98]  Nilanthi Samaranayake, “Non-Traditional Security in the Bay of Bengal,” in Strategic High Tide in the Indo-Pacific: Economics, Ecology, and Security, Sohini Bose and Pratnashree Basu (eds.), Observer Research Foundation December 13, 2021, https://www.orfonline.org/expert-speak/non-traditional-security-in-the-bay-of-bengal/.

[99] Bose, “BIMSTEC and Disaster Management: Future Prospects for Regional Cooperation”

[100] Bose, Basu Ray Chaudhury, and Pant, “BIMSTEC on the Cusp: Regional Security in Focus”

[101] BIMSTEC, “Expert Group on Maritime Security Cooperation in the Bay of Bengal,” https://bimstec.org/expert-group-on-maritime-security-cooperation-in-the-bay-of-bengal.

[102] BIMSTEC, “Expert Group on Maritime Security Cooperation in the Bay of Bengal”

[103]  Sohini Bose and Anasua Basu Ray Chaudhury, “Baseline Report 9-Regional Collaboration in Marine Natural Disaster Management: A Study of the Bay of Bengal,” in Australia-India Indo-Pacific Oceans Initiative Regional Collaborative Arrangements in Marine Ecology in the Indo-Pacific Baseline Study.

[104] Government of the United States of America, “Fact Sheet: Quad Leaders’ Tokyo Summit 2022,” The White House, May 23, 2022.

 

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Authors

Sohini Bose

Sohini Bose

Sohini Bose is an Associate Fellow at Observer Research Foundation (ORF), Kolkata with the Strategic Studies Programme. Her area of research is India’s eastern maritime ...

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Anasua Basu Ray Chaudhury

Anasua Basu Ray Chaudhury

Anasua Basu Ray Chaudhury is Senior Fellow with ORF’s Neighbourhood Initiative. She is the Editor, ORF Bangla. She specialises in regional and sub-regional cooperation in ...

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